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प्रेगनेंसी के दौरान या प्रेगनेंसी प्लान करते वक्त गर्भवती महिला को डॉक्टरों द्वारा फॉलिक एसिड से भरपूर खाद्य सामग्री खाने के लिए कहा जाता है। गर्भावस्था के पहले महीने से ही फॉलिक एसिड जरूर लेना चाहिए। फोलिक एसिड समय से पहले प्रसव, यानि 'प्रीमैच्योर बर्थ' और मिसकैरेज आदि के खतरे को भी काफी हद तक कम करता है। प्रेगनेंसी में सुपरफूड से कम नहीं हैं फोलिक एसिड। प्रेग्नेंसी से पहले और बाद में इसका सेवन जरूर करना चाहिए। आइए जानते हैं कि गर्भावस्था में फोलिक एसिड के क्या लाभ होते हैं।
फॉलिक एसिड के फायदे
गर्भावस्था में फॉलिक एसिड बहुत ही जरूरी होता है। क्योंकि इससे गर्भ में पल रहे बच्चे में होने वाले दिल, दिमाग और किसी भी आनुवंशिक रोगों के होने की आशंका नहीं रहती है। गर्भवती महिला के शरीर में भरपूर मात्रा में फॉलिक एसिड होने पर बच्चे के ब्रेन और रीढ़ की हड्डी का विकास अच्छी तरह होता है। गर्भधारण के एक साल पहले से फोलिक एसिड के सप्लीमेंट्स (ऐसी चीजें जिनसे शरीर को फोलिक एसिड की आपूर्ति होती हो) के सेवन से समय पूर्व प्रसव का खतरा 70 फीसदी तक घट जाता है और गर्भभपात का जोखिम भी कम होता है।
फॉलिक एसिड से भरपूर आहार
एवाकाडो में फॉलिक एसिड होता है। प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को खूब सारे फॉलिक एसिड की जरुरत पड़ती है तो इसे खाना बिल्कुल भी न भूलें। पत्तेदार सब्जियां, फलियां, साग, राजमा, साबुत अनाज और दालें, सोया उत्पादों, सेम विभाजन, अंडे की जर्दी, आलू, गेहूं का आटा, गोभी, चुकंदर, केले, ब्रोकोली, और ब्रुसेल्स के अंकुर फोलिक एसिड की मात्रा में ज्यादा होते हैं। जिन मछलियों में तेल पाया जाए (जैसे हेरिंग, मकरील, सालमन या सार्डिन), वे आपके बच्चे के लिए लाभदायक होती हैं।
एसिड और आयरन की कमी के कारण गर्भवती महिला को एनीमिया हो जाता है। इसके बाद प्लेसेंटा को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और प्रेगनेंट महिलाओं को थ्रोम्बोसिस और अधिक ब्लीडिंग हो जाती है।
गर्भावस्था के तीसरे से चौथे हफ्ते में जन्म दोष उत्पन्न होते हैं इसलिए इस दौरान शरीर में फोलेट होना बहुत जरूरी है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती चरणों में शिशु के मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड का विकास होता है। अगर आप भी प्रेगनेंसी प्लान कर रही हैं तो डॉक्टर गर्भधारण से पहले ही प्रीनैटल विटामिन के साथ फोलिक एसिड लेने की सलाह देंगे।
बालों की देखभाल के लिए सबसे पहले हेयर वॉश किया जाता है। हेयर वॉश करने से बालों और स्कैल्प पर जमी गंदगी दूर हो जाती है। हेयर वॉश को लेकर कहा जाता है कि रोज हेयर वॉश करने से बालों को नुकसान होता है।लेकिन ज्यादा हेयर वॉश करने से स्कैल्प का नेचुरल ऑयल खत्म हो जाता है जिससे बाल रुखे हो जाते हैं। ऐसे में बालों को वीक में 2 से 3 बार धोना चाहिए।
रात को हेयर वॉश करना
रात में बाल धोने से बालों को सूखने में टाइम लगता है। जो कि स्कैल्प और बालों के लिए अच्छा नहीं होता है। जबकि सुबह जल्दी बालों में सुखाने के लिए हाई हीट पर हेयर ड्रायर का यूज करती हैं। जिससे बालों को काफी नुकसान होता है। इसलिए महिलाएं रात को अपने बालों को धोना पसंद करती हैं। ताकि वह हेयर ड्रायर का यूज ना कर सकें।
रात के समय हेयर वॉश करने से आपको लाभ होता है, वहीं इससे कुछ नुकसान भी होता है। अगर आप हेयर वॉश करने के बाद तुरंत सो जाती हैं तो इससे बाल कमजोर हो जाते हैं। इसलिए रात को गीले बालों में नहीं सोना चाहिए। रात को बालों को सूखा कर सोना चाहिए।
सुबह के समय हेयर वॉश
