Monday, 23 December 2024

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वो 6 फल जो हर उम्र की महिलाओं को जरूर खाने चाहिए.....

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महिलाएं होती ही खूबसूरत हैं. वे बेहद अच्छे व्यक्तिव की धनी होती ही हैं साथ ही अपनी खूबसूरती (dynamic personality) को अच्छी तरह कैरी करना भी उन्हें आता है. महिलाओं के जीवन में बहुत काम है. अगर वे वर्किंग नहीं हैं तो भी उनके हिस्से काफी वर्क होता है. घर संभालना (managing household) रिश्तों को सजाए रखना ( maintaining relationships) और इसके साथ साथ खुद को भी संवार (manage to look gorgeous) कर रख सकती हैं

महिलाएं. इतना ही नहीं हर उम्र में उन्हें अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है. मूड स्विंग (mood swings) क्रेम्प्स (cramps) ऊर्जा में कमी (energy drains) सिरदर्द (headaches) हर महीने उन्हें झेलनी पड़ सकती हैं. महिलाओं में उम्र के साथ साथ पोषक तत्वों (nutrition rules change) की जरूरतों में भी बदलाव होता है. उन्हें कुछ विटामिन खाना बहुत जरूरी होती है. विटामिन बी12, सी और डी (B12, C and D) और मिनरल्स जैसे आयरन और कैल्शियम की जरूरत समय के साथ साथ बदलती रहती है. 

 एक स्टडी के मुताबिक विटामिन सी और लिनोलेइक एसिड का सही मात्रा में लेने और फैट्स और कार्बोहाइड्रेट का कम सेवन कैंसर के खतरे को कम करता है और उम्र के साथ ढ़लती त्वचा को भी (better skin-ageing appearance) नई चमक देता है. अगर आप अपने खाने का ध्यान रखती हैं और आहार से जुड़ी आदों (eating habits) को सही रखते हैं तो अपनी इसी एक कोशिश से आप काफी सेहतमंद बनी रह सकती हैं. सही आहार हड्डियों और मसल्स (bone and muscle) के लिए अच्छा होता है साथ ही यह मधुमेह (diabetes) स्तन कैंसर (breast cancer) और दिल से जुड़े रोगों  (heart-related problems) को दूर रख आंखों और त्वचा को नई चमक दे सकता है. 

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यहां हैं वो 6 फल जो हर उम्र की महिलाओं को जरूर खाने चाहिए (6 fruits that women of all age must include in their diet):

चेरी ( Cherries):  

हर आहार को सजाने में बेझिझक इस्तेमाल होने वाला फल है चेरी. यह भारत में भी आसानी से मिल जाती हैं. चटख लाल चेरी खाने में भी बहुत स्वाद होती हैं. यही वजह है कि कई मीठे पकवानों में इनका जमकर इस्तेमाल होता है. इन्हें फ्रूट जूस में भी खूब इस्तेमाल किया जाता है. युनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रिकल्चर के अनुसार 100 ग्राम चेरी में 50 कैलोरी होती हैं. 

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100 ग्राम चेरी में 50 कैलोरी होती हैं. 

टमाटर (Tomatoes): 

टमाटर खाने से खून बढ़ता है. लेकिन टमाटर के बस यही फायदे नहीं हैं. विटामिन A,B, C और K, पोटेशियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस से भरपूर टमाटर सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है. यह पेट और दिल को हेल्दी रखने में मदद करता है और कैंसर कोशिकाओं को भी मारता है. सेहत के इन फायदों के अलावा टमाटर आपकी खूबसूरती बढ़ाने में भी मदद करता है. 

side effects of tomatoes

पपीते के इस्तेमाल व सेवन से आप चमकदार त्वचा पा सकती हैं

पपीते (Papaya)

पपीते के इस्तेमाल व सेवन से आप चमकदार त्वचा पा सकती हैं, जो आपकी खूबसूरती निखारेगा. पपीते के इस्तेमाल से त्वचा में चमक व सौम्यता आती है, इससे आपका व्यक्तिव आकर्षक बनता है. स्वस्थ शरीर व छरहरी काया के लिए रोज दो कटोरी पपीता खाएं. इस फल में पपाइन नाम का एंजाइम होता है जो भोजन को तेजी से पचाता है, चयापचय सुधारता है और वजन कम कर काया छरहरी बनाता है. रोजाना 55 कैलोरी वाले पपीते का सेवन कर आप हेल्दी और ब्यूटिफुल बनी रह सकती है.

