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कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान करना शुभ माना जाता है.
नई दिल्ली: कार्तिक पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओं में श्रेष्ठ मानी जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने देवलोक पर हाहाकार मचाने वाले त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार किया था. उसके वध की खुशी में देवताओं ने इसी दिन दीपावली मनाई थी. हर साल लोग कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाते हैं. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था. इस दिन गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान करन पुण्यकारी माना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दीपदान करना भी विशेष फलदायी होता है. यही नहीं कार्तिक मास की पूर्णिमा को ही सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु नानक देव (Guru Nanak Dev) का जन्म हुआ था. उनके जन्मोत्सव को गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा कब है?
हिन्दू कैलेंडर में आठवें महीने का नाम कार्तिक है. कार्तिक महीने की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा हर साल नवंबर के महीने में आती है. इस बार कार्तिक पूर्णिमा 12 नवंबर 2019 को है.
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त (Kartik Purnima Date, Time)
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि: 12 नवंबर 2019
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 11 नवंबर 2019 को शाम 06 बजकर 02 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 12 नवंबर 2019 को शाम 07 बजकर 04 मिनट तक
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व (Kartik Purnima Significance)
हिन्दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का विशेष महत्व है. कार्तिक मास को दामोदर के नाम से भी जाना जाता है और दामोदर भगवान विष्णु का ही एक नाम है. हिन्दू कैलेंडर के सभी 12 महीनों में से कार्तिक मास को सबसे पवित्र और शुभ माना जाता है. इस दौरान लोग पूरे महीने गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. कार्तिक मास के पवित्र स्नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है. शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत के लिए भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद अच्छा माना जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा से चार दिन पहले देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी के दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले बैकुंड चतुर्दशी मनाई जाती है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने महादेव शिव की पूजा की थी और उन्हें एक हजार कमल पुष्प अर्पित किए थे. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली भी होती है. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था. यह वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा (Tripurari Purnima) के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि त्रिपुरासुर ने देवताओं को हराकर उनके सिंहासन पर कब्जा कर लिया था. जब वह मारा गया तो देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीवाली मनाई. देवताओं ने उसके वध की खूशी में दीए जलाए. यही वजह है कि इस दिन मंदिरों और गंगा के घाटों में दीपक जलाए जाते हैं.
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि (Kartik Purnima Puja Vidhi)
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करें. मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. अगर पवित्र नदी में स्नान करना संभव नहीं तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें.
- रात्रि के समय विधि-विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें.
- सत्यनारायण की कथा पढ़ें, सुनें और सुनाएं.
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती उतारने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें.
- घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं.
- घर के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरण करें.
- इस दिन दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है. किसी ब्राह्मण या निर्धन व्यक्ति को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान और भेंट देकर विदा करें.
- कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दीपदान करना भी बेहद शुभ माना जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा का कथा (Kartik Purnima Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था. उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया. अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए. तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की. ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो. तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा.
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके. एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो. ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया.
तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए. ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया. तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया. इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए. इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया.
भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा. यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा.
::/fulltext::देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी के विवाह का विधान है.
खास बातें
नई दिल्ली: देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का भी प्रावधान है. देवउठनी एकादशी को देवुत्थान एकादशी, हरिप्रबोधिनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी एकादशी के दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद जाग्रत होते हैं. मान्यता है कि इस दिन तुलसी विवाह के माध्यम से उनका आह्वाहन कर उन्हें जगाया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी (Tulsi) के पौधे का विवाह हिन्दू रीति-रिवाज से संपन्न किया जाता है. तुलसी विवाह का आयोजन करना अत्यंत मंगलकारी और शुभ माना जाता है. कहते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करने और शालीग्राम के साथ तुलसी विवाह कराने से सभी कष्टों का निवारण होता है और भक्त को श्री हरि की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
तुलसी विवाह कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी कि देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. कई जगह इसके अगले दिन यानी कि द्वादशी को भी तुलसी विवाह किया जाता है. जो लोग एकादशी को तुलसी विवाह करवाते हैं वे इस बार 8 नवंबर 2019 को इसका आयोजन करेंगे. वहीं, द्वादशी तिथि को मानने वाले 9 नवंबर 2019 को तुलसी विवाह करेंगे.
