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नयी दिल्ली: मौसम विभाग के मुताबिक बुधवार को पूर्वी और पश्चिम मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पंजाब समेत देश के कई हिस्सों में बारिश की संभावना है. इसके अलावा विभाग ने 18, 19 और 20 मार्च को भी देश के कई राज्यों में बारिश होने की संभावना जताई है. 18-19 मार्च को दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़ आदि जगहों पर बारिश की संभावना है. मौसम विभाग के मुताबिक दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी एवं पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, सिक्किम और केरल इत्यादि जगहों पर 18 मार्च को बारिश होने के आसार है. वहीं, पूर्वी उत्तर प्रदेश में 19 मार्च को बारिश की संभावना है.
इससे पहले मौसम विभाग ने मंगलवार को अरुणाचल के अलावा असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल में रुक रुककर बारिश होने का अनुमान लगाया था.
उत्तर प्रदेश में अगले दो दिन बारिश की संभावना
आपको बता दें कि मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर प्रदेश में मंगलवार को आम तौर पर मौसम शुष्क रहा. विभाग ने बताया कि राज्य की राजधानी लखनऊ में अधिकतम तापमान 33.3 डिग्री सेल्सियस, प्रयागराज में 34.6 डिग्री सेल्सियस और वाराणसी में अधिकतम तापमान 34.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया.
इसने 18 मार्च को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ स्थानों पर गरज के साथ बौछारें पड़ने का पूर्वानुमान लगाया है. विभाग ने कहा है कि 19 मार्च को राज्य के अलग अलग जगहों में गरज के साथ बौछारें पड़ने की संभावना है.
दिल्ली में मौसम का हाल
राष्ट्रीय राजधानी में मंगलवार की सुबह न्यूनतम तापमान सामान्य से दो डिग्री से अधिक 17.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, आज राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ‘खराब' श्रेणी में दर्ज किया गया. सुबह आठ बजे पर एक्यूआई 229 रहा.
मौसम विज्ञान विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सुबह साढ़े आठ बजे हवा में आर्द्रता का स्तर 82 प्रतिशत रहा. अधिकारी ने बताया कि अधिकतम तापमान के 33 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहने का अनुमान है.
उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में रहने वाले विनोद का लंबा-चौड़ा आम का बग़ीचा है. आम का सीज़न शुरू होने को है लेकिन उनकी चिंता है कि इस साल जिस तरह से फरवरी में मौसम बदल रहा है, आगे कैसा रहेगा इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है.
उनके आम के पेड़ों में बौर आ गए हैं लेकिन इनमें से कितने टिकोरे बनेंगे और कितने टिकोरे फल बनकर पकेंगे, उसे लेकर वो संशय में हैं.
दिल्ली में रहने वाली गरिमा की बेटी नौंवी में है. बीता एक साल घर पर ही रह कर क्लास लेने के बाद वो अब स्कूल जाने लगी है. लेकिन गरिमा की चिंता यह है कि जब फ़रवरी में उनकी बेटी स्कूल से पसीने में तर होकर लौट रही है तो मई में क्या हाल होगा.
लेकिन यह चिंता सिर्फ़ विनोद या गरिमा तक सीमित नहीं है. तापमान में हो रहे बदलाव के परिणाम अब दिखने भी लगे हैं-
बीते एक सप्ताह से बढ़े हुए तापमान का कुछ असर तो आप भी महसूस कर रहे होंगे. एक सप्ताह पहले तक गर्म पानी से नहाने वाले अब ठंडे पानी से नहा रहे हैं, पंखा भी अब काम पर लौट आया है.
आमतौर पर फ़रवरी का महीना हल्की ठंड का होता है लेकिन साल 2021 की फ़रवरी कुछ अलग है. फ़रवरी महीने का औसत तापमान क़रीब 28 डिग्री सेल्सियस रहा लेकिन कुछ दिन ऐसे भी रहे जब दिल्ली समेत कुछ राज्यों में तापमान 30-31 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच गया.
लेकिन भारत में फ़रवरी के महीने में बढ़ती गर्मी की वजह क्या है?
मौसम पूर्वानुमान केंद्र, नई दिल्ली के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं "आमतौर पर उत्तरी भारत में जो मौसम होता है उस पर वेस्टर्न डिस्टरबेंस का काफी प्रभाव होता है. जितनी वेस्टर्न डिस्टरबेंस आएगी, मौसम उसी के अनुसार होगा. आमतौर पर फ़रवरी के महीने में छह वेस्टर्न डिस्टरबेंस आती हैं लेकिन इस बार एक ही वेस्टर्न डिस्टरबेंस है."
कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि यह वेस्टर्न डिस्टरबेंस भी चार फ़रवरी को आया था. वो कहते हैं, "वेस्टर्न डिस्टरबेंस अपने साथ बारिश लेकर आती है और उसके साथ ही बादल भी बनते हैं. चूंकि वेस्टर्न डिस्टरबेंस नहीं है, तो बादल भी नहीं हैं और इस वजह से सूरज की रोशनी पूरी-पूरी आ रही है. और जब सूरज की रोशनी पूरी मिलेगी तो तापमान तो बढ़ेगा ही."
वो कहते हैं, "चूंकि एक ही वेस्टर्न डिस्टरबेंस है, इसके चलते सूरज की रोशनी से तापमान बढ़ा है. इसके अलावा हवा की धीमी गति भी एक प्रभावी कारण है."
तापमान बढ़ना सामान्य होता जा रहा है
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी के क्लाइमेट साइंटिस्ट डॉ. रॉक्सी मैथ्यू के मुताबिक़, "जिस समय में हम जी रहे हैं वहां तापमान का बढ़ना सामान्य है. लगभग हर साल और हर महीना पहले वाले साल और महीने की तुलना में कुछ अधिक गर्म होता है."
"पूर्वी प्रशांत महासागर में ला नीना के होने के बावजूद साल 2020 सबसे गर्म सालों में से एक था. आमतौर पर ला नीना के कारण तापमान में कमी आती है लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण ये भी बेअसर रही. यही कारण है कि अब ला नीना वाले साल, पहले के एल नीनो वाले सालों की तुलना में अधिक गर्म हैं.
ला नीना और एल नीनो प्रशांत महासागर से जुड़ी प्रक्रियाएं हैं. यह मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में होने वाली घटनाएं है जो बड़े पैमाने पर वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती हैं. एल नीनो के कारण जहां गर्म हवाएं चलती हैं और तापमान दो-चार डिग्री बढ़ जाता है, वहीं ला नीना के कारण पूर्वी प्रशांत महासागर में सर्द हवाएं चलती हैं, यहां तापमान सामान्य से तीन से पांच डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है और इससे वैश्विक तापमान में कमी आती है.
वैश्विक तापमान की बात करें तो क्लाइमेट साइंटिस्ट डॉ. रॉक्सी मैथ्यू भी मानते हैं कि प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति धीरे-धीरे मंद पड़ रही है और वैश्विक एजेंसियों का अनुमान है कि तापमान पहले न्यूट्रल होगा और उसके बाद आने वाले महीनों में गर्म हो जाएगा. इसलिए आने वाले महीनों में वैश्विक तापमान भी बढ़ सकता है.
तो क्या आने वाले महीनों में भी तापमान तुलनात्मक रूप से बढ़ा रहेगा?
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ़ अर्थ साइंसेस) के भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, आगामी गर्मियों में उत्तर, उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व भारत के अधिकांश इलाक़ों और मध्य भारत के पूर्व और पश्चिमी भाग के कुछ हिस्सों और उत्तर प्रायद्वीप के कुछ तटीय इलाक़ों में सामान्य से अधिक अधिकतम तापमान रहने की संभावना है.
इसके अलावा हिमालय की तलहटी के साथ-साथ उत्तर भारत, उत्तर-पूर्व बारत, मध्य भारत के पश्चिमी भाग और प्रायद्वीप भारत के दक्षिणी भाग के अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से अधिक न्यूनतम तापमान की संभावना है.
मौजूदा समय में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में मध्यम ला नीना की स्थिति बनी हुई है. मॉनसून मिशन कपल्ड फ़ेरकास्टिंग सिस्टम के अनुमान के अनुसार, आगे भी ला नीना की यही स्थिति बने रहने की संभावना है.
कुलदीप श्रीवास्तव भी मानते हैं कि "आने वाले महीनों में तापमान तो बढ़ेगा ही और हीट-वेव (गर्म हवाएं) आएंगी ही. ऐसे में तापमान तो बढ़ना ही है."
