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दुनियाभर में लोगों में मोटापे की बढ़ती समस्या को देखते हुए डब्लूएचओ ने पूरी रिसर्च के बाद हाल ही में अपडेटेड डाइट्री गाइडेंस जारी की है। दरअसल इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1975 के बाद से दुनिया भर में मोटापा लगभग तीन गुना हो गया है, और अधिक वजन या मोटापा 5 से 19 वर्ष के 340 मिलियन से अधिक बच्चों और टीएनएज को प्रभावित करता है - 2020 में 5 वर्ष से कम उम्र के 39 मिलियन बच्चे अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं। कुल मिलाकर WHO की ये रिपोर्ट आजीवन खासकर बच्चों के हेल्दी न्यूट्रीशन पर जोर देती है। आइए इस रिपोर्ट के बारे में विस्तार से जानते है।
सामान्य तौर पर, WHO पहले की तुलना में फैट और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पर कम ध्यान केंद्रित कर रहा है और क्वालिटी पर अधिक फोकस कर रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार एडल्ट को फैट की खपत को उनकी दैनिक कैलोरी का 30% या उससे कम तक सीमित करना चाहिए। किसी व्यक्ति की ऊर्जा खपत को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और एल्कोहल से मिलने वाली कैलोरी के रूप में मापा जाता है। उदाहरण के लिए, WHO की गाइडलाइन बताती हैं कि 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ज्यादा अनसेचुरेटेड फैट का सेवन करना चाहिए। उन्हें अपनी कुल कैलोरी का 10% से अधिक सेचुरेटेड फैट से उपभोग नहीं करना चाहिए, जिसमें 1% या उससे कम ट्रांस-फैटी एसिड होता है।
• 2 से 5 साल के बच्चों को रोजाना कम से कम 250 ग्राम सब्जियां और फल खाने चाहिए।
• 6 से 9 साल के बच्चों को रोजाना कम से कम 350 ग्राम सब्जियां और फल खाने चाहिए।
• 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों को रोजाना कम से कम 400 ग्राम सब्जियां और फल खाने चाहिए।
• 2 से 5 साल के बच्चों को रोजाना कम से कम 15 ग्राम फाइबर का सेवन करना चाहिए।
• 6 से 9 साल के बच्चों को रोजाना कम से कम 21 ग्राम फाइबर का सेवन करना चाहिए।
• 10 वर्ष या उससे अधिक उम्र के बच्चों को प्रतिदिन कम से कम 25 ग्राम फाइबर का सेवन करना चाहिए।
ब्रोकली से लेकर केले और सेब से लेकर एवोकाडो जैसे फूड आइटम्स में फाइबर पाया जाता है। ऐसे में ये जरूरी है कि जंक फूड की मात्रा कम कर इन सभी चीजों को बच्चों की डाइट में शामिल किया जाए।
अच्छी सेहत की नींव बचपन से मजबूत करें
रिसर्च में ये बात सामने आई है कि जितनी कम उम्र में आप हेल्दी न्यूट्रीशन और हेल्दी फूड शुरू करते हैं, उतनी ही अधिक संभावना होती है कि बच्चे अपने पूरे जीवन में हेल्दी रहेंगे। ऐसा करने से बच्चों में कम उम्र में नजर आने वाली समस्याएं जैसे हाई बीपी, हाई कोलेस्ट्रोल, कैंसर और डायबिटीज होने की संभावना कम रहेगी।