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मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election)को लेकर कांग्रेस (Congress) और शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा (NCP) के बीच सीट बंटवारे पर वार्ता पूरी होने की बात कही जा रही है. सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस और शरद पवार नीत राकांपा तथा अन्य दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर वार्ता तकरीबन पूरी हो गई है और जल्द ही नतीजा आ जाएगा. उन्होंने बताया कि कांग्रेस के चुनाव अभियान के तहत पार्टी के नेता फरवरी में कम से कम 50 बैठकें करेंगे और राज्य के उन जिलों में भी जाएंगे, जिन्हें पार्टी की जन संघर्ष यात्रा के तहत कवर नहीं किया जा सकेगा. कांग्रेस, राकांपा और राजू शेट्टी की स्वाभिमानी शेतकारी संगठन गठबंधन के लिए सहमत हो गए हैं जबकि प्रकाश आंबेडकर की भारिप बहुजन महासंघ और समाजवादी पार्टी अब तक इसमें इसमें शामिल नहीं हुई है.
राज्य में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं. कांग्रेस और राकांपा के बीच अब तक अहमदनगर, नंदूरबार, रावेर, जालना, औरंगाबाद और रत्नागिरि-सिंधुदुर्ग पर कोई समझौता नहीं हुआ है. इन सीटों में रावेर और अहमदनगर पर राकांपा परंपरागत रूप से चुनाव लड़ती रही है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और राकांपा प्रमुख शरद पवार के बीच वार्ता के बाद राकांपा ने पुणे और यवतमाल-वाशिम सीटों पर अपना दावा छोड़ दिया है. सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के 26 जबकि राकांपा के 22 सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना है.
वहीं महाराष्ट्र कांग्रेस संसदीय बोर्ड की मुंबई में मंगलवार से शुरू हो रही दो दिवसीय बैठक के दौरान लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी से उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है. पार्टी सूत्रों ने बताया कि संसदीय बोर्ड द्वारा मराठवाड़ा, उत्तर महाराष्ट्र, पश्चिम महाराष्ट्र से उम्मीदवारों की सूची को मंगलवार को अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है. उन्होंने बताया कि विदर्भ और मुंबई के लिए 30 जनवरी को यह प्रक्रिया की जाएगी.
दूसरी ओर महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कोशिशें रंग लाती दिख रही हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना एक बार फिर साथ आते दिख रहे हैं. सूत्रों की मानें तो बिहार की तर्ज पर बीजेपी महाराष्ट्र में शिवसेना के आगे झुकने को तैयार हो गई है. दोनो में 24-24 सीटों पर बात बनती दिख रही है. ये अलग बात है कि शिवसेना अभी ऐसे किसी प्रस्ताव से ही इनकार कर रही है. मातोश्री में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मार्गदर्शन ले बाहर निकले सांसदों में से एक सजंय राऊत ने अभी तक किसी प्रस्ताव से इनकार किया लेकिन हमेशा की तरह अकेले लड़ने की बात नहीं दोहराई. संजय राऊत ने कहा कि युति पर कोई चर्चा नही हुई. कोई प्रस्ताव भी नहीं आया है. उद्धव जी कह चुके हैं हम पूरी तरह से लड़ने के लिए तैयार हैं. महाराष्ट्र में हम बड़े भाई हैं और इस नाते हम देश की और राज्य की राजनीति करेंगे.'
::/fulltext::नई दिल्ली: दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो नेता धर्मवीर अवाना और राजू निर्मल ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (AAP) की सदस्यता ग्रहण की. इस दौरान राज्यसभा सांसद एन.डी. गुप्ता, आप दक्षिणी-दिल्ली लोकसभा प्रभारी राघव चड्ढा और बदरपुर विधायक एन.डी. शर्मा भी मौजूद थे. चड्ढा ने मीडिया से कहा, 'मैं दो वरिष्ठ नेताओं का आप में स्वागत करता हूं जो आप की दिल्ली इकाई, विशेषकर दक्षिण-दिल्ली लोकसभा इकाई को मजबूती देंगे.' अवाना का परिचय देते हुए चड्ढा ने कहा, 'मीठापुर वार्ड से भाजपा के पूर्व पार्षद अवाना एक साल तक एसडीएमसी स्थाई समिति के उपाध्यक्ष के तौर पर काम कर चुके हैं और चार साल से सक्रिय सदस्य हैं.'