तुलसी विवाह की तिथि और शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी के दिन किया जाता है, लेकिन कई जगहों पर इस विवाह को द्वादशी तिथि को भी करते हैं.
देवउठनी एकादशी की तिथि: 8 नवंबर 2019
एकादशी तिथि आरंभ: 07 नवंबर 2019 की सुबह 09 बजकर 55 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 08 नवंबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक
द्वादशी तिथि: 9 नवंबर 2019
द्वादशी तिथि आरंभ: 08 नवंबर 2019 की दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से
द्वादशी तिथि समाप्त: 09 नवंबर 2019 की दोपहर 02 बजकर 39 मिनट तक
तुलसी विवाह का महत्व
हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु समेत सभी देवगण चार महीने की योग निद्रा से बाहर आते हैं, यही वजह है कि इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करवाने से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं का अंत हो जाता है. साथ ही जिन लोगों के विवाह नहीं हो रहे हैं उनका रिश्ता पक्का हो जाता है. इतना ही नहीं मान्यता है कि जिन लोगों के घर में बेटियां नहीं है उन्हें तुलसी विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य मिलता है.
तुलसी विवाह की पूरी विधि
- परिवार के सभी सदस्य और विवाह में शामिल होने वाले सभी अतिथि नहा-धोकर व अच्छे कपड़े पहनकर तैयार हो जाएं.
- जो लोग तुलसी विवाह में कन्यादान कर रहे हैं उन्हें व्रत रखना जरूरी है.
- शुभ मुहूर्त के दौरान तुलसी के पौधे को आंगन में पटले पर रखें. आप चाहे तो छत या मंदिर स्थान पर भी तुलसी विवाह किया जा सकता है.
- अब एक अन्य चौकी पर शालिग्राम रखें. साथ ही चौकी पर अष्टदल कमल बनाएं.
- अब उसके ऊपर कलश स्थापित करें. इसके लिए कलश में जल भरकर उसके ऊपर स्वास्तिक बनाएं और आम के पांच पत्ते वृत्ताकार रखें. अब एक लाल कपड़े में नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रखें
- तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं. साथ ही गमले के पास जमीन पर गेरू से रंगोली भी बनाएं.
- अब तुलसी के गमले को शालिग्राम की चौकी के दाईं ओर स्थापित करें.
- अब तुलसी के आगे घी का दीपक जलाएं.
- इसके बाद गंगाजल में फूल डुबोकर "ऊं तुलसाय नम:" मंत्र का जाप करते हुए गंगाजल का छिड़काव तुलसी पर करें.
- फिर गंगाजल का छिड़काव शालिग्राम पर करें.
- अब तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का टीका लगाएं.
- तुलसी के गमले की मिट्टी में ही गन्ने से मंडप बनाएं और उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक लाल चुनरी ओढ़ाएं.
- इसके साथ ही गमले को साड़ी को लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रृंगार करें.
- अब शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर पीला वस्त्र पहनाएं.
- तुलसी और शालिग्राम की हल्दी करें. इसके लिए दूध में हल्दी भिगोकर लगाएं.
- गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप लगाएं.
- अब पूजन करते हुए इस मौसम आने वाले फल जैसे बेर, आवंला, सेब आदि चढ़ाएं.
- अब शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं. घर के किसी पुरुष सदस्य को ही शालिग्राम की चौकी हाथ में लेकर परिक्रमा करनी चाहिए.
- इसके बाद तुलसी को शालिग्राम के बाईं ओर स्थापित करें.
- आरती उतारने के बाद विवाह संपन्न होने की घोषणा करें और वहां मौजूद सभी लोगों में प्रसाद वितरण करें.
- तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूरी का भोग लगाया जाता है.
- तुलसी विवाह के दौरान मंगल गीत भी गाएं.
तुलसी विवाह की कथा
तुलसी विवाह को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं. एक पौराणिक कथा के अुनसार प्राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था. वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था. उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म. उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था. जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई.
एक अन्य कथा में आरंभ यथावत है लेकिन इस कथा में वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था- ''तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है, अत: तुम पत्थर के बनोगे.'' यह पत्थर शालिग्राम कहलाया. विष्णु ने कहा, ''हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं, लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी. जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी.'' बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है. शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है.