सुबह के समय बाल धोना के कई लाभ होते है। लेकिन रात के समय बाल धोना हेयर टाइप के लिए सही नहीं माना जाता है, इससे स्कैल्प ऑयली हो जाते है वो रात भर में बहुत अधिक तेल विकसित हो जाता जिससे बालों की का रुखापन कम होता है। इसके अलावा रात में आप गीले बालों में सो जाती है तो बालों में स्कैल्प और डैंड्रफ हो जाता है।
सुबह हेयर वॉश करने का एक नुकसान होता है कि सुबह के समय हेयरवॉश करने के बाद महिलाएं हेयर ड्रायर का यूज करती है जो कि बालों को कमजोर और रुखा बना देता है। इसलिए सुबह हेयर वॉश कर रही हैं तो सबसे पहले हेयर वॉश करें। उसके बाद घर के सारे काम करें, जिससे आपके बाल नेचुरली सूख जाएं।
किशोरावस्था बड़े हो रहे बच्चों के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इस दौरान बच्चों को अधिक आजादी की चाह होती है। एक किशोर शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत सी चुनौतियों से गुजर रहा होता है। इसके अलावा उसे पढ़ाई, स्कूल और करियर को लेकर बढ़ रहे दबाव को भी झेलना पड़ता है। इस अवस्था में वह उसी काम को करना चाहता है, जो आपकी मर्जी के खिलाफ होता है। बच्चे का यह समय न सिर्फ उसके लिए बल्कि पैरेंट्स के लिए भी चुनौतिपूर्ण होता है। आज इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे ऐसे 7 टिप्स जिनकी मदद से आप अपने लाडले की किशोरावस्था को बेहतर बना सकते हैं।
किशोर बच्चों के माता-पिता इन बातों का रखें ध्यान
अब सरकार लड़कियों के लिए इस सीमा को बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है. सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही नीति आयोग को देगा. भारत के बड़े शहरों में लड़कियों की पढ़ाई और करियर के प्रति बदलती सोच की बदौलत उनकी शादी अमूमन 21 साल की उम्र के बाद ही होती है.
यानी इस फ़ैसले का सबसे ज़्यादा असर छोटे शहरों, क़स्बों और गाँवों में होगा, जहाँ लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों को पढ़ाने और नौकरी करवाने पर ज़ोर कम है, परिवार में पोषण कम मिलता है, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच मुश्किल है और उनकी शादी जल्दी कर देने का चलन ज़्यादा है.
बाल विवाह के मामले भी इन्हीं इलाक़ों में ज़्यादा पाए जाते हैं. क्या शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने से इन लड़कियों की ज़िंदगी सँवर जाएगी?
टास्क फ़ोर्स के साथ इन्हीं सरोकारों पर ज़मीनी अनुभव बाँटने और प्रस्ताव से असहमति ज़ाहिर करने के लिए कुछ सामाजिक संगठनों ने 'यंग वॉयसेस नेशनल वर्किंग ग्रुप' बनाया. इसके तहत जुलाई महीने में महिला और बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर 15 राज्यों में काम कर रहे 96 संगठनों की मदद से 12 से 22 साल के 2,500 लड़के-लड़कियों से उनकी राय जानने की क़वायद की गई.
सीधे से सवाल के जवाब बहुत टेढ़े निकले. राय एक नहीं थी, बल्कि सरकार को कई तरीक़े से आईना दिखाते हुए लड़कियों ने कुछ और माँगे सामने रख डालीं. जैसे राजस्थान के अजमेर की ममता जांगिड़, जिन्हें न्यूनतम उम्र बढ़ाने का ये प्रस्ताव सही नहीं लगा, जबकि वो ख़ुद बाल विवाह का शिकार होते-होते बची थीं.
आठ साल की उम्र में हो जाता बाल विवाह
ममता अब 19 साल की हैं, लेकिन जब उनकी बहन 8 साल की थी और वो 11 साल की, तब उनके परिवार पर उन दोनों की शादी करने का दबाव बना. राजस्थान के कुछ तबक़ों में प्रचलित आटा-साटा परंपरा के तहत परिवार का लड़का जिस घर में शादी करता है, उस घर को लड़के के परिवार की एक लड़की से शादी करनी होती है. इसी लेन-देन के तहत ममता और उसकी बहन की शादी की माँग की गई पर उनकी माँ ने उनका साथ दिया और बहुत ताने और तिरस्कार के बावजूद बेटियों की ज़िंदगी 'ख़राब' नहीं होने दी.
