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आपको यह जानने के लिए पशु विशेषज्ञ होने की ज़रूरत नहीं है कि डायनासोर बड़े पैमाने पर जीव थे। डायनासोर बड़े पैमाने पर होने के लिए जानवरों की एकमात्र प्रजाति नहीं है, हालांकि। लेकिन मनुष्यों और शिकारियों के उदय के साथ, इन प्राणियों ने उस बड़े को बढ़ाना बंद कर दिया। इन दिनों, पशु विशालवाद ज्यादातर द्वीपों में होता है क्योंकि वहां के जानवर मुख्य भूमि से अलग-थलग हैं और इसलिए उनके पास कम शिकारी और अधिक संसाधन हैं। तैयार हो जाओ क्योंकि सूची में जानवरों का आकार आपको झटका देगा! यह विश्वास करना कठिन है कि उनमें से बहुत से भोजन अपने सामान्य आकार के समकक्षों की तरह खाते हैं ...
यह बैल "सभी मांसपेशी" के 3,682 पाउंड है
यह बैल "सभी मांसपेशी" के 3,682 पाउंड है 2009 में, फील्ड मार्शल नामक बैल का वजन 3,682 पाउंड था! केवल वह केवल एक वर्ष में 300 पाउंड दर्द करने में सक्षम था। मालिक आर्थर डकेट ने कहा, "वह बहुत अच्छे स्वास्थ्य में है और कोई कारण नहीं है कि वह आगे बढ़ता रहे। वह केवल आठ हैं और जब तक कुछ अप्रत्याशित नहीं होगा तब तक वह बड़ा और बड़ा हो जाएगा। लेकिन वह मोटा नहीं है - वह सभी मांसपेशी है। मैं उसे भारी खिला सकता था, लेकिन मैं उसे कामुक नहीं दिखना चाहता, मैं चाहता हूं कि वह स्वस्थ हो और स्वाभाविक रूप से अपना वजन कम करे। यही कारण है कि मैं उसे मैदान में नहीं बल्कि अंदर ही बाहर रखता हूं। "
लुप्तप्राय विशालकाय मेकांग कैटफ़िश
1 मई 2005 को, इन उत्तरी थाईलैंड के मछुआरों ने मेकांग नदी में एक विशालकाय कैटफ़िश पकड़ी। इसका वजन 646 पाउंड था और यह लगभग 9 फीट लंबा था! इसका मतलब यह था कि यह एक विशाल भालू जितना विशाल था। जीव वास्तव में इतिहास की सबसे बड़ी ताजे पानी की मछली है। अफसोस की बात है, वे लुप्तप्राय हैं और गायब हो रहे हैं। ज़ेब होगन के नाम से एक विश्व वन्यजीव निधि के सदस्य ने साझा किया, "मैं रोमांचित हूं कि हमने एक नया रिकॉर्ड बनाया है, लेकिन हमें इस खोज को संदर्भ में रखना होगा: इन विशालकाय मछलियों का समान रूप से खराब अध्ययन किया जाता है और कुछ गंभीर संकटग्रस्त हैं। कुछ, मेकांग विशाल कैटफ़िश की तरह, विलुप्त होने का सामना करते हैं। ”
मूस से मिलो, एक बड़े पैमाने पर Percheron Stallion
तस्वीर में विशाल घोड़ा ड्राफ्ट घोड़ा है जिसने पेरचेरन सर्वोच्च विश्व चैंपियन होने का सम्मान अर्जित किया है। उसे विंडरमेयर के नॉर्थ अमेरिकन मेड नाम दिया गया है, लेकिन आप उसे मूस कह सकते हैं। उनके मालिकों ने कहा है कि उन्होंने उत्तरी अमेरिका में बहुत सारी चैंपियनशिप जीती हैं। उन्होंने समझाया, "हमने उत्तर अमेरिकी नौकरानी को 'मोस' कहना शुरू कर दिया क्योंकि वह हमेशा से इतनी बड़ी कॉल्ट थी। अब वह 19 हाथ खड़े करता है और अविश्वसनीय कार्रवाई करता है। ” उन्होंने उस प्रजनन कार्यक्रम के बारे में भी बात की जो उन्होंने उसके लिए इस्तेमाल किया था: “हमें लगता है कि मूस एक पेरचेरन स्टैलियन में पूरा पैकेज है; एक जहां आप शैली का त्याग किए बिना शो रिंग में प्रतिस्पर्धी होने के लिए आकार प्राप्त कर सकते हैं। "
शाकाहारी लोगों के व्यवहार, पसंद- नापसंद पर अब तक कई स्टडी की जा चुकी हैं. अब एक नई स्टडी में ये जानने की कोशिश की गई है कि शाकाहारी होने का उनके लव लाइफ पर कैसा असर पड़ता है. इस स्टडी में डाइट और रिश्तों के बीच का संबंध जानने की कोशिश की गई है. ये स्टडी 'जर्नल ऑफ सोशल साइकोलॉजी' में छपी है.