धरती के तापमान का लगातार बढ़ना कितनी गंभीर समस्या
वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कहते हैं कि "धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है. तापमान में मामूली बढ़ोत्तरी के भी गंभीर परिणाम हो सकते हैं."
वो उदाहरण देते हुए समझाते, "भारत के हालिया जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत के औसत तापमान में 0.7 डिग्री से. का परिवर्तन देखा गया है. स्थानीय और वैश्विक तापमान में हुई इस वृद्धि का सीधा असर हमें विभिन्न मौसमी घटनाओं में आए तीव्र बदलाव तौर पर देखने को मिल रहा है. बारिश का पैटर्न बदल गया है. अरब सागर में तेज़ चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ गई है. हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं और महासागर गर्म हो रहे हैं. हिंद महासागर का जल-स्तर बढ़ रहा है. "
डॉ. रॉक्सी मैथ्यू के अनुसार हमें आने वाले समय में इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा.
पर्यावरण के मुद्दे पर काम करने वले संगठन आईफ़ॉरेस्ट सीईओ चंद्र भूषण मानते हैं कि सबसे पहले तो ये समझना ज़रूरी है कि जो मौसम में बदलाव हो रहा है वो कुछ दशकों से हो रहा है. ऐसा नहीं है कि ये बदलाव एकाएक होने लगे. या उनका असर एकाएक देखने को मिल रहा है.
वो कहते हैं, "पिछले 20-25 सालों से बारतीय महाद्वीप में हम ये सीज़नल चेंज देख रहे हैं. जिसमें स्प्रिंग सीज़न (बसंत ऋतु) छोटा होता जा रहा है. और हम सर्दियों से सीधे गर्मियों में चले जा रहे हैं. इसका मतलब ये है कि तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है."
"तापमान तेज़ी से बढ़ता है तो बहुत सी चीज़ों पर असर पड़ता है. क्योंकि जो नेचर का जो रिदम है वो बिगड़ता है. इसमें बदलाव आया तो जीव-जन्तु पर असर पड़ता है. चाहे वो ब्रीडिंग सीज़न हुआ या फिर माइग्रेशन सीज़न हुआ या फिर पेड़-पौधों पर फल-फूल लगना हो. सब कुछ बदल जाता है."
वो कहते हैं, "चूंकि ये सीज़न का बदलाव बहुत तेज़ी से हो रहा है तो जीव-जन्तुओं और पादप वर्ग (प्लांट टैक्सोनॉमी) को उसके अनुसार ढलना पड़ता है. उसमें कई बार ऐसा भी हो सकता है कि कुछ जीव विलुप्त हो जाएं या कुछ पादप विलुप्त हो जाएं."
चंद्रभूषण कहते हैं कि "बसंत ऋतु के अंत में हम गेंहूं की फसल काटते हैं. लेकिन जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है उससे रात के समय भी तापमान अधिक ही रह रहा है तो गेंहू की जो उत्पादकता है, उस पर असर पड़ सकता है."
वो कहते हैं, "क्लाइमेट-चेंज को लेकर कई प्रयास किये जा रहे हैं. लेकिन ये समझना ज़रूरी है कि अगर सीज़न का रिदम बदलेगा तो, ज़िंदगियों पर भी असर होगा ही."
नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में मौसम सामान्य बना हुआ है. दिन में तेज धूप निकलने से लोगों को अभी से गर्मी का एहसास होने लगा है. इस बीच, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश समेत अन्य जगहों पर बारिश के आसार हैं. मौसम विभाग के मुताबिक, पश्चिमी विक्षोभ के चलते अगले 24 घंटे दौरान, जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित, बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बारिश या बर्फबारी की संभावना है.
मौसम विभाग ने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण तीन और मार्च को उत्तराखंड में हल्की बारिश हो सकती है. इसके अलावा, पश्चिमी विक्षोभ का असर दो मार्च की रात से पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में देखने को मिलेगा. इसकी वजह से तीन और चार मार्च को जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित, बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अलग-अलग जगहों पर हल्की बारिश के साथ आंधी चलने का अनुमान है.
मौसम विभाग के मुताबिक, अगले 24 घंटे के दौरान तापमान में कोई ज्यादा राहत मिलने के आसार नहीं हैं. अगले 24 घंटों के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों और पूर्व, पश्चिम और मध्य भारत में तापमान में कोई खास परिवर्तन देखने को नहीं मिलेगा.