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अब 12 जिलों के 17 उच्च जोखिम क्षेत्रों में परामर्ष व जांच प्रारंभ
रायपुर 10 मई 2018 । स्वास्थ्य संचालक रानू साहू ने आज समुदाय आधारित स्वास्थ्य सेवाओं का ट्रकर्स पार्किंग नंबर 5 बीरगांव में शुभारंभ किया । स्वास्थ्य विभाग द्वारा छूटे हुए एचआईवी संक्रमितों को खोजने के लिये 12 जिलों के 17 उच्च जोखिम क्षेत्रों को चुनकर वहां कैंप लगाया गया है । इन क्षेत्रों में राज्य स्तरीय शुभारंभ स्वास्थ्य संचालक ने किये हैं । परियोजना संचालक के प्रयास से आज यह कार्यक्रम को मूर्त रूप दिया गया है । कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए स्वास्थ्य संचालक ने कहा कि उच्च जोखिम क्षेत्रों में समुदाय के लोगों को एचआईवी स्क्रीनिंग कर धनात्मक प्रकरण को एआरटी केन्द्र से दवा देते हुए जोड़ा जाना मुख्य उद्देश्य है । उन्होंने कहा कि एचआईवी, एड्स पूरे विश्व में सभी देशों में इसका संक्रमण व्यक्तियों को है । समय पर परीक्षण कराना आवश्यक होता है । परीक्षण होने से ही पता चल पाता है कि व्यक्ति एचआईवी संक्रमित है । उन्होंने कहा कि भारत सरकार व राज्य शासन द्वारा एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों के लिये निःशुल्क दवा उपलब्ध कराया जा रहा है जिससे व्यक्ति सामान्य जीवनयापन कर सकता है ।
यह दवाइयां बाहर प्रायवेट में हजारों रू. में खरीदना पड़ सकता है परंतु सरकार ने इसे निःशुल्क उच्च गुणवत्ता वाली दवाइयां प्रदान कर रही है । उन्होंने कहा कि सरकार के इस कार्यक्रम में आप सभी का सहयोग आवश्यक है और अपनी स्वेच्छा से इसकी जांच करायें । आजकल हर बीमारी का ईलाज संभव है । प्रत्येक एचआईवी संक्रमितों को माह में एक बार एआरटी केन्द्र में अवश्य जाना चाहिये । साल में दो बार अपनी जांच करानी चाहिये । इसके लिये सभी स्थानों में स्वयंसेवी संगठन कार्यरत है इसका सहयोग अवश्य लें । इस महत्ती योजना का लाभ अवश्य लें ।
कार्यक्रम को अतिरिक्त परियोजना संचालक डाॅ. एस.के.बिंझवार ने समुदाय आधारित स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दिये । इस अवसर पर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन बीरगांव के अध्यक्ष वाय.एन.तिवारी, संयुक्त संचालक आईईसी महेन्द्र जंघेल, जिला नोडल अधिकारी डाॅ. सत्यनारायण पांडे, उप संचालक लक्षित हस्तक्षेप परियोजना विक्रांत वर्मा सहित राज्य एड्स नियंत्रण समिति के अधिकारी व एनजीओ के परियोजना संचालक, ओआरडब्ल्यू तथा ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अन्य सदस्यगण उपस्थित थे । जहां उच्च जोखिम समूह के महिला यौन कर्मी, नशे से इंजेक्शन लेने वाले व्यक्ति, ट्रक ड्राईवर, खलासी आदि की एचआईवी स्क्रीनिंग किया जा रहा है । ये उच्च जोखिम समूह जिन्हें सबसे ज्यादा एचआईवी संक्रमण होने की संभावना होती है । इनके रूकने वाले स्थानों में जा जाकर काउंसलिंग व खून की जांच किया जा रहा है । उच्च जोखिम समूह के व्यक्ति समय अभाव के कारण सही समय में अस्पताल नहीं जाते । जिसके कारण धीरे-धीरे उन्हंे यदि एचआईवी का संक्रमण हुआ है वह बढ़कर अंतिम स्टेज में पहुंचकर उन्हें एड्स होने की संभावना हो सकती है । ऐसे समय में व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है ।
इनके समय अभाव के कारण अस्पताल न पहुंच पाना की जानकारी स्वास्थ्य संचालक रानू साहू को हुई । उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य एड्स नियंत्रण समिति के अधिकारियों को निर्देश दिये कि वे प्रदेश के उच्च जोखिम जिले में स्पाॅट बनाकर उनके रूकने वाले स्थानों में परामर्श व जांच कर उन्हें वहीं निःशुल्क रिपोर्ट प्रदाय किया जाये । यदि वे धनात्मक आते हैं ऐसी परिस्थिति में नजदीक के आईसीटीसी केन्द्र में एचआईवी जांच का अंतिम रिपोर्ट आने के उपरांत उन्हें धनात्मक प्रकरण होने पर तत्काल एआरटी केन्द्र से निःशुल्क दवा देने की व्यवस्था की जाये । इस निर्देश के बाद राज्य एड्स नियंत्रण समिति के अधिकारियों ने आज यह कार्यक्रम रखकर वहां जांच प्रारंभ किया गया है । उल्लेख है कि बीरगांव ट्रांसपोर्ट एरिया में प्रतिदिन छोटे-बड़े ट्रक करीब 400 का आना-जाना रहता है । इनमें ड्राईवर व खलासी की एचआईवी स्क्रीनिंग करा रहे हैं । ये लंबी दूरी के हरियाणा, राजस्थान, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, बिहार आदि राज्यों के ट्रकर्स आवागमन करते हैं । स्वयंसेवी संगठन व राज्य शासन की मदद से प्रतिदिन 800 लोगों की जांच कराने का लक्ष्य रखा गया है । माह में चार अगल-अलग दिन यह कैंप आयोजित किया जायेगा । ताकि कोई भी व्यक्ति एचआईवी स्क्रीनिंग से बच न सके । प्रदेश में करीब 31 हजार एचआईवी संक्रमित होने का अनुमान है । जिसमें से करीब 30 हजार से अधिक एचआईवी संक्रमितों को खोजा जा चुका है ।
उन्हें स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई जा रही है । करीब 1 हजार ऐसे व्यक्ति हैं जो न ही स्वास्थ्य केन्द्र आते हैं और न ही वे आईसीटीसी केन्द्र में अपनी एचआईवी की जांच नहीं कराते हैं । इन्हें खोजने के लिये कम्यूनिटी बेस्ड स्क्रीनिंग टेस्ट प्रारंभ किया गया है । वर्तमान में प्रथम चरण में कवर्धा, जशपुर, महासमुंद, गरियाबंद, रायपुर, जगदलपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, रायगढ़ तथा कोरबा में स्वयंसेवी संगठन, एएनएम, परामर्शदाता, लिंक वर्कर योजना के डिस्ट्रीक्ट रिसोर्स पर्सन, सुपरवाईजर की ड्यूटी लगाई गई है । उल्लेख है कि एचआईवी को वर्ष 2030 तक के पूर्ण रूप से खत्म करने के लिये भारत सरकार ने 90ः90ः90 के लक्ष्य को वर्ष 2020 तक प्राप्त करने के लिये अग्रसर किया गया है ।
::/fulltext::नई दिल्ली: तूफान (Thunderstorm) के डर से हर कोई सहमा हुआ है. धूल भरी आंधी और बारिश का कहर लोंगों के रोज़ाना के जीवन को तबाह कर रहा है. सामानों और डेली लाइफस्टाइल को प्रभावित करने के अलावा ये तूफान अस्थमा के मरीज़ों के लिए अलग ही परेशानी ला रहा है. क्योंकि धूल-मिट्टी का सबसे बुरा असर सिर्फ दमा के मरीज़ों को होता है. ऐसे में ज़रूरी है कि नीचे दिए गए टिप्स को अस्थमा के मरीज़ फॉलो करें.
1. सबसे पहले अपने मुंह, नाक, आंखे और कानों को कपड़े से बांध लें, ताकि कहीं से धूल आपके शरीर में ना जा पाए.
2. अगर आपके पास पानी मौजूद हो तो सबसे बेहतर है कि आप कपड़े को गीला करके मुंह पर बांधे.
3. आंधी या तूफान से खुद की रक्षा करने के लिए सुरक्षित जगह पर जाएं, जहां आप खुद को धूल-मिट्टी से बचा सकें.
4. घर पहुंच कर सबसे पहले नहाएं और हल्के गुनगुने पानी से गरारे कर गले को साफ करें.
5. अगर आप घर में मौजूद हों तो घर के खिड़की और दरवाजे बंद रखें.
6. धूल की वजह से गले और नाक में खुजली या इरिटेशन हो तो 10 से 20 मिनट तक स्टीम लें.
7. हमेशा अपनी दवाइयां और इनहेलर साथ में रखें, ताकि इमरजेंसी में इन्हें खा सकें.
8. इन बचावों के बाद भी अगर सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत अस्पताल जाएं.
आपको बता दें मौसम विभाग की तरफ से आई जानकारी के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर सहित 20 राज्यों में 11 मई तक तूफान की आशंका की बनी हुई है. भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, ओडिशा, असम, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, कर्नाटक और केरल आंधी-तूफान से प्रभावित हो सकते हैं.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने लोगों से लू से बचने के लिए आवश्यक सावधानी बरतने की अपील की है। इसके अलावा मौसमी बीमारियों से बचने के उपाय भी बताया गया है। संचालक स्वास्थ्य सेवाएं श्रीमती रानू साहू ने प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को मौसमी बीमारियों से निपटने के तत्पर रहने के निर्देश दिए है। उन्होंने चिकित्सा अधिकारियों को अपने-अपने जिले में ग्रीष्मकालीन संक्रामक बीमारियों की रोकथाम एवं उपचार के लिए सकारात्मक पहल करने को कहा है।
स्वास्थ्य संचालक ने विभाग के मैदानी अमले को मुख्यालय में नियमित रूप से रहकर क्षेत्र की स्थिति पर निगरानी रखने के निर्देश भी दिए। निर्देश में कहा गया है कि जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और उपस्वास्थ्य केन्द्रों के अलावा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और मितानिनों के पास पर्याप्त मात्रा में जीवनरक्षक दवाईयों की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाए। इसके साथ ही सूचना तंत्र विकसित कर मौसमी बीमारियों पर सतत् निगरानी रखी जाए। जिले में मौसमी बीमारियों के रोकथाम और उपचार की कार्ययोजना मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पास रहने चाहिए। प्रदेश के अंदरूनी क्षेत्रों के गांवों पर ग्रीष्मकालीन बीमारियों के रोकथाम एवं उपचार के लिए प्राथमिकता के साथ पहल किया जाए। इस दिशा में मैदानी स्वास्थ्य अमले के द्वारा नियमित रूप से क्षेत्र भ्रमण कर मौसमी बीमारी की स्थिति पर निगरानी रखी जाये और किसी भी क्षेत्र में जानकारी मिलने पर तत्काल चिकित्सा दल के माध्यम से चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराया जाना चाहिए। ग्रामीणों को स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी आवश्यक जानकारी दिया जाए। जाये। शुद्ध पेयजल का उपयोग, गरम एवं ताजा भोजन का सेवन, स्वच्छता एवं साफ-सफाई तथा बीमार होने पर तत्काल निकटतम स्वास्थ्य केन्द्र में उपचार कराये जाने का परामर्श ग्रामीणों को दिया जाये। अंदरूनी क्षेत्रों में मौसमी बीमारी की सूचना प्राप्त करने के लिए सूचना तंत्र विकसित करने तथा शिक्षा विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग सहित संबंधित अन्य विभागों से सहयोग लेने को कहा गया है। स्वास्थ्य केन्द्रों में लू से पीडितों का उपचार करने लिए ओआरटी कॉर्नर/ओरल रिहाईड्रेशन थेरेपी स्थापित करते हुए बेड आरक्षित करने के निर्देश अधिकारियों को दिये गए हैं। उप स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर ओआरएस सहित अन्य अति आवश्यक तथा आईवीफ्लूड/ग्लूकोस की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश दिये गए हैं।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि ग्रीष्म ऋतु में गर्मी के कारण लू लगने की संभावना रहती है। यह कभी-कभी जानलेवा भी साबित हो सकती है। लेकिन कुछ सरल उपाय का पालन कर लू से बचा जा सकता है। अधिकारियों ने लू लगने का लक्षण बताया है- इसके अनुसार बहुत तेज बुखार आना, पसीना न निकालना, सर मंे दर्द, हाथ पैर में दर्द, त्वचा का लाल होना, चक्कर आना, बेहोशी इत्यादि है। लू से बचने के उपाय में बताया कि- जहां तक संभव हो सके दोपहर के धूप में निकलने से बचे, दोपहर मंे अगर धूप मे निकलना जरूरी हो तो खाली पेट घर से बाहर न निकले, शरीर को पूरी तरह ढकने वाले सफेद या हल्के रंग के सूती कपड़ा पहने, सिर और चेहरे को भी कपड़े से ढक कर रखे आंखो के बचाव के लिये धूप का चश्मा उपयोग कर सकते है, दोपहर की गर्मी में अधिक शारीरिक श्रम से बचे और यदि श्रम करना आवश्यक ही है तो हर आधे घंटे के बाद 10 मिनट के लिये छांव में आराम करे, पानी एवं अन्य तरल पदार्थाें का अधिक से अधिक सेवन करे, मादक पदार्थों के सेवन से बचे, चाय या काफी का अधिक सेवन न करे। इन उपायों के पालन करने से लू से बचा जा सकता है।
अनुसंधानकर्ताओं ने पहली बार हल्का और साथ ले जा सकने वाला एक ऐसा त्रिआयामी (थ्रीडी) स्किन प्रिंटर विकसित किया है जो जख्मों को ढंकने और चंद मिनटों में भरने के लिए उत्तकों की परतें उनपर चढ़ा सकता है. जिन मरीजों के जख्म बहुत गहरे होते हैं उनकी त्वचा की तीनों परतें - एपिडर्मिस (बाहरी परत), डर्मिस (एपिडर्मिस और हाइपोडर्मिस के बीच की परत) और हाइपोडर्मिस (अंदरूनी परत) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकती हैं.
ऐसे जख्मों के लिए अभी जो इलाज किया जाता है उसे स्प्लिट- थिकनैस स्किन ग्राफ्टिंग (एसटीएसजी) बोला जाता है. इसमें किसी सेहतमंद डोनर की त्वचा को एपिडर्मिस की सतह और उसके नीचे मौजूद परत डर्मिस के कुछ हिस्सों पर प्रतिरोपित किया जाता है. बड़े जख्मों पर इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए बेहद सेहतमंद त्वचा की जरूरत पड़ती है जो तीनों परतों के पार तक पहुंच सके और इसके लिए पर्याप्त त्वचा बहुत मुश्किल से मिलती है. इससे एक बड़े हिस्से पर परत नहीं चढ़ पाती और जख्म भरने के बेहतर परिणाम सामने नहीं आते.
कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ टोरोंटो के एक्सेल गुएंथेर बताते हैं , “सबसे नए बायोप्रिंटर बहुत भारी होते हैं. कम गति से काम करते हैं. बहुत महंगे हैं और क्लिनिकल अनु प्रयोगों के साथ मेल नहीं खाते. ’’उनकी अनुसंधान टीम का मानना है कि उनका स्किन प्रिंटर एक ऐसी तकनीक है जो इन रुकावटों से पार पा सकता है और जख्म भरने की प्रक्रिया में सुधार कर सकता है.