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स्वस्थ शरीर व छरहरी काया के लिए रोज दो कटोरी पपीता खाएं.

अमरूद (Guava) 

USDA के मुताबिक महज 100 ग्राम अमरूद में 228.3 ग्राम विटामिन सी होती हैं.  अमरूद आपकी हेल्‍थ के लिए बेहद गुणकारी साबित होगा. यही वजह है कि इसे सुपर फूड की कैटगरी में रखा गया है. इसमें विटामिन C, लाइकोपीन, मैग्‍नीज, पोटैशियम, विटामिन, मिनरल और फाइबर पाए जाते हैं. अपनी इन खूबियों के चलते आयुर्वेद में अमरूद को खास स्‍थान दिया गया है. यही नहीं इसकी खुश्‍बू और स्‍वाद दोनों लाजवाब हैं. अगर अब तक आप अमरूद को  महज एक फल समझकर इग्‍नोर करते आए हैं तो अब इन खूबियों के बारे में जान लें और इस वंडर फूड को अपनी डाइट का हिस्‍सा जरूर बनाएं. 

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इस वंडर फूड को अपनी डाइट का हिस्‍सा जरूर बनाएं. 

सेब (Apples):

यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है कि सेब का सिरका रंग निखाने में भी कारगर है. इसमें एस्ट्रिंजेंट तत्व होते हैं जो त्वचा तक खून के बहाव को बढ़ाता है और पॉर्स को छोटा करता है. यह ऑयली स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है और आपके पीएच लेवल को भी बेहतर रखता है. 

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यह ऑयली स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है

एवाकाडो (Avocado):

एवाकाडो को अपने खाने में शामिल करें. इसमें इम्यून सिस्टम के कार्यों को बेहतर बनाने और दिल, फेफड़े, किडनी के साथ ही शरीर के दूसरे आवश्यक अंगों के कार्यों को भी सामान्य रखने के लिए विटामिन ए की भूमिका काफी मात्रा में होता है. इससे शरीर कई समस्याओं से ग्रस्त हो जाता है.

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 एवाकाडो खाने से विटामिन ए की कमी से अंधापन, आंखों में सूखापन, रूखे बाल, सूखी त्‍वचा, बार-बार सर्दी-जुकाम, थकान, कमजोरी, नींद न आना, रतोंधी, निमोनिया और वजन में कमी होने जैसी कई परेशानियां दूर हो सकती हैं.

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जन्‍म से पहले और जन्‍म के बाद के शुरुआती जीवन में शिशुओं को एंटीबायोटिक देने से सेहत को कई खतरे रहते हैं.....



 




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ऑस्ट्रेलिया में जन्‍म लेने वाले शिशुओं में से लगभग आधे बच्‍चों को ही अपने पहले जन्मदिन तक एंटीबायोटिक्स का एक कोर्स मिल पाता है। दुनिया में एंटीबायोटिक के उपयोग की यह उच्चतम दर है। एंटीबायोटिक्‍स की बात करें तो शिशुओं को बैक्‍टीरिया से होने वाले संक्रमण से एंटीबायोटिक्‍स की मदद से बचाया जा सकता है और वायरल संक्रमण होने पर भी शिशुओं को एंटीबायोटिक्‍स ही दिए जाते हैं।

Antibiotics before birth and in early life can affect long-term health
 अगर आप बेवजह बच्‍चों को एंटीबायोटिक्‍स दें तो इससे उन्‍हें इसके हानिकारक प्रभाव भी झेलने पड़ते हैं जैसे कि डायरिया, उल्‍टी, रैशेज़ और एलर्जी आदि। एंटीबायोटिक्‍स का ज्‍यादा इस्‍तेमाल बैक्‍टीरियल रेसिस्‍टेंस को भी बढ़ा देता है। ऐसा तब होता है जब सामान्‍य तौर पर इस्‍तेमाल होने वाले एंटीबायोटिक्‍स कुछ बैक्‍टीरिया पर बेअसर हो जाते हैं या उनका ईलाज करना मुश्किल हो जाता है। शोधकर्ताओं को भी लगता है कि जन्‍म से पहले और जन्‍म के बाद के शुरुआती जीवन में एंटीबायोटिक देने से सेहत को कई खतरे रहते हैं जैसे कि संक्रमण, ओबेसिटी या अस्‍थमा आदि का खतरा।