उन्होंने कहा, 'वे पार्षद आचार संहिता समिति के सदस्य भी रह चुके हैं और बिजवसन विधानसभा में भाजपा के विस्तारक के तौर पर भी काम कर चुके हैं. वे भाजपा के सक्रिय सदस्य रह चुके हैं और 2012-17 तक बदरपुर से पार्षद रह चुके हैं.' चड्ढा ने कहा कि निर्मल ने 2017 एमसीडी चुनावों में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. उन्होंने दूसरे स्थान पर रहते हुए 7,000 वोट हासिल किए थे. वे दक्षिण-दिल्ली में वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ सक्रिय रहे हैं.
चड्ढा ने कहा कि चुनाव के दौरान भाजपा से उम्मीदवार रह चुके वरिष्ठ भाजपा नेता आप की विचारधारा और काम से प्रभावित हो गए हैं और उन्होंने पार्टी में शामिल होने की इच्छा जताई है. अवाना ने कहा कि आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल के काम से प्रभावित होकर उन्होंने आप में शामिल होने का निर्णय लिया.
::/fulltext::28 साल की मंगरी मुंडा धीमी आवाज़ में मुझसे ये बातें कहते हुए कुछ देर के लिए खामोश हो जाती हैं. देश के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा के उनाकोटि ज़िले के राची पाड़ा गांव में बीते रविवार को 22 आदिवासी परिवारों के 98 लोगों ने ईसाई धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया. राजधानी अगरतला से करीब 170 किलोमीटर नेशनल हाईवे 8 पर छोटे-बड़े तीन पहाड़ों को पार करने के बाद आता है कैलाशहर और वहां से महज 8 किला मीटर दूरी पर राची पाड़ा गांव है. मिट्टी और जंगल के टीले पर बसे राची पाड़ा गांव में पहुंचने के लिए करीब दो किलोमीटर ऊपर की तरफ पैदल चलना पड़ता है. रास्ते में न कोई पक्की सड़क मिलती है, न कोई स्कूल और न ही कोई अस्पताल.
इस गांव में पीने का पानी और अन्य बुनियादी सुविधाएं भी दूर-दूर तक नजर नहीं आती. वैसे तो यहां की ख़बर कोई नहीं रखता लेकिन यहां बसे उरांव और मुंडा जनजाति के लोग जबसे हिंदू बने है मीडिया की सुर्ख़ियों में ज़रूर आ गए हैं. मंगरी मुंडा का परिवार भी उन 22 परिवारों में से एक है जो बीते रविवार को ईसाई धर्म छोड़कर हिंदू बने हैं. ईसाई से हिंदू बनी मंगरी इस नए बदलाव पर कहती हैं," हिंदू बनकर अच्छा लग रहा है. पहले मैं गांव के गिरजाघर में प्रार्थना करने जाया करती थी लेकिन अब वहां नहीं जाती. फ़िलहाल मैं अपनी बेटी को लेकर बहुत चिंतिंत हूं. उसका इलाज कैसे होगा, यही सोचकर परेशान हो जाती हूं."
राची पाड़ा गांव में जिन विवाहित महिलाओं ने हिंदू धर्म अपनाया है उनके किसी के माथे पर न कोई सिंदूर था और न ही किसी ने शाखा (चूड़ियां) पहन रखी थीं. इनमें से किसी का नाम भी नहीं बदला गया. ईसाई धर्म में रहते हुए जो उनके नाम थे वही नाम हिंदू बनने के बाद भी है.
धर्म बदला लेकिन नाम नहीं
इलाके में सक्रिय हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने रविवार को गांव के पास एक खुली जगह में 'धर्म परिवर्तन' कार्यक्रम का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम में हिंदू जागरण मंच ने पुरोहित बुलाकर यज्ञ के माध्यम से इन आदिवासी लोगों का 'शुद्धिकरण' करवाया और इन्हें हिंदू बनाया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन हिंदू जागरण मंच के स्थानीय नेता आदिवासी लोगों के हिंदू बनने की इस घटना को 'घर वापसी' बता रहे हैं.
