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करवा चौथ के दिन रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है.
खास बातें
नई दिल्ली: करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पति की आयु लंबी होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सुहागिन महिलाओं के अलावा कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को रखती है. कहते हैं कि अगर पूरे विधि-विधान से इस व्रत को रखा जाए तो मनवांछित जीवन साथी मिलता है. करवा चौथ के दिन महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथों पानी पीकर अपना उपवास तोड़ती हैं. निर्जला रहने के अलावा भी करवा चौथ के व्रत के कई नियम हैं, जो इस प्रकार हैं:
1. वैसे तो किसी भी व्रत के कुछ आधारभूत नियम होते हैं, जैसे कि क्रोध न करना, किसी की बुराई न करना, मुख से अपशब्द न निकालना आदि. ठीक इसी तरह करवा चौथ के व्रत के दिन भी यह नियम लागू होता है. अगर आप व्रत कर रही हैं तोअपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखें. कहते हैं कि अगर इस दिन क्रोध किया जाए तो व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है.
2. व्रत की शुरुआत सरगी खाकर करें. सरगी सूर्योदय से पहले खानी चाहिए. जिस वक्त आप सरगी खाएं उस वक्त दक्षिण पूर्व दिशा की ओर मुख कर के ही बैठें.
3. करवा चौथ पर दिन भर निर्जला व्रत रखा जाता है. यानी कि अन्न-जल के अलावा पानी पीने की भी मनाही होती है. सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथों पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं. वहीं, कुंवारी लड़कियां तारों के दर्शन करने के बाद पानी पी सकती हैं. वैसे तो गर्भवती और बीमार महिलाओं को करवा चौथ का व्रत नहीं करना चाहिए. लेकिन कई गर्भवती महिलाएं फल और पानी पीकर भी यह व्रत कर सकती हैं.
4. करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं. इस दिन सुहाग के रंग जैसे कि लाल, पीले और हरे रंग की साड़ी, सलवार सूट और लहंगे का सर्वाधिक चलन है. इस दिन काले और सफेद कपड़े पहनने से बचना चाहिए.
5.करवा चौथ के व्रत के दिन चांद को अर्घ्य देना बेहद जरूरी और शुभ माना गया है. इस दिन महिलाएं सबसे पहले छलनी पर दीपक रखती हैं. इसके बाद छलनी से पहले चांद को और फिर पति को देखती हैं. इसके बाद चांद को अर्घ्य दिया जाता है. आखिर में महिलाएं पति के हाथ से पानी पीकर और मिठाई खाकर अपना व्रत खोलती हैं.
6. इसके बाद भगवान को भोग लगाएं और फिर पति के साथ बैठकर भोजन करें. साथ ही यह पति-पत्नी दोनों के लिए जरूरी है कि वे सिर्फ करवा चौथ के दिन ही नहीं बल्कि हमेशा एक-दूसरे का सम्मान करें ताकि उनका रिश्ता हमेश प्यार की डोर से बंधा रहे.
हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा की रात को खुले आसमान में खीर रखने के बाद खाने की परांपरा काफी समय से चली आ रही हैं। मान्यता है कि इस दिन खुले आसमान में रखी जाने वाली इस खीर को खाने से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद अपनी सभी 16 कलाओं से भरा होता है, जिस वजह से चांद रात 12 बजे धरती पर अमृत बरसाता है।
इसी अमृत को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करने के लिए खीर चांद की रोशनी में रखी जाती है रात 12 बजे के बाद खीर उठाकर प्रसाद के तौर पर खाई जाती है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि ऐसा क्यों किया जाता है? इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर को है, जानते हैं आखिर क्यों इस खुले आसमान में रखे जाने वाली खीर को खाने के सेहत को क्या फायदे होते हैं।
मलेरिया के प्रकोप से बचाता है खीर
मच्छरों के काटने पर मलेरिया के बैक्टीरिया शरीर में फैलते हैं, जिससे आपको मलेरिया होता है। लेकिन बैक्टीरिया बिना उपयुक्त वातावरण के नहीं पनप सकते है। मलेरिया के बैक्टीरिया को जब पित्त का वातावरण मिलता है, तभी वह 4 दिन में पूरे शरीर में फैलता है, नहीं तो थोड़े समय में समाप्त हो जाता है। ऐसे में मलेरिया फैलने का मुख्य कारण है शरीर में पित्त का बढ़ना या पित्त का असंतुलन। यानि पित्त को नियंत्रित रखकर, हम मलेरिया से बच सकते हैं। खीर खाने से पित्त को संतुलित किया जा सकता है। इसलिए पित्त के असंतुलन से बचने के लिए इस समय खास तौर से खीर खाने की परंपरा है।
शरद पूर्णिमा को रातभर चांदनी के नीचे चांदी के पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है। यह खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है। और मलेरिया के खतरे को कम करती है।
आंखों की रोशनी के लिए फायदेमंद
यह खीर आंखों से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों को भी बहुत फायदा पहुंचाती है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा का चांद बेहद चमकीला होता है इसीलिए आंखों की कम होती रोशनी वाले लोगों को इस चांद को एकटक देखते रहना चाहिए। क्योंकि इससे आंखों की रोशनी में सुधार होता है। इसी के साथ यह माना जाता है कि इस रात के चांद की चांदनी में आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए सुई में 100 बार धागा डालना चाहिए।
दमा रोगियों के लिए अमृत
दमा रोगियों के लिए यह खीर अमृत समान ही होती है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने के बाद सुबह चार बजे के आसपास दमा रोगियों को खा लेनी चाहिए। इसलिए डॉक्टर्स भी दमा रोगियों को ये खीर खाने की सलाह देते हैं।
दिल के मरीजों के लिए भी फायदेमंद
चर्म रोग में फायदा दिलाने के साथ शरद पूर्णिमा का चांद और खीर दिल के मरीज़ों और फेफड़े के मरीज़ों के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। इसे खाने से श्वांस संबंधी बीमारी भी दूर होती हैं।
स्किन प्रॉब्लम करें दूर
शरद पूर्णिमा की खीर को स्किन रोग से परेशान लोगों के लिए भी अच्छा बताया जाता है। मान्यता है कि अगर किसी भी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो वो इस दिन खुले आसमान में रखी हुई खीर खाए। इसके अलावा इससे त्वचा भी क्रांतिमान हो जाती है।
शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छिपा है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। एक अन्य वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को पूरी रात गोपियों संग नाचते रहे, जिसे 'महारास' कहा जाता है.