गट बैक्‍टीरिया की भूमिका

हमारे पेट में कई तरह के बैक्‍टीरिया होते हैं जिनमें वायरस, फंगी के साथ-साथ कई तरह के जीवाश्‍म मौजूद रहते हैं। ये माइक्रोबियल जीव एकसाथ माइक्रोबाओम कहलाते हैं। शरीर के विकास और सेहत के लिए ये माइक्रोबाओम जरूरी होते हैं और इनका संबंध मानसिक विकास, इम्‍युनिटी, ओबेसिटी, ह्रदय रोग और कैंसर से भी होता है। नवजात शिशु का सबसे पहले संपर्क बैक्‍टीरिया से होता है और फिर जन्‍म के बाद अन्‍य माइक्रोब्‍स से। जन्‍म से पहले शिशु शुरुआती माइक्रोबाओम जननमार्ग और पेट से प्राप्‍त करते हैं। सिजेरियन सेक्‍शन से डिलीवरी होने पर मां की त्‍वचा और अस्‍पताल से कुछ बग्‍स शिशु पर लग जाते हैं जिससे शिशु को संक्रमण होने का खतरा रहता है।

गर्भावस्‍था के दौरान एंटीबायोटिक्‍स से मां के माइक्रोबाओम को सुरक्षित रखा जाता है और इस तरह शिशु के माबक्रोबाओम बनते हैं। एंटीबायोटिक्‍स ना केवल संक्रमण पैदा करने वाले बैक्‍टीरिया को खत्‍म करते हैं बल्कि वो माइक्रोबाओम के बैक्‍टीरिया को भी खत्‍म कर देते हैं जिनमें से ज्‍यादातर फायदेमंद होते हैं। ऐसे में माइक्रोबाओम के असंतुलन को डिस्‍बायोसिस कहते हैं। शुरुआत में शिशु को अपने माइक्रोबाओम डिलीवरी के समय अपनी मां से मिलते हैं। जन्‍म के एक सप्‍ताह बाद और महीने के भीतर नवजात शिशु का इम्‍यून सिस्‍टम विकास करने लगता है और धीरे-धीरे उसके शरीर में माइक्रोबाओम बनने लगते हैं।

गर्भावस्‍था में एंटीबायोटिक्‍स लेने से मां और उसके ज़रिए शिशु के माइक्रोबाओम में परिवर्तन आता है जिसका असर शिशु के शुरुआती इम्‍यून पर पड़ता है। इससे बचपन में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। दानिश की हाल ही में हुई एक स्‍टडी में सामने आया है कि जो महिलाएं गर्भावस्‍था में एंटीबायोटिक्‍स लेती हैं उनके बच्‍चे को शुरुआती 6 सालों में गंभीर संक्रमण होने का खतरा रहता है। जो महिलाएं गर्भावस्‍था में ज्‍यादा एंटीबायोटिक्‍स लेती हैं या डिलीवरी के आसपास एंटीबायोटिक्‍स का सेवन करती हैं उनके बच्‍चों में ये खतरा ज्‍यादा पाया जाता है।

वहीं सामान्‍य प्रसव करने वाली महिलाओं के शिशु में भी ये खतरा ज्‍यादा रहता है। ऐसा माना जाता है कि एंटीबायोटिक्‍स का असर मां के माइक्रोबायोम पर पड़ता है। मां और बच्चे के बीच साझा किए गए अन्य अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारक भी इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं।

ओबेसिटी

मांस के उत्‍पादन में विकास के लिए एंटीबायोटिक्‍स का बहुत प्रयोग किया जाता है। पशुओं में 80 प्रतिशत सभी तरह‍ के एंटीबायोटिक्‍स का इस्‍तेमाल किया जाता है। उनका अधिकांश प्रभाव पशुधन के सूक्ष्मजीवों के माध्यम से होता है, जोकि मेटाबॉलिज्‍म और एनर्जी पर खासा असर डालता है। मनुष्‍य के विकास में भी एंटीबायोटिक्‍स कुछ ऐसी ही भूमिका अदा करते हैं। ऐसे साक्ष्‍य मिले हैं जिनसे ये साबित होता है कि गर्भावस्‍था में एंटीबायोटिक लेने का संबंध शिशु के शुरुआती जीवन में वजन बढ़ने और ओबेसिटी से होता है। लेकिन इसके अन्‍य कारणों पर भी रिसर्च होना अभी बाकी है।