ये सब तब हुआ, जब क़ानून के तहत 18 साल से कम उम्र में शादी ग़ैर-क़ानूनी थी. ममता के मुताबिक़ यह सीमा 21 करने से भी कुछ नहीं बदलेगा. उन्होंने कहा, "लड़की को पढ़ाया तो जाता नहीं, ना ही वो कमाती है, इसलिए जब वो बड़ी होती है, तो घर में खटकने लगती है, अपनी शादी की बात को वो कैसे चुनौती देगी, माँ-बाप 18 तक तो इंतज़ार कर नहीं पाते, 21 तक उन्हें कैसे रोक पाएगी?"
ममता चाहती हैं कि सरकार लड़कियों के लिए स्कूल-कॉलेज जाना आसान बनाए, रोज़गार के मौक़े बनाए, ताकि वो मज़बूत और सशक्त हो सकें.
आख़िर शादी उनकी मर्ज़ी से होनी चाहिए, उनका फ़ैसला, किसी सरकारी नियम का मोहताज नहीं. यानी अगर कोई लड़की 18 साल की उम्र में शादी करना चाहे, तो वो वयस्क है और उस पर कोई क़ानूनी बंधन नहीं होने चाहिए.
बाल-विवाह नहीं किशोर-विवाह
विश्व के ज़्यादतर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 ही है.भारत में 1929 के शारदा क़ानून के तहत शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी.
1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई. वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम क़ानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए और कुछ बेहतर प्रावधान शामिल कर, इस क़ानून की जगह ली.
यूनिसेफ़ (यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्ड्रन्स फ़ंड) के मुताबिक़ विश्वभर में बाल विवाह के मामले लगातार घट रहे हैं, और पिछले एक दशक में सबसे तेज़ी से गिरावट दक्षिण एशिया में आई है. 18 से कम उम्र में विवाह के सबसे ज़्यादा मामले उप-सहारा अफ़्रीका (35%) और फिर दक्षिण एशिया (30%) में हैं. यूनिसेफ़ के मुताबिक़ 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का ख़तरा बढ़ जाता है. इसी परिवेश में सरकार के टास्क फ़ोर्स को लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर फ़ैसला उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के हित को ध्यान में रखते हुए करना है.
'प्री-मैरिटल सेक्स'
भारत में प्रसव के दौरान या उससे जुड़ी समस्याओं की वजह से माँ की मृत्यु होने की दर में काफ़ी गिरावट दर्ज की गई है. यूनिसेफ़ के मुताबिक़ भारत में साल 2000 में 1,03,000 से गिरकर ये आँकड़ा साल 2017 में 35,000 तक आ गया. फिर भी ये देश में किशोरावस्था में होने वाली लड़कियों की मौत की सबसे बड़ी वजह है.
शादी की उम्र बढ़ाने से क्या इस चुनौती से निपटने में मदद मिलेगी?
'यंग वॉयसेस नेशनल वर्किंग ग्रुप' की दिव्या मुकंद का मानना है कि माँ का स्वास्थ्य सिर्फ़ गर्भ धारण करने की उम्र पर निर्भर नहीं करता, "ग़रीबी और परिवार में औरत को नीचा दर्जा दिए जाने की वजह से उन्हें पोषण कम मिलता है, और ये चुनौती कुछ हद तक देर से गर्भवती होने पर भी बनी रहेगी."
ज़मीनी हक़ीक़त थोड़ी पेचीदा भी है.
भारत में 'एज ऑफ़ कन्सेंट', यानी यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र 18 है. अगर शादी की उम्र बढ़ गई, तो 18 से 21 के बीच बनाए गए यौन संबंध, 'प्री-मैरिटल सेक्स' की श्रेणी में आ जाएँगे.
शादी से पहले यौन संबंध क़ानूनी तो है, लेकिन समाज ने इसे अब भी नहीं अपनाया है.
'यंग वॉयसेस नेशनल वर्किंग ग्रुप' की कविता रत्ना कहती हैं, "ऐसे में गर्भ निरोध और अन्य स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं तक औरतों की पहुँच कम हो जाएगी या उन्हें ये बहुत तिरस्कार सह कर ही मिल पाएँगी."
उम्र के हिसाब से नहीं होनी चाहिए शादी
देशभर से लड़कियों से की गई रायशुमारी में कई लड़कियाँ न्यूनतम उम्र को 21 साल तक बढ़ाए जाने के हक़ में भी हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि क़ानून की वजह से वो अपने परिवारों को शादी करने से रोक पाएँगी.
