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डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद के अपने दूसरे कार्यकाल के लिए वापसी नहीं कर सके. लेकिन, ये महज़ उनकी चुनावी हार नहीं है, उन्हें आगे और भी मुश्किलें हो सकती हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक उनके कार्यकाल में हुए कथित घोटालों की जांच से पता चलता है कि उन्हें राष्ट्रपति पद से हटने के बाद आपराधिक कार्यवाही के अलावा मुश्किल वित्तीय स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है. राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उनके ख़िलाफ़ आधिकारिक कार्यों के लिए मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है.
मुकदमे और कारोबारी चुनौतियां
प्रोफेसर बैनेट गर्शमैन ने न्यूयॉर्क में एक दशक तक अभियोक्ता के तौर पर सेवाएं दी हैं.
वह कहते हैं, ''राष्ट्रपति ट्रंप पर बैंक धोखाधड़ी, कर धोखाधड़ी, मंडी लॉन्ड्रिंग, चुनावी धोखाधड़ी जैसे मामलों में आरोप लग सकते हैं. उनके कामों से जुड़ी जो भी जानकारी मीडिया में आ रही है वो वित्तीय है.''
हालांकि, मामला सिर्फ़ यहां तक सीमित नहीं है. अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप को भारी वित्तीय घाटे का सामना भी करना पड़ सकता है. इनमें बड़े पैमाने पर निजी ऋण और उनके कारोबार की मुश्किलें शामिल हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक अगले चार सालों में ट्रंप को 30 करोड़ डॉलर से ज़्यादा का कर्ज़ चुकाना है. वो भी ऐसे समय पर जब उनके निज़ी निवेश बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं. हो सकता है कि ट्रंप के राष्ट्रपति ना रहने पर लेनदार कर्ज़ के भुगतान को लेकर बहुत कम नरमी दिखाएं. डोनाल्ड ट्रंप के आलोचक कहते हैं कि उनका राष्ट्रपति पद पर होना उनकी क़ानूनी और वित्तीय समस्याओं में उनका कवच बन गया है. अगर ये सब नहीं रहेगा तो उनके मुश्किल दिन आ सकते हैं.
राष्ट्रपति ट्रंप ये दावा करते आए हैं कि वो अपने दुश्मनों की साज़िशों का शिकार हुए हैं. उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने राष्ट्रपति बनने से पहले और पद पर रहते हुए भी अपराध किए हैं.ट्रंप ने स्पष्ट रूप से अपने ख़िलाफ़ लगे आरोपों से इनकार किया है. साथ ही वे ये भी बताते हैं कि उनके प्रशासन पर लगे घोटालों के आरोपों की न्याय विभाग की जांच और इस साल की शुरुआत में उन पर चलाए गए महाभियोग से वो सफलतापूर्वक बरी हो गए.
लेकिन, ये सभी जाँच और प्रक्रियाएं राष्ट्रपति को अभियोग से मिली सुरक्षा के दौरान हुई थीं. न्याय विभाग बार-बार ये कहता रहा है कि राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ पद पर रहते हुए आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. विशेषज्ञों ने बीबीसी मुंडो को बताया कि इन जाँचों को डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई का आधार बनाया जा सकता है.
बैनेट गर्शमैन कहते हैं, ''हम पहले से जानते हैं कि उन पर मतदाता धोखाधड़ी के आरोप लगाए जा सकते हैं क्योंकि मैनहटन के लिए अमेरिकी अटॉर्नी ने ट्रंप को माइकल कोहेन के साथ साज़िश में सहयोगी बताया है.''
माइकल कोहेन की जांच के दौरान आधिकारिक तौर पर बताया गया था कि राष्ट्रपति पद के एक उम्मीदवार (इसके लिए ''इंडिविज़ुअल 1'' शब्द का इस्तेमाल था) आपराधिक गितिविधि से कथित तौर पर जुड़े हुए थे. अमेरिकी मीडिया ने इस उम्मीदवार को डोनाल्ड ट्रंप के नाम से जोड़ा था. ये ख़बर अमेरिकी मीडिया में बड़े स्तर पर छाई रही थी.
