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नई दिल्ली: Navami Pujan 2019: नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. इस दिन को महानवमी भी कहते हैं. मान्यता है कि मां दुर्गा का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है. कहते हैं कि सिद्धिदात्री की आराधना करने से सभी प्रकार के ज्ञान आसानी से मिल जाते हैं. साथ ही उनकी उपासना करने वालों को कभी कोई कष्ट नहीं होता है. नवमी के दिन कन्या पूजन को कल्याणकारी और मंगलकारी माना गया है. इस बार नवमी 7 अक्टूबर को है जबकि उसके अगले दिन यानी कि 8 अक्टूबर को बुराई पर अच्छाई का पर्व विजयदशी या दशहरा मनाया जाएगा.
कौन हैं मां सिद्धिदात्री
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने सिद्धिदात्री की कृपा से ही अनेकों सिद्धियां प्राप्त की थीं. मां की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण शिव 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वाशित्व ये आठ सिद्धियां हैं. मान्यता है कि अगर भक्त सच्चे मन से मां सिद्धिदात्री की पूजा करें तो ये सभी सिद्धियां मिल सकती हैं.
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है. उनकी चार भुजाएं हैं. मां ने अपने एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख धारण किया हुआ है. देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है.
मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री को लाल और पीला रंग पसंद है. उनका मनपसंद भोग नारियल, खीर, नैवेद्य और पंचामृत हैं.
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
- नवरात्रि के नौवें दिन यानी कि नवमी को सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर मां की फोटो या प्रतिमा स्थापित करें.
- इसके बाद की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं.
- अब फूल लेकर हाथ जोड़ें और मां का ध्यान करें.
- मां को माला पहनाएं, लाल चुनरी चढ़ाएं और श्रृंगार पिटारी अर्पित करें.
- अब मां को फूल, फूल और नैवेद्य चढ़ाएं.
- अब उनकी आरती उतारें.
- मां को खीर और नारियल का भोग लगाएं.
- नवमी के दिन चंडी हवन करना शुभ माना जाता है.
- इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है.
- अंत में घर के सदस्यों और पास-पड़ोस में प्रसाद बांटा जाता है.
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
मां सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता ।
तू भक्तो की रक्षक, तू दासों की माता ॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि ।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ॥
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम ।
जभी हाथ सेवक के सर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो न कोई विधि है ।
तू जगदम्बे दाती तू सर्वसिद्धि है ॥
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो ।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ॥
तू सब काज उसके कराती हो पूरे ।
कभी काम उस के रहे न अधूरे ॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया ।
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया ॥
सर्व सिद्धि दाती वो है भागयशाली ।
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली ॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा ।
महा नंदा मंदिर मैं है वास तेरा ॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता ॥
खास बातें
नई दिल्ली: नवरात्रि के सातवें दिन महा सप्तमी होती है. इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा का विधान है. शक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है. मान्यता है कि मां कालरात्रि ही वह देवी हैं जिन्होंने मधु कैटभ जैसे असुर का वध किया था. कहते हैं कि महा सप्तमी के दिन पूरे विधि-विधान से कालरात्रि की पूजा करने पर मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को किसी भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय नहीं सताता. इस बार महा सप्तमी 05 अक्टूबर को है.
कालरात्रि का स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर है. देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है. मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं. इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है. देवी कालरात्रि का रंग काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है. इनका वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है. देवी कालरात्रि का रंग काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है.
शास्त्रों में देवी कालरात्रि को त्रिनेत्री कहा गया है. इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं, जिनमें से बिजली की तरह किरणें प्रज्वलित हो रही हैं. इनके बाल खुले और बिखरे हुए हैं जो की हवा में लहरा रहे हैं. गले में विद्युत की चमक वाली माला है. इनकी नाक से आग की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनकी चार भुजाएं हैं. दाईं ओर की ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं. बाईं भुजा में मां ने तलवार और खड्ग धारण की है. शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि गधे पर विराजमान हैं.
मां कालरात्रि का पसंदीदा रंग और भोग
नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को सपमर्पित है. कालरात्रि को गुड़ बहुत पसंद है इसलिए महासप्तमी के दिन उन्हें इसका भोग लगाना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि मां को गुड़ का भोग चढ़ाने और ब्राह्मणों को दान करने से वह प्रसन्न होती हैं और सभी विपदाओं का नाश करती हैं. मां कालरात्रि को लाल रंग प्रिय है.
महा सप्तमी पूजा की विधि
दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व है. इस दिन से पूजा पंडालों में भक्तजनों के लिए देवी मां के द्वार खुल जाते हैं. महा सप्तमी के दिन कालरात्रि की पूजा इस प्रकार करें:
- पूजा शुरू करने के लिए मां कालरात्रि के परिवार के सदस्यों, नवग्रहों, दशदिक्पाल को प्रार्थना कर आमंत्रित कर लें.
- सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करें.
- अब हाथों में फूल लेकर कालरात्रि को प्रणाम कर उनके मंत्र का ध्यान किया जाता है.
मंत्र है- "देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विपादाधातु शुभानि सा न:".
- पूजा के बाद कालरात्रि मां को गुड़ का भोग लगाना चाहिए.
- भोग लगाने के बाद दान करें और एक थाली ब्राह्मण के लिए भी निकाल कर रखनी चाहिए.
तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण है सप्तमी
सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती है लेकिन रात में पूजा का विशेष विधान है. सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है. दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इस दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. इस दिन मां की आंखें खुलती हैं. कुंडलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे होते हैं महा सप्तमी के दिन सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं. देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी जरूर करनी चाहिए.
देवी कालरात्रि का ध्यान
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघ: पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृद्धिदाम्॥
देवी कालरात्रि के मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
देवी कालरात्रि के स्तोत्र पाठ
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
देवी कालरात्रि के कवच
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥
कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
खास बातें
नई दिल्ली: दुर्गा पूजा 10 दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है और हर एक दिन का अपना अलग महत्व है. आखिरी के चार दिन बेहद पवित्र माने जाते हैं और इन्हें पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. नवरात्रि के सातवें दिन महा पूजा की शुरुआत होती है जिसे महा सप्तमी के नाम से जाना जाता है. सप्तमी शब्द की उत्पत्ति सप्त शब्द से हुई है जिसका अर्थ है सात. सत्पमी की सुबह नवपत्रिका यानी कि नौ तरह की पत्तियों से मिलकर बनाए गए गुच्छे की पूजा कर दुर्गा आवाह्न किया जाता है. इन नौ पत्तियों को दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है. नवपत्रिका को सूर्योदय से पहले गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी के पानी से स्नान कराया जाता है. इस स्नान को महास्नान कहा जाता है.
महासप्ती और नवपत्रिका पूजा कब है?
नवरात्रि के सातवें दिन को महा सप्तमी कहा जाता है. महा सप्तमी के दिन ही नवपत्रिका पूजन होता है. इस बार महा सप्तमी और नवपत्रिका पूजा 05 अक्टूबर को है.
नवपत्रिका पूजा का महत्व
दुर्गा पूजा में महा सप्तमी के दिन नवपत्रिका या नबपत्रिका पूजा का विशेष महत्व है. नवपत्रिका का इस्तेमाल दुर्गा पूजा में होता है और इसे महासप्तमी के दिन पूजा पंडाल में रखा जाता है. बंगाल में इसे 'कोलाबोऊ पूजा' के नाम से भी जाना जाता है. कोलाबाऊ को गणेश जी की पत्नी माना जाता है. बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, असम, त्रिपुरा और मणिपुर में नवपत्रिका पूजा धूमधाम के साथ मनाई जाती है. इन इलाकों में पूजा पंडालों के अलावा किसान भी नवपत्रिका पूजा करते हैं. किसान अच्छी फसल के लिए प्रकृति को देवी मानकर उसकी आराधना करते हैं.
नवपत्रिका कैसे बनाई जाती है?
नौ अलग-अलग पेड़ों के पत्तों को मिलाकर नवपत्रिका तैयार की जाती है. इसे तैयार करने में केला, कच्वी, हल्दी, जौ, बेल पत्र, अनार, अशोक, अरूम और धान के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है. हर एक पत्ते को मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है.
केले के पत्ते: ब्राह्मणी का प्रतीक.
कच्वी (Colocasia) के पत्ते: मां काली का प्रतीक.
हल्दी के पत्ते: मां दुर्गा का प्रतीक.
जौ की बाली: देवी कार्तिकी का प्रतीक.
बेल पत्र: भगवान शिव का प्रतीक.
अनार के पत्ते: देवी रक्तदंतिका का प्रतीक.