साथ ही वो ये भी मानती हैं कि उनकी ज़िंदगी में कुछ और नहीं बदला और वो सशक्त नहीं हुईं तो ये क़ानून बाल विवाह को रोकेगा नहीं, बल्कि वो छिपकर किया जाने लगेगा.
दामिनी सिंह उत्तर प्रदेश के हरदोई के एक छोटे से गाँव में रहती हैं. क़रीब 70 परिवारों वाले गाँव में ज़्यादातर लोग खेती करते हैं.
दामिनी के मुताबिक़ शादी देर से ही होनी चाहिए, लेकिन उम्र की वजह से नहीं. जब लड़की अपने पैसे कमाने लगे, आत्मनिर्भर हो जाए, तभी उसका रिश्ता होना चाहिए फिर तब उसकी उम्र जो भी हो.
उनके गाँव में सिर्फ़ पाँच परिवारों में औरतें बाहर काम करती हैं. दो स्कूल में पढ़ाती हैं, दो आशा वर्कर हैं और एक आंगनवाड़ी में काम करती हैं. इनके मुक़ाबले 20 परिवारों में मर्द नौकरीपेशा हैं.
दामिनी ने बताया, "हमारे गाँव से स्कूल छह किलोमीटर दूर है, दो किलोमीटर की दूरी हो तो वो पैदल चली जाएँ, लेकिन उससे ज़्यादा के लिए ग़रीब परिवार रास्ते के साधन पर लड़कियों पर पैसा नहीं ख़र्च करना चाहते, तो उनकी पढ़ाई छूट जाती है और वो कभी अपना अस्तित्व नहीं बना पातीं."
दामिनी के मुताबिक़, सरकार को लड़कियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोलने चाहिए ताकि वो अपने पैरों पर खड़े होकर अपने फ़ैसले ख़ुद कर सकें, और उनके लिए लड़ना पड़े तो आवाज़ उठा सकें.
लड़कियों को बोझ समझनेवाली सोच
झारखंड के सराईकेला की प्रियंका मुर्मू सरकार के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ हैं और दामिनी और ममता की ही तरह बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की ज़रूरत की बात रखती हैं.
उनके मुताबिक़ मूल समस्या लड़कियों को बोझ समझने वाली सोच है, और जब तक वो नहीं बदलेगी, तय उम्र 18 हो या 21, परिवार अपनी मनमर्ज़ी ही करेंगे.
लेकिन अगर लड़कियाँ कमाने लगें, तो उन पर शादी का दबाव कम हो जाएगा.
प्रियंका का दावा है कि उनके इलाक़े में अब भी बहुत बाल विवाह हो रहे हैं, "लोगों को मौजूदा क़ानून की जानकारी है, लेकिन डर नहीं, किसी मामले में सख़्ती से कार्रवाई हो तो कुछ बदलाव आए, वर्ना 21 साल करने से भी कुछ नहीं बदलेगा, क्योंकि घर में लड़की की आवाज़ दबी ही रहेगी."
वो चाहती हैं कि लड़कियों को लड़कों के बराबर हक़ मिले, ताकि वो ये बेहतर तय कर सकें कि उन्हें शादी कब करनी है.
ग़लत इस्तेमाल का डर
शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाए जाने से जुड़ा एक डर ये भी है कि लड़कियों की जगह उनके माँ-बाप अपने मतलब के लिए इसका ग़लत इस्तेमाल कर सकते हैं.
दिव्या मुकंद के मुताबिक़, "18 साल की वयस्क लड़कियाँ जब परिवार के ख़िलाफ़ अपनी पसंद के लड़के से शादी करना चाहेंगी, तो मां-बाप को उनकी बात ना मानने के लिए क़ानून की आड़ में एक रास्ता मिल जाएगा, नतीजा ये कि लड़की की मदद की जगह ये उनकी मर्ज़ी को और कम कर देगा और उनके लिए जेल का ख़तरा भी बन जाएगा."
इस क़वायद में ज़्यादातर लड़कियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार जो भी फ़ैसला ले, उससे पहले उनकी बात को तरजीह दे. उनके मुताबिक़ वो शादी को अपनी ज़िंदगी का केंद्र बनाए जाने से थक गई हैं, उनकी ज़िंदगी की दशा और दिशा वो और पैमानों पर तय करना चाहती हैं. कविता ने बताया, "वो बस अपने मन का करने की आज़ादी और मज़बूती चाहती हैं. सरकार इसमें मदद करे तो सबसे बेहतर."