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प्रेगनेंसी में अच्छे खानपान के साथ साथ पर्याप्त आराम करना भी गर्भवती महिला के लिए बहुत ज़रूरी होता है। ये नौ महीने का सफर होने वाली मां के लिए उतार चढ़ाव से भरा रहता है। जहां एक ओर घर में नए मेहमान के आने की ख़ुशी होती है, वहीं दूसरी ओर बच्चे की सुरक्षा को लेकर मन में कई तरह की चिंता रहती है और अगर आपकी हाई रिस्क प्रेगनेंसी है तो फिर आपकी चिंता दोगुनी हो जाती है क्योंकि हाई रिस्क शब्द ही आपको भयभीत कर देता है। आइए जानते हैं हाई रिस्क प्रेगनेंसी क्या होती है और इससे जुड़ी कुछ ख़ास बातें।
क्या है हाई रिस्क प्रेगनेंसी?
हाई रिस्क प्रेगनेंसी का मतलब है आपकी प्रेगनेंसी से जुड़ी कुछ जटिल समस्याएं जो बच्चे के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। आपको स्वस्थ प्रेगनेंसी के लिए अपना ज़्यादा ध्यान रखने की ज़रुरत है ताकि आप और होने वाला बच्चा दोनों सुरक्षित रहे। हाई रिस्क प्रेगनेंसी में कई सारी सेहत से जुड़ी समस्याएं होती हैं जो आपकी प्रेगनेंसी को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है उदाहरण के तौर पर जैसे जेस्टेशनल डायबिटीज़, HIV, मोटापा और प्रीक्लेम्पसिया।
गर्भधारण करने के बाद आपको अपना ख़ास ध्यान रखने की ज़रुरत होती है इसलिए समय समय पर आप अपने डॉक्टर से सलाह ले सकती हैं ताकि वे आपका सही मार्गदर्शन कर सकें। प्रेगनेंसी में होने वाली सभी जांच आप समय पर करवाएं। अगर आपको इनमें से कोई भी बीमारी है तो उसका पता सही समय पर लग जाए और उसका उचित इलाज किया जा सके।
1. डॉक्टर द्वारा दिया हुआ एक भी अपॉइंटमेंट मिस न करें।
2. प्रेगनेंसी में होने वाले सभी जांच करवाएं।
3. डॉक्टर की सलाह से सभी दवाइयां समय समय पर लें।
4. यदि आपको कुछ भी असामान्य महसूस हो तो फ़ौरन इसकी जानकारी अपने डॉक्टर को दें।
आपके डॉक्टर आपको स्वस्थ रहने में पूरी सहायता करेंगे। अगर आपको प्रेगनेंसी में डायबिटीज की शिकायत होती है तो आपको खानपान का खास ध्यान रखने की ज़रुरत है। इसके लिए आपको डाइट चार्ट भी फॉलो करना पड़ सकता है। इसके अलावा यदि आपको डिप्रेशन या अन्य साइकोलॉजिकल समस्या हो रही है तो ऐसे में किसी अच्छे मनोचिकित्सक से मिलकर अपनी समस्या का समाधान कर सकती हैं।
प्रेगनेंसी के दौरान स्त्री को कई तरह की मानसिक और शारीरिक बदलावों से गुज़रना पड़ता है। ऐसे में तनाव होना लाज़मी है लेकिन स्वस्थ रहने के लिए तनावमुक्त रहना बेहद ज़रूरी होता है। ख़ास तौर पर जब आप एक नए जीवन का निर्माण करने वाली हों।
1. पर्याप्त आराम
आम दिनों की तुलना में प्रेगनेंसी के दौरान आराम पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप दिन भर सोते रहें। बीच बीच में छोटी छोटी झपकी आप ले सकती हैं। अगर आप नौकरीपेशा हैं तो लंच ब्रेक में ज़रूर थोड़ा आराम करें ताकि आप मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूपों से स्वस्थ और ताज़ा महसूस करें।
खुद पर ज़्यादा काम का दबाव न डालें चाहे वो घर के ही काम क्यों न हो। इसके लिए आप अपने पार्टनर या परिवार के दूसरे सदस्यों की मदद लें।
इस अवस्था में हल्के फुल्के व्यायाम करना आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा। यदि आपके डॉक्टर ने आपको पूरी तरह से बेडरेस्ट का सुझाव नहीं दिया है तो आप उनकी सलाह से व्यायाम कर सकती हैं जो प्रेगनेंसी के दौरान सुरक्षित माने जाते हैं।
प्रीनेटल योग, ध्यान आदि तनाव को कम करके आपको शांत रहने में मदद करेंगे इसलिए यह भी एक बेहतर विकल्प है।
ताज़ी और खुली हवा में टहलने से आपका तनाव तो कम होगा ही साथ ही आपको नींद भी अच्छी आएगी।
अगर आपकी प्रेगनेंसी में कुछ समस्याएं आ भी रही हैं तो उससे घबराने या डरने की जगह आप अपना सही इलाज करवाएं ताकि आप और होने वाला बच्चा दोनों ही स्वस्थ रहें। स्वस्थ रहने के लिए आपको सही देखभाल और अच्छी चीज़ों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। परेशान रहकर आप अपनी समस्या को बस बढ़ावा देंगी। इसके कारण आप डिप्रेशन का भी शिकार हो सकती हैं। अगर लगातार डॉक्टर के अपॉइंटमेंट्स और दवाइयों से आपको झुंझलाहट महसूस होने लगे तो बस एक मिनट के लिए यह सोचिये कि यह सब आपके और आपके होने वाले बच्चे की भलाई के लिए ही हो रहा है।