मूलर रिपोर्ट
बैनेट गर्शमैन कहते हैं कि उन पर कथित मूलर रिपोर्ट के नतीज़ों को देखते हुए न्याय में बाधा डालने के आरोप भी लग सकते हैं. 2019 में, स्पेशल काउंसिल रॉबर्ट मूलर ने 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में रूस के दख़ल को लेकर जांच रिपोर्ट सौंपी थी. उस रिपोर्ट में ट्रंप को क्लीन चिट दे गई थी और बताया गया था कि ट्रंप की प्रचार टीम और रूस के बीच किसी तरह की सांठगांठ के पुख़्ता सबूत नहीं मिले हैं. हालांकि, रिपोर्ट में ये ज़रूर कह गया था कि डोनाल्ड ट्रंप ने जांच में बाधा डालने के प्रयास किए थे. ट्रंप ने मूलर को उनके पद से हटाने की कोशिशें भी की थीं.
मूलर ने उस वक़्त कहा था कि अमेरिकी संसद को ये फैसला करना चाहिए कि न्याय में बाधा डालने के लिए डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग चलाया जाए या नहीं क्योंकि राष्ट्रपति पर न्याय के सामान्य माध्यमों से अभियोग नहीं चलाया जा सकता है. हालांकि, तब संसद ने ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग नहीं चलाया लेकिन महीनों बाद एक अलग मामले में उनके ख़िलाफ़ महाभियोग चलाया गया.
ट्रंप पर आरोप था कि उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन पर जांच शुरु करने के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की पर दबाव बनाया था. हालांकि, ट्रंप इससे लगातार इनकार करते रहे हैं. दिसंबर 2019 में डेमोक्रेट्स के बहुमत वाले हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव में उन पर अभियोग चलाया लेकिन फरवरी 2020 में रिपब्लिकन्स के बहुमत वाले सीनेट ने उन्हें अपराधमुक्त कर दिया. डोनाल्ड ट्रंप तीसरे ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा.
राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप संघीय क़ानून के उल्लंघन के मामले में ख़ुद को माफ़ कर सकते हैं. लेकिन, अमेरिका के इतिहास में ऐसा स्थिति कभी नहीं आई है. हालांकि, ये ज़रूर देखने को मिला है कि किसी राष्ट्रपति पर पद से हटने के बाद आपराधिक मामले चलने की संभावना हो लेकिन अगले राष्ट्रपति उन्हें माफ़ी दे दें. ऐसा 1974 में हुआ था जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने वॉटरगेट कांड के बाद इस्तीफ़ा दे दिया था. तब उनकी सरकार में उप राष्ट्रपति रहे जेरल्ड फॉर्ड राष्ट्रपति बने और उन्हें पूर्ण माफ़ी दे दी.
कंज़रवेटिव पॉलिटिकल रिसर्च सेंटर अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट में विशेषज्ञ नॉर्मन ऑर्नस्टीन कहते हैं, ''डोनाल्ड ट्रंप पर संघीय आरोप लगने की बहुत कम संभावना है क्योंकि हो सकता है कि वो खुद को ही माफ़ी दे दें.''
लेकिन, चुनाव हारने की स्थिति में वो ख़ुद को माफ़ी नहीं दे पाएंगे. ऐसे में जानकारों का कहना है कि एक अति-काल्पनिक स्थिति में संभव है कि डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी, 2021 को अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दें और मौजूदा उप राष्ट्रपति माइक पेंस को राष्ट्रपति बना दें. इसके बाद माइक पेंस उन्हें संघीय अपराधों के लिए माफ़ी दे सकते हैं.
बैनेट गर्शमैन बताते हैं कि अमेरिकी मीडिया में ये अटकलें भी हैं कि डोनाल्ड ट्रंप को संघीय आरोपों के अलावा स्थानीय स्तर पर आपराधिक आरोप भी झेलने पड़ सकते हैं. उन पर राष्ट्रपति बनने से पहले रियल स्टेट के कारोबार में गड़बड़ी करने का आरोप हैं. स्थानीय स्तर के मामलों में संघीय मामलों की तरह माफ़ी नहीं मिल सकती है. रिचर्ड निक्सन अब तक अमेरिका के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्हें पूर्ण माफ़ी मिली है
एक राजनीतिक फ़ैसला
विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि ज़रूरी नहीं कि प्रशासन सबूत होने पर भी डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करे. ये एक राजनीतिक फ़ैसला हो सकता है. वॉटरगेट कांड के मामले में भी सरकार ने ये फ़ैसला किया था कि रिचर्ड निक्सन पर मुकदमा चलाने से वॉटरगेट कांड खिंचता चला जाएगा. ऐसा ना हो इसलिए उन्हें माफी दे दी गई. इस संबंध में 6 अगस्त को दिए एक साक्षात्कार में जो बाइडन ने कहा था कि अगर वो राष्ट्रपति बनते हैं तो वो डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ आपराधिक प्रक्रिया का ना तो विरोध करेंगे और ना ही उसे बढ़ावा देंगे. वो ये फ़ैसला पूरी तरह न्याय विभाग पर छोड़ देंगे.
बैनेट गर्शमैन बताते हैं कि पिछले मुक़दमे के कारण सुनवाई शुरू होने में महीनों से लेकर सालों लग सकते हैं. जानकार कहते हैं कि अगर डोनाल्ड ट्रंप उन पर लगे आरोपों में दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें सालों जेल की सज़ा हो सकती है.
नई दिल्ली, चाय, कॉफी या फिर अन्य पेय पदार्थों के सेवन के लिए प्लास्टिक की जगह पेपर से बने कप का उपयोग आम हो गया है। लेकिन, पेपर कप का उपयोग भी पूर्णतः सुरक्षित नहीं है। भारतीय शोधकर्ताओं ने पाया है कि पेपर कप में परोसे जाने वाले गर्म पेय पदार्थों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण और अन्य हानिकारक तत्व घुल जाते हैं। इन दूषित पेय पदार्थों का सेवन करने पर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के एक ताजा अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है।
पेपर कप में तरल पदार्थों को रोकने के लिए आमतौर पर जल-रोधी परत चढ़ायी जाती है। यह परत प्रायः प्लास्टिक या फिर सह-पॉलिमर्स से बनी होती है। जब कप में गर्म पेय पदार्थ डाले जाते हैं तो कप को बनाने में उपयोग की गई परत से सूक्ष्म प्लास्टिक कणों का क्षरण होता है, जो अंततः उस पेय पदार्थ में घुल जाते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि सूक्ष्म प्लास्टिक कण आयन, विषाक्त भारी धातुओं–पैलेडियम, क्रोमियम, कैडमियम और अन्य जैविक तत्वों के वाहक के रूप में कार्य करते हैं।
इस अध्ययन से पता चला है कि गर्म तरल पदार्थों के संपर्क में आने से 15 मिनट के भीतर सूक्ष्म प्लास्टिक कणों से बनी परत नष्ट हो जाती है। यह अध्ययन आईआईटी,खड़गपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ सुधा गोयल के नेतृत्व में उनके शोध छात्रों वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसेफ द्वारा किया गया है। यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ हैजार्ड्स मैटेरियल्स में प्रकाशित किया गया है।
डॉ सुधा गोयल ने बताया कि “हमारे अध्ययन से पता चला है कि 15 मिनट तक पेपर कप में यदि 100 मिलिलीटर गर्म पेय पदार्थ (85-90 डिग्री सेल्सियस) रखा जाता है तो 25 हजार माइक्रोन (10 माइक्रोमीटर से 1000 माइक्रोमीटर) आकार के सूक्ष्म प्लास्टिक कण उत्सर्जित होते हैं। यदि कोई व्यक्ति दिन भर में पेपर कप में तीन बार गर्म पेय पीता है, तो वह करीब 75 हजार सूक्ष्म प्लास्टिक कणों को निगल रहा है। इन कणों की एक खास बात यह है कि ये नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते।”
इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक कप में तरल पेय के उपयोग के कारण होने वाले हानिकारक सूक्ष्म कणों के रिसाव का अध्ययन दो तरीकों से किया है। सर्वप्रथम, 85-90 डिग्री सेल्सियस पर गर्म विशुद्ध पानी को पेपर कपों में डाला गया और फिर उन कपों में सूक्ष्म प्लास्टिक कणों एवं अन्य आयनों के रिसाव का अध्ययन किया गया है।
आप हर रोज सड़कों पर तमाम तरह के वाहन देखते होंगे, आपकी नजर वाहनों में लगे अलग-अलग रंगों की नंबर प्लेट पर जाती होगी, जिसके बाद आप कंफ्यूज हो जाते होंगे. दरअसल अलग-अलग रंग की नंबर प्लेट का अलग-अलग मतलब भी होता है. आज हम आपको हर रंग के नंबर प्लेट के बारे में बताते हैं.
सफेद प्लेट: सबसे पहले सफेद रंग की नंबर प्लेट की बात करते हैं, यह प्लेट आम गाड़ियों का प्रतीक होती है, इस वाहन का कमर्शियल यूज नहीं किया जाता है. इस प्लेट के ऊपर काले रंग से नंबर लिखे होते हैं. वैसे ज्यादातर लोग सफेद रंग देखकर आसानी से अंदाजा लगा लेते हैं कि यह पर्सनल गाड़ी है.
