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नई दिल्ली। बीते साल के दौरान वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और इसके विनाशकारी प्रभावों ने भारत की दहलीज पर भी दस्तक दे दी है। जलवायु परिवर्तन जनित वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी (ग्लोबल वार्मिंग) के परिणामस्वरूप इस साल भारत के तटीय इलाकों में एक के बाद एक आठ चक्रवाती तूफान देखने को मिले जिनकी वजह से व्यापक पैमाने पर जानमाल का नुकसान हुआ।
जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रभाव और चुनौतियों से निपटने की कार्ययोजना बनाने पर सभी देशों ने साल के आखिर में पोलैंड में आयोजित ‘कोप 24 सम्मेलन’ में गंभीर मंथन कर कुछ दिशा-निर्देश बनाने में कामयाबी जरूर हासिल की। सम्मेलन में हिस्सा लेकर लौटने पर केंद्रीय पर्यावरण सचिव सीके मिश्रा ने बताया कि सभी देशों ने मिलकर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए पेरिस समझौते में तय की गई कार्ययोजना को लागू करने के दिशा-निर्देश तय करने में कामयाबी हासिल की।
मिश्रा ने कहा कि सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में तैयार किए गए ये दिशा-निर्देश सभी देशों की विकास और ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति, पर्यावरण की कीमत पर नहीं करने का लक्ष्य तय करते हुए विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई को पाटने में सहायक होंगे। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में भारत विकसित देशों को यह समझाने में कामयाब रहा कि विकास की दौड़ में पीछे चल रहे विकासशील देशों को विकसित देश ऊर्जा एवं विकास संबंधी अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए पर्यावरण हितैषी तकनीक एवं आर्थिक मदद मुहैया कराएंगे।
पर्यावरण चुनौतियों के लिहाज से इस सम्मेलन को साल की सबसे अहम उपलब्धि बताते हुए मिश्रा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर संतुलित विकास के लिए सभी देशों के बीच आर्थिक अंशदान का साझा कोष भी गठित करने में कामयाबी मिली। अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों को इस कोष में हिस्सेदारी करने के लिए रजामंद करने में मिली कामयाबी, पेरिस समझौते को अंजाम तक पहुंचाने का विश्वास जगाती है।
इस बीच कोप 24 सम्मेलन में युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा टनबर्ग ने अपने धमाकेदार भाषण से दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचते हुये जलवायु परिवर्तन की हकीकत से निपटने में विश्व के नेताओं के अपरिपक्व रवैए को शर्मनाक बताया। ग्रेटा ने कहा कि आप सभी अपनी बेकार की तरकीबों के सहारे इस मुद्दे पर एक साथ आगे बढ़ने की महज बातें करते रहे, जिसकी वजह से आज हम खुद को इस मुसीबत में फंसा पाते हैं।
उन्होंने कहा कि हालात से निपटने के लिए जब ‘आपात ब्रेक’ लगाने की जरूरत थी, उस समय भी दुनिया के नेताओं का यही रवैया बना रहा। जलवायु परिवर्तन की आसन्न चुनौतियों से धरती को बचाने की जोरदार अपील करते हुए 15 साल की ग्रेटा ने कहा कि तमाम शोध रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई कि अगर अभी नहीं संभले तो जीवन के वजूद वाला यह ग्रह ‘गरम गोले’ में तब्दील हो जाएगा। इसके बावजूद दुनिया भर में इस पर कोई ‘कारगर पहल’ नहीं की गई।
उल्लेखनीय है कि कोप 24 के आगाज से पहले जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन का स्तर अपने शीर्ष बिंदु पर पहुंच गया है और इसमें अभी गिरावट का फिलहाल कोई संकेत नहीं दिख रहा है। रिपोर्ट में पेरिस समझौते में तय की गई मंजिल को हासिल करने के लिए चल रहे प्रयासों की गति और मात्रा में तीन गुना बढ़ोतरी की बात कही गई है। ऐसा होने पर ही पिछली एक सदी में धरती के तापमान में हुई बढ़ोतरी में 2 डिग्री सेल्सियस की गिरावट लाई जा सकेगी।
रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि साल 2030 तक धरती का तापमान नियंत्रण के उपाय लागू करने की निर्धारित गति के मुताबिक मात्र 57 देश आगे बढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को धता बताते हुए भ्रामक अभियानों के जरिये दुनिया भर में प्रपंच फैलाने वाले तमाम संगठन और तेल कंपनियों के पैरोकार संभावित खतरे को झुठलाते रहे। इससे उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को झटका लगा और इसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन ने इस साल के आखिर तक दुनिया भर में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं की शक्ल में अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।
विश्व मौसम संगठन के मुताबिक 2018 बीते 138 सालों में अब तक का चौथा सबसे गरम साल रहा। जलवायु परिवर्तन जनित मौसम की चरम स्थितियों के कारण भारत सहित दुनिया के अधिकांश हिस्सों में तबाही का मंजर देखने को मिला। विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कायम करते हुए कुदरत के साथ कदमताल मिलाने की नसीहत देने वाली तमाम अध्ययन रिपोर्टों में ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की चेतावनी देते हुए एक बात साफ तौर पर कही गई है कि धरती को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से बचाने के लिए माकूल वक्त मुठ्ठी से रेत की तरह तेजी से फिसल रहा है।