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Research: समलैंगिक व्यवहार सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है 500 से ज्यादा गैर-मानव जातियों में भी मौजूद.
समलैंगिक व्यवहार मुख्यत: आनुवांशिक प्रभावों से नियंत्रित होते हैं और समलैंगिक लोग विपरीतलिंगियों की तुलना में काफी कम प्रजनन करते हैं. ऐसे में दुनिया भर के वैज्ञानिक इस सवाल पर मंथन कर रहे हैं. पर्यावरणीय कारक समलिंगी शारीरिक लक्षणों की अभिव्यक्ति में भूमिका निभाते हैं जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि उनका प्रभाव इतना ज्यादा नहीं है कि कोई विपरीतलिंगी जीव समलैंगिक हो जाए.
वैज्ञानिक भी इस बात पर बहस कर रहे हैं कि ऐसा व्यवहार कैसे ब्रिटिश वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन के विकास के सिद्धांत के साथ फिट बैठता है. इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ पडोवा में विकास मनोविज्ञान की प्रोफेसर आंद्रिया कैम्पेरियो सियानी ने पीटीआई को बताया, ‘‘डार्विन के सिद्धांत का विरोधाभास कहता है कि प्रजनन को बढ़ावा नहीं देने वाली जीन को बनाए रखना असंभव है, जैसा कि समलैंगिकता में होता है. चूंकि समलैंगिक विपरीत लिंगियों की तुलना में बहुत कम प्रजनन करते हैं, इसलिए इस प्रवृति को बढ़ावा देने वाली जीन तेजी से विलुप्त हो जानी चाहिए.’’
सियानी ने इस सवाल का जवाब देने के लिए काफी शोध किया है कि समलैंगिक मानव आबादी से विलुप्त क्यों नहीं हुए. उनका कहना है कि इस विरोधाभास ने लंबे समय तक आनुवंशिक परिकल्पना को छोड़ रखा था और इससे ‘‘संकेत मिलते हैं कि समलैंगिक किसी पाप और दुर्व्यवहार के कारण ऐसा बर्ताव करते हैं जिसे थेरेपी के जरिए खत्म किया जा सकता है.’’ वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं कि समलैंगिकता ऐसा व्यवहार है जो जैविक या आनुवंशिक प्रभावों के कारण पैदा होती है.
बेंगलूर के जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर अडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) में विकास जीव-विज्ञान में पीएचडी शोधार्थी मनस्वी सारंगी ने कहा, ‘‘विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने की पूर्ववृत्ति का मकसद प्रजनन और आने वाली पीढ़ियों में जीन को भेजना है. बहरहाल, समलैंगिक व्यवहार काफी व्यापक है और नया नहीं है.’’ सारंगी ने कहा, ‘‘समलैंगिक व्यवहार दिखाने वाली विभिन्न प्रजातियों पर किए गए कई अध्ययन दिखाए गए हैं ताकि जीवों को विकासात्मक लाभ दिए जा सकें.’’
जेएनसीएएसआर के एवोल्यूशनरी एंड ऑर्गेनिज्मल बायोलॉजी यूनिट की असोसिएट प्रोफेसर टी एन सी विद्या के मुताबिक, समलैंगिक पुरुषों में जीन के कुछ प्रकार बहुत सामान्य हैं. उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक मैं जानती हूं, यह साफ नहीं है कि समलैंगिकता किस हद तक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाने वाली है.’’
विद्या ने कहा, ‘‘समलैंगिकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न प्रकार के जीन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं कि नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्हें प्रजनन का मौका मिलता है कि नहीं. यदि वे खुद प्रजनन नहीं भी करते हैं तो जीन के वे प्रकार दूसरी पीढ़ियों में जा सकते हैं, बशर्ते उनके तरह की जीन से लैस उनके रिश्तेदार प्रजनन करें.’’
वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि समलैंगिक व्यवहार सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है बल्कि 500 से ज्यादा गैर-मानव जातियों में भी यह पाया गया है. इनमें चिम्पैंजी और पेंग्विन भी शामिल हैं. गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने हाल में अपने फैसले में समलैंगिक वयस्कों द्वारा आपसी सहमति से बनाए गए समलिंगी यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया. न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया गया है.
::/fulltext::नई दिल्ली: Dhanteras 2018: धनतेरस के मौके पर हज़ारों लोग सोना खरीदते हैं. मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदना शुभ माना जाता है. इसी वजह से दिवाली और देवुत्थान एकादशी (देव उठनी) के बाद होने वाली शादियों के लिए इसी दिन सोने-चांदी के गहनों की खरीददारी कर ली जाती है. इसी कारण सोने से जुड़े काफी हेरा-फेरी के मामले भी सामने आते हैं. सरकार बेशक हॉलमार्क के विज्ञापनों के जरिए लोगों को जागरुक करने की कोशिश करे, लेकिन बावजूद कई लोग सुनारों के झांसे में आ जाते हैं. इस धनतेरस आपके साथ ऐसा ना हो इसीलिए यहां जानिए असली और नकली सोना पहचानने की ट्रिक्स के साथ इसकी शुद्धता पहचाने के कुछ आसान तरीके भी.
सोने की शुद्धता ऐसे पहचानें
सबसे प्योर सोना 24 कैरेट (99.9 प्रतिशत शुद्ध) होता है. लेकिन इससे कभी भी जूलरी नहीं बनती. क्योंकि यह बहुत मुलायम होता है. सोने को अलग-अलग शेप में लाने के लिए सोने में मेटल मिक्स किया जाता है. इसीलिए बाज़ारों में 23, 22 और 18 जैसे कैरेट की जूलरी मिलती हैं. आप जूलरी पर लिखे हॉलमार्क से सोने के कैरेट को पहचान सकते हैं :
24 कैरेट- 99.9 फीसदी सोना
23 कैरेट- 95.8 फीसदी सोना
22 कैरेट- 91.6 फीसदी सोना (हमारी स्किन के लिए सबसे बेहतर 22 कैरेट का सोना होता है)
21 कैरेट- 87.5 फीसदी सोना
18 कैरेट- 75.0 फीसदी सोना
17 कैरेट- 70.8 फीसदी सोना
14 कैरेट- 58.5 फीसदी सोना
9 कैरेट- 37.5 फीसदी सोना
इसकी जानकारी आप भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) की वेबसाइट http://www.bis.org.in/cert/hallbiscert.htm पर जाकर भी देख सकते हैं.
सोने की शुद्धता समझने के लिए हमेशा अपनाएं ये फॉर्मूला :
कैरेट ÷ 24 × 100
मान लें आपकी जूलरी 22 कैरेट की है तो (22 ÷ 24 × 100) हुए 91.6, तो आपकी सोने की शुद्धता है 91.6 प्रतिशत बाकी 8.34 फीसदी उसमें धातु मिली हुई है. जो कि जूलरी को शेप में लाने के लिए जरूरी है.
ऐसे समझें सोने की कीमत
10 ग्राम 24 कैरेट सोने की कीमत 32,885 है और आप 22 कैरेट की जूलरी खरीद रहे हैं तो इसकी कीमत निकालने के लिए इस फॉर्मूला को देखें.
(जूलरी की कीमत × ग्राम में उसका वज़न + मेकिंग चार्जेज़ + 3 प्रतिशत GST) आप इस फॉर्मूल से जूलरी की सही कीमत निकाल सकते हैं.
10 ग्राम सोने की कीमत - 32,885 (इसे 10 से भाग देने पर 1 ग्राम की कीमत होगी 3,288 रुपये)
22 कैरेट यानी (9.16 सोने) की कीमत होगी = 3,288 × 9.16 = 30,118 रुपये
अब इसमें सुनार के मेकिंग चार्जेज़, 3 प्रतिशत GST को जोड़ें - मान लें मेकिंग चार्जेज़ है 10 प्रतिशत, तो 30,118 का दसवां हिस्सा हुआ 3,011 (30,118 + 3,011 = 33,129) अब इस कुल राशि का 3 प्रतिशत हुआ 993 रुपये. तो टोटल हुआ 34,122 रुपये.