शुरुआती बचपन में एंटीबायोटिक्‍स और ओबेसिटी का संबंध बिलकुल साफ है। जन्‍म लेने के बाद पहले साल में एंटीबायोटिक लेने से बच्‍चे में ओबेसिटी का खतरा 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इसके अलावा एंटीबायोटिक्‍स देने का समय और उसका प्रकार भी इसमें अहम भूमिका निभाता है।

अस्‍थमा

शोधकर्ताओं का कहना है कि एंटीबायोटिक के इस्‍तेमाल की वजह से शिशु को बचपन में ही अस्‍थमा की बीमारी घेर सकती है। स्‍टडी में सामने आया है कि गर्भावस्‍था या नवजात शिशु को एंटीबायोटिक देने से अस्‍थमा का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, कुछ स्‍टडी में ये बात भी सामने आई है कि अस्‍थमा और एंटीबायोटिक्‍स के बीच संबंध के कई और भी कारण है जिनमें श्‍वसन संक्रमण है जिससे अस्‍थमा हो सकता है।

लेकिन अन्य अध्ययनों से पता चला है कि ये कारक एंटीबायोटिक उपयोग और अस्थमा के बीच के संबंध का पूरी तरह से वर्णन करने में असक्षम हैं। अस्थमा के विकास में सूक्ष्मजीव की भूमिका की बेहतर समझ से एंटीबायोटिक दवाओं के योगदान को स्पष्ट करने में मदद मिलेगी।

अन्‍य संबंध

शुरुआती बचपन और जन्‍म के शुरुआती 12 महीनों में एंटीबायोटिक का इस्‍तेमाल करने से गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल रोग जैसे क्रोह्न और कोएलिअक रोग के बीच संबंध पाया गा है। जो बच्‍चे एंटीबायोटिक के 7 कोर्स लेते हैं उनमें क्रोह्न रोग का खतरा सात गुना ज्‍यादा रहता है। हालांकि, मात्र एक अध्‍ययन से ये साबित नहीं किया जा सकता है कि एंटीबायोटिक्‍स से अस्‍थमा का खतरा रहता है। यह संभव है कि इन बच्चों को अपरिचित गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल या सूजन संबंधी बीमारी के लक्षणों के लिए एंटीबायोटिक्स दिया गया हो या फिर किसी संक्रमण के लिए।

वहीं किशोरावस्‍था में एंटीबायोटिक का इस्‍तेमाल आंत के कैंसर से संबंधित है। एंटीबायोटिक के ज्‍यादा कोर्स लेने से इसका खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, अभी इस विषय पर और रिसर्च की जानी बाकी है। एंटीबायोटिक्स सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा नवाचारों में से एक है और उचित रूप से उपयोग किए जाने पर इनसे किसी के भी जीवन को बचाया जा सकता है लेकिन अनुचित उपयोग से बच्‍चों और वयस्‍कों को शारीरिक समस्‍याओं के रूप में इसके हानिकारक प्रभावों को झेलना पड़ता है।

एक हालिया अध्‍ययन में पता चला है कि विश्‍व में एंटीबायोटिक का उपयोग 2030 तक तीन गुना बढ़ जाएगा। जब तक हम सभी एंटीबायोटिक के प्रयोग को कम करने के लिए मिलकर काम नहीं करते हैं, तब तक हम अपने बच्‍चों को इस समस्‍या से नहीं बचा सकते हैं।

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लवमेकिंग के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि सेक्स के दौरान आप ऐसी कोई गल‍ती न करें, जो कि बेडरुम में आपके पार्टनर का मूड ही खराब कर दें.....


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बेडरुम में लवमेकिंग के दौरान पार्टनर्स को दोनों की पसंद और नापसंद का ख्‍याल रखना जरुरी होता है। और ज़्यादातर कपल्स ऐसी कोशिश भी करते हैं। इसीलिए लवमेकिंग के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि सेक्स के दौरान आप ऐसी कोई गल‍ती न करें, जो कि बेडरुम में आपके पार्टनर का मूड ही खराब कर दें।

खासतौर पर महिलाओं को कुछ खास बातों का ध्‍यान रखना होता है। बेडरूम में फीमेल पार्टनर्स को इन गलतियों को करने से बचना चाह‍िए, ताकि उनके पार्टनर का मूड ऑफ न हो जाएं।

 
उन्‍हें एक्‍साइटेड फील कराएं, बोरियत नहीं
 उन्‍हें एक्‍साइटेड फील कराएं, बोरियत नहीं

