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दीपावली दीपों का पर्व है जिसे हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है. मान्यतानुसार, दिवाली के ही दिन श्रीराम रावण का वध करने के बाद अयोध्या पहुंचे थे और इस मौके पर अयोध्या वासियों ने घी के दीपक जलाकर खुशियां मनाई थीं. इस त्योहार को हर साल धूमधाम से देशभर में मनाया जाता है. हालांकि, साल दर साल दिवाली की सही तिथि (Diwali Date) को लेकर उलझन की स्थिति भी बन जाती है और इस साल भी 31 अक्टूबर और 1 नवंबर के बीच कंफ्यूजन देखने को मिल रही है. ऐसे में काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, काशी विद्वत परिषद ने दिवाली की एक तिथि कंफर्म कर दी है. यहां जानिए इस साल क्या है दीपावली (Deepawali) की सही तारीख
कब मनाई जाएगी दिवाली
काशी विद्वत परिषद और पंचांगकारों के अनुसार, इस साल 31 अक्टूबर के दिन ही दिवाली का पर्व मनाया जाएगा. शास्त्रों के अनुसार इसी तिथि को सही बताया जा रहा है. इस दिन अपराह्न 3 बजकर 52 मिनट से अमावस्या की शुरुआत हो जाएगी और अमावस्या तिथि का समापन 1 नवंबर की शाम 5 बजकर 13 मिनट पर हो जाएगा. दिवाली की पूजा (Diwali Puja) का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में ही होता है इस चलते दिवाली 31 अक्टूबर के दिन ही मनाई जाएगी.
31 अक्टूबर की रात प्रदोष काल की अवधि 2 घंटे और 24 मिनट तक रहने वाली है. इसे दीपोत्सव के लिए आदर्श समय बताया जा रहा है. 1 नवंबर के दिन कुछ क्षेत्रों में प्रदोष काल 10 मिनट से लेकर एक घंटे तक का हो सकता है लेकिन इसे सही नहीं बताया जा रहा और 31 अक्टूबर की तिथि को ही धर्मसंगत कहा जा रहा है.
दिवाली की पूजा
मान्यतानुसार दिवाली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. माना जाता है कि पूरे मनोभाव से लक्ष्मी-गणेश का पूजन करने पर घर में सुख-समृद्धि आती है और खुशहाली बनी रहती है. धनलाभ के लिए भी दिवाली की पूजा शुभ होती है. दिवाली पर पूजा करने के लिए चौकी सजाकर उसपर लाल कपड़ा बिछाया जाता है. इसपर महालक्ष्मी (Maha Lakshmi) और भगवान गणेश की प्रतिमा रखकर पूजा की जाती है. मस्तक पर हल्दी, कुमकुम और चंदन का टीका लगाकर भोग अर्पित किया जाता है. आरती गाई जाती है और पूजा का समापन होता है.
3 अक्टूबर से शुरू हुए नवरात्रि के महापर्व का समापन विजयादशमी के साथ 12 अक्टूबर को होगा. मां दुर्गा की आराधना के इस त्योहार में महा अष्टमी और महानवमी पर कन्या पूजन का विधान है. जिसमें छोटी-छोटी कन्याओं और कंजक को भोजन कराया जाता है और दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है. महाअष्टमी और महानवमी का विशेष महत्व है. कुछ लोग महाष्टमी को तो कुछ नवमी को कन्या पूजन करते हैं. इस वर्ष कन्या पूजन कब किया जाएगा, इसका क्या महत्व है और इस दौरान कन्याओं को क्या खिलाया जाता है यहां जानें.
कब है कन्या पूजन?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का शुभारंभ 10 अक्टूबर को दोपहर 12:31 बजे से हो रहा है. जिसका समापन 11 अक्टूबर को दोपहर 12:06 बजे होगा. उदया तिथि के चलते महाअष्टमी 11 अक्टूबर दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है. इस वर्ष महा अष्टमी और महानवमी एक ही दिन यानी 11 अक्टूबर को पड़ रही है.
इस तरह करें कन्या पूजन-
कन्या पूजन के लिए दो वर्ष से दस वर्ष की आयु वाली कन्याओं को एक कंजक के साथ सम्मान पूर्वक आमंत्रित करें. अब इनके पैर साफ़ पानी से धोकर आसन पर बैठाएं इसके बाद सभी को कुमकुम और अक्षत से तिलक करें. इस दौरान मां दुर्गा को भोग लगाएं. इसके लिए गाय के गोबर से बने उपलों पर अंगार जला कर कन्याओं के लिए बनाए गए भोजन में से थोड़ा-थोड़ा निकाल कर पूजा स्थल पर अर्पित करें. अब सभी कन्याओं और कंजकों को प्रसाद स्वरूप भोजन कराएं उन्हें फल, सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा और इस्तेमाल में आने वाले उपहार दें. अंत में उनका आशीर्वाद लें और सम्मान पूर्वक विदा करें.
