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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका (US) के राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच जापान में क्वाड (QUAD) बैठक से इतर द्विपक्षीय बातचीत शुरू हो हो गई है. दो दिन की यात्रा पर जापान पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने जो बाइडेन से कहा कि कहा कि आपसे मिलकर खुशी होती है. उन्होंने कहा, "भारत और अमेरिका के बीच भरोसे का रिश्ता है और व्यापार के अलावा भी दोनों देशों के रिश्ते आगे बढ़ रहे हैं. तकनीक में साझेदारी बढ़ी लेकिन दोनों देशों के रिश्तों में संभावनाओं को और खंगाला जाना ज़रूरी."
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo- Pacific) में समान सोच वाले देशों को साथ में लेकर चलेंगे. क्वाड के साथ आने से विस्तारवादी देशों के खिलाफ मजूबती मिलेगी. वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वो चाहते हैं कि उनके कार्यकाल में भारत के साथ अमेरिका के संबंध मजबूत हों और करीबी हों. अमेरिका ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का मुद्दा भी उठाया. जो बाइडेन ने कहा कि पुतिन का रुख एक- या देश का मुद्दा नहीं, यह पूरे विश्व का संकट है.
24 मई को क्वाड शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात के अलावा प्रधानमंत्री मोदी का ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों के भी मुलाकात का कार्यक्रम है. प्रधानमंत्री मोदी अपनी जापान यात्रा के दौरान 36 से अधिक जापानी सीईओ और सैकड़ों भारतीय प्रवासी सदस्यों के साथ बातचीत करेंगे.
प्रधानमंत्री मोदी से द्विपक्षीय मुलाकात से पहले बाइडेन ने 23 मई को तोक्यो में एक नई और महत्वाकांक्षी आर्थिक पहल "हिंद-प्रशांत आर्थिक मसौदा' (आईपीईएफ) की नींव रखी. इसमें भारत समेत हिंद-प्रशांत के 12 देश शामिल हुए हैं.
‘‘ इस मसौदे में डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए नियम तैयार किए जाएंगे ताकि सुरक्षित एवं मजबूत आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित की जा सके, इसके अलावा ऊर्जा के क्षेत्र में तथा स्वच्छ, आधुनिक उच्च स्तरीय अवसंरचना में निवेश आदि पर भी नियम बनाए जाएंगे.''
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ 12 हिंद-प्रशांत देशों के साथ एक नई व्यापार रूपरेखा के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल हुए. इस कार्यक्रम का मकसद समान विचार वाले देशों के बीच स्वच्छ ऊर्जा, जुझारू आपूर्ति श्रृंखला और डिजिटल कारोबार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को और गहरा बनाना है. यह व्यापार रूपरेखा अमेरिका की पहल है.
अमेरिका द्वारा शुरू की गई पहल ‘हिंद-प्रशांत की समृद्धि के लिए आर्थिक रूपरेखा' (IPEF) को क्षेत्र में चीन की आक्रामक कारोबारी रणनीति का मुकाबला करने के अमेरिकी प्रयासों का हिस्सा माना जा रहा है.
विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, ‘‘ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तोक्यो में आईपीईएफ (IPEF) के शुभारंभ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए.''
इस समारोह में जुड़ने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपीन, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम शामिल रहे.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि आईपीईएफ के माध्यम से सदस्य देशों के बीच आर्थिक गठजोड़ मजबूत बनाने पर जोर देने की बात कही गई है जिसका उद्देश्य हिंद प्रशांत में जुझारूपन, वहनीयता, समावेशिता, आर्थिक वृद्धि, निष्पक्षता, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है.
क्वाड (QUAD) नेताओं की बैठक में शामिल होने के लिए दो दिन की यात्रा पर जापानपहुंचे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के बड़े अखबार में एक संपादकीय लिखा है. उन्होंने लिखा है कि कोरोना महामारी के दौरान जिस तरह से वैश्विक तनाव बढ़ा है और हिंद महासागर में स्थायित्व और सुरक्षा की नई चुनौतियां खड़ी हुई हैं, उससे भारत-जापान संबंधों पर अब कोरोना से निपटने के साथ ही और भी नई ज़िम्मेदारियां आ गई हैं. भारत-जापान संबंधों के नए लक्ष्य बन गए हैं. अब मजबूत सप्लाई चेन बनाने की जरूरत पहले से भी अधिक है. मानवकेंद्रित विकास का मॉडल तैयार करना होगा. साथ ही स्थाई और मजबूत अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का महत्व पहले से भी अधिक बढ़ गया है जो किसी भी नुकसान को झेलने की क्षमता रखते हों.
उन्होंने कहा कि, "भारत और जापान के बीच संबंध विशेष हैं, रणनीतिक हैं और वैश्विक हैं."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "भारत और जापान खुले, मुक्त और समग्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए सहयोग देगें. इसमें सुरक्षित सागर, समग्र, व्यापार और निवेश शामिल है,जो संप्रभुता और सीमाई संप्रभुता से परिभाषित होता है और अंतरराष्ट्रीय कानून से जुड़ा हुआ है."
चीन लगभग सारे विवादित दक्षिण चीन सागर पर दावा करता है. हालांकि ताइवान, फिलिपीन्स, ब्रूनेई, मलेशिया और वियतनाम इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं. चीन ने दक्षिण चीन सागर में मानवनिर्मित द्वीप और सैन्य ठिकाने बना दिए हैं. चीन का पूर्वी चीन सागर में समुद्री सीमा को लेकर जापान के साथ भी विवाद है.
प्रधानमंत्री मोदी फिलहाल जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के निमंत्रण पर जापान पहुंचे हैं. योमियुरी शिमबुन (Yomiuri Shimbun newspaper) अखबार में लिखे अपने संपादकीय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के रक्षा, निर्माण, साइबर क्षेत्र, अंतरिक्ष और समुद्र के नीचे के मामलों में आपसी साझेदारी पर प्रमुखता से बात की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संपादकीय में बताया, " मैं जब गुजरात का मुख्यमंत्री था तभी से मुझे जापान के लोगों से बातचीत का लगातार अवसर मिला. जापान की विकासशीलता हमेशा प्रशंसनीय रही है. जापान भारत के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीक, इनोवेशन, स्टार्टअप जैसे कई क्षेत्रों में अहम साझेदार है."
आगे उन्होंने लिखा, बोधिसेना से स्वामी विवेकानंद तक, भारत-जापान के सांस्कृतिक रिश्तों का लंबा इतिबास रहा है. हम लंबे समय से एक -दूसरे का सम्मान करते हैं और एक दूसरे से सीखते हैं. महात्मा गांधी के निजी सामनों में मिजारू, किकाजारू और इवाजारू, तीन बुद्धिमान बंदरों की मूर्तियां भी थीं.
जस्टिस राधा विनोद पाल, जापान में जाना-पहचाना नाम है और गुरुदेव टैगोर का जापान के लिए प्रेम और ओकाकुरा तेनशिन के साथ उनके संवाद दोनों देशों के कलाकारों और बौद्धिकों के बीच शुरुआती विदेशी संवादों में अहम हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, इन गहरे तारों ने भारत और जापान के बीच आधुनिक साझेदारी की मजबूत बुनियाद रखी. हम जब दोनों देशों के औपचारिक कूटनीतिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तब भी हमारे संबंधों का खिलना जारी है.
उन्होंने कहा कि जापान की तकनीक और क्षमता की दूरदर्शिता थी बल्कि जापान के नेतृत्व और व्यापार की लंबे समय की गंभीरता भी थी जिसने जापान को गुजरात का पसंदीदा इंडस्ट्री पार्टनर बनाया और वाइब्रेंट गुजरात में जापान का अहम स्थान रहा.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, जबसे भारत और जापान के बीच 1952 में कूटनीतिक संबंध बने, तब से हमारे आपसी संबंधों ने एक लंबा रास्ता तय किया है. लेकिन मेरे विचार में सबसे बेहतर समय अभी आने को है. आज, जब हम कोरोना के बाद के समय में अपनी अर्थव्यवस्थाओं के तार फिर से ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं, भारत-जापान संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए अभी बहुत से अवसर बाकी है जो व्यापार और निवेश से लेकर रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र तक फैले हैं.
पेरिस: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन देशों की अपनी यूरोपीय यात्रा के अंतिम चरण में बुधवार को यहां पहुंचे. पीएम मोदी यहां फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की और द्विपक्षीय एवं आपसी हितों के मुद्दों पर चर्चा करेंगे. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक ट्वीट में कहा, ‘नमस्कार पेरिस. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर पेरिस पहुंच गए हैं.' पिछले हफ्ते मैक्रों के दोबारा फ्रांस का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के उन पहले कुछ नेताओं में शामिल होंगे, जो राष्ट्रपति मैक्रों से मुलाकात करेंगे. उन्होंने मैक्रों को फिर से चुने जाने के बाद बधाई दी थी.
पीएम मोदी ने ट्वीट किया था, ‘मेरे मित्र इमैनुएल मैक्रों को फिर से निर्वाचित होने पर बधाई. मैं भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत बनाने के लिए एक साथ मिलकर काम करना जारी रखने की उम्मीद करता हूं.'
बागची ने एक ट्वीट में कहा कि दोनों नेताओं के बीच बैठक रणनीतिक साझेदारी के लिए एक अधिक महत्वाकांक्षी एजेंडा तय करेगी.
पीएम मोदी की यात्रा ऐसे समय हो रही है जब यूरोपीय संघ का नेतृत्व फ्रांस कर रहा है. साथ ही यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब भारत और फ्रांस के बीच राजनयिक संबंधों के 75 साल हुए हैं. अगस्त 2019, जून 2017, नवंबर 2015 और अप्रैल 2015 के बाद मोदी की यह पांचवीं फ्रांस यात्रा है.
फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने मार्च 2018 में भारत का दौरा किया. दोनों नेताओं ने अक्टूबर 2021 में जी20 रोम शिखर सम्मेलन, जून 2019 में जी20 ओसाका शिखर सम्मेलन और दिसंबर 2018 में जी20 ब्यूनस आयर्स शिखर सम्मेलन के मौके पर मुलाकात की थी.
भारत और फ्रांस 1998 से रणनीतिक साझेदार हैं. दोनों देशों के बीच रक्षा, असैन्य परमाणु, अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष और समुद्री सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण, आतंकवाद का मुकाबला, लोगों के बीच संबंधों में बहुआयामी साझेदारी है. भारत और फ्रांस नवंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सीओपी21 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के संस्थापक सदस्य हैं. दोनों देशों के बीच 7.86 अरब अमरीकी डालर (2020-21) के द्विपक्षीय व्यापार और अप्रैल 2000 से 9.83 अरब अमरीकी डालर के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के साथ एक मजबूत आर्थिक साझेदारी है.
भारत में रक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, परामर्श, इंजीनियरिंग सेवाओं और भारी उद्योगों जैसे क्षेत्रों में एक हजार से अधिक फ्रांसीसी व्यवसाय मौजूद हैं. फ्रांस में 150 से अधिक भारतीय कंपनियां 7,000 से अधिक लोगों को रोजगार देती हैं. फ्रांस में एक संपन्न प्रवासी भारतीय समुदाय दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को गहरा करता है.
यूरोप यात्रा के लिए रवाना होने से पहले एक बयान में मोदी ने कहा था, ‘राष्ट्रपति मैक्रों को हाल ही में फिर से चुना गया है और चुनाव परिणाम के दस दिन बाद मेरी यात्रा न केवल मुझे आमने सामने व्यक्तिगत रूप से बधाई देने का मौका देगी, बल्कि यह दोनों देशों के बीच घनिष्ठ मित्रता की पुष्टि भी करेगी. इससे हमें भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी के अगले चरण की तैयारी करने का अवसर भी मिलेगा.'
उन्होंने कहा था, ‘राष्ट्रपति मैक्रों और मैं विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर आकलन साझा करेंगे और चल रहे द्विपक्षीय सहयोग का जायजा लेंगे. यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि वैश्विक व्यवस्था के लिए समान दृष्टिकोण और मूल्यों को साझा करने वाले दो देशों को एकदूसरे के साथ घनिष्ठ सहयोग में काम करना चाहिए.'
कोपेनहेगन से यहां पहुंचे मोदी ने मंगलवार को डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेट्टे फ्रेडेरिक्सेन के साथ ‘सार्थक बातचीत' की थी और आर्थिक संबंधों पर चर्चा के लिए एक व्यापार शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया. उन्होंने वहां भारतीय समुदाय के सदस्यों को भी संबोधित किया था और डेनमार्क के शाही परिवार से बातचीत की थी.
प्रधानमंत्री मोदी ने बुधवार को दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जो मुख्य रूप से महामारी के बाद आर्थिक सुधार, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा और विकसित वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य पर केंद्रित था.
शिखर सम्मेलन के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड और फिनलैंड के अपने समकक्षों के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय बैठकें कीं, जिस दौरान उन्होंने उनके साथ द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करने के तरीकों पर चर्चा की और क्षेत्रीय और वैश्विक विकास पर विचारों का आदान-प्रदान भी किया.
अगर आप इस बात से दुखी रहते हैं कि कभी चर्चा में आने का सुख नहीं मिला है, तो आपका समय आ गया है. आप आस-पास की किसी भी ऐतिहासिक इमारत पर दावा कर दीजिए,सारे चैनल वाले आपके घर आ जाएंगे. वहां से आपको उठाकर स्टुडियो ले जाएंगे, जहां बिठाकर आपको ख़ूब बोलने देंगे. मेरी एक गुज़ारिश है, जब भी ऐसा मौक़ा आए, डिबेट के बीच कोई गाना भी सुना दें. याद रखें कि ऐसा टाइम फिर नहीं आने वाला है. अगर आपके घर के आस-पास कोई इमारत नहीं है तो चिन्ता न करें. अपने ही घर पर दावा कर दें कि इसके नीचे कुछ है.बस कुछ टीवी वाले,कुछ अधिकारी, कुछ कानून के जानकार दौड़े आ जाएंगे, और सभी मिलकर राष्ट्रीय बहस का उत्पादन कर डालेंगे. बस ये ध्यान रखना है कि दावा करते समय भूमाफिया का नाम लेते समय औरंगज़ेब, शाहजहां और अकबर का नाम ज़रूर लें. फिर तो बुलडोज़र भी आ जाएगा. इस तरह के डिबेट से यह तो पता चल रहा है कि हमारा बौद्धिक स्तर कितना ऊंचा उठ गया है, इतना ऊंचा उठ गया है कि हम विनम्रता में नीचे गिरे मुद्दों को उठाकर ऊपर ला रहे हैं. इस वक्त सभी लोग एक ही लेवल पर आ गए हैं, इसका फायदा यह है कि मूर्ख कोई बचा ही नहीं है,हर कोई सामने वाले को विद्वान समझने लगा है.किसी का भी घर खुलवाना हो, तो सबसे पहले दावा कर दीजिए कि यहं कुछ है उन्हें घर खोल कर दिखाया जाए.ऐसी याचिकाओं से गोदी मीडिया के लिए डिबेट पैदा किया जा रहा है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि इस मुद्दे पर डिबेट करने के लिए अपने ड्राइंग रूम में स्वागत करते है, लेकिन कोर्ट रूम में नही. कल आप हमारा कमरा खोल कर देखना चाहेंगे. याचिकाकर्ता की मांग है कि ताजमहल में मौजूद 20 बंद कमरों को खोला जाए. तब अदालत ने कहा कि कृपया PIL सिस्टम का मज़ाक मत बनाइये. अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा है कि एम ए की पढ़ाई करें, पीएचडी करें. फिर किसी टापिक पर रिसर्च करें. कोई संस्थान रिसर्च करने से रोकता है तब हमारे पाए आएं. कुल मिलाकर अदालत ने यही कहा कि ऐसी बातों पर बहस पब्लिक के बजाए, अध्ययन और संदर्भों के साथ होनी चाहिए. जस्टिस डी के उपाध्याय ने याचिका खारिज कर दी. सवाल है कि क्या याचिकाकर्ता और इस डिबेट की शक्ल देने वाले इतिहास की किताब पढ़ेंगे? बीजेपी के अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह ने याचिका दाखिल कर दावा किया था कि ताजमहल के बारे में झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है और वह सच्चाई का पता लगाने के लिए 22 कमरों में जाकर शोध करना चाहते हैं.