पीली प्लेट: आप पीली रंग की नंबर प्लेट को देखकर आसानी से पहचान लेते हैं कि यह टैक्सी है. पीली प्लेट आमतौर पर उन ट्रकों या टैक्सी में लगी होती हैं, जिनका आप कमर्शियल उपयोग करते हैं. इस प्लेट के अंदर भी नंबर काले रंग से लिखे होते हैं. (Photo: getty)
नीली प्लेट: नीले रंग की नंबर प्लेट एक ऐसे वाहन को मिलती है, जिसका इस्तेमाल विदेशी प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है. इस रंग की नंबर प्लेट की गाड़ियां आपको दिल्ली जैसे शहरों में आसानी से देखने के लिए मिल जाएंगी. नीली प्लेट यह बताती है कि यह गाड़ी विदेशी दूतावास की है, या फिर यूएन मिशन के लिए है. नीले रंग की इस प्लेट पर सफेद रंग से नंबर लिखे होते हैं.
काली प्लेट: काले रंग की प्लेट वाली गाड़ियां भी आमतौर पर कमर्शियल वाहन ही होती हैं, लेकिन ये किसी खास व्यक्ति के लिए होती है. इस प्रकार की गाड़ियां किसी बड़े होटल में खड़ी मिल जाएंगी. ऐसी कारों में काले रंग की नंबर प्लेट होती है और उसपर पीले रंग से नंबर लिखा होता है.
लाल प्लेट: अगर किसी गाड़ी में लाल रंग की नंबर प्लेट है तो वह गाड़ी भारत के राष्ट्रपति या फिर किसी राज्य के राज्यपाल की होती है. ये लोग बिना लाइसेंस की ऑफिशियल गाड़ियों का उपयोग करते हैं. इस प्लेट में गोल्डन रंग से नंबर लिखे होते हैं और इन गाड़ियों में लाल रंग की नंबर प्लेट पर अशोक की लाट का चिन्ह बना हुआ होता है.
तीर (arrow) वाली नंबर प्लेट: सैन्य वाहनों के लिए अलग तरह की नंबरिंग प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे वाहनों के नंबर को रक्षा मंत्रालय द्वारा आवंटित किया जाता है. ऐसी गाड़ियों की नंबर प्लेट में नंबर के पहले या तीसरे अंक के स्थान पर ऊपरी ओर इशारा करते तीर का निशान होता है, जिसे ब्रॉड एरो कहा जाता है. तीर के बाद के पहले दो अंक उस वर्ष को दिखाते हैं, जिसमें सेना ने उस वाहन को खरीदा था, यह नम्बर 11 अंकों का होता है.
कोरोना के म्यूटेशन से तैयार होने वाला वायरस अब दुनियाभर में हावी हो रहा है. अमेरिका के टेक्सास के हॉस्पिटल में भर्ती हुए 5 हजार कोरोना मरीजों पर की गई स्टडी में पता चला है कि 99.9 फीसदी केस के लिए कोरोना का बदला रूप यानी D614G जिम्मेदार है.
ऐसा समझा जा रहा है कि कोरोना वायरस का नया रूप मूल वायरस से अधिक संक्रामक है. स्टडी के दौरान रिसर्चर्स ने पांच हजार केस के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस स्ट्रेन का विश्लेषण किया. सबसे पहले यूरोप में कोरोना वायरस के D614G स्ट्रेन फैलने की जानकारी सामने आई थी.
पहली बार फरवरी में कोरोना वायरस D614G स्ट्रेन की जानकारी मिली थी. लेकिन फिर यह स्ट्रेन यूरोप से अमेरिका और एशियाई देशों में भी कुछ ही हफ्ते में फैल गया. वैज्ञानिक अब भी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों SARS-CoV-2 का यह रूप दुनिया के बड़े हिस्से में तेजी से फैला.
महामारी के शुरुआती दिनों में D strain वायरस से अधिक लोग संक्रमित हो रहे थे. लेकिन, मार्च तक D614G स्ट्रेन दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैल गया था और कुल संक्रमण में एक चौथाई मामलों के लिए जिम्मेदार था. मई तक D614G स्ट्रेन वाले केस की संख्या 70 फीसदी हो गई. अब दुनिया के कुल कोरोना मामलों में 85 फीसदी से अधिक D614G स्ट्रेन के ही बताए जा रहे हैं.
वहीं, अगस्त में सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी के सीनियर कंसलटेंट पॉल तांबयाह ने कहा था कि D614G स्ट्रेन अधिक संक्रामक है, लेकिन मूल वायरस की तुलना में कम जानलेवा है. बता दें कि दुनिया में अब तक कोरोना के कुल मामलों की संख्या 4.7 करोड़ से अधिक हो चुकी है.