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धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
नई दिल्ली: दुनियाभर के देशों में कोरोना वायरस काफी तेजी से फैल रहा है. इस वजह से लोगों को अधिक सतर्क रहने और नियमित रूप से कुछ चीजों को फॉलो करने के लिए कहा गया है. इसमे नियमित रूप से हाथ धोने से लेकर, अधिक भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाना आदि शामिल है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कई लोग मंदिरों और गुरुद्वारे जैसी जगहों पर भी जाने से बच रहे हैं.
हाल ही में आंध्रप्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर में श्रद्धालुओं को टोकन के साथ दर्शन करने के लिए कहा गया है. यहां 17 मार्च से टोकन अनुसार भक्तों को दर्शन का वक्त दिया जाएगा और यदि वो वक्त पर नहीं पहुंचते तो उन्हें दर्शन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इसके बाद अब शिरडी में भी साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट ने भी भक्तों से अनुरोध किया है कि वो कुछ वक्त के लिए अपनी यात्राएं स्थगित कर दें.
गौरतलब है कि कोरोना वायरस के कारण अब तक भारत में दो लोगों की मौत हो गई है. वहीं कुल 93 मामले सामने आ चुके हैं. इस वजह से सरकार हर तरह से लोगों को सावधान रहने का सुझाव दे रही है. वहीं कई राज्यों में 31 मार्च तक स्कूल, कॉलेज भी बंद कर दिए गए हैं.
नई दिल्ली: होली (Holi) का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. होली में जितना महत्व रंगों का है उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है. रंग वाली होली से एक दिन पहले होली जलाई जाती है, जिसे होलिका दहन कहते हैं. होलिका दहन की तैयारी कई दिन पहले शुरू हो जाती हैं. सूखी टहनियां, लकड़ी और सूखे पत्ते इकट्ठा कर उन्हें एक सार्वजनिक और खुले स्थान पर रखा जाता है. फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है. होलिका दहन के साथ ही बुराइयों को भी अग्नि में जलाकर खत्म करने की कामना की जाती है.
होलिका दहन कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि ही होलिका दहन किया जाता है. यानी कि रंग वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. इस बार होलिका दहन 9 मार्च को किया जाएगा, जबकि रंगों वाली होली 10 मार्च को है. होलिका दहन के बाद से ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. मान्यता है कि होली से आठ दिन पहले तक भक्त प्रह्लाद को अनेक यातनाएं दी गई थीं. इस काल को होलाष्टक कहा जाता है. होलाष्टक में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. कहते हैं कि होलिका दहन के साथ ही सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन की तिथि: 9 मार्च 2020
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 9 मार्च 2020 को सुबह 3 बजकर 3 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 मार्च 2020 को रात 11 बजकर 17 मिनट तक
होलिका दहन मुहूर्त: शाम 6 बजकर 26 मिनट से रात 8 बजकर 52 मिनट तक
होलिका दहन की पूजन सामग्री
एक लोटा जल, गोबर से बनीं होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज, गुजिया, मिठाई और फल.
होलिका दहन की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सालों पहले पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था. उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी. ऐसे में हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली. उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया. दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी. लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले. तभी से बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन किया जाने लगा.