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इस किताब को मूल रूप से प्रारंभ में उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था। इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू-फारसी के शब्द शामिल हैं, जिससे इस किताब को समझने में आसानी नहीं होती। उर्दू में इसलिए लिखा गया क्योंकि उक्त काल में पंजाब में उर्दू और फारसी भाषा का ही ज्यादा प्रचलन था।
'लाल किताब के फरमान' नाम से जो भी किताबें बाजार में उपलब्ध हैं उनमें से ज्यादातर ऐसी किताबें हैं जो व्यावसायिक लाभ की दृष्टि से लिखी गई हैं, जिसमें प्रचलित फलित ज्योतिष और लाल किताब के सूत्रों को मिक्स कर दिया गया है जो कि प्राचीन विद्या के साथ किया गया अन्याय ही माना जाएगा। जिस ज्योतिष ने लाल किताब को जैसा समझा उसने वैसा लिखकर उसके उपाय लिख दिए जो कि कितने सही और कितने गलत हैं, यह तो वे ही जानते होंगे। अब जब कोई ज्योतिष लाल किताब के मर्म को जाने बगैर उसके उपाय बताने लगता है तो यह उसी तरह है कि डॉक्टर हुए बगैर कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी का इलाज करने लगे।
प्राचीन ज्योतिष विद्या के सूत्र लाल किताब में जिस तरीके से संग्रहीत किए गए हैं, वे क्रमबद्ध नहीं हैं और उनकी भाषा अस्पष्ट है। मसलन जो पहला सूत्र प्रथम अध्याय में है तो उक्त सूत्र में कही गई स्थिति के उपाय को अंतिम अध्याय के किसी अन्य भाग में बताया गया है। उक्त बिखरे हुए सूत्र को भली-भाँति समझकर उन पर शोध करके ही फिर कोई टिप्पणी करना उचित होगा। लाल किताब के सूत्र प्राचीन भारत के पहाड़ी इलाके की विद्या से निकले सूत्र हैं। यह विद्या ज्ञान से ज्यादा अनुभव से उपजी है। इसका संबंध फलित ज्योतिष या ज्योतिष की आम प्रचलित धारणा से नहीं है। उक्त विद्या का संबंध सामुद्रिक, नाड़ी शास्त्र और हस्तरेखा जैसी विद्याओं से है। उक्त विद्या का संबंध वास्तुशास्त्र से भी माना गया है। लाल किताब की सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को 'उपायों' का सहारा लेने का संदेश देना है। ये उपाय इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर लाभ प्राप्त कर सकता है। उपाय करने से पूर्व यह जानना जरूर है कि समस्या क्या है। लाल किताब अनुसार किसी भी ग्रह-नक्षत्र का असर व्यक्ति के शरीर पर पड़ता है तो उस अनुसार उसके अच्छे या बुरे लक्षण शरीर पर नजर आते हैं। उक्त ग्रह के खराब या अच्छे होने के कारण व्यक्ति के शारीरिक ही नहीं, आसपास के वातावरण और वास्तु में भी परिवर्तन हो जाता है। उक्त सभी का अध्ययन करके ही उसके निदान के उपाय बताए जाते हैं। विश्व के विभिन्न समाजों, विभिन्न जातियों और धर्मों की स्थानीय संस्कृति में किसी न किसी प्रकार के अनिष्ट निवारण के लिए प्राचीनकाल से 'टोटका' का सहारा लिया जाता रहा है। यह आज भी उसी रूप में जीवित है। उक्त कष्टों और टोटकों के बिखरे हूए सूत्रों के एक संग्रह से ही लाल किताब निर्मित हुई। गंडा, ताबीज, झाड़-फूँक, मंत्र, तंत्र आदि तरह के टोटकों से भिन्न लाल किताब के टोटकों में सात्विकता और जबर्दस्त असर है।इस सबके बावजूद लाल किताब के बारे में लोगों में कई तरह के भ्रम हैं। मूल रूप से यह जानना जरूरी है कि उक्त विद्या भारतीय लोक परम्परा या लोक संस्कृति का हिस्सा होने के साथ ही इसका मूल वेद ही है। उक्त किताब को प्रारंभ में भारतीय भाषा में नहीं लिखे जाने के कारण ही भ्रम की स्थिति फैल गई, लेकिन जिन्होंने भी लाल किताब के बिखरे सूत्रों को संग्रहीत करने का कार्य किया उनका योगदान सराहनीय और न भूलने लायक है।
::/fulltext::पूजा में दीपक लगाने संबंधी इन सभी बातों का रखें ध्यान, चमक जाएगी किस्मत
रायपुर. हिंदू धर्म में भगवान के पूजन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण नियम है दीपक जलाना। दीपक के बिना किसी भी प्रकार का पूजन कर्म अधूरा ही माना जाता है। वास्तु के अनुसार दीपक से कई प्रकार के वास्तु दोष स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। दीपक से निकलने वाला नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव खत्म कर देता है और सकारात्मक ऊर्जा सक्रिय करता है।
दीपक से निकलने वाला धुआं वातावरण में मौजूद कई प्रकार सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट कर देता है जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मगर, दीपक लगाने के कुछ नियम हैं, जिनका यदि ध्यान रखा जाए, तो मनुष्य को अधिक लाभ होते हैं।
दीपक को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। दीपक को अक्षत या चावल पर रखना चाहिए। इसके साथ ही दीपक की लौ की दिशा भी अहम होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, रोजाना घी का दीपक जलाने से घर पर शांति और समृद्धि बनी रहती है।
पूर्व दिशा में दीपक जलाने का नियम रखें क्योंकि यह कई रोगों से राहत प्रदान करने में सहायक होता है और उम्र बढ़ जाती है। उत्तर दिशा में दीया की दिशा रखते हुए धन में वृद्धि होती है।
पीने के पानी के स्थान के पास घी का दीपक लगाने से धन बढ़ता है और स्वास्थ्य समस्याएं दूर होती हैं। इसके अलावा बुरी शक्तियां व्यक्ति को प्रभावित नहीं करती हैं।
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पूजा करते समय अगर घी का दीपक हो, तो इसे अपने बायें हाथ की ओर ही जलाएं। यदि दीपक तेल का है तो अपने दाएं हाथ की ओर जलाएं। पूजन के दौरान बीच में दीपक बुझना नहीं चाहिए। ऐसा होना अशुभ माना जाता है।
पूजा करते समय दीपक हमेशा भगवान की मूर्ति के ठीक सामने लगाना चाहिए। पूजा में कभी खंडित दीपक काम में नहीं लेना चाहिये। ये शुभ नहीं माना जाता।
दीपक जलाते समय इस मंत्र का जप करें-
शुभं करोतु कल्याणंमारोग्यं सुखसंपदम्।
शत्र्रुबुद्धिविनाशाय च दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।