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राम नगरी अयोध्या इस वक्त दिपावली की तरह चमक रही है। यहां पर भक्तों का मेला लगा हुआ हैं, जहां उनकी श्रद्धा और अस्था का समर्पण भाव देखा जा सकता है। यहां पर श्रीराम जन्मभूमि पर निर्माणाधीन मंदिर को बनाने के लिए दो शालिग्राम शिलाएं नेपाल से अयोध्या लाई गई हैं। इन शिलाओं को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। इन शालिग्राम शिलाओं को नेपाल की काली गंडकी नदी से निकाला गया था। नेपाल के जनकपुर की काली गंडकी नदी से इस पत्थर को निकालने के बाद जानकी मंदिर में इन शिलाओं का विधिवत पूजन अर्चना की गई थी। इसके बाद 5 कोस की परिक्रमा पूरी करने के बाद भारत रवाना किया गया। मान्यता है कि ये शिलाएं लगभग छह करोड़ साल पुरानी हैं। दोनों शिलाओं का वजन 40 टन हैं। वहीं एक शिला का वजन 26 टन जबकि दूसरी का 14 टन वजन है। आइये जानते हैं कि इस शिला का वैज्ञानिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व-
भूवैज्ञानिक शोध के अनुसार, शालिग्राम पत्थर मौलस्क नामक समुद्री जीवों के बाहरी खोल के फॉसिल यानि कि जिवाश्म हैं। इनको एमोनाइट शैल कहा जाता है। वहीं धार्मिक आधार पर शालिग्राम पत्थर का इस्तेमाल भगवान की मूर्ति के लिए किया जाता है। शालिग्राम शिला नेपाल की पवित्र नदी गंडकी में पाई जाती है। इसको भगवान विष्णु को एक अमूर्त रूप में पूजा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शालिग्राम शिला की उपासना भगवान शिव के 'लिंगम' रूप की पूजा के बराबर मानी जाती है।
ये पत्थर हिमालयी क्षेत्रों में इसलिए बड़ी मात्रा में मिलते हैं क्योंकि हिमालय जो दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत है, हजारों साल पहले वहां पर विशाल समुद्र था, जहां पर समुद्री जीव रहते थे। वैज्ञानिकों के अनुसार, आज से 6 करोड़ साल पहले इंडियन टेक्टॉनिक प्लेट और यूरेशियन टेक्टॉनिक प्लेटों की आपस में टक्कर होने के बाद हिमालय की उत्पति हुई थी।
ये दो प्लेटों की टक्कर जहां पर हुई थी वहां पर टेथीस सागर था। हिमालय का जिस पत्थरों से निर्माण हुआ वो टेथीस सागर के नीचे था, उसमें पाये जाने वाले जीवों के जीवाश्म अब भी नदी में बहकर निकलते रहते हैं।
शालिग्राम शिला को केसर और भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, शालिग्राम शिला भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक है। माना जाता है कि 33 तरह के शालिग्राम हैं। इन सभी को विष्णु के 24 अवतारों से माना जाता है। पुराणों के अनुसार, अगर शालिग्राम शिला गोल है तो वो भगवान के गोपाल रूप में है। वहीं अगर पत्थर मछली की तरह नजर आता है तो ये मत्स्य अवतार है। वहीं कछुए के आकार में हैं तो वो कच्छ अवतार माना जाएगा।
शालिग्राम पत्थर को मंदिर के गर्भगृह में बिना पूजा किये ही रख सकते हैं
शालिग्राम को किसी भी मंदिर के गर्भगृह में बिना पूजा किये ही रखा जा सकता हैं, क्योंकि इसका धार्मिक महत्व काफी अधिक है। इस शिला को काफी दिव्य माना जाता है। इसके बारें में मान्यता है कि ये जिस घर में या मंदिर में विराजतें हैं वहां पर मां लक्ष्मी का वास होता है, जो भक्तों की भक्ति का फल देती हैं।
Disclaimer: यहां बताई गई जानकारी सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।