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खास बातें
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में बीजेपी की रथयात्रा (BJP's yatra in West Bengal) पर फिर कलकत्ता हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है.कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी की रथयात्रा को हरी झंडी देने के आदेश को पलट दिया. यह आदेश राज्य सरकार की ओर से सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देने के बाद आया है. दरअसल, गुरुवार को कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता बनर्जी सरकार को फटकार लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी( बीजेपी) की 3 रथ यात्राओं को हरी झंडी दी थी. साथ ही कोर्ट ने प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए था कि कानून एवं व्यवस्था कहीं भंग न हो.कलकत्ता हाई कोर्ट ने बीजेपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. जिस पर ममता बनर्जी सरकार ने सिंगल बेंच के इस आदेश को चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच के सामने चुनौती दी. शुक्रवार को सुनवाई करते हुई कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने बीजेपी की रथयात्रा पर रोक लगा दी.
बता दें कि गुरुवार को पश्चिम बंगाल में बीजेपी की तीन रथ यात्राओं को हाई कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था, 'हम इस फैसले का स्वागत करते हैं और हमें न्यायपालिका पर भरोसा था कि हमें न्याय मिलेगा. यह निर्णय निरंकुशता के मुंह पर तमाचा है. हमने अभी कुछ फैसला नहीं लिया है, मगर मैं आश्वस्त कर सकता हूं कि पीएम और पार्टी के मुखिया रथ यात्रा में शामिल होंगे.'
दरअसल, याचिका के जरिए बीजेपी पार्टी ने अपनी रैली को इजाजत देने से इनकार करने के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस सरकार के कदम को चुनौती दी थी. कपूर ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार ने अपने दावे के समर्थन में कोई वस्तुनिष्ठ तथ्य नहीं रखा है और वह रैली करने से एक रजनीतिक दल को रोक रही है जबकि संविधान यह अधिकार देता है. महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने अदालत को एक सीलबंद रिपोर्ट सौंपी और कहा कि भाजपा की विवरणिका में यात्रा को प्रकाशित करना साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील प्रकृति का है.
उन्होंने दलील दी थी कि प्रशासनिक फैसले में अदालत के पास न्यायिक समीक्षा करने का सीमित दायरा है. उन्होंने कहा कि 2017 से पश्चिम बंगाल में विभिन्न राजनीतिक रैलियों और सभाओं के लिए 2100 इजाजत दी गई लेकिन इस मामले में अंदेशे के चलते रथ यात्रा की इजाजत नहीं दी गई. राज्य की पुलिस की ओर से पेश हुए अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने दलील दी कि भाजपा की रथ यात्रा की व्यापकता को लेकर भारी संख्या में सुरक्षा कर्मियों की जरूरत पड़ेगी.
गौरतलब है कि छह दिसंबर को अदालत की एक एकल पीठ ने भाजपा को रथ यात्रा की इजाजत देने से इनकार कर दिया था, जिसका भाजपा प्रमुख अमित शाह सात दिसंबर को उत्तर बंगाल स्थित कूच बिहार में हरी झंडी दिखा कर शुभारंभ करने वाले थे. इसके बाद सात दिसंबर को खंड पीठ ने राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को भाजपा के तीन प्रतिनिधियों के साथ बैठक करने तथा 14 दिसंबर तक यात्रा पर एक फैसला करने को कहा था. राज्य सरकार ने तीन सदस्यीय टीम के साथ वार्ता के बाद रथ यात्रा की इजाजत देने से 15 दिसंबर को इनकार करते हुए यह आधार बताया था कि इससे साम्प्रदायिक तनाव हो सकता है.
नई दिल्ली. जम्मू-कश्मीर में 6 महीने का राज्यपाल शासन पूरा होने के बाद बुधवार को रात से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है. बुधवार को इस बारे में आदेश जारी हो गया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक की सिफारिश पर इस बाबत एक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया है. राज्य में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में गठबंधन सरकार से जून में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया था. इसके बाद जम्मू-मश्मीर में राजनीतिक संकट बना हुआ है.
गौरतलब है कि इस साल जून में राज्य में उस समय राजनीतिक संकट पैदा हो गया था, जब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से भाजपा अलग हो गई थी. पिछले महीने मलिक ने राज्य विधानसभा को भंग कर दिया था, जिसे निलंबित अवस्था में रखा गया था. बता दें कि राष्ट्रपति शासन के आदेश के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुक अब्दुल्ला बोले कि अब राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन को खत्म कर चुनाव करवाना चाहिए. ताकि लोग अपनी सरकार चुन चुकें.
राष्ट्रपति शासन की अधिघोषणा के बाद संसद राज्य की विधायिका की शक्तियों का इस्तेमाल करेगी या उसके प्राधिकार के तहत इसका इस्तेमाल किया जाएगा. जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान है. जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत वहां 6 माह का राज्यपाल शासन अनिवार्य है. इसके तहत विधायिका की तमाम शक्तियां राज्यपाल के पास होती हैं.
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