कई महिलाएं उम्मीद करती हैं कि उनके पार्टनर उन्हें लुभाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाएं , जबकि वो खुद ऐसी कोशिश कभी नहीं करती। लेकिन सभी पुरुषों को यह बात पसंद नहीं आतीं। पुरुष चाहेंगे कि आप बेडरुम में महिलाओं से बहुत सारी उम्मीदें रखते हैं। महिलाओं को भी पहल करनी चाह‍िए। थोड़े जतन आप भी करें और उन्‍हें थोड़ा स्‍पेशल महसूस कराएं।

हाइजीन रहें

हालांकि आप और आपके पार्टनर एक दूसरे के साथ कम्‍फर्टेबल हो गए हैं तो इसका ये मतलब नहीं है कि आप हाइजीन की तरफ ध्‍यान नहीं देगी। आपने कई बार सेक्स कर लिया है इसलिए आप अपने प्यूबिक हेयर साफ करने की नहीं सोचतीं हैं। ध्‍यान रहे कि मर्दो को साफ सुथरी महिलाएं खूब लुभाती है। इसल‍िए सफाई पर खास ध्‍यान दें।

चोट न पहुंचा दें

लवमेकिंग के दौरान दोनों लोग बहुत उत्तेजित हो जाते है इस दौरान पार्टनर को उत्तेजित करने के लिए उन्हें यहां-वहां लब बाइट ना दें। इस तरह न केवल उन्हें तकलीफ होगी बल्कि गहरे घाव भी हो सकते हैं। इसके अलावा उन्‍हें नाखून न चुभा दे इससे भी उन्‍हें घाव पहुंच सकता है।

भरपूर एंजॉय करें

सेक्‍स का दूसरा नाम है एंजॉय, लेकिन बहुत सी महिलाओं को इस बात की चिंता सताती रहती है कि सेक्स के दौरान वे कैसी दिख रही हैं। ऑवरथिकिंक के चक्‍कर में आप एन्जॉय नहीं कर पाएंगी। वैसे भी लवमेकिंग के दौरान आपका पार्टनर आपके सेक्‍स अपील से आकर्षित होता है। रूप-रंग या ड्रेस से उसे कोई मतलब नहीं होता है।

संतुष्टि है जरुरी

अगर आपको ऑर्गैज़्म नहीं महसूस हो रहा तो फेक ऑर्गैज़्म का नाटक ना करें। अगर आपको कई बार सेक्‍स करने के बाद भी ऑर्गेज्‍म नहीं महसूस हुआ है तो इस बारे में आपके पार्टनर से बात कीजिए इस तरह आप दोनों की समस्या हल हो जाएगी। क्‍योंकि एक बेहतर सेक्‍स के ल‍िए संतुष्टि बहुत जरुरी है।

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प्रेगनेंसी में आयरन, विटामिन, कैल्शियम और प्रोटीन के साथ एक और तत्व भी बहुत ज़रूरी होता है और वह है फोलिक एसिड......


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गर्भवस्था के दौरान एक महिला को अपना ख़ास ध्यान रखना चाहिए ताकि होने वाले बच्चे पर किसी तरह का बुरा प्रभाव न पड़े और वह एकदम स्वस्थ और तंदुरुस्त रहे। प्रेगनेंसी में आयरन, विटामिन, कैल्शियम और प्रोटीन के साथ एक और तत्व भी बहुत ज़रूरी होता है और वह है फोलिक एसिड। जी हां, प्रेगनेंसी में फोलिक एसिड का सेवन गर्भवती महिला के लिए बहुत ही ज़रूरी होता है क्योंकि इसके कई फायदे होते हैं।

फोलिक एसिड जो B9 और फोलेट के नाम से भी जाना जाता है, शरीर और दिमाग में नई स्वस्थ कोशिकाओं का निर्माण करता है। साथ ही खून में रेड सेल भी बनाता है। इतना ही नहीं फोलिक एसिड स्ट्रोक और दिल के दौरे का खतर भी कम करता है। इससे पहले कि आप फॉलिक एसिड के फायदे के बारे में अधिक जानकारी हासिल करें आपके लिए यह जानना ज़रूरी है कि आखिर फोलिक एसिड होता क्या है।
 
क्या है फोलिक एसिड?