आपको 22 कैरेट की 10 ग्राम की जूलरी 34,122 रुपये में मिलेगी. यही फॉर्मूला सभी कैरेट की जूलरी पर लागू होता है. आप किसी भी कैरेट का सोना खरीदें, कीमत निकालने के लिए यही फॉर्मूला लगेगा. इसीलिए हमेशा ध्यान रखें कि आप किस दाम में कौन-से कैरेट का सोना खरीद रहे हैं. क्योंकि कई बार 18 कैरेट की जूलरी 23 कैरेट के दामों में बेच कर आपके साथ धोखा किया जाता है. इसीलिए हॉलमार्क से जूलरी की गुणवत्ता पहचानें और पक्का बिल जरूर लें.
असली और नकली सोने में ऐसे जानें फर्क :
1. पानी टेस्ट
एक गहरे बर्तन में दो गिलास पानी डालकर उसके सोने के जेवर (जिन्हें चेक करना हो) डालें. अगर इस थाली पर काले निशान पड़ें तो आपका सोना नकली है. वहीं, हल्के सुनहरे रंग के निशान पड़ें तो सोना असली है.
2. चुंबक टेस्ट
सोना कोई धातु नहीं है इसीलिए यह कभी भी चुंबक पर नहीं चिपकता. वहीं, अगर यह चिपके तो आपका सोना नकली है.
3. सिरामिक प्लेट टेस्ट
एक सफेट सिरामिक प्लेट लें. इस प्लेट को अपनी जूलरी से रगड़े. ठीक पानी की ही तरह अगर थाली पर काले निखान पड़ें तो आपका सोना नकली है. अगर सुनहरे रंग के निशान पड़े तो आपका सोना नकली है.
4. पसीना टेस्ट
लोहे या किसी भी धातु से अगर पसीना चिपके तो उसके गंध आने लग जाती है. लेकिन सोना कितना भी पसीने में रहे, कभी उसमें से बहदू नहीं आएगी.
5. दांतों का टेस्ट
सोने की जूलरी को कुछ देर दांतों के बीच दबाकर रखें. अगर आपका सोना असली है तो उसपर दांतों के निशान दिखाई देंगे. क्योंकि सोना एक बहुत ही नाजुक धातु है. ध्यान रखें कि इस टेस्ट को आराम से करें, वरना आपकी जूलरी टूट सकती है.
वह एक सुंदर बाघिन थी...दाढ़ में इंसानी खून लगने से और खूंखार हो गई थी। इंसानी खून की यही भूख उसे धीरे-धीरे मौत के करीब आई थी। यवतमाल इलाके में यह बाघिन दहशत का पर्याय बन गई थी। शुक्रवार रात को यवतमाल जिले के पांढरकवड़ा के वन क्षेत्र में आदमखोर बाघिन अवनि (टी-1) को मार दिए जाने पर लोगों ने जश्न मनाया। अवनि के लिए सेना की तरह अभियान चलाया गया था। उसे ढूंढने के लिए 6 लाख का शिकारी कुत्ता और अमेरिका से विशेष मेल परफ्यूम मंगाया गया था।
खबरों के मुताबिक खौफ का पर्याय बन चुकी अवनि ने 14 लोगों को अपना शिकार बना लिया था। एक ओर जहां अवनि को खत्म करने के लिए वन विभाग की 200 लोगों की टीम लगी थी, वहीं दूसरी ओर अवनि को बचाने के लिए प्रयत्न और सेव द टाइगर एनजीओ ने 'लेट अवनि लिव' अभियान चलाया था। नरभक्षी बन चुकी अवनि को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया गया, लेकिन कानून ने 'आदमखोर' बाघिन पर हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा। अवनि को पकड़ने या मारने के लिए सेना की तरह अभियान चलाया गया था। इतना ही नहीं अवनि को ढूंढने के लिए 6 लाख का शिकारी कुत्ता और अमेरिका से विशेष मेल परफ्यूम मंगाया गया था।
इंसानों और जानवरों को बनाया अपना शिकार : एक जानकारी के अनुसार अवनि (बाघिन) ने 1 जून, 2016 से अब तक 4 लोगों की जान ले ली थी। इसके अलावा उसने कई घोड़ों और गायों को भी अपना शिकार बनाया था।