हिंदू जागरण मंच की त्रिपुरा इकाई के अध्यक्ष उत्तम डे ने इस पूरी घटना की जानकारी देते हुए बीबीसी से कहा, "वैसे तो हम राज्य में मुख्य तौर पर लव जिहाद के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं लेकिन पिछले कुछ समय से धर्मांतरण यहां एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. क्रिश्चियन मिशनरी खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले आदिवासी लोगों की गरीबी का फ़ायदा उठाकर उन्हें हिंदू से ईसाई बना रही हैं."
इन 22 आदिवासी परिवारों के फिर से हिंदू बनने के बारे में हिंदू जागरण मंच के नेता उत्तम डे कहते है, "जब हमें इन आदिवासी लोगों के बारे में पता चला तो हम उनके पास पहुंचे. इन लोगों ने हमें बताया कि ईसाई लोगों ने इनकी आर्थिक स्थिति का फ़ायदा उठाकर हिंदू से ईसाई बनाया था और अब ये सभी लोग स्वेच्छा से वापस हिंदू धर्म अपनाना चाहते है. हम इन्हें गायत्री कुंज यज्ञ के माध्यम से वापस हिंदू धर्म में लेकर आए हैं."
त्रिपुरा में धर्मांतरण को रोकने के बारे में उत्तम डे कहते है, "पूरे प्रदेश में हिंदू जागरण मंच के करीब 20 हज़ार सदस्य काम कर रहे हैं. हर ज़िले में हमारे लोग है, वो ऐसी घटनाओं पर नजर रख रहे हैं."
क्या है धर्म बदलने का सच?
लेकिन राची पाड़ा गांव में ईसाई से हिंदू बने अधिकतर लोगों का कहना है कि बीते दिसंबर में क्रिसमस के समय गांव के कुछ आदिवासी लड़कों ने एक 'पवित्र बैल' की हत्या कर दी थी. इस घटना के बाद सबकुछ उनके ख़िलाफ़ हो गया. ईसाई से हिंदू बने राची पाड़ा गांव के जिडांग मुंडा बताते है, "दिसंबर महीने में गांव के कुछ लोगों ने एक बैल की हत्या कर दी थी. हमें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन जब इस बात की ख़बर हिंदू संगठन के लोगों को मिली तो गांव में उन लोगों की पिटाई की गई जिन्होंने बैल को काटा था. हम सब लोग डर गए थे. इस घटना के बाद यहां डर का माहौल था. पुलिस भी आ गई थी."
इसी गांव के लोग बताते है कि हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों ने महादेव (भगवान शिव) के नाम पर इस ''पवित्र बैल'' को छोड़ा था, जो रांची पाड़ा के आसपास टिले पर रहता था. 'पवित्र बैल' की हत्या में शामिल आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते हुए कैलाशहर पुलिस ने गांव के चार लोगों को गिरफ़्तार किया था जो फिलहाल ज़मानत पर बाहर हैं. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले जिडांग मुंडा गांव वालों के बीच थोड़े से पढ़े-लिखे है.
वो ईसाई धर्म को छोड़ने की वजह बताते हुए कहते हैं, "हमने दस साल पहले ईसाई धर्म अपनाया था. लेकिन हम मूल रूप से सनातन धर्म को मानने वाले लोग हैं. गांव में जब यह घटना हुई तो हम सब लोग मुसीबत में आ गए. हमें फिर से हिंदू बनने के लिए कहा गया. इस पूरे अशांत माहौल को ठीक करने के लिए हमने ईसाई धर्म छोड़ दिया." वो आगे कहते हैं,"हम ग़रीब लोग है. हमें संभालने के लिए कोई नहीं है. हम किसी के साथ लड़ाई मोल नहीं ले सकते."
"पहले चाय बागान में काम करके पेट भर रहे थे अब बागान भी बंद है. जंगल से लकड़ियां काट कर और दैनिक मजदूरी करके किसी तरह गुज़ारा कर रहें है. हम लोग पढ़े लिखे नहीं हैं, हमें धर्म के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है. इसलिए इस घटना के बाद जिसने जैसा कहा, हमने वही किया." हालांकि, हिंदू जागरण मंच के नेता उत्तम डे पूछने पर कहते हैं कि उन्होंने इन लोगों पर हिंदू धर्म अपनाने के लिए कोई दबाव नहीं डाला. हिंदू जागरण मंच के नेता यह भी स्वीकारते है कि 'पवित्र बैल' की हत्या करने के बाद ही उनके लोग राची पाड़ा गांव में गए थे.
