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प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने मंगलवार को यहां मेला क्षेत्र का भ्रमण करने के बाद कहा कि माघ मेला 2023, महाकुंभ-2025 के लिए पूर्वाभ्यास की तरह है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इच्छा के अनुरूप माघ मेले को सुरक्षित और सकुशल ढंग से संपन्न कराया जायेगा. पुलिस महानिदेशक डीएस चौहान के साथ मेला क्षेत्र में भ्रमण पर आए मुख्य सचिव ने संवाददाताओं से कहा कि 2025 में लगने वाले महाकुंभ में लगभग 40 करोड़ लोगों के आने की संभावना को देखते हुए अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई हैं.
मेला क्षेत्र का भ्रमण करने के बाद मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक ने आईसीसीसी सभागार में माघ मेला की तैयारियों के संबंध में समीक्षा बैठक की और मेला संबंधित विभागों के कार्यों की बिंदुवार समीक्षा की. सूचना विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि मेला क्षेत्र में आने वाले श्रद्धालुओं, स्नानार्थिंयों और कल्पवासियों को किसी भी प्रकार की असुविधा न होने पाये.
मुख्य सचिव ने गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई को निर्देश दिया कि गंगा एवं यमुना में बिना शोधन के पानी न जाने दिया जाए. उन्होंने बिजली विभाग को मेला क्षेत्र में अच्छी गुणवत्ता की एमसीवी लगाने का निर्देश दिया जिससे मेला क्षेत्र में शार्ट सर्किट का खतरा न पैदा हो. स्वास्थ्य विभाग की तैयारियों की समीक्षा करते हुए मुख्य सचिव ने मेला क्षेत्र में कोविड से निपटने के लिए तैनात स्वयंसेवकों के माध्यम से जागरूकता पैदा करने का निर्देश दिया और मेला क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर मास्क एवं सैनेटाइजर रखे जाने के लिए कहा।
पुलिस महानिदेशक डीएस चैहान ने भीड़ प्रबंधन एवं पार्किंग की समुचित व्यवस्था पहले से ही सुनिश्चित करने का निर्देश दिया. उन्होंने परीक्षण के बाद ही नाव के संचालन की अनुमति प्रदान करने और उसमें यात्रियों के अनुरूप लाइफ जैकेट की व्यवस्था भी सुनिश्चित करने को कहा. चौहान ने कहा है कि किसी भी दशा में निर्धारित संख्या से अधिक लोग नांवों में न बैठने पायें. साथ ही गहरे पानी में बैरिकेटिंग और गोताखोरों की पर्याप्त संख्या में तैनाती सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया.
इस अवसर पर प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात, मण्डलायुक्त विजय विश्वास पंत, पुलिस आयुक्त रमित शर्मा, अपर पुलिस आयुक्त आकाश कुलहरि, जिलाधिकारी संजय कुमार खत्री, मेलाधिकारी अरविंद चौहान सहित अन्य विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे.
हिंदू पंचांग के अनुसार, सफला एकादशी इस साल 19 दिसंबर, सोमवार को पड़ रही है. एकादशी की तिथि श्रीहरि भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन विधि पूर्वक व्रत रखने और नियमों का पालने करने से भगवान की कृपा से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इसके अलावा इस एकादशी के दिन नारायण सहित मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख का आगमन होता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुासार, इस बार सफला एकादशी पर कई अति विशेष शुभ योग बन भी बन रहे हैं. ऐसे में जानते हैं कि सफला एकादशी के दिन किन उपायों को करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी.
सफला एकादशी 2022 शुभ योग
पंचांग के अनुसार ग्रहों में युवराज कहे जाने वाले बुध देव 3 दिसंबर 2022 से धनु राशि में विराजमान हैं. हालांकि सूर्य देव आज आनी 16 दिसंबर को धनु राशि में प्रवेश कर गए हैं. ऐसे में यहां सूर्य-बुध के मिलने से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है. वहीं मकर राशि के स्वामी अपनी स्वराशि में विराजमान रहेंगे और गुरु अपनी ही राशि मीन में मौजूद रहेगें. इस दिन तीन राशियों में कई सालों बाद ऐसी स्थिति बन रही है.
सफला एकादशी 2022 मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 19 दिसंबर 2022 को सुबह 03 बजकर 32 मिनट पर शुरू होगी और एकादशी तिथि का समापन 20 दिसंबर 2022 को सुबह 02 बजकर 32 मिनट पर होगा. सफला एकादशी व्रत का पारण के लिए शुभ समय 20 दिसंबर 2022, सुबह 08 बजकर 05 मिनट से सुबह 09 बजकर 16 मिनट तक रहेगा.
सफला एकादशी उपाय
सफला एकादशी पौष माह के कृष्ण पक्ष में आती है. ये इस साल की आखिरी एकादशी होगी. कहते हैं कि इस दिन घर या घर की छत पर पीला ध्वज जरूर लगाएं. ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि का आगमन होता है. मान्यता है कि इस एकादशी के दिन घर की उत्तर दिशा में गेंदे का फूल लगाना बहुत शुभ होता है, क्योंकि गेंदा विष्णु जी को अति प्रिय है.
जैसे स्कूल, कॉलेज और ऑफिस जाने के लिए कुछ नियम कानून बनाए जाते हैं। ऐसे ही कुछ नियम कानून मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाने वाले लोगों के लिए भी हैं। लेकिन ज्यादातर लोग मंदिर जाते तो हैं, लेकिन वहां के कर्मकांडों से अवगत नहीं होते हैं। जिनका मंदिरों में पालन करना बहुत जरूरी होता है। कई लोग मंदिर पूजा-पाठ के लिए जाते हैं, लेकिन अनजाने में ही वहां के कायदे कानूनों को तोड़ देते हैं। ऐसे में लोगों को ये जानना बहुत जरूरी है कि मंदिर जाने वाले लोगों को वहां के नियम कानूनों के बारे में पता होना चाहिए। लेकिन अगर आप कभी-कभी मंदिर जाते हैं, तो भी आपको ये जानना जरूरी है कि मंदिर में जाते समय क्या करें और क्या ना करें। आइए जानें मंदिरों में जाने वाले लोगों को किन नियमों का पालन करना चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी एक ऐसा दिन है जो भगवान श्री गणेश को समर्पित है। हर महीने की चतुर्थी को एक अलग नाम से जाना जाता है। इस बार नवंबर की संकष्टी, कृष्ण पक्ष के चौथे दिन, भगवान गणेश "गणधीपा" नाम धारण करेंगे। संकष्टी चतुर्थी के दिन, 'संकष्ट गणपति पूजा' की जाती है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक हर व्रत के पीछे कोई कारण होता है। जिसे उस व्रत की कथा में अच्छे से समझाया गया है। गणेश जी की लगभग 13 व्रत कथाएं हैं, हर महीने के लिए एक।
दक्षिण भारतीय या अमावसंत कैलेंडर के मुताबिक, चतुर्थी कार्तिक के महीने में आती है। अमावस्यंत में मराठी, गुजराती, तेलुगु और कन्नड़ पंचांग शामिल हैं। पूर्णिमांत कैलेंडर के मुताबिक, जो उत्तर भारतीय पंचांग है, संकष्टी मार्गशीर्ष महीने में आती है। तमिल और मलयाली और बंगाली कैलेंडर में, यह थुला-वृश्चिका मसम, अल्पासी मसम-कार्तिगई मसम, और कार्तिक-अग्रहन महीने में आता है।
भगवान गणेश के व्रत दो तरह से होते हैं, विनायक चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी। विनायक चतुर्थी व्रत शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है, जबकि संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष को मनाई जाती है। इन दोनों में संकष्टी चतुर्थी ज्यादा लोकप्रिय है। कार्तिक माह की संकष्टी को गणधिप संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। जिसमें महागणपति भगवान गणेश और शिव पीठ की पूजा की जाती है।
गणधिप गणेश संकष्टी 2022: तिथि, मुहूर्त
गणधिप संकष्टी गणेश चतुर्थी 12 नवंबर 2022 को मनाई जाएगी। लेकिन हिंदू पंचाग के मुताबि चतुर्थी तिथि 11 नवंबर 2022 को रात 8 बजकर 17 मिनट से 12 नवंबर 2022 को रात 10 बजतक 25 मिनट तक रहेगी। चंद्रमा 12 नवंबर को रात 8 बजकर 21 मिनट पर नजर आएगा।
गणधिप गणेश संकष्टी पूजा विधि
णेश संकष्टी चतुर्थी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर भगवान गणेश का स्मरण करें। इसके बाद नहाकर साफ कपड़े पहन लें। इस दिन आप चांद्रोदय यानि चांद दिखने तक उपवास रखेंगे। लाल रंग के कपड़े पहनकर भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करें। पूजा करने के लिए सबसे पहले एक चौकी बना लें। इस पर भगवान गणेश की मूर्ति के सामने एक दीया जलाएं। मूर्ति को नए कपड़े से ढक दें। साथ ही मूर्ति पर जनेऊ और दूर्वा घास चढ़ाएं। अब भगवान गणेश को लाल फूल, हल्दी, कुमकुम, चंदन, अगरबत्ती और धूप चढ़ाएं। आप चाहे तो गणेश जी का मनपसंद भोग मोदक बनाकर उन्हें चढ़ा सकते हैं। या कोई भी शुद्ध मिठाई बनाकर उन्हें अर्पित करें। इसके बाद भगवान गणेश की आरती करें। और शाम को चांद देखने के बाद अपना व्रत खोल लें।
गणधिप गणेश संकष्टी व्रत कथा
पुराणों के मुताबिक, एक बार, अयोध्या के राजा दशरथ ने जंगल में दृष्टिहीन दंपत्ति के पुत्र को गलती से अपने धनूष से मार डाला। जिसके बाद दृष्टिहीन दंपत्ति ने राजा दशरथ को श्राप दिया कि वह भी अपने बेटे से अलग होने का दर्द भोगेंगे। जो एक दिन सच हो गया। और राजा दशर को अपने बड़े बेटे भगवान राम को 14 साल क वनवास पर जाना पड़ा। जहां रावण ने सीता माता का अपहरण कर लिया। जिन्हें बचाने के लिए भगवान राम को समुद्र पार कर लंका जाना था। जिसके लिए भगवान राम ने सुग्रीव की मदद ली। जैसे ही सुग्रीव की सेना ने सीता माता की खोज शुरू की। हनुमान जी ने भी लंका में सीता माता की खोज के लिए समुद्र पार करने से पहले इस व्रत का पालन किया था। जिसके बाद संपति ( जटायु के बड़े भाई ) ने अपनी दिव्य दृष्टि से समुद्र के पार रावण के राज्य के बारे में बताया।
मंगलवार भगवान गणेश को समर्पित हैं। चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की पूजा के लिए अच्छा माना जाता है। 'संक्षाति' का अर्थ है बहुत बड़ी परेशानी और 'हरण' का अर्थ है "इसे दूर करने वाला"। इसी कारण भगवान गणेश की इस दिन पूजा-अर्चना की जाती है। क्योंकि वो अपने भक्तों को सभी खतरों से लड़ने और पार पाने में मदद करते हैं। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य भी माना जाता है। जिस कारण हर शुभ मौके पर सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है।