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इंदौर। दोस्ती की इस कहानी में दो मुख्य पात्र हैं। 22 साल का युवा यश रावल और 11 साल की बच्ची सिमर खंज। जितनी अनूठी दोनों की दोस्ती है उतनी ही अनूठी है इसकी शुरुआत। महज तीन महीने की उम्र में ही सिमर के माता-पिता गुरप्रीत और गुरबीर कौर खंज को पता चल गया था कि उनकी बेटी थैलेसीमिया से पीड़ित है। ऐसे में उसे बचाने के लिए हर महीने में ब्लड की जरूरत पड़ती थी। जिसका इंतजाम करना आसान नहीं होता था।
::/introtext::जिंदगी बचाने के काम आ रही 'जिंदगी'
तीन साल पहले प्रो. गुरबीर की मुलाकात 19 साल के एक ऐसे युवा से हुई जिसका ब्लड ग्रुप सिमर से मैच करता था। उसने हर तीन महीने में ब्लड अरेंज की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। तीन सालों से ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। खास बात ये कि यश ये मदद मानवता के नाते निस्वार्थ भाव से नि:शुल्क कर रहा है। वो कहता है कि दोस्ती का ये बंधन अनूठा है। ब्लड डोनेट करते समय कई बार सिमर से मुलाकात होती है। वो थैंक्स कह के मुस्करा देती है और मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी सफल हो गई क्योंकि ये किसी मासूम के काम आ रही है।
ब्लड कैंप के दौरान बनी बात
मां गुरबीर बताती हैं कि हम लोग हर दो-तीन महीने में ब्लड की जरूरत को लेकर बेहद परेशान रहते थे लेकिन यश ने हमारी मुश्किलें काफी हद तक आसान कर दी हैं। उससे हमारी मुलाकात स्पोर्ट्स टीचर ने एक ब्लड कैंप के दौरान कराई थी। उसे सिमर में एक बहन, एक नन्हीं दोस्त नजर आई और उसी समय उसने कह दिया कि इसके लिए ब्लड अरेंज करने की जिम्मेदारी मेरी है।
11 साल की उम्र में सिमर को हर 20-22 दिन में ब्लड की जरूरत होती है। आधी जरूरत हॉस्पिटल द्वारा पूरी की जाती है और बाकी यश और उसके दोस्त पूरी कर देते हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि वो थेलेसीमिया के हर मरीज को ऐसा दोस्त जरूर दें ताकि उसके जीवन की सबसे बड़ी मुश्किल कुछ आसान हो जाए।
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