वो कहते हैं, "हमें जब पता चला कि भगवान शिव के नाम पर छोड़े गए 'पवित्र बैल' को गांव के कुछ लोगों ने मार दिया है तो हमने गांव वालों को समझाया कि आप लोग हिंदू हो और आपको ऐसा काम नहीं करना चाहिए. हमने देखा कि गांव में चर्च भी बना हुआ है. पास की दारलोंग बस्ती से ईसाई प्रचारक प्रत्येक रविवार को इस गांव में आते थे. लोगों को गाय खाने के लिए कहा जा रहा था. उन्हीं लोगों की बात से उत्साहित होकर 'पवित्र बैल' की हत्या की गई. हमने धर्म बदलने के लिए किसी को नहीं डराया बल्कि ईसाई प्रचारकों ने इन गरीब आदिवासी हिंदूओं की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर इन्हें ईसाई बना दिया था."
ईसाई धर्म अपनाने के पीछे का कारण बताते हुए 70 साल के सानिका मुंडा कहते हैं, "हमारे गांव के हर घर में छोटे लड़के-लड़कियां मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे थे. आपको गांव में हर किसी घर में एक बच्चा पागल मिल जाएगा. यहां तक की कई बड़ी उम्र के लोग भी पागल हो गए थे. गांव वालों को कुछ नहीं पता था कि ये क्यों हो रहा है. जब ईसाई धर्म के प्रचारकों को इस बात का पता चला तो वो हमारे गांव में आने लगे. लोगों को समझाया कि अगर वो ईसाई बनकर प्रार्थना करेंगे तो यह मुसीबत ख़त्म हो जाएगी और इस तरह 10 साल पहले रांची टीला के सभी लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया."
एक सवाल का जवाब देते हुए सानिका मुंडा कहते है, "ईसाई मिशनरी के लोगों ने गांव में एक पक्का चर्च बना दिया था. सब वहां प्रार्थना करने जाते थे. गांव वालों को लगता है कि ईसाई बनने के बाद उनके जीवन में फायदा हुआ है. ऐसी घटनाएं कम हुई है." गांव में उत्पन्न मौजूदा माहौल को देखते हुए सानिका मुंडा बताते है, "हमारे पूर्वज बिहार और झारखंड से सालों पहले यहां के चाय बागान में काम करने आए थे और यहीं बस गए. लेकिन हमारे गांव में ऐसी घटना पहले कभी नहीं हुई. हम सब लोग अबतक शांति से रहते हुए आ रहे थे. लेकन पता नहीं किसने 'पवित्र बैल' की हत्या कर दी और पूरा माहौल बिगड़ गया."
सानिका मुंडा के पास बैठकर ये सारी बातें ध्यान से सुन रहे 45 साल के बिरसा मुंडा को 'पवित्र बैल' की हत्या के आरोप में पुलिस गिरफ़्तार कर थाने ले गई थी.
'वो कुछ सुने बिना मुझे पीटते रहे'
उस दिन की घटना के बारे में जानकारी देते हुए बिरसा कहते हैं, "उस रोज बुदना टीले के पास किसी ने गाय (बैल) काटी थी. मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं थी. उन लोगों ने मुझे रात को 9 बजे के आसपास वहां बुलाया था. लेकिन जब मैं वहां पहुंचा तो सबकुछ देखकर घबरा गया और वापस चला आया. लेकिन गांव के किसी व्यक्ति ने हिंदू संगठन के लोगों को मेरे बारे में बता दिया." "दूसरे दिन संगठन के कई लोग मुझे घर से निकाल कर ले गए. उन लोगों ने रास्ते में मेरी पिटाई की. कोई मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था. मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैं वहां गया था. मैने उन लोगों की सारी बात मान ली और अब फिर हिंदू बन गया हूं."
बिरसा मुंडा की दस साल की बेटी भी मानसिक रोग से ग्रस्त है. वो कहते है, "पास के जालुंगबाड़ी गांव के लड़कों ने कांड किया और मैं इसमें फंस गया. उस गांव में तो सभी लोग ईसाई है. हम तो पहले हिंदू ही थे. लेकिन अब हम दिशाहीन हो गए हैं." कैलाशहर थाना प्रभारी सौगात चकमा ने 'पवित्र बैल' की हत्या से जुड़ी घटना की पुष्टी करते हुए बीबीसी से कहा,"बैल को काटने को लेकर हमें शिकायत मिली थी. हमने उस मामले की जांच करने के बाद चार लोगों को गिरफ़्तार किया था. लेकिन ईसाई से हिंदू बनाने को लेकर हमारे पास किसी ने कोई शिकायत नहीं की है."
एक सवाल का जवाब देते हुए थाना प्रभारी कहते है, "हमने घटना में शामिल सभी आरोपियों को धारा 151 के तहत गिरफ़्तार किया था. अगर हम उस समय इन लोगों को गिरफ़्तार नहीं करते तो कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती थी. हमने यह कार्रवाई संज्ञेय अपराध के तहत की है जिसमें एफआईआर दर्ज करना आवश्यक नहीं होता है. ऐसी घटना हमारे थाना क्षेत्र के अंतर्गत पहले कभी नहीं हुई."
आमतौर पर सार्वजनिक शांति भंग करने वालों के खिलाफ धारा 151 का उपयोग किया जाता है लेकिन इस जमानती धारा के तहत जेल भेजने का प्रावधान ही नहीं है. थाना प्रभारी चाकमा जिस थाने में बैठकर इन बातों की जानकारी दे रहें थे वहां से महज सौ मीटर की दूरी पर बांग्लादेश का बार्डर है. लेकिन चाकमा धार्मिक भावनाओं से जुड़ी या फिर बांग्लादेश सीमा पर होने वाले अपराध को पुलिस के लिए किसी भी तरह की चुनौती नहीं मानते.
बीजेपी सरकार का प्रभाव
क्या त्रिपुरा में बीजेपी की नई सरकार आने के बाद धर्म से जुड़े इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है? इसका जवाब देते हुए पुलिस अधिकारी कहते हैं,"ऐसा बिलकुल नहीं है. मैं कई थानों में काम कर चुका हूं. पहले भी ऐसे मामले आते थे और अब भी आते है. इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है." त्रिपुरा में वाम दलों के 25 साल के शासन का अंत कर यहां पिछले साल भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी. अभी नई सरकार को शासन में आए एक साल भी नहीं हुआ है लेकिन बीते कुछ महीनों में प्रदेश के बेलोनिया इलाके में लेनिन की मूर्ति को ढहाने से लेकर धर्मांतरण जैसी ख़बरें मीडिया की सुर्ख़ियों में हैं.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, त्रिपुरा एक हिंदू बहुल राज्य हैं. प्रदेश की लगभग 37 लाख कुल आबादी में हिंदू 83.40 प्रतिशत है. जबकि मुसलमानों की आबादी 8.60 फ़ीसदी है. इसके बाद तीसरे नंबर पर 3.2 फ़ीसदी आबादी ईसाइयों की है. ऐसे में हिंदू जागरण मंच के कामकाज पर सवाल उठाते हुए कैलाशहर से सीपीआई (एम) के विधायक मोबोशर अली कहते है,"राज्य में बीजेपी की सरकार आने के बाद ऐसी घटनाएं बढ़ी है.दरअसल कुछ संगठन इस तरह की घटना के जरिए हम लोगों पर दवाब बनाने का प्रयास कर रहें है. यहां आरएसएस के जो कार्यकर्ता है वो पिछले छह महीनों से इस तरह की घटनाओं के जरिए एक माहौल बनाने की कोशिश कर रहें है."
"बीजेपी सरकार आने के बाद से मनरेगा योजना का काम ठीक नहीं चल रहा है. ग़रीब लोगों को काम मिलना बंद हो गया है. इसलिए ये घटनाएं हो रही है."
क्या कहते हैं भाजपा नेता?
दरअसल जिस राची पाड़ा गांव में धर्म परिवर्तन की घटना हुई है वो चंडीपुर विधानसभा के अंतर्गत आता है. यह वो इलाका है जहां से विधायक चुने गए तपन चक्रवर्ती पिछली सीपीआई (एम) सरकार में शिक्षा, उद्योग और कानून मंत्री थे. लेकिन अपने इलाके के इन आदिवासी लोगों की आर्थिक दुर्दशा के लिए वाम दल के नेता प्रदेश की बीजेपी सरकार पर तोहमत लगा रहे हैं. जबकि तपन चक्रवर्ती अब भी इलाके के विधायक हैं.
माकपा नेताओं के आरोपों का जवाब देते हुए पाबियाचारा के बीजेपी विधायक भगवान दास कहते हैं, "धर्म परिवर्तन हमारे इलाके में पहले से चल रहा है. खासकर यहां रियांग और चाय जनजाती के लोगों का धर्म बदला जा रहा था. क्योंकि ये दोनों समुदाय के लोग काफ़ी ग़रीब और पिछड़े हुए है. हमारे संगठन तो इसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. इनकी ग़रीबी का फ़ायदा लेकर कोई धर्म न बदले सके उस पर संगठन काम कर रहे हैं." "जो लोग बीजेपी पर इन घटनाओं के लिए आरोप मढ़ रहे हैं उनके शासन में ही तो सबकुछ हुआ है. कम्युनिस्ट सरकार के दिनों में धर्मांतरण को लेकर बहुत घटनाएं हुई है. हमने तो सत्ता में आने के बाद इसको नियंत्रण किया है."
"हमारी पार्टी में मुसलमान और ईसाई भी है. अगर कुछ ग़लत होगा तो वो जरूर आवाज उठाएंगे. हम किसी को क्यों डराएंगे." त्रिपुरा में उरांव, मुंडा जैसी जनजातियों का इतिहास सौ साल से भी अधिक पुराना है. बिहार, झारखंड जैसे राज्यों से यहां के चाय बागानों में काम करने आए इन लोगों के जीवन में इन सौ वर्षों के दौरान कोई बदलाव नहीं आया. शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने का साफ़ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित इन लोगों के हिंदू बनने के बाद भी समाज में इनकी स्वीकार्यता आसान नहीं दिखती. राची पाड़ा गांव में रहने वाले बिसु क्षत्री का परिवार एक ऐसा हिंदू परिवार है जिसने अपना धर्म कभी नहीं बदला.
वो कहते है,"एकबार धर्म से बाहर चले गए तो फिर वापसी करने पर भी समाज में पहले जैसा स्थान नहीं मिलता." क्या आप ईसाई से हिंदू बने इन परिवारों को अपने पारिवारिक कार्यक्रमों में बुलाएंगे? इसका जवाब देते हुए बिसु कहते है,"अगर वो लोग ईसाई खान पान छोड़कर हिंदूओं की तरह रहेंगे तो ज़रूर बुलाएंगे." इसी गांव में रहने वाले 26 साल के नयन कर्मकार का कहना है," लोग केवल धर्म पर बात करते है. लेकिन रोजगार के बारे में कोई नहीं बताता. हमारे गांव में किसी तरह की सुविधा नहीं है, उस पर कोई बात नहीं करता. मुझे 250 रुपए दैनिक मजदूरी के लिए दूर पहाड़ों पर काम करने जाना पड़ता है. मेरे लिए तो दो वक्त की रोटी ज़्यादा ज़रूरी है."
::/fulltext::श्रीनगर। जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग शुक्रवार पांचवें दिन भी बंद रहा। अधिकारियों ने सड़क को यातायात के लिए खोलने की कोशिश की लेकिन ताजा बर्फबारी के चलते उनकी यह कोशिश नाकाम हो गई। हिमस्खलन होने के बाद जवाहर सुरंग की दोनों ट्यूब काजीगुंड की ओर से मंगलवार को बंद हो गई थी। अधिकारी ने बताया कि रुक-रुक कर हो रही बर्फबारी के चलते सड़क से बर्फ हटाने में परेशानी हो रही है। यातायात विभाग के एक अधिकारी ने बताया, जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग अभी भी यातायात के लिए बंद है। वाहनों की जल्द से जल्द आवाजाही शुरू करने के प्रयास जारी हैं।
मौसम विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि शुक्रवार सुबह से घाटी के अन्य हिस्सों में भी बर्फबारी हो रही है। श्रीनगर शहर में तड़के करीब दो इंच बर्फबारी हुई। इस बीच, बीती रात सभी जगहों पर न्यूनतम तापमान गिरने से कश्मीर में शीतलहर बढ़ गई है। अधिकारी ने कहा कि श्रीनगर में बीती रात न्यूनतम तापमान शून्य से 1.3 डिग्री नीचे दर्ज किया गया। उन्होंने बताया कि सीमावर्ती लद्दाख क्षेत्र में लेह का न्यूनतम तापमान शून्य से 12.9 डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया। वहीं कारगिल का न्यूनतम तापमान शून्य से 18.4 डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया।