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जिस तरीके से उत्तर भारत में दशहरे का त्योहार मनाया जाता है ठीक उसी प्रकार से धूमधाम के संग दक्षिण भारत में खास तौर से केरल में ओणम का त्योहार मनाया जाता है। खेत में अच्छी फसल के लिए हर्षोल्लास मनाया जाता है। ओणम की पूजा किसी मंदिर में नहीं बल्कि घरों में की जाती है।
ओणम को लेकर क्या है पौराणिक मान्यता?
पर्व त्योहारों के पीछे कुछ मान्यताएं जुड़ी होती है। ओणम को लेकर भी गहरी आस्था और मान्यताएं जुड़ी हैं। मान्यताओं के मुताबिक केरल में महाबली नाम का एक असुर राजा था। वामन पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। राजा बलि के बढते प्रभाव को देख कर देवताओं के राजा इंद्र देवता भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे, तो भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। वामन ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख सकते हैं. भगवान वामन ने ऐसा ही किया. इस तरह राजा बलि के आधिपत्य में जो कुछ भी था वह देवताओं को वापस मिल गया। इसके साथ ही बलि के भाव को देखकर भगवान वामन ने उन्हें वरदान दिया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा और राज्य से मिलने जा सकते हैं. इसी के साथ यह मान्यता पड़ी की राजा बलि ओणम के त्योहार पर अपनी प्रजा से मिलने आते हैं