इस स्टडी के अनुसार, शाकाहारी लोग ज्यादातर शाकाहारियों से ही दोस्ती करना पसंद करते हैं. अपने जैसा खान-पान रखने वालों से उनकी दोस्ती गहरी होती है. ये स्टडी पोलैंड के शोधकर्ता जॉन नेजलेक और मार्जेना ने अमेरिका के विलियम एंड मैरी कॉलेज के मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर कैथरीन फॉरेस्टेल के साथ मिलकर की है.
इससे पहले साथ में की एक अन्य स्टडी में नेजलेक और फॉरेस्टेल ने कहा था कि शाकाहार केवल एक आहार नहीं है बल्कि ये किसी व्यक्ति की सामाजिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. एक अन्य मनोवैज्ञानिक ने क्रिस्टोफ ढोंट ने अपने शोध में पाया कि कई शाकाहारी लोग सर्वाहारी (वेज और नॉनवेज दोनों खाने वाले) लोगों को पसंद नहीं करते हैं. इन सब बातों को गहराई से समझने के लिए शोधकर्ताओं ने एक श्रृंखला में चार स्टडीज की. इन स्टडीज के लिए लोगों को शाकाहारी और सर्वाहारी के दो श्रेणियों में बांटा गया.
पहली स्टडी में लोगों से पूछा गया कि क्या उनकी डाइट उनके सामाजिक पहचान को प्रभावित करती है? उनका आहार उनके लिए क्या मायने रखता है और वो अपनी खाने की आदतों के बारे में कितनी बार सोचते हैं. ये सर्वे 411 अमेरिकी पुरुषों और महिलाओं पर किया गया.
दूसरी और तीसरी स्टडी में लोगों से पूछा गया कि आप क्या खाते हैं, इसका असर आपके बेस्ट फ्रेंड पर पड़ता है? इस स्टडी में लगभग 1200 अमेरिकन यूनिवर्सिटी के छात्रों ने हिस्सा लिया. इन लोगों ने अपने पांच बेस्ट फ्रेंड्स की डाइट के बारे में बताया.
चौथी स्टडी में पोलैंड के 863 वयस्क लोगों से उनके बेस्ट फ्रेंड और उनके रोमांटिक पार्टनर्स की डाइट के बारे में जानकारी ली गई. डाइट उनके लिए क्या मायने रखती है और वो खाने की आदतों के बारे में कितना सोचते हैं, इस सवाल पर एक से सात प्वाइंट स्केल पर सर्वाहारियों की तुलना में सबसे ज्यादा अंक शाकाहारियों के थे.
अमेरिकी लोगों पर हुई स्टडी के नतीजों में पता चला कि शाकाहारी लोग मांसाहारियों की तुलना में अपने जैसे यानी मांस ना खाने वाले लोगों से तीन गुना ज्यादा दोस्ती निभाते हैं. वहीं, पोलैंड के लोगों पर हुई स्टडी में ये अंतर छह गुना तक ज्यादा था. स्टडी में ये भी पाया गया कि सर्वाहारी की तुलना में शाकाहारी लोग उन लोगों को 12 गुना ज्यादा रोमांटिक पार्टनर चुनना पसंद करते हैं जो लोग मांस नहीं खाते हैं.
शाकाहारियों और विगन लोगों की लव लाइफ पर शोध करने वाले एक अन्य शोधकर्ता हाल हरजोग का कहना है कि ज्यादातर शाकाहारी लोग उन लोगों के साथ ही बाहर घूमना और खाना पसंद करते हैं जो उन्हीं की तरह शाकाहारी हो. यहां तक कि डेटिंग के मामले में भी शाकाहारी लोग शाकाहारियों को ही चुनना पसंद करते हैं.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण और शहरी इलाकों में आधुनिक गर्भनिरोधक (कॉन्ट्रासेप्टिव) के इस्तेमाल को लेकर लोगों की समझ काफी विकसित हुई है. परिवार नियोजन की मांग में सुधार हुआ है और महिलाओं द्वारा पैदा किए बच्चों की औसत संख्या में भी गिरावट आई है. कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि ये आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि देश में 'जनसंख्या विस्फोट' का डर निराधार है और केवल दो बच्चे पैदा करने की योजना लाने की जरूरत नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में जनसंख्या नियंत्रण को देशभक्ति का एक रूप बताया था. 2020 में भी पीएम मोदी ने महिलाओं के लिए शादी की उम्र में संशोधन पर जोर दिया, जिसे कई लोग अप्रत्यक्ष रूप से जनसंख्या नियंत्रण करने की कोशिश के तौर पर ही देख रहे हैं.
इस महीने की शुरुआत में आए NFHS-5 की रिपोर्ट के पहले पार्ट में 17 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों का रिकॉर्ड डेटा है. इंटरनेशनल नॉन प्रॉफिट पॉपुलेशन (PC) का डेटा एनालिसिस बताता है कि 17 में से 14 राज्यों के 'टोटल फर्टिलिटी रेट' में गिरावट आई है. इन राज्यों में प्रति महिला बच्चों का औसत 2.1 या इससे भी कम है.
राष्ट्रीय स्तर के एनजीओ पॉपुलेशन फाउंडेशन इंडिया की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुटरेजा कहती हैं, 'हमें बिना किसी साक्ष्य के फैलाई जा रही बातों से दूर रहने और सोचने-समझने की जरूरत है. यह डेटा दो बच्चे पैदा करने की योजना के मिथक और गलत धारणा को उजागर करता है. रिपोर्ट की मानें तो आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और बिहार जैसे राज्यों में 2015-16 की तुलना में कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल काफी बढ़ा है.
ब्रिटेन और अमेरिका में तो वैक्सीन लगाने की शुरुआत भी हो चुकी है. लेकिन धार्मिक कारणों से मुसलमानों के लिए यह वैक्सीन हलाल है या हराम इस पर भी कुछ देशों में बहस शुरू हो गई है. इस बहस की शुरुआत दक्षिण-पूर्वी एशियाई और मुस्लिम बहुल देशों इंडोनेशिया और मलेशिया में हुई है. दक्षिण-पूर्वी एशिया में इंडोनेशिया कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बना हुए है.
वहाँ पर इस समय 6.71 लाख से अधिक कोरोना संक्रमण के मामले हैं और इसके कारण 20,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
हलाल सर्टिफ़िकेट का मुद्दा
इंडोनेशिया भी बाक़ी देशों की तरह वैक्सीन के लिए विभिन्न कंपनियों से क़रार कर रहा है. उसने चीन स्थित सिनोवैक बायोटेक कंपनी से वैक्सीन के लिए क़रार किया है. इस कंपनी की वैक्सीन का अभी ट्रायल जारी है. वैक्सीन के हलाल होने पर बहस तब शुरू हो गई, जब इंडोनेशिया के मुस्लिम मौलवियों की एक शीर्ष संस्था इंडोनेशियन उलेमा काउंसिल ने इस वैक्सीन के लिए हलाल सर्टिफ़िकेट जारी करने के लिए कहा.
वहीं, मलेशिया ने भी वैक्सीन के लिए फ़ाइज़र और सिनोवैक कंपनियों से क़रार किया है और वहाँ पर भी मुस्लिम समुदाय में वैक्सीन के हलाल या हराम होने को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं. हालाँकि, सोशल मीडिया पर इसे इस तरह से प्रचारित किया जा रहा है कि कई मुस्लिम देशों में इसके हराम और हलाल को लेकर भारी बहस जारी है.
लेकिन सच्चाई यही है कि अभी तक सिर्फ़ इंडोनेशिया और मलेशिया में ही इसके हराम और हलाल को लेकर चर्चा हुई है. सोशल मीडिया पर कई यूज़र यह भी अफ़वाह फैला रहे हैं कि इस वैक्सीन को हराम घोषित कर दिया गया है जबकि ऐसा नहीं है.
क्यों शुरू हुई बहस
इस्लाम में उन उत्पादों को 'हलाल' कहा जाता है जिनमें 'हराम' चीज़ों का इस्तेमाल नहीं होता है. उदाहरण के लिए शराब या सूअर का मांस. हाल के सालों में हलाल ब्यूटी प्रॉडक्ट्स का मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम देशों में इस्तेमाल काफ़ी बढ़ा है.
अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वैक्सीन को लेकर हराम या हलाल की बहस क्यों शुरू हुई? किसी वैक्सीन को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए सूअर की हड्डी, चर्बी या चमड़ी से बनी जेलेटिन का इस्तेमाल किया जाता है. हालाँकि कुछ कंपनियों ने कई सालों तक काम करके इसके बिना वैक्सीन बनाने में सफलता पाई है.
पोर्क-फ़्री वैक्सीन
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, स्विट्ज़रलैंड की कंपनी नोवार्टिस ने दिमाग़ी बुख़ार की पोर्क-फ़्री वैक्सीन बनाने में सफलता पाई है. वहीं, सऊदी अरब और मलेशिया स्थित एजे फार्मा अपनी वैक्सीन बनाने पर काम कर रहा है. कोरोना वैक्सीन के हलाल या हराम होने पर बहस सिर्फ़ यहीं ख़त्म नहीं हो जाती है.
पोर्क की जेलेटिन के इस्तेमाल से इतर कोरोना वैक्सीन को बनाने के लिए सूअर के डीएनए के इस्तेमाल की बात भी कही जा रही है. सिनोवैक ने अपनी वैक्सीन में क्या-क्या इस्तेमाल किया है इसके बारे में उसने अभी नहीं बताया है.
इस्लाम में इंसानी ज़िंदगी
सूअर के जेलेटिन के इस्तेमाल को लेकर सिर्फ़ मुसलमानों की ही नहीं बल्कि यहूदियों की भी चिंताएँ हैं. यहूदी रूढ़िवादी भी सूअर के मांस और उससे बनी चीज़ों का इस्तेमाल नहीं करते हैं. सूअर के जेलेटिन और डीएनए से बनी वैक्सीन का क्या मुसलमान या यहूदी समुदाय धार्मिक कारणों से अब इसका इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे? मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय जोधपुर के कुलपति और इस्लामिक स्टडीज़ के जानकार प्रोफ़ेसर अख़्तरुल वासे बीबीसी हिंदी से कहते हैं कि इस्लाम में इंसानी ज़िंदगी को प्राथमिकता दी गई है.
वो कहते हैं, "इंसानी जान बचाने के लिए अगर कोई आदमी भूखा है और उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं है तो ऐसी सूरत में हराम भी हलाल हो जाता है. यह इस्लामी न्याय विधि का मानना है. कोरोना वैक्सीन को लेकर इस तरह की बहस से दुनिया में मुसलमानों और इस्लाम की छवि ख़राब ही होगी, इससे कोई छवि अच्छी नहीं होगी."
मुस्लिम देशों की आपत्ति
पोलियो वैक्सीन को लेकर पाकिस्तान समेत कुछ मुस्लिम देशों में शुरुआत में आपत्ति दर्ज की गई थी. इसका हवाला देते हुए प्रोफ़ेसर वासे कहते हैं, "हम देख चुके हैं कि पोलियो वैक्सीन को लेकर कैसी छवि बनाई गई लेकिन इस बात को लेकर ख़ुशी है कि भारत में मुस्लिम धर्मगुरुओं ने पोलियो की चिंता को समझा था और इस वैक्सीन को ठीक क़रार दिया था. उसका समर्थन किया था और इसने भारत में पोलिया निवारण में मुख्य भूमिका निभाई थी."
"ब्रिटेन में अब कोरोना वायरस का नया रूप सामने आ रहा है. इस सूरत में तो चिंता यह होनी चाहिए कि कोरोना वायरस की आने वाली वैक्सीन सिर्फ़ असरदायक हो क्योंकि यह मानव जीवन का मामला है."
इंडोनेशिया की मौलवियों की शीर्ष संस्था इंडोनेशियन उलेमा काउंसिल कोरोना वायरस के वैक्सीन के लिए हलाल सर्टिफ़िकेट चाहती है.
पोर्क के इस्तेमाल पर बहस
अगर मुस्लिम देशों के पास हलाल और सूअर के जेलेटिन के इस्तेमाल वाली वैक्सीन दोनों हों तो कौन-सी इस्तेमाल की जानी चाहिए? इस सवाल पर प्रोफ़ेसर वासे कहते हैं कि कौन-सी वैक्सीन असरदायक है, इसका चुनाव डॉक्टर करेंगे, अगर सूअर की जेलेटिन वाली वैक्सीन असरदार है तो वही लगानी चाहिए.
इसराइल में रब्बिनिकल ऑर्गनाइज़ेशन के चेयरमैन रब्बी डेविड स्टाव समाचार एजेंसी एपी से कहते हैं कि यहूदी क़ानून में प्राकृतिक तरीक़े से पोर्क के इस्तेमाल या उसके खाने पर प्रतिबंध है. वो कहते हैं कि अगर इसे मुंह के ज़रिए न देकर इंजेक्शन के ज़रिए दिया जा रहा है तो इस पर कोई रोक नहीं है और ख़ासकर के तब जब यह बीमारी का मामला हो. पोर्क के इस्तेमाल की बहस के बीच फ़ाइज़र, मोडेर्ना और एस्ट्राज़ेनेका कंपनियों ने बयान जारी कर कहा है कि उनकी वैक्सीन में पोर्क के उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
इसके समर्थन में ब्रिटेन के इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन (ब्रिटिश आईएमए) ने भी बयान जारी किया है कि फ़ाइज़र की वैक्सीन हर तरह से सुरक्षित है. ब्रिटिश आईएमए ने बयान जारी किया है कि उसने सिर्फ़ फ़ाइज़र के लिए ही इसलिए बयान जारी किया है क्योंकि ब्रिटेन में फ़िलहाल इसी वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति है.
संगठन ने बताया है कि उसने इस वैक्सीन के लिए मुस्लिम स्वास्थ्यकर्मियों, इस्लाम के विद्वानों और कई इस्लामी संगठनों से चर्चा की है. साथ ही उसने यह भी बताया है कि इस वैक्सीन में जानवर के किसी पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया गया है.