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एमसीबी/
छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में स्थित घाघरा मंदिर ऐतिहासिक और रहस्यमयी धरोहरों में से एक है। यह मंदिर जिले के मुख्यालय मनेंद्रगढ़ से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और जनकपुर के पास घाघरा ग्राम में स्थित है। मंदिर की विशेषता यह है कि इसका निर्माण बिना किसी जोड़ने वाली सामग्री के, केवल पत्थरों को संतुलित करके किया गया है। यह अपने अनोखे निर्माण और झुकी हुई संरचना के कारण रहस्य और कौतूहल का केंद्र बना हुआ है।
बिना किसी जोड़ के पत्थरों से निर्मित यह मंदिर अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण..
घाघरा मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस मंदिर में पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी भी प्रकार की गारा-मिट्टी, चूना या किसी अन्य पदार्थ का प्रयोग नहीं किया गया है। केवल पत्थरों को सही संतुलन के साथ रखकर इस भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। यह तकनीक प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला और इंजीनियरिंग कौशल को दर्शाती है। इतना ही नहीं इस मंदिर का झुकाव भी इसे और अधिक रहस्यमयी बनाता है। इतिहासकारों और विशेषज्ञों का मानना है कि यह मंदिर किसी भूगर्भीय हलचल या भूकंप के कारण झुक गया होगा। हालांकि, सदियों पुराना यह मंदिर आज भी मजबूती से खड़ा है, जो इसकी निर्माण शैली की उत्कृष्टता को दर्शाता है।
मंदिर के निर्माण काल को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकार इसे 10वीं शताब्दी का मंदिर मानते हैं, जबकि कुछ इसे बौद्ध कालीन मंदिर बताते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यह एक प्राचीन शिव मंदिर है, जहां आज भी विशेष अवसरों पर पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर के भीतर किसी मूर्ति का न होना भी इसे और रहस्यमयी बनाता है। स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण उस समय की अद्भुत वास्तुकला और तकनीकी कौशल का प्रमाण है। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि यह मंदिर बौद्ध काल की किसी विशेष शैली में बनाया गया होगा, लेकिन धीरे-धीरे यह हिंदू परंपरा में समाहित हो गया।
घाघरा मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि यह छत्तीसगढ़ के संस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। इस मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक और शोधकर्ता आते हैं। मंदिर की रहस्यमयी संरचना और इसके झुके होने की वजह से यह पुरातत्वविदों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। घाघरा मंदिर भारतीय स्थापत्य कला की उस उन्नत तकनीक का उदाहरण है, जो बिना किसी आधुनिक संसाधनों के भी इतनी मजबूत और संतुलित संरचनाएं बनाने में सक्षम थी। छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों में इस मंदिर को उचित पहचान मिलने से यह क्षेत्र ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।
श्रद्धालु कैसे पहुंचे घाघरा मंदिर?..
घाघरा मंदिर जाने के लिए सबसे नजदीकी प्रमुख कस्बा जनकपुर है। यहाँ से घाघरा गाँव तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। यदि आप मनेंद्रगढ़ से यात्रा कर रहे हैं, तो मंदिर तक पहुंचने में लगभग 130 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी। सड़क मार्ग से यह स्थान आसानी से पहुँचा जा सकता है, और यात्रा के दौरान आप छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद ले सकते हैं।
घर को संभालना और मैनेज करना कोई आसान काम नहीं है. किचन में रखे राशन को सही से रखना बेहद जरूरी होता है. कई बार लोग महीने भर का राशन एक बार में ले आते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि सीलन की वजह से डिब्बे में बंद चावल और दाल में भी कीड़े पड़ जाते हैं. जिसकी वजह से चीजों को फेंकना पड़ता है. ऐसे में इस नुकसान से बचने के लिए आपको कुछ बातों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है. ठंड हो या बारिश के मौसम में धूप ना निकलने की वजह से डिब्बे में रखे दाल और चावल में कीड़े और फफूंदी लग जाती है. हालांकि अगर आप इनको स्टोर करने का सही तरीका ढूंढ लेते हैं तो आप इस तरह की परेशानी से बच सकते हैं. अगर आपके भी दाल और चावल में कीड़े लग गए हैं तो आज हम आपको कुछ ऐसे आसान टिप्स बताएंगे जिनकी मदद से आप इस तरह की परेशानी से बच सकते हैं और कीड़े आस-पास भी नहीं भटकेंगे.
सूखी नीम की पत्तियां
दाल-चावल में कीड़ों को निकालने या कीड़े लगने से बचाने के लिए आप उसमें सूखी नीम की पत्तियों को रख सकते हैं. इसकी तेज महक से कीडे़ खुद ब खुद बाहर निकल जाएंगे. बस ध्यान रखें कि ये पत्तियां पूरी तरह से सूखी हों.
तेजपत्ता
आपके किचन के मसालों में पाया जाने वाला तेजपत्ता भी कीड़ों को निकालने में बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है. इसकी खुशबू से कीड़े भागने लगते हैं. आप दाल-चावल के डब्बे में तेजपत्ते को रख दीजिए, इससे कभी कीड़े नहीं लगेंगे.
लहसुन
लहसुन से आने वाली गंध भी कीड़ों को भगाने में मदद कर सकते हैं. इसके लिए आप दाल-चावल के कंटेनर में लहसुन की कलियां डाल दीजिए. जब ये सूख जाएं तो इनको निकालकर दूसरी कलियां डाल दें.
काली मिर्च
काली मिर्च की मदद से भी आप कीड़ों को भगा सकते हैं. इसके लिए आप दाल और चावल के कंटेनर में काली मिर्च को कपड़े में बांधकर बीच में रख दें.
माचिस की डब्बी भी कीड़ों को भगाने में मददगार हो सकती है. इसमें मौजूद सल्फर की मदद से कीड़े भाग जाते हैं. इसके लिए आप माचिस की डब्बी को बांधकर कंटेनर में डाल कर रख दें.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)
वायनाड: गांव हुए 'गायब', बह गईं सड़कें और पुल, नदियों में बहते दिखे शव... केरल के वायनाड में जब लोग मंगलवार की सुबह उठे, तो कुछ यही भयावह मंजर लोगों को देखने को मिला. जैसे ही वायनाड में मूसलाधार बारिश हुई, चूरलमाला गांव का एक बड़ा हिस्सा शहर के सबसे भीषण भूस्खलन में बह गया. बचावकर्मी, जिन्हें जीवित बचे लोगों की मदद के लिए लगाया गया था, उनका कहना है कि उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि आपदा कितनी बड़ी है. रात 2 बजे से सुबह 6 बजे के बीच इलाके में एक के बाद एक 3 भूस्खलन हुए. भारी भूस्खलन के बाद दुकानों और वाहनों सहित चूरलमाला शहर का एक हिस्सा लगभग पूरी तरह से बर्बाद हो गया है. रात करीब 2 बजे, कम से कम दो से तीन बार भूस्खलन हुआ, इससे लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिला. वायनाड जिले में लगातार जारी भारी बारिश के कारण मंगलवार तड़के कई जगहों पर हुई भूस्खलन की घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या 54 हो गई है... ये अभी और बढ़ सकती है, क्योंकि कई लोगों के नीचे दबे होने की खबर है.
कैसे आया 'मौत का सैलाब'?
स्थानीय मीडिया के मुताबिक, केरल के वायनाड में सोमवार से भारी बारिश हो रही है. मौसम विभाग ने मंगलवार को मलप्पुरम, कोझिकोड, वायनाड, कासरगोड और कन्नूर जिलों में रेड अलर्ट की घोषणा की गई है. भारी बारिश ही वायनाड में भूस्खलन की वजह बनी. लगातार हुई भारी बारिश के बार आए भूस्खलन में मकान और गाडि़यां किसी कागज की नाव की तरह बह गईं. भारी बारिश के दौरान रात करीब एक बजे मुंडक्कई कस्बे में पहला भूस्खलन हुआ. जब बचाव अभियान जारी था, तभी सुबह करीब 4 बजे चूरलमाला स्कूल के पास दूसरा भूस्खलन हुआ. यहां एक शिविर के रूप में काम कर रहे स्कूल और आस-पास के घरों और दुकानों में पानी और कीचड़ भर गया. मौसम विभाग ने वायनाड समेट 4 जिलों के लिए रेड अलर्ट जारी किया है, ऐसे में लोगों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं.
बह कर पेड़ों की टहनियों में फंसी कारें
कल तक अपने मनोरम दृश्यों के लिए मशहूर मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टमाला और नूलपुझा गांवों की अब भूस्खलन की चपेट में आने के बाद तस्वीर आज बदल गई है. अन्य हिस्सों से इन इलाकों में रहने वाले लोगों का संपर्क टूट गया है. भूस्खलन के बाद तबाही का मंजर बता रहा है कि उस समय क्या स्थिति रही होगी. बाढ़ के पानी में बहे वाहनों को कई स्थानों पर पेड़ों की टहनियों में फंसे और यहां-वहां डूबे हुए देखा जा सकता है. उफनती नदियों ने अपना मार्ग बदल लिया है और वे रिहायशी इलाकों में बह रही हैं, जिससे हालात और खराब हो गए हैं. बताया जा रहा है कि भूस्खलन रात करीब 2 बजे हुआ और इलाका पूरी तरह से कट गया. वायनाड जिला प्राधिकारियों के अनुसार, एक बच्चे समेत चार लोगों की मौत चूरलमाला शहर में हुई, जबकि थोंडरनाड गांव में एक नेपाली परिवार के एक वर्षीय बच्चे की जान जाने की खबर है. इसके अलावा, पांच वर्षीय बच्चे समेत तीन लोगों के शव पोथुकल गांव के पास एक नदी के किनारे से बरामद किए गए हैं. अधिकारियों के मुताबिक, भूस्खलन प्रभावित इलाकों में मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टमाला और नूलपुझा गांव शामिल हैं.
400 परिवार अलग-थलग पड़े
केरल के मुख्य सचिव वी. वेणु ने स्थानीय मीडिया को बताया, "रात करीब 2 बजे, कम से कम दो से तीन बार भूस्खलन हुआ. इस समय, कुछ प्रभावित इलाके कट गए हैं. मौसम भी प्रतिकूल है, इसलिए एनडीआरएफ की टीमें इनमें से कुछ प्रभावित इलाकों में नहीं जा पा रही हैं. सभी लोग अलर्ट पर हैं. हम समन्वित तरीके से बचाव कार्य करेंगे. हम अभी भी पता लगा रहे हैं कि कितने लोग फंसे हुए हैं. बचाव कार्य सुनिश्चित करने के लिए लोगों को एयरलिफ्ट करने सहित सभी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है." स्थानीय लोग और पेशेवर बचाव ऑपरेटरों की एक टीम इलाके में लोगों का पता लगाने में लगी हुई है, जो दो हिस्सों में बंट गया है और करीब 400 परिवार अलग-थलग पड़ गए हैं.
कितना नुकसान हुआ, पर्यटकों भी फंसे ?
इस बीच, अट्टामाला, जिसमें अच्छी संख्या में होमस्टे हैं, बुरी तरह प्रभावित हुआ है और बचाव अभियान शुरू हो गया है और पर्यटकों के फंसने की खबरें हैं. घटनास्थल पर पहुंचे राज्य के वन मंत्री ए.के. ससीन्द्रन ने कहा कि नुकसान का आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी. ससीन्द्रन ने कहा, "कम से कम 53 लोग यहां एक अस्पताल में भर्ती हैं और छह शव भी हैं. दूसरे अस्पताल में 13 लोग घायल हैं, जिन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है और वहां भी छह हैं. हमने बचाव अभियान शुरू कर दिया है और हेलीकॉप्टरों के आने का इंतजार कर रहे हैं. जल्द ही एक नया रोपवे बनाया जाएगा और सेना एक अस्थायी पुल भी बनाएगी, ताकि पुल के बह जाने के बाद फंसे लोगों को बचाया जा सके."
PM मोदी ने जताया दुख, किया मुआवजे का ऐलान
वायनाड भूस्खलन में 54 लोगों की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताया है. इसके साथ ही उन्होंने मृतक परिजनों को दो लाख और घायलों को 50-50 हजार की सहायता राशि देने का ऐलान किया है. पीएम मोदी ने एक्स पोस्ट में लिखा, "वायनाड के कुछ हिस्सों में भूस्खलन से व्यथित हूं. मेरी संवेदनाएं उन सभी लोगों के साथ हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है. घायल लोगों के लिए जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करता हूं. सभी प्रभावित लोगों की सहायता के लिए बचाव अभियान फिलहाल चल रहा है. केरल के सीएम पिनराई विजयन से बात की और वहां की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर केंद्र की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया."
अभी मुश्किलें थमी नहीं...
केरल के कुछ जिलों के लोगों की मुश्किलें आने वाले कुछ दिनों में और बढ़ सकती हैं. दरअसल, भारी बारिश के कारण बाणासुरसागर बांध का जलस्तर काफी बढ़ गया है. ऐसे में नदियों के बढ़ते जल स्तर पर पनामाराम पूझा, करमनथोड नदी और कबानी नदी सहित नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को सतर्क कर दिया गया है. बांध से पानी 8.5 क्यूसेक (घन मीटर प्रति सेकंड) की गति से करमनथोडु तक छोड़ा जाएगा. कल रात बांध का जलस्तर बांध के नियम स्तर 773.5 मीटर को पार कर गया था. बांध से कुल 35 घन मीटर पानी छोड़ा जाएगा.
पुरी: ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर के 'रत्न भंडार' को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. कुछ लोगों को कहना है कि इस खजाने की रक्षा भगवान स्वयं करते हैं. कुछ का कहना है कि रत्न भंडार की रक्षा में नाग देवता 24 घंटे तैनात रहते हैं. हालांकि, इन कहानियों की प्रमाणिकता अभी तक देखने को नहीं मिली. 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार 46 साल बाद रविवार दोपहर को फिर से खोला गया. रत्न भंडार के द्वार खुलने के साथ ही लोगों में यह जानने की इच्छा तो थी ही कि यहां खजाने में क्या-क्या रखा हुआ है. साथ ही लोग ये भी जानना चाहते थे कि खजाने की रक्षा करता कोई सांप भी है या नहीं?
शुभ मुहूर्त में खोले गए रत्न भंडार के द्वार
आभूषणों, मूल्यवान वस्तुओं की सूची बनाने और भंडार गृह की मरम्मत करने के लिए रत्न भंडार को खोला गया है, इसके पहले 1978 में इसे खोला गया था. मंदिर खोलने के लिए बनाई गई समिति से जुड़े लोगों ने बताया राज्य सरकार द्वारा गठित समिति के सदस्यों ने दोपहर करीब 12 बजे मंदिर में प्रवेश किया और अनुष्ठान करने के बाद रत्न भंडार को दोपहर 1.28 बजे शुभ मुहूर्त पर पुनः खोला गया. रत्न भंडार की चीजों की सूची बनाने का काम रविवार को नहीं शुरू हुआ और इममें समय लगेगा. ओडिशा में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में रत्न भंडार को पुन: खोलना एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा था. भाजपा ने तत्कालीन सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) पर इसकी खोई हुई चाबियों को लेकर निशाना साधा था और लोगों से वादा किया था कि अगर वह चुनाव जीतती है, तो रत्न भंडार को फिर से खोलने का प्रयास करेगी.
बुलाया गया था सांप पकड़ने वाला, लेकिन...
पाधी ने बताया कि पूरी प्रक्रिया के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की गई है. उन्होंने बताया, "तीन एसओपी तैयार की गई हैं, जिसमें से एक रत्न भंडार को फिर से खोलने से संबंधित है, दूसरा अस्थायी रत्न भंडार के प्रबंधन के लिए है और तीसरा कीमती सामान की सूची से संबंधित है." एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सरकार ने रत्न भंडार में मौजूद बहुमूल्य वस्तुओं की डिजिटल सूची तैयार करने का निर्णय लिया है, जिसमें उनके वजन और निर्माण आदि का विवरण दिया जाएगा. यह आशंका जताई गई थी कि खजाने के अंदर सांप हैं (भक्तों का मानना है कि वे कीमती सामान की रखवाली कर रहे हैं) इसलिए सांप पकड़ने वालों को बुलाया गया था. लेकिन अधिकारियों ने कहा कि वहां कोई सांप नहीं मिला.
रत्न भंडार खोलते समय 11 लोग रहे मौजूद
ओडिशा के मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा गया, "भगवान जगन्नाथ की इच्छा पर उड़िया समुदाय ने 'उड़िया अस्मिता' की पहचान के साथ आगे बढ़ने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. आपकी इच्छा पर ही जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वार खोले गए थे. आज आपकी इच्छा पर ही 46 साल बाद रत्न भंडार को एक बड़े उद्देश्य के लिए दोपहर एक बजकर 28 मिनट पर शुभ घड़ी पर खोला गया." अधिकारियों ने बताया कि रत्न भंडार को खोलते समय 11 लोग मौजूद थे, जिसमें उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश विश्वनाथ रथ, श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाधी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षक डीबी गड़नायक और पुरी के राजा 'गजपति महाराजा' के एक प्रतिनिधि शामिल थे. इनमें चार सेवक भी थे जिन्होंने अनुष्ठानों का ध्यान रखा. वे शाम करीब 5.20 बजे रत्न भंडार से बाहर आये, जिसमें एक आंतरिक और एक बाहरी कक्ष है.