कई गर्भवती महिलाएं (ख़ास तौर पर जो अपने पहले या तीसरी तिमाही में होती है) अकसर इस बात की शिकायत करती हैं कि उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है। सांस से जुड़ी सबसे आम समस्या जिससे गर्भावस्था में महिलाओं को जूझना पड़ता है वह है अस्थमा (एक दीर्घकालीन बीमारी)। यह फेफड़े का रोग ऐसी कई औरतों को प्रभावित करता है जिन्हें पहले कभी अस्थमा की शिकायत ही नहीं हुई। आज इस लेख में हम इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे और इस बीमारी से जुड़ी कुछ ख़ास जानकारी भी आपको देंगे।
संकेत और लक्षण
गर्भावस्था में होने वाला अस्थमा सामान्य अस्थमा की ही तरह होता है जिसमें महिलाओं को सीने में जकड़न के साथ साथ सांस लेने में भी तकलीफ होती है। इसके कारण गर्भवती स्त्री को आम दिनों की तुलना में जल्दी थकावट महसूस होने लगती है।
कुछ मामलों में यह गंभीर रूप ले लेता है और गर्भवती महिला सांस की तकलीफ के साथ साथ बुरी तरह से खांसने भी लगती है। यदि आपका अस्थमा का इतिहास है और आप सामान्य से ज़्यादा इनहेलर और दवाइयों का सेवन कर रही हैं तो बेहतर होगा इस बारे में आप अपने डॉक्टर को सही और पूरी जानकारी दें।
गर्भावस्था में अस्थमा का कारण
प्रेगनेंसी के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन्स का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। चिकित्सकों ने इस बात की पुष्टि की है कि साइनस और बंद नाक में एस्ट्रोजन एक अहम भूमिका निभाता है। ठीक इसी प्रकार सांस लेने में तकलीफ और सांस फूलना प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के कारण होता है।
गर्भावस्था में अस्थमा से होने वाले शिशु पर प्रभाव
जी हां, गर्भावस्था के दौरान अस्थमा का प्रभाव होने वाले बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है। अस्थमा का सीधा प्रभाव माँ के ब्लड प्रेशर पर पड़ता है जिसके कारण न सिर्फ हाइपरटेंशन होता है बल्कि प्रीक्लेम्पसिया का भी खतरा होता है। प्रीक्लेम्पसिया वह स्थिति होती है जो होने वाले बच्चे के लिए बेहद हानिकारक होती है। इसके अलावा अस्थमा गर्भवती महिला के लिए पहली तिमाही में मॉर्निंग सिकनेस को और भी कठिन बना देती है जिसके कारण अपरिपक्व प्रसूति का डर बना रहता है।
साथ ही बच्चे को कई अन्य तरह की बीमारियों का भय रहता है जैसे निओनेटल हाइपोक्सिया, बच्चे का वज़न कम होना आदि।
उपचार
आमतौर पर अस्थमा को कंट्रोल करने के लिए गर्भावस्था में डॉक्टर्स दो तरह के उपचार बताते हैं पहला आपके डॉक्टर आपको कुछ निवारक दवाइयां देंगे ताकि अस्थमा के अटैक को रोका जा सके। दूसरी ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर बचाव के लिए कुछ दवा दे सकते हैं।
इसके साथ ही डॉक्टर आपको यह भी बताएंगे कि किस तरह आप अस्थमा के अटैक के बाद अपने होने वाले बच्चे की गतिविधि पर नज़र रख सकते हैं। अगर आपको कुछ भी अलग महसूस हो तो ऐसे में फ़ौरन अपने डॉक्टर से सलाह लेना ही आपके लिए बेहतर होगा।
क्या प्रेगनेंसी में अस्थमा की दवाइयां सुरक्षित होती है?
जैसा कि हम सब जानते हैं प्रेगनेंसी के दौरान सभी दवाइयां सुरक्षित नहीं होती है इसलिए प्रेगनेंट महिला को सिर्फ उन्हीं दवाइयों का सेवन करना चाहिए जो उनके और बच्चे के लिए एकदम सुरक्षित हो और जिन्हें डॉक्टर खुद जांच के बाद आपको दी हो।
ऐसी स्थिति में डॉक्टर्स कई बार बचाव के लिए इनहेलर का इस्तेमाल करने की भी सलाह देते हैं। कई महिलाएं एल्ब्युटेरोल नेब्युलाइज़र का भी प्रयोग करती हैं। हालांकि इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन फिर भी यह होने वाले बच्चे के लिए कई बार हानिकारक हो सकता है क्योंकि इससे होने वाले शिशु के हार्ट रेट बढ़ने का खतरा हो सकता है इसलिए किसी भी परिस्थिति में अपने डॉक्टर से सलाह लेकर और सही जानकारी प्राप्त करके ही दवाइयों का चयन करना चाहिए।