इतिहास पढ़ाया नहीं जाता है,बल्कि ख़ुद से भी पढ़ा जाता है. आप ज़रा गूगल सर्च करें. इसके पहले भी ताजमहल को लेकर गोदी मीडिया में डिबेट पैदा किया गया है. 2014 और 2017 के साल में भी गोदी मीडिया में ताजमहल को लेकर डिबेट की भरमार मिलती है. ऐसा लगता है तब के डिबेट को आप भूल चुके हैं इसलिए 2022 में रिविज़न कराया जा रहा है.
मोदी सरकार के ही मंत्री थे, महेश शर्मा,30 नवंबर 2015 को एक सवाल का जवाब दिया. सवाल था कि क्या सरकार को ऐसा कुछ मिला है कि वहां मंदिर था तब महेश शर्मा कहते हैं कि नहीं. ताजमहल UNESCO की world heritage साइट है .इसके बाद भी हिन्दी प्रदेश के दर्शकों को साबित करने के लिए यह मुद्दा बार बार उठाया जाता है कि अब जनता ने दिमाग़ से सोचना बंद कर दिया है. क्या वाकई आपको ये सारे मुद्दे अपमानजनक नहीं लगते हैं, क्या एक दर्शक को लगातार यही सब चाहिए? प्रश्नवाचक चिन्हों का इस्तेमाल कर डिबेट के लिए माहौल सेट किया जाता है. एक और बात ध्यान में रखिए. पहली बार ताजमहल पर डिबेट नहीं हो रहा है. सात साल पहले भी हो चुका है, चार साल पहले भी हुआ है और इस बार हो रहा है. ऐसा लग रहा है कि ये भाई लोग नेशनल सिलेबस पब्लिक के बीच रिवाइज़ करा रहे हैं. बार-बार रटवा रहे हैं. डिबेट के कुछ टाइटल देखिए. ये सारे टाइटल पिछले कुछ दिनों के टीवी डिबेट के हैं. हम चैनल का नाम नहीं दे रहे हैं. केवल टाइटल दे रहे हैं. इन सभी में प्रश्न वाचक चिन्ह का इस्तेमाल किया गया है. ताकि लगे कि चैनल को कुछ पता ही नहीं है. दो पक्ष हैं तो बहस करा रहे हैं.
ताजमहल के बंद कमरों में देवी देवताओं की मूर्तियां? हिंदू महल को शाहजहां ने दिया ताजमहल का नाम?
ताजमहल मकबरा या मंदिर ? काशी मथुरा जारी, ताज की बारी? ताजमहल के बंद कमरे में क्या छुपा है राज़ ?
मस्जिद और मीनारें, कितनी दीवारें? ताजमहल या तेजोमहल ? देश की विरासत पर धर्म की सियासत कब तक? क्या ताजमहल एक मंदिर था? क्या ताजमहल का इतिहास ग़लत बताया गया? पढ़ेंगे नहीं, लेकिन इन्हें ये पता चल गया है कि ग़लत पढ़ाया गया. जिस देश में इतिहास के छात्र को भारतीय रिज़र्व बैंक का गर्वनर बनाया गया है उस देश में इतिहास का यह हाल है. यह टिप्पणी केवल इतिहास तक सीमित है, इसका अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है. आप अपने आस-पास के लोगों से पूछिए कि इतिहास की किताब आखिरी बार कब पढ़ी थी, तो कई लोग ऐसे मिल जाएंगे जिन्होंने बीस बीस साल से कोई किताब ही नहीं पढ़ी है. हाई कोर्ट के जज ने याचिकाकर्ता से कहा है कि MA पढ़ें, PHD करें लेकिन इससे भी छुटकारा नहीं मिलने वाला है. पीएचडी करने वाले इस विवाद में कूद जाएंगे. विद्वता का यह जो माहौल उमड़ा है इस समाज में, इतनी आसानी से नहीं जाने वाला.