कीमती सामान को मंदिर के अंदर अस्थायी ‘स्ट्रॉन्ग रूम' में स्थानांतरित
पाधी ने मीडिया से कहा, "हमने मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार सभी काम किए. हमने सबसे पहले रत्न भंडार के बाहरी कक्ष को खोला और वहां रखे सभी आभूषणों और कीमती सामान को मंदिर के अंदर अस्थायी ‘स्ट्रॉन्ग रूम' में स्थानांतरित कराया. हमने स्ट्रॉन्ग रूम को सील कर दिया है." उन्होंने कहा, "इसके बाद अधिकृत व्यक्ति खजाने के आंतरिक कक्ष में दाखिल हुए, वहां तीन ताले थे. जिला प्रशासन के पास उपलब्ध चाबी से कोई भी ताला नहीं खोला जा सकता था. इसलिए, एसओपी के अनुसार, हमने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में तीन ताले तोड़ दिए और फिर हम आंतरिक कक्ष में दाखिल हुए. हमने अलमारियों और संदूकों में रखे कीमती सामान का निरीक्षण किया."
‘सुन वेशा' अनुष्ठान के पूरा होने के बाद आभूषणों को...
पाधी ने कहा कि समिति ने कीमती सामान को आंतरिक कक्ष से तुरंत स्थानांतरित नहीं करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा, "कीमती सामान को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया तुरंत पूरी करनी होगी. यह आज संभव नहीं था. हम बहुदा यात्रा और ‘सुन वेशा' अनुष्ठान के पूरा होने के बाद आभूषणों को स्थानांतरित करने की तारीख तय करेंगे." भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं वर्तमान में गुंडिचा मंदिर में हैं जहां उन्हें सात जुलाई को रथ यात्रा के दौरान ले जाया गया था. उन्हें सोमवार को बहुदा यात्रा के दौरान 12 वीं शताब्दी के मंदिर में वापस लाया जाएगा.
चाबियां पुरी के कलेक्टर को सौंपी गई
न्यायमूर्ति रथ ने कहा, "बाहरी कक्ष से आभूषणों को स्थानांतरित करने के बाद अस्थायी स्ट्रॉन्ग रूम को बंद कर दिया गया है और चाबियां तीन अधिकृत व्यक्तियों को दे दी गई हैं क्योंकि दैनिक उपयोग के आभूषण भी वहां हैं." उन्होंने कहा कि आंतरिक कक्ष के दरवाजों को सुरक्षित करने के लिए नए तालों का इस्तेमाल किया गया और चाबियां पुरी के कलेक्टर को सौंप दी गईं. उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई. अधिकारियों ने बताया कि मंदिर के संरक्षक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी आंतरिक कक्ष की स्थिति का निरीक्षण किया. मंदिर में प्रवेश करने से पहले पाधी ने कहा कि प्राथमिकता खजाने की संरचना की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जो मंदिर के तहखाने में स्थित है. पाधी ने कहा, "सूची बनाने का काम आज से शुरू नहीं होगा. यह मूल्यांकनकर्ताओं, सुनारों और अन्य विशेषज्ञों की नियुक्ति पर सरकार की मंजूरी मिलने के बाद किया जाएगा. मरम्मत कार्य पूरा होने के बाद कीमती सामान वापस लाया जाएगा और सूची बनाने की प्रक्रिया की जाएगी."
कीमती सामान को ले जाने के लिए लकड़ी के 6 संदूक
रत्न भंडार में रखे गए कीमती सामान को ले जाने के लिए लकड़ी के छह संदूक मंदिर में लाए गए हैं। इन संदूकों के अंदरूनी हिस्से में पीतल लगा हुआ है. एक अधिकारी ने बताया कि सागवान की लकड़ी से बनी ये संदूकें 4.5 फुट लंबी, 2.5 फुट ऊंची और 2.5 फुट चौड़ी हैं. इन संदूकों को बनाने वाले एक कारीगर ने बताया, "मंदिर प्रशासन ने 12 जुलाई को हमें ऐसी 15 संदूकें बनाने के लिए कहा था. 48 घंटे की मेहनत के बाद हमने छह संदूक बनाई थीं." सुबह न्यायमूर्ति रथ और पाधी ने गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की पूजा-अर्चना की थी और इस कार्य के सुचारु रूप से पूरा होने की कामना की थी. भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं फिलहाल गुंडिचा मंदिर में हैं, जहां उन्हें सात जुलाई को रथ यात्रा के दौरान ले जाया गया था. अगले सप्ताह बाहुदा यात्रा के दौरान उन्हें जगन्नाथ मंदिर में वापिस स्थापित किया जाएगा.