क्या बनाएं कन्या पूजन के भोजन में-
सदियों से चली आ रही कन्या पूजन की इस परंपरा में कन्याओं और कंजकों को हलवा, छोले की सब्जी और पुरी का प्रसाद दिया जाता है. कन्या भोजन में पूड़ी साधारण आटे की या मीठी पूड़ी बना सकते हैं. इस दौरान छोले की सब्जी का भी विशेष महत्व है. छोले की सब्जी बिना लहसुन प्याज की बनाकर कन्या भोजन में परोसना चाहिए. कन्या पूजन बिना हलवे के अधूरा माना जाता है. इस दौरान आप सूजी का हलवा ज़रूर बनाएं.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)
सावन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को हर साल हरियाली अमावस्या मनाई जाती है. इस साल ये दिन और भी खास होने वाला है क्योंकि हरियाली अमावस्या के दिन चार शुभ संयोग बन रहे हैं. इसके कारण ये अमावस्या विशेष फलदाई मानी जा रही है. हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya) का साल भर बेसब्री से इंतजार किया जाता है, क्योंकि पौधों को लगाने के लिए यह सबसे अच्छा समय माना जाता है. सावन के महीने में चारों तरफ बारिश हो चुकी होती है और हरियाली छा जाती है. इस वक्त प्रकृति की सुंदरता देखने लायक होती है यही वजह है कि सावन (Sawan) की इस अमावस्या को हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है. तो अगर आप भी हरियाली अमावस्या की तारीख (Hariyali Amavasya Date 2024) को लेकर कन्फ्यूजन में है तो आपको बताते हैं कि साल हरियाली अमावस्या किस दिन है. कौन से शुभ संयोग बन रहे हैं और स्नान दान का शुभ मुहूर्त क्या है.
इस दिन मनाई जाएगी हरियाली अमावस्या
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 3 अगस्त दिन शनिवार को पड़ रही है. शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस तिथि का शुभारंभ दोपहर 3:50 मिनट से होगा वही तिथि का समापन 4 अगस्त रविवार के दिन शाम 4:42 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार इस बार हर हरियाली अमावस्या 4 अगस्त दिन रविवार को होगी.
हरियाली अमावस्या पर पड़ेंगे चार शुभ संयोग
उदया तिथि के अनुसार इस साल हरियाली अमावस्या 4 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी. ये हरियाली अमावस्या अपने आप में खास होगी क्योंकि इस बार 4 शुभ संयोग के बीच हरियाली अमावस्या मनाई जाएगी. हरियाली अमावस्या के दिन रवि पुष्य योग, सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र का शुभ संयोग एक साथ बन रहा है. श्रावण अमावस्या पर सिद्धि योग सुबह से लेकर सुबह 10:30 मिनट तक रहेगा.
रवि पुष्य योग सुबह 5:44 मिनट से दोपहर 1:26 मिनट तक है. वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग की बात करें तो सुबह 5:44 मिनट से दोपहर 1:26 मिनट तक है. पुष्य नक्षत्र प्रात काल से लेकर दोपहर 1:26मिनट तक रहेगा. इसके बाद अश्लेषा नक्षत्र है.
हरियाली अमावस्या शुभ मुहूर्त
हरियाली अमावस्या के शुभ मुहूर्त की बात करें तो ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:20 मिनट से 5:02 मिनट तक है. वहीं अभिजीत मुहूर्त दोपहर 2:12 मिनट से लेकर दोपहर 12:54 मिनट तक है. हरियाली अमावस्या पर सूर्योदय 5:44 मिनट पर होगा. सुबह से लेकर दोपहर 1:26 मिनट तक शुभ समय रहेगा. आप इस समय के बीच कभी भी श्रावण अमावस्या का स्नान और दान कर सकते हैं.
हरियाली अमावस्या पर क्यों किया जाता है स्नान दान
हरियाली अमावस्या के दिन स्नान दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है. कहा जाता है इस दिन स्नान दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. पितर खुश होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है.
साल भर क्यों रहता है हरियाली अमावस्या का इंतजार
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक हरियाली अमावस्या के मौके पर पौधे लगाना बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है. ऐसा करने से कहा जाता है कि किस्मत संवर जाती है. पौधे लगाने से जहां एक तरफ हरियाली बढ़ती है, पर्यावरण बचाने में मदद मिलती है वहीं आपके ग्रह दोष भी दूर होते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से देवी देवताओं का और पितरों का आशीर्वाद मिलता है. हरियाली अमावस्या पर आप केला, तुलसी, पीपल,बरगद,.नीम जैसे दिव्य पौधों को लगा सकते हैं. इसके अलावा फलदार पौधे भी लगा सकते हैं.
सावन का महीना शुरू हो रहा है. इस दौरान सावन सोमवार पर व्रत किया जाता है और सावन के महीने में सैकड़ों भक्त केसरिया रंग के वस्त्र पहनकर कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) निकालते हैं. कांवड़ में गंगा नदी का पवित्र जल भरते हैं और फिर भगवान शिव (Lord Shiva) का जलाभिषेक किया जाता है. लेकिन, हर साल सावन के महीने में कांवड़ यात्रा क्यों निकाली जाती है, इसके पीछे की वजह क्या है और वेद शास्त्रों में कांवड़ यात्रा को लेकर क्या पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जानें यहां.
मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने पहली कांवड़ यात्रा निकाली थी और वे पहले कांवड़िया थे. बताया जाता है कि भगवान परशुराम (Lord Parshuram) ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल ले जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था, तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.
दूसरी कांवड़ यात्रा कथा
अन्य मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत श्रवण कुमार ने त्रेता युग में की थी. दरअसल, श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर पैदल यात्रा की और उन्हें गंगा स्नान कराया और लौटते समय वहां से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर लेकर आए. फिर भगवान शिव का अभिषेक किया. माना जाता है कि तब से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.
तीसरी कांवड़ यात्रा कथा
कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा को लंकापति रावण से भी जोड़ा गया है. कहा जाता है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था और समुद्र मंथन से निकलने वाले विष का पान करने से भगवान शिव का गला जलने लगा, तब देवताओं ने तो जल अभिषेक किया ही इसके अलावा शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को याद किया. रावण ने कांवड़ से जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया जिससे शिवजी को विष के प्रभाव से मुक्ति मिली.