फोलिक एसिड एक प्रकार का विटामिन 'बी’ (B9) है। गर्भावस्था में इसके नियमित सेवन से होने वाला बच्चा कुछ जन्मजात विकारों से बचा रहता है जैसे बिफिडा। इस बीमारी की वजह से शिशु के विकलांग पैदा होने का खतरा रहता है इसलिए गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा ये माँ और बच्चे को खून की कमी से भी बचाता है। प्रेगनेंसी में फोलिक एसिड के सेवन से गर्भपात का खतरा भी कम रहता है।

अगर प्रेगनेंसी प्लानिंग कर रहे हैं

यदि आप जल्दी ही माँ बनने की प्लानिंग कर रही हैं तो आपके लिए बेहतर होगा कि फोलिक एसिड से भरपूर आहार लेना आप पहले से ही शुरू कर दें। इससे आपको जल्द ही गर्भधारण करने में मदद मिलेगी। फोलिक एसिड, प्रजनन प्रणाली में अंडों के प्रोडक्‍शन को बढ़ा देता है।

इनमें फॉलिक एसिड प्राकृतिक रूप से पाया जाता है

1. खट्टे फल और जूस

2. सूखे सेम, मटर और अंकुरित दाल

3. हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक और ब्रोकोली

4. तरबूज़, खरबूज़ और केला

5. टमाटर का जूस

6. मशरूम

7. अंडे

8. साबुत अनाज जैसे दलिया और होल ग्रेन ब्रेड, होल वीट पास्ता

फोलिक एसिड के फायदे

  
1. प्रेगनेंसी में फोलिक एसिड

1. प्रेगनेंसी में फोलिक एसिड

गर्भावस्था के पहले और गर्भधारण के बाद स्त्री के लिए फोलिक एसिड बहुत ही मददगार साबित होता है। जन्मजात विकारों को दूर करने के साथ साथ बच्चे के सही विकास के लिए भी यह बेहद आवश्यक है। माँ बनने की योजना बना रही महिलाओं को पहले से ही इसका सेवन शुरू कर देना चाहिए ताकि वे जल्द से जल्द गर्भधारण कर सके। हालांकि फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स का सेवन अपने डॉक्टर से उचित सलाह के बाद ही करना चाहिए।

2. प्रेगनेंसी में फोलिक एसिड इन खतरों से शिशु को बचाता है

लो बर्थ वेट

गर्भ में सही विकास न होना

फटे होंठ और तालू

प्रीमैच्योर बर्थ

गर्भपात

3. डिप्रेशन
 3. डिप्रेशन

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में कई तरह के शारीरिक और मानसिक बदलाव आते हैं। नौ महीने का सफर वाकई में उनके लिए चुनौतियों से भरा रहता है। ऐसे में कुछ महिलाएं इन परेशानियों को झेल नहीं पाती और तनाव में रहने लगती हैं।

लेकिन फोलिक एसिड के सेवन से प्रेगनेंसी में होने वाले डिप्रेशन का इलाज संभव है क्योंकि यह मूड रेगुलेशन को बढ़ाता है। ब्रेन के सही तरीके से काम करने के लिए फोलेट का स्तर पर्याप्त होना बेहद ज़रूरी है।

4. पाचन

फोलिक एसिड पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है। यह विटामिन B12 और विटामिन C के साथ मिलकर काम करता है और शरीर को प्रोटीन के उपयोग में और पचाने में मदद करता है।

5. फोलिक एसिड बालों के लिए

फोलिक एसिड बालों के लिए भी बहुत ही फायदेमंद होता है। यह उन कोशिकाओं को नवीनीकृत करता है जो बालों के विकास में सहायता करते हैं। फोलिक एसिड की कमी के कारण बाल समय से पहले झड़ कर सफ़ेद होने लगते हैं।

6. ह्रदय रोग

फोलिक एसिड विटामिन B12 के साथ ह्रदय के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है यह स्ट्रोक और दिल के दौरे के खतरे को भी कम करता है।

 
7. मधुमेह

फोलिक एसिड खून में फैट कंटेंट की मात्रा को कम करता है जिससे वज़न पर नियंत्रण रहता और और टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा नहीं रहता।

8. कैंसर

फोलिक एसिड कैंसर के सेल्स को बढ़ने से रोकता है। फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स के सेवन से आपको कोलन कैंसर का खतरा नहीं रहेगा। इतना ही नहीं यह आपको सर्वाइकल कैंसर और पैंक्रिअटिक कैंसर से भी सुरक्षित रखता है।

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