नरभक्षी थी अवनि, जांचों से हुई पुष्टि : डीएनए जांच, कैमरा ट्रैप्स और पंजों के निशानों के चलते जांचकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि पांच साल की यह मादा बाघ अब आदमखोर हो गई है और मानव मांस के लिए शिकार कर रही है।
कोर्ट को बदलना पड़ा आदेश : वन्यजीव प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे की भोपाल स्थित एनजीओ 'प्रयत्न' और सेव टाइगर कैंपेन के सिमरत सिंधु ने बाघिन को शूट करने के वन विभाग के आदेश को पहले बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बैंच में चुनौती दी थी। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए बाघिन (टी-1) को गोली मारने के आदेश पर रोक लगा दी थी, लेकिन कुछ ही महीनों बाद उसने फिर दो लोगों को मार दिया, जिसके बाद उसे गोली मारने का आदेश जारी किया गया।
इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर में इस दया याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस केएम जोसफ की बेंच के समक्ष दायर की गई थी। ऐसा पहली बार हुआ जब बाघिन को बचाने के लिए याचिका दायर की गई।
200 लोगों की टीम ने किया पकड़ने का प्रयत्न : यवतमाल जिले में इस बाघिन को पकड़ने के लिए वन विभाग के अधिकारियों समेत कुल 200 लोगों की टीम सर्च ऑपरेशन चला रही थी। इस ऑपरेशन में 4 हाथियों और वन्यजीव पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम को भी लगाया गया था। मेल परफ्यूम का इस्तेमाल : अवनि को आकर्षित करने के लिए एक खास कंपनी का मेल परफ्यूम इस्तेमाल किया जा रहा था, ताकि वह उसकी गंध से सर्च टीम के करीब आए। यह खासतौर से अमेरिका से मंगवाया गया था। 2010 में छपी वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार एक खास तरह के परफ्यूम की गंध की वजह से दो तेंदुए 11 मिनट तक शिकार छोड़कर आसपास ही घूमते रहे थे।
पैराग्लाइडर्स और कुत्तों के जरिए अवनि की खोज : बाघिन को पकड़ने के लिए 100 कैमरे लगाए गए थे। गोल्फर ज्योति रंधावा के शिकारी कुत्तों और पैराग्लाइडर्स को भी अवनि को ढूंढने के काम में लगाया गया था। नरभक्षी बन चुकी बाघिन अवनि का क्षेत्र में इतना खौफ था कि उसे ढूंढने के लिए 6 लाख का शिकारी कुत्ता मंगवाया गया था।
शॉर्पशूटर की नियुक्ति पर विवाद : वन विभाग द्वारा इस काम के लिए हैदराबाद से शार्पशूटर नवाब शफात अली खान को बुलाया गया था। शफात के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 500 से अधिक जंगली जानवरों का शिकार किया है। शफात की नियुक्ति पर भी विवाद हुआ। शफात राज्य के वन विभाग द्वारा ऐसे मामले के लिए भले ही अधिकृत शार्प शूटर हैं लेकिन उनके गृह राज्य तेलंगाना के साथ कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ राज्यों ने उनके खिलाफ बैन लगा रखा है।
स्थानीय लोगों ने मनाई खुशियां : आदमखोर बाघिन के मारे जाने की सूचना मिलते ही यवतमाल के स्थानीय लोगों ने जश्न मनाया। लोगों ने पटाखे जलाकर और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशियां मनाईं।