अशोक के पत्ते: देवी सोकराहिता का प्रतीक.
अरूम के पत्ते: मां चामुंडा का प्रतीक.
धान की बाली: मां लक्ष्मी का प्रतीक
महास्पतमी के दिन होता है महास्नान
महास्पती के दिन महास्नान का विशेष महत्व है. इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के आगे शीशा रखा जाता है. शीशे पर पड़े रहे मां दुर्गा के प्रतिबिंब को स्नान कराया जाता है, जिसे महास्नान कहते हैं.
नवपत्रिका की पूजा विधि
- सभी नौ पत्तियों को एक साथ बांधकर उसे अलग-अलग पानी से नहलाया जाता है. सबसे पहले गंगाजल से स्नान कराया जाता है. इसके बाद बारिश के पानी, सरस्वती नदी का जल, समुद्र का जल, कमल वाले तालाब का पानी और आखिर में झरने के पानी से नवपत्रिका को स्नान कराया जाता है.
- स्नान के बाद नवपत्रिका को लाल पाड़ की साड़ी पहनाई जाती है. मान्यता है कि किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह नवपत्रिका को सजाना चाहिए.
- महास्नान के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को पंडाल में रखा जाता है.
- मां दुर्गा की प्राणप्रतिष्ठा के बाद षोडशोपचार पूजा की जाती है.
- नवपत्रिका को पूजा के स्थान पर ले जाकर चंदन और फूल अर्पित किए जाते हैं.
- फिर नवपत्रिका को गणेश जी के दाहिने ओर रखा जाता है.
- आखिर में मां दुर्गा की महा आरती के बाद प्रसाद वितरण किया जात है.
नई दिल्ली: Navratri Day 6 maa Katyayani: नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा की जाती है, जो कि इस बार 4 अक्टूबर को है. मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से शादी में आ रही बाधा दूर होती है और भगवान बृहस्पति प्रसन्न होकर विवाह का योग बनाते हैं. यह भी कहा जाता है कि अगर सच्चे मन से मां की पूजा की जाए तो वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता कात्यायनी की उपासना से भक्त को अपने आप आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां मिल जाती हैं. साथ ही वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है. मां कात्यायनी की उपासना से रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं.
कौन हैं मां कात्यायनी
मान्यता है कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था. इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है. मां कात्यायनी को ब्रज की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी. कहते हैं कि मां कात्यायनी ने ही अत्याचारी राक्षस महिषाषुर का वध कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त कराया था.
मां कात्यायनी का पसंदीदा रंग और भोग
मां कात्यायनी को पसंदीदा रंग लाल है. मान्यता है कि शहद का भोग पाकर वह बेहद प्रसन्न होती हैं. नवरात्रि के छठे दिन पूजा करते वक्त मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाना शुभ माना जाता है.
मां कात्यायनी की पूजा विधि
- नवरात्रि के छठे दिन यानी कि षष्ठी को स्नान कर लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें.
- सबसे पहले घर के पूजा स्थान नया मंदिर में देवी कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
- अब गंगाजल से छिड़काव कर शुद्धिकरण करें.
- अब मां की प्रतिमा के आगे दीपक रखें
- अब हाथ में फूल लेकर मां को प्रणाम कर उनका ध्यान करें.
- इसके बाद उन्हें पीले फूल, कच्ची हल्दी की गांठ और शहद अर्पित करें.
- धूप-दीपक से मां की आरती उतारें.
- आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करें.
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
मां कात्यायनी की आरती
जय-जय अम्बे जय कात्यायनी
जय जगमाता जग की महारानी
बैजनाथ स्थान तुम्हारा
वहा वरदाती नाम पुकारा
कई नाम है कई धाम है
यह स्थान भी तो सुखधाम है
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी
हर जगह उत्सव होते रहते
हर मंदिर में भगत हैं कहते
कत्यानी रक्षक काया की
ग्रंथि काटे मोह माया की
झूठे मोह से छुडाने वाली
अपना नाम जपाने वाली
बृहस्पतिवार को पूजा करिए
ध्यान कात्यायनी का धरिए
हर संकट को दूर करेगी
भंडारे भरपूर करेगी
जो भी मां को 'चमन' पुकारे
कात्यायनी सब कष्ट निवारे
कालरात्रि माँ तेरी जय॥