नई दिल्ली: शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. यह पूर्णिमा अन्य पूर्णिमा की तुलना में काफी लोकप्रिय है. मान्यता है कि यही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है. दरअसल, हिन्दू धर्म में मनुष्य के एक-एक गुण को किसी न किसी कला से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि 16 कलाओं वाला पुरुष ही सर्वोत्तम पुरुष है. कहा जाता है कि श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ जन्म लिया था, जबकि भगवान राम के पास 12 कलाएं थीं. बहरहाल, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा का विधान है. साथ ही शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखा जाता है. फिर 12 बजे के बाद उसका प्रसाद गहण किया जाता है. मान्यता है कि इस खीर में अमृत होता है और यह कई रोगों को दूर करने की शक्ति रखती है.
शरद पूर्णिमा कब है?
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल अक्टूबर के महीने में आती है. इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर 2019 को है.
शरद पूर्णिमा तिथि: रविवार, 13 अक्टूबर 2019
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर 2019 की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक
चंद्रोदय का समय: 13 अक्टूबर 2019 की शाम 05 बजकर 26 मिनट
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा को 'कोजागर पूर्णिमा' और 'रास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को 'कौमुदी व्रत' भी कहा जाता है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं. वहीं, अगर कुंवारी कन्याएं यह व्रत रखें तो उन्हें मनवांछित पति मिलता है. शरद पूर्णिमा का चमकीला चांद और साफ आसमान मॉनसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है. मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है. माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है.
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
- शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें.
- घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं
- इसके बाद ईष्ट देवता की पूजा करें.
- फिर भगवान इंद्र और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है.
- अब धूप-बत्ती से आरती उतारें.
- संध्या के समय लक्ष्मी जी की पूजा करें और आरती उतारें.
- अब चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आारती करें.
- अब उपवास खोल लें.
- रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें.
चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
ॐ श्रां श्रीं
कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र
धन के देवता कुबेर को भगवान शिव का परम प्रिय सेवक माना जाता है. ऐसे में शरद पूर्णिमा की रात मंत्र साधना से उन्हें प्रसन्न करने का विधान है.
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय दापय स्वाहा।।
शरद पूर्णिमा के दिन खीर कैसे बनाएं?
शरद पूर्णिमा के दिन खीर का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं ये युक्त होकर रात 12 बजे धरती पर अमृत की वर्षा करता है. शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है और फिर उसका प्रसाद वितरण किया जाता है. इस दिन चंद्रोदय के समय आकाश के नीचे खीर बनाकर रखी जाती है. इस खीर को 12 बजे के बाद खाया जाता है. आप शरद पूर्णिमा की खीर इस तरह बना सकते हैं:
- एक मोटे तले वाले बर्तन में दूध गर्म करें. जब दूध घटकर तीन चौथाई रह जाए तब उसमें थोड़े से चावल डालें.
- अब करछी से दूध को हिलाते रहें ताकि चावल नीचे न लग पाएं.
- जब चावल अच्छी तरह पक जाएं तब स्वादानुसार चीनी डालें.
- करछी से खीर हिलाने के बाद अब इसमें कुटी हुई हरी इलायची या इलायची पाउडर डालें.
- अब काजू, बादाम, किशमिश, चिरौंजी और पिस्ते कूटकर डालें. साथ ही केसर भी डालें.
- खीर को अच्छी तरह मिलाएं. अगर खीर गाढ़ी हो गई हो तो गैस बंद कर दें.
- खीर को बारीक कटे काजू-बादाम से सजाकर परोसें.
शरद पूर्णिमा से जुड़ी मान्यताएं
- शरद पूर्णिम को 'कोजागर पूर्णिमा' कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन धन की देवी लक्ष्मी रात के समय आकाश में विचरण करते हुए कहती हैं, 'को जाग्रति'. संस्कृत में को जाग्रति का मतलब है कि 'कौन जगा हुआ है?' कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन रात में जगा होता है मां लक्ष्मी उन्हें उपहार देती हैं.
- श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने ऐसी बांसुरी बजाई कि उसकी जादुई ध्वनि से सम्मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आईं. ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्ण बनाया. पूरी रात कृष्ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे 'महारास' कहा जाता है. मान्यता है कि कृष्ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया. ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्य की करोड़ों रातों के बराबर होता है.
- माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इस वजह से देश के कई हिस्सों में इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिसे 'कोजागरी लक्ष्मी पूजा' के नाम से जाना जाता है.
- ओडिशा में शरद पूर्णिमा को 'कुमार पूर्णिमा' कहते हैं. इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं. लड़कियां सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं.
शरद पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक साहुकार की दो बेटियां थीं. वैसे तो दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन छोटी बेटी व्रत अधूरा करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया, ''तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थीं, जिसके कारण तुम्हारी संतानें पैदा होते ही मर जाती हैं. पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतानें जीवित रह सकती हैं.''
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही मर गया. उसने लड़के को एक पीढ़े पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा, "तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता." तब छोटी बहन बोली, "यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है."
उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया.