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रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक संवाददाता सम्मेलन कर इसकी जानकारी दी और कहा है कि कोरोना वायरस टीकाकरण दिए जाने के बाद 16 और 17 जनवरी को 447 एइएफ़आई (एडवर्स इवेंट फॉलोइंग इम्युनाइजेशन) रिपोर्ट किए गए हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव डॉक्टर मनोहर अगनानी ने बताया कि अधिकांश मामलों में इसका प्रतिकूल प्रभाव मामूली स्तर का था.अगर टीकाकरण के बाद किसी को अस्पताल में भर्ती करना पड़े तो उसे सीरियस एएफ़आई में दर्ज किया जाता है.
उन्होंने बताया कि केवल तीन ऐसे मामले हुए जिसमें लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
उनके मुताबिक इनमें से एक मामले में, जिन्हें नॉर्दर्न रेलवे अस्पताल में भर्ती किया गया था, 24 घंटे के भीतर डिस्चार्ज किया जा चुका है. वहीं एक अन्य मरीज़ को भी एम्स दिल्ली से छुट्टी दी जा चुकी है. जबकि तीसरे मरीज़ एम्स ऋषिकेश में हैं और उनकी स्थिति भी अच्छी है. वैक्सीन के साइड इफेक्ट के बारे में उन्होंने बताया कि ज़्यादातर मामलों में लोगों को हल्का बुखार, सिरदर्द और जी मिचलाने की शिकायत रही.
पहले दो दिनों में दो लाख से अधिक लोगों को दिया गया टीका
स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि "पहले दिन 2,07,229 लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है. यह किसी भी देश में पहले दिन वैक्सीन दिए जाने का सबसे बड़ा आंकड़ा है. भारत इस मामले में अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस से आगे रहा."
"दूसरे दिन वैक्सीन छह राज्यों में दी गई. आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मणिपुर और तमिलनाडु में कुल 553 सत्र आयोजित किए गए. रविवार को क़रीब 17 हज़ार लोगों को टीका दिया गया है."
इस दौरान स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि पहले दो दिनों में कुल दो लाख 24 हज़ार लोगों का टीकाकरण किया गया है.
पहले चरण में 30 करोड़ लोगों को मिलेगी वैक्सीन
गौरतलब है कि पहले चरण में कोरोना वायरस वैक्सीन 30 करोड़ लोगों को लगाने की योजना है. इस वैक्सीन की दो डोज़ होंगी. इसमें पहली डोज़ और दूसरे डोज़ के बीच का अंतर 21 से 28 दिन का होगा.
पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन की उपाध्यक्ष डॉ. प्रीति कुमार ने बीबीसी से बातचीत में कहा था कि वैक्सीन दिए जाने के बाद मामूली बुख़ार, सिरदर्द या इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर दर्द होता है. उन्होंने कहा था कि अगर कोई वैक्सीन 50 फ़ीसदी तक प्रभावी होती है तो उसे सफल माना जाता है.
डॉ. प्रीति कुमार के मुताबिक पहला डोज़ लगने के 10-14 दिन के बाद असर होना शुरू हो जाता है और यह बढ़ता चला जाता है.
हालाँकि उनका कहना है कि वैक्सीन लगाने के बाद भी मास्क लगाना ज़रूरी है. वो कहती हैं वैक्सीन एक अतिरिक्त सुरक्षा उपाय है. सामाजिक दूरी, मास्क और वायरस से बचने के अन्य उपाय करना वैक्सीन लगवाने के बाद भी ज़रूरी होगा.
भारत में आज से कोविड-19 वैक्सीन का टीकाकरण शुरू होगा. लेकिन आम लोगों के मन में सवाल हैं कि क्या टीकाकरण के बाद जिंदगी भर कोरोना वायरस से मुक्ति मिल जाएगी. क्या कुछ सालों बाद वैक्सीन फिर लगवाने की जरूरत पड़ेगी? तमाम देशों में अलग-अलग लोगों को अलग-अलग वैक्सीन लगने का क्या असर पड़ेगा, ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हमने विशेषज्ञों के जरिये आपके सामने रखे हैं. भारत में ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड (Covishield) और स्वदेशी कंपनी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन (Covaxin) का टीका लगेगा ब्रिटेन में फाइजर, मॉडर्ना (Moderna) और कोविशील्ड वैक्सीन लग रही है. अमेरिका में फाइजर (Pfizer) और मॉडर्ना का टीका लगाया जा रहा है.
उत्तर- विश्व स्वास्थ्य संगठन के पेशेंट सेफ्टी समूह से जुड़े और रूबी जनरल हॉस्पिटल में क्लीनिकल माइक्रोबॉयोलॉजी एंड संक्रामक रोग के कंसल्टेंट और हेड डॉ. देबकिशोर गुप्ता ने कहा कि भारत या दुनिया के अन्य हिस्सों में लोगों को अलग-अलग कोविड-19 वैक्सीन लगाने का कोई नुकसान नहीं है. सारी उपलब्ध वैक्सीन की प्रभावशीलता 60 फीसदी से अधिक पाई गई है. यह कोरोना वायरस के संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए पर्याप्त है.
2. भारत के लिए कौन सा टीका बेहतर है
ऐसी वैक्सीन जिनका क्लीनिकल ट्रायल भारत में हुआ है, ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड का भारत में सीमित स्तर पर ही सही ट्रायल हुआ है. कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल भारत में चल रहा है.फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना की वैक्सीन का भारत में ट्रायल नहीं हुआ है. रूस की स्पूतनिक वी वैक्सीन भारत में वालंटियर्स को दी गई है और ट्रायल चल रहे हैं.
3.अलग-अलग देशों में लोगों को अलग-अलग वैक्सीन देने का क्या प्रभाव पड़ेगा?
भारत की विशाल आबादी के साथ नेपाल समेत अन्य देशों के लिए टीके की आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए भारत में अलग-अलग किस्मों की वैक्सीन को मंजूरी देना महत्वपूर्ण है, तभी कम वक्त में 135 करोड़ लोगों का टीकाकरण संभव हो सकेगा. सुरक्षा और प्रभावशीलता का आकलन करते हुए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया फाइजर, स्पूतनिक वी और मॉडर्ना की वैक्सीन को भी मंजूरी दे सकते हैं. कई ऐसे टीके हैं, जिन्होंने क्लीनिकल ट्रायल के दौरान अपनी प्रभावशीलता साबित की है.
4. इससे पहले कब किसी महामारी के खिलाफ अलग-अलग टीकों का इस्तेमाल हुआ है?
पोलियो ऐसा वायरस था, जिसकी रोकथाम के लिए दुनिया में एक से ज्यादा वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया. इसमें एक ओरल पोलियो वैक्सीन और दूसरी इनएक्टिवेटेड पोलियोवायरस वैक्सीन (IPV) शामिल थी. ओरल वैक्सीन भी अलग-अलग किस्मों की इस्तेमाल हुई. आईपीवी तीनों तरह के पोलियो वायरस से सुरक्षा देती है.
5. वैक्सीन में सुधार होगा तो क्या उन्हें दोबारा टीका लगवाने की जरूरत होगी ?
भारत समेत कई देशों ने आपातकालीन मंजूरी से टीकाकरण को हरी झंडी दी है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि क्लीनिकल ट्रायल का पर्याप्त डेटा न होने के कारण वैक्सीन निर्माता अभी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि वैक्सीन कितने लंबे समय तक सुरक्षा देगी और क्या वैक्सीन डोज सिर्फ टीका लेने वाले में बीमारी को रोकेगी या संक्रमण रोकने में भी कारगर होगी. इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल के ठोस साक्ष्यों की जरूरत होगी.
6.कोई भी कोरोना वैक्सीन पोलियो की तरह जीवन भर वायरस से इम्यूनिटी का दावा नहीं करती है क्यों
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. गजेंद्र सिंह ने कहा कि वैक्सीन कितने लंबे समय तक वायरस से सुरक्षा देगी और क्या वैक्सीन मौजूदा सभी तरह के स्ट्रेन या भविष्य में कोरोना के अन्य म्यूटेंट स्ट्रेन पर कारगर होगी या नहीं, यह क्लीनिकल ट्रायल के लंबे वक्त के डेटा पर निर्भर करेगा.
7. जो लोग कोरोना से उबर चुके हैं क्या उन्हें वैक्सीनेशन की जरूरत नहीं है और क्यों ?
गजेंद्र सिंह के अनुसार, जो लोग कोरोना से उबर भी चुके हैं, उन्हें भी यह टीका लेना चाहिए, क्योंकि यह उनमें मजबूत इम्यूनिटी पैदा करेगी. अभी कोरोना से स्वस्थ होने के बाद व्यक्ति के शरीर में अपनेआप प्राकृतिक तरीके से एंटीबॉडी तो बनती है, लेकिन यह एंटीबॉडी कितने दिनों तक कायम रहेगी, यह पता नहीं है. कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि यह 2-3 माह से 8 माह तक हो सकती है. हर व्यक्ति में एंटीबॉडी का स्तर भी अलग-2 होता है.
8. क्या कोरोना से उबर चुके लोग भी प्राथमिकता सूची में हैं
भारत में एक करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमण से उबर चुके हैं. लेकिन इन्हें टीका लेने की किसी प्राथमिकता सूची में नहीं रखा गया है.
9. जिन्हें कोरोना अभी है, क्या उन्हें टीका लगेगा
संक्रमित व्यक्ति वायरस के लक्षण दिखने के 14 दिनों तक इसके टीकाकरण से बचना चाहिए, क्योंकि इससे टीकाकरण केंद्र पर अन्य लोगों के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा रहता है.
जितने स्पष्ट किसान थे कि कोर्ट की कमेटी में नहीं जाना है उतना ही स्पष्ट अदालत थी कि कमेटी बनानी ही है. कमेटी बन गई है और सदस्यों के नाम आ गए हैं. सरकार भी चाहती थी कि कमेटी बन जाए. सरकार नहीं चाहती थी कि कानून के लागू होने पर रोक लगे. सुप्रीम कोर्ट ने कानून के लागू होने पर रोक लगा दी है. सोमवार को लगा था कि सरकार कटघरे में है, मंगलवार को लग रहा है किसान कटघरे में हैं. इससे पहले आप यह पूछें कि कोर्ट ने कमेटी क्यों बनाई है, कोर्ट ने इसका भी जवाब दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कमेटी अपने लिए बना रहे हैं.
कमेटी का सुझाव इस मामले की सुनवाई की शुरूआत से ही साथ साथ चल रहा था. क्या कमेटी ही इस समस्या के समाधान का अंतिम रास्ता है? आखिर सुप्रीम कोर्ट को अपने लिए कमेटी बनाने की क्या ज़रूरत पड़ गई? इस पर कोर्ट ने कहा कि कोई भी ताकत, हमें कृषि कानूनों के गुण और दोष के मूल्यांकन के लिए एक समिति गठित करने से नहीं रोक सकती है. यह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी. समिति यह बताएगी कि किन प्रावधानों को हटाया जाना चाहिए और फिर वो कानूनों से निपटेगी. हम कानून को सस्पेंड करना चाहते हैं मगर सशर्त. लेकिन अनिश्चितकाल के लिए नहीं. हम ज़मीनी हकीक़त जानना चाहते हैं. आप सरकार के पास जा सकते हैं तो कोर्ट के पास क्यों नहीं जा सकते हैं? हमें नाम दीजिए. हम ये नहीं सुनना चाहते हैं कि किसान कमेटी के समक्ष पेश नहीं होंगे.
कोर्ट ने कानून को अनिश्चितकाल के लिए सस्पेंड नहीं किया है. अदालत ने कहा कि कमेटी का गठन उसके अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन जब सबसे बड़े पक्ष किसानों को उस कमेटी से कोई उम्मीद न हो ज़रूरत न लगे तो फिर कोर्ट को कमेटी क्यों बनानी चाहिए? क्या कमेटी से बात न करने पर किसानों के खिलाफ कार्रवाई होगी या सरकार की तरह कमेटी से बात करने वाले किसान खोज लाए जाएंगे? किसानों ने सोमवार रात ही साफ कर दिया था कि कमेटी का हिस्सा नहीं होंगे. मंगलवार को भी उनका फैसला यही था.
आंदोलन को समस्या मान कर समाधान के लिए कोर्ट ने कमेटी बनाई. अब अगर उस कमेटी में आंदोलन के किसान ही न जाएं तो क्या यह नई समस्या नहीं होगी? क्या कमेटी के गठन के बाद अब आंदोलन के भी हटाने के आदेश दिए जाएंगे? कोर्ट ने कई बार कहा है कि प्रदर्शन करना अधिकार है. लेकिन यह भी कहा है कि वह देख सकता है कि जहां प्रदर्शन किया जा रहा है क्या वहीं किया जाना ज़रूरी है. मंगलवार को बहस के दौरान याचिकाकर्ता के एक वकील हरीश साल्वे ने कोर्ट को ध्यान दिलाया कि किसान आंदोलन की पैरवी कर रहे वकील दुष्यंत दवे, एच एस फुल्का, प्रशांत भूषण और कोलिन गोंज़ाल्विस पेश नहीं हुए हैं. चारों वकीलों ने अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी. हमने फैज़ान मुस्तफा से इस बारे में पूछा. क्या आज आदेश का दिन नहीं था, क्या वकीलों को हाज़िर नहीं होना चाहिए था?
आज आदेश का दिन था लेकिन उसके पहले सवाल जवाब के कई दौर चले. अब यह बात फैसले के बाहर होने लगी है कि जब आंदोलन के किसान कमेटी से बात नहीं करेंगे तो क्या कमेटी आपस में बात करेगी? हमने फैज़ान मुस्तफा से कुछ सवाल पूछा कि कमेटी ही क्यों? क्या कोर्ट कमेटी के सुझाव पर कानून को रद्द कर सकता है? कोर्ट ने कहा कि अपने उद्देश्य के लिए कमेटी बना रहे हैं? इसका क्या मतलब हुआ? अगर कोर्ट कहता है कि कानून संविधान सम्मत है तो क्या किसान संतुष्ट हो जाएंगे? बहुत से खराब कानून संवैधानिक तरीके से भी पास हुए हैं. क्या किसानों को ज़बरन कमेटी के सामने आना होगा?
अब आते हैं कमेटी के सदस्यों के नाम पर. जिस तरह से किसानों ने मना किया कि उन्हें कमेटी मंज़ूर नहीं है उसी तरह से पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढा ने समिति की अध्यक्षता का प्रस्ताव ठुकरा दिया. किसान नेताओं के वकील ए पी सिंह ने कहा कि समिति में जस्टिस मार्कंडेय काट्जू और जोसेफ़ कुरियन होने चाहिए तब कोर्ट ने कहा कि समिति में कौन होगा कौन नहीं होगा यह अदालत तय करेगी. कोर्ट ने अपनी तरफ से नाम तय कर दिए तब भी सवाल पूछा जा रहा है कि ज़्यादातर सदस्यों की राय तो सरकार से मिलती जुलती है.
समिति के सदस्यों में से एक प्रो अशोक गुलाटी शुरू से ही इस कानून के समर्थन में हैं. कृषि कानूनों के समर्थन में अनेक लेख लिख चुके हैं. आपको कानून के समर्थन में इनके अनेक इंटरव्यू मिलेंगे. डॉ प्रमोद जोशी कृषि वैज्ञानिक हैं. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट, दक्षिण एशिया के निदेशक हैं. इसके पहले हैदराबाद स्थित National Academy of Agricultural Research Management के निदेशक रह चुके हैं. प्रमोद जोशी ने फाइनेंशियल एक्सप्रेस में लिखा है कि कृषि कानूनों में ज़रा भी हमारी कृषि को वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने से रोकेगा. इसी अखबार के एक अन्य लेख में लिखते हैं कि इन तीन कानूनों को हटाने का मतलब है खेती के पूरे सेक्टर की बर्बादी, और किसानों की भी. प्रमोद जोशी ने यह भी लिखा है कि जब पैदावार कम थी तब के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का सिस्टम आया था.
अब जब पैदावार सरप्ल्स है तब न्यूनतम समर्थन मूल्य से आगे सोचने की ज़रूरत है. प्रमोद जोशी ने सरकार की तारीफ की है कि इन सुधारों के फायदे को लेकर उसका प्रचार आक्रामक है. एक ट्वीट में लिखा है कि ये कमाल और दिलचस्प प्रदर्शन है कि किसान चाहते हैं कि व्यापारी के लिए कंपटीशन न हो. भूपिंदर सिंह मान राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं. कांग्रेस से जुड़े हैं. 14 दिसम्बर 2020 के हिंदू में एक ख़बर छपी है कि अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति ने कृषि मंत्री से मिलकर कुछ संशोधनों के साथ कृषि कानूनों का समर्थन किया है.
ज्ञापन में यह भी लिखा था कि उत्तर भारत के कुछ राज्यों से दिल्ली में आए कुछ तत्व इन क़ानूनों के प्रति ग़लतफ़हमियां पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. भूपिंदर सिंह मान इसी समिति के अध्यक्ष हैं. अनिल घनवत भी कानून के समर्थक हैं. महाराष्ट्र शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं. खुले बाज़ार की नीति के समर्थक हैं. इनका मानना है कि कृषि कानूनों से किसानों का भला होगा. मानते हैं कि 40 साल में पहली बार किसानों को खुले बाज़ार का अवसर मिल रहा है. अगर दो राज्यों से हो रहे विरोध के दबाव में इसे वापस लिया गया तो इस अवसर का अंत हो जाएगा.
अनेक प्रसंग आपको मीडिया रिपोर्ट में मिल जाएंगे इन सदस्यों के बारे में जो सरकार की नीति का समर्थन करते हैं. इन सदस्यों की राय देख कर यही लगता है कि सरकार को राय देने की ज़रूरत नहीं है. तो क्या कानून के समर्थक समिति के रूप में कानून के विरोधियों के बात करने जाएंगे? 17 दिसंबर की सुनवाई में पी साईनाथ का सुझाव आया था वो नाम क्यों बाहर रह गया इसका उत्तर नहीं है. किसानों के लिए लगातार लिखने बोलने वाले देवेंद्र शर्मा से हमने बात की कि समिति के सदस्यों के बारे में क्या सोचते हैं.
ग़ालिब का एक शेर है. का़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूं, मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जवाब में. ये ट्वीट किया है देविंदर शर्मा ने कमेटी के सदस्यों का नाम देख कर. किसानों को क्यों लगता है कि कमेटी के ज़रिए आंदोलन को हटाने का रास्ता बनाया जा रहा है? इसके सदस्यों का नाम देख कर उम्मीद बेकार है.
क्या अदालत के सहारे आंदोलन खत्म कर दिया जाएगा? अदालत ने अभी तक आंदोलन के अधिकार की बात की है. जगह को लेकर बेशक सवाल उठाए हैं. सरकार के वकील 26 जनवरी के बहाने सुरक्षा के सवाल उठा रहे हैं और अब खालिस्तान से जोड़ने लगे हैं. वैसे सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा था कि वह पुलिस की तरफ से हिंसा को लेकर भी चिन्तित है.
सोमवार को इस बात को लेकर सुनवाई होगी कि 26 जनवरी के लिए ट्रैक्टर की रैली की अनुमति दी जाए या नहीं? अटार्नी जनरल ने आंदोलन में खालिस्तान से सहानुभूति रखने वाले संगठन के घुस आने की बात की है. पहले दिन से यह अभियान चलाया गया कि आंदोलन में खालिस्तानी और आतंकवदी है. किसानों ने इसका जवाब दिया और करनाल की घटना को छोड़ दें तो कहीं हिंसा नहीं हुई है. लेकिन आज कोर्ट में सरकार ने भी इस बात को ऑन रिकॉर्ड कर दिया. इस बहस के दौरान समर्थन देने वाले किसानों की ओर से पेश वक़ील PS नरसिम्हा ने कहा कि आंदोलन में सिख फ़ॉर जस्टिस का प्रदर्शन में शामिल होना चिंता की बात है और ऐसे प्रदर्शन ख़तरनाक हो सकते हैं. इस पर मुख्य न्यायाधिश ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से पूछा कि आरोप है कि विरोध प्रदर्शनों में मदद करने वाला एक प्रतिबंधित संगठन है. क्या आप पुष्टि कर सकते हैं? तब के के वेणुगोपाल ने जवाब दिया कि हमने कहा है कि खालिस्तानियों ने विरोध प्रदर्शनों में घुसपैठ की है. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने अटार्नी जनरल से कहा कि प्रतिबिंधित संगठन को लेकर आप हलफनामा दायर करें. हमें पूरी जानकारी चाहिए.
किसान आंदोलन अब उस चौराहे पर है जहां लाल बत्ती ही जलती दिखाई दे रही है. बाकी बत्तियां काम नहीं कर रही हैं. जय जवान जय किसान.
ब्रिटेन में एक भारतीय रेस्तरां ने सफलतापूर्वक एक समोसा अंतरिक्ष में भेजा, लेकिन अंतरिक्ष में पहुंचने से पहले ही वो समोसा फ्रांस में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. बाथ (Bath) में सबसे अच्छे रेस्तरां में से एक, चाय वाला, आखिरकार तीन प्रयासों के बाद समोसा भेजने के अपने अंतरिक्ष मिशन को पूरा करने में कामयाब रहा.
न्यूज वेबसाइट यूपीआई के अनुसार, चाय वाला भोजनालय के मालिक नीरज गधेर (Niraj Gadher) ने कहा, कि वो खुशियां फैलाना चाहते थे, इसलिए वे समोसा को अंतरिक्ष में भेजने का विचार लेकर आए. ने सोमरसेट लाइव को बताया, कि "मैंने एक बार मजाक के रूप में कहा था कि मैं अंतरिक्ष में एक समोसा भेजूंगा और फिर मैंने सोचा कि इस धूमिल समय के दौरान हम सभी के हंसने के लिए ये एक वजह बन सकता है."
रेस्तरां मालिक ने प्यारे स्नैक को अंतरिक्ष में लॉन्च करने के लिए हीलियम गुब्बारे का इस्तेमाल किया. इसे पहुंचाने के लिए तीन प्रयास किए. पहली बार, हीलियम के गुब्बारे उसके हाथों से फिसल गए. उन्होंने कहा, "दूसरी बार हमारे पास पर्याप्त हीलियम नहीं था, लेकिन हम तीसरी बार में वहां पहुंचे."
YouTube पर साझा किए गए एक वीडियो में मिस्टर गधेर और उनके दोस्तों को गोप्रो कैमरा और एक जीपीएस ट्रैकर के साथ तैयार किए गए गुब्बारे के साथ जोड़ने के बाद समोसा को अंतरिक्ष में लॉन्च करते हुए दिखाया गया है. समूह ने समोसा लॉन्च किया और देखा कि यह वायुमंडल में बहुत ज्यादा ऊंचाई पर चला गया है. गुब्बारा अंतरिक्ष में ऊपर चला तो गया. लेकिन, अगले दिन यह वापस आया और पता चला कि समोसा फ्रांस में आकर गिर गया.
इसके बाद समूह ने इंस्टाग्राम पर इस क्षेत्र के लोगों को संदेश देना शुरू किया कि क्या कोई स्नैक का शिकार करने के लिए तैयार है. फिर, एक्सल मैथॉन (Axel Mathon) के नाम से एक इंस्टाग्राम यूजर ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और पिकार्डी (Picardie) में एक मैदान में समोसा पाया.
स्थानीय समाचार वेबसाइट के हवाले से कहा गया, "जब तक मैं यहां नहीं पहुंची, मुझे इस पर विश्वास नहीं हो सका और वास्तव में जब मैंने देखा तो मैंने पेड़ों में फटा हीलियम गुब्बारा देखा. मैंने पाया कि यह पॉलीस्टायर्न बॉक्स अच्छी तरह से पैक है. यह एक खजाने की खोज जैसा था, मुझे लगा कि यह पागलपन है."