जो भी बकवास कर सकता है, टीवी के डिबेट में प्रवक्ता बनने का पात्र है. इन प्रवक्ताओं को लेकर मैंने एक सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है, जिसका पंजीकरण नहीं कराया है. सिद्धांत यह है कि प्रवक्ता का पात्र होने के लिए पात्रता की कोई ज़रूरत नहीं होती है. पात्र ही अपने आप में पात्रता है और वही प्रवक्ता है. प्रवक्ता ही हर विषय का प्रोफेसर है और प्रोफसर भी हर विषय का प्रवक्ता है. गोदी मीडिया के सहारे करोड़ों लोग इतिहास की पढ़ाई कर रहे हैं जिसमें न पढ़ाई है और न इतिहास है.इस तरह से डिबेट के टाइटल लिखे जा रहे हैं जैसे आज ही भारत आए हैं.
पहली बार सब जान रहे हैं, देख रहे हैं.अब जब यह देश इस काम में जुट ही गया है तो मैं भी देश को कुछ काम देना चाहता हूं ताकि इतिहास में मेरा भी नाम रहे कि जब देश में बेकारी चरम पर थी तब इस ऐंकर ने भी देश को कुछ काम दिया था.किसी भी संगठन को लग रहा है कि ऐतिहासिक इमारत पर कब्ज़ा करने और सड़कों के नाम बदलवाने की दौड़ में वह पीछे रह गया है तो घबराने की बात नहीं है. अभी बहुत से काम हैं. अभी तो हिन्दी में पुर्तगाली, अरबी, लैटिन. अंग्रेज़ी से जितने भी शब्द आए हैं, उन सबको निकालना है. ऐसा कर आप हिन्दी को आज़ाद कराने की लड़ाई लड़ सकते हैं. लोग क्या कहेंगे इसकी चिन्ता न करें, लोग कहने लायक बचे ही नहीं. उन्हें जो भी सुनाया जाता है, वही सुनते हैं.
आज़ादी का अमृत महोत्सव, कितनी बार इसके बारे में सुना होगा आपने. कभी सोचा कि आज़ादी फ़ारसी का शब्द है. युनाइटेड हिन्दू फ्रंट को इन पोस्टरों से आज़ादी शब्द हटाने का संघर्ष करना चाहिए. उससे पहले संगठन के नाम से युनाइटेड को भी हटाना होगा क्योंकि यह शब्द अंग्रेज़ी का है, जो ग़ुलामी का प्रतीक है.बुलडोज़र के हिन्दी नाम तुरंत खोजने होंगे, यह तो और भी घोर ग़ुलामी का प्रतीक है कि हम ब्रिटेन की जेसीबी कंपनी के उत्पाद का नाम अंग्रेज़ी में पुकार रहे हैं.अंदर, अंदाज़ा, अंदेशा, आईंदा, आईना, आख़िर इन शब्दों का इस्तेमाल न करें क्योंकि ये फ़ारसी के शब्द हैं.कालोनी के व्हाट्स एप ग्रुप में चर्चा करें कि अंदाज़ा और अंदर की जगह किस भारतीय शब्द का इस्तेमाल करें, याद रखें, अकल का बिल्कुल ही इस्तेमाल न करें, क्योंकि अकल अरबी का शब्द है. इसके अलावा, प्रायश्चित करना चाहूंगा कि अलावा जैसा अरबी शब्द निकल गया.अलमारी का इस्तेमाल आज ही बंद कर दें क्योंकि ये पुर्तगाली से आया है.पेट साफ़ हो या न हो, लेकिन क़ब्ज़ का इस्तेमाल किसी हाल में नहीं करना है क्योंकि यह अरबी का शब्द है. मुग़ल इनका इस्तेमाल करते होंगे. हमें हर हाल में नहीं करना है. कमरा की जगह कक्ष बोलें क्योंकि कमरा लैटिन का शब्द है. कानून का इस्तेमाल बिल्कुल न करें, ये अरबी का शब्द है. कमज़ोर फ़ारसी का शब्द है.
पसीने छूट जाएंगे शब्दों को बाहर करने में लेकिन इससे नहीं घबराना है, टाइम तो कट जाएगा.हिन्दी के वाक्यों को विदेशी शब्दों से मुक्त करने का अभियान हिन्दी प्रदेश के युवाओं में कम से कम दस बीस साल तक के लिए उलझा कर रख सकता है. नाम बदलवाने वाले संगठनों पर बड़ी भारी ज़िम्मेदारी आ गई है. उन्हें अभी न जाने इस तरह के कितने फालतू मुद्दों को ज़रूरी मुद्दा घोषित करवाना है. फालतू मुद्दों को अनिवार्य मुद्दा घोषित करना राष्ट्रीय महत्व का कार्य है. इस आंधी को कोई नहीं रोक सकता.आपको याद होगा, हरिद्वार में एक धर्म संसद हुई थी. इसमें भड़काऊ बयान दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि ये लोग पूरे माहौल को ख़राब कर रहे हैं. भड़काऊ भाषण देने वाले संवेदनशील नही हैं. कोर्ट ने एक अच्छी बात कही कि शांति के साथ रहें जीवन का आनंद लें.राजद्रोह के मामलों पर अंतरिम रोक लगा देने से क्या हालत बदल जाएंगे, इस पर बहस जारी है.
मुंबई: हनुमान चालिसा विवाद के बाद से सुर्खियों में आए महाराष्ट्र के विधायक रवि राणा और सांसद नवनीत कौर राणा के लिए एक राहत की खबर है. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, उन्हें सेशन कोर्ट ने शर्तों के साथ जमानत पर रिहा करने की अनुमति दे दी है. बता दें कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने के ऐलान के बाद बिगड़ी कानून व्यवस्था और राजद्रोह के आरोप में दोनों को गिरफ्तार किया गया था और एक हफ्ते से ज्यादा वक्त से दोनों जेल में बंद थे.
महाराष्ट्र सरकार की तरफ से सांसद की जमानत याचिका का जमकर विरोध किया गया था. सरकारी वकील ने कहा था कि सांसद की तरफ से राज्य सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही थी. उन्होंने कहा था कि सांसद का इरादा था कि ऐसे हालात पैदा कर दिए जाएं कि सरकार गिर जाए. वकील की तरफ से कहा गया था कि दोनों ही आरोपियों ने मीडिया इंटरव्यू में कहा था ये सरकार महाराष्ट्र के लिए एक साढ़ेसाती (दुर्भाग्य) है और वे इस साढ़ेसाती को समाप्त करना चाहते थे. इससे ये स्पष्ट रूप से सरकार को हटाने के लिए किया गया कार्य था. न पति-पत्नी पर कई मामलों में मुकदमें दर्ज है. सरकारी वकील ने कहा कि कहा कि उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले चल रहे हैं. उनमें हत्या का मामला भी दर्ज है.
वहीं आरोपी पक्ष के वकील आबाद पौंडा ने कहा कि हमारे मुवक्किल का मकसद किसी भी तरह से हिंसा करने का नहीं था. हम तो सिर्फ प्रार्थना करने वाले थे. ना तो रिमांड में ना ही रिप्लाई में कही भी नही उल्लेख है कि वो लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पाठ करेंगे. हम वहां शांति से पाठ करने वाले थे. हमने समर्थको को भी नही बुलाया था मतलब कोई भीड़ भी नही बुलाई थी. हमारा कोई मकसद हिंसा का नही था. हम तो सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ने वाले थे. हम किसी मस्जिद के सामने नही जा रहे थे. मुख्यमंत्री के निजी निवास के सामने जो खुद हिंदू हैं और हिंदुत्व के नेता हैं. ये राजद्रोह कैसे बनता है? इससे सरकार खतरे में कैसे आ सकती है?