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आपने कई भिखारियों को भीख मांगते हुए देखा होगा जो अलाग-अलग तरीकों से भीख मांगते हैं और कई तो इतने आधुनिक भिखारी है जो मशीन के साथ भीख मांगते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कोई लड़की सम्बन्ध बनाने की भीख मांगती हो। जी हाँ, यह लड़की पाने पार्टनर से रोज सम्बन्ध बनाने के लिए मिन्नतें करती हैं। इसका कारण जान आप अचरज में पड़ जाएंगे कि क्या ऐसा भी हो सकता हैं। तो आइये जानते है इसके पीछे की वजह।
अमेरिका की 23 वर्षीय अमांडा नाम की महिला एक अजीबो गरीब बीमारी से पीड़ित है। उसकी बीमारी का आलम तो यह है कि जब तक वो सेक्स नहीं कर लेती तब तक उसे चैन नहीं मिलता है। इस बीमारी में अमांडा को अक्सर पैर और पेट के अंदरुनी निचले हिस्से में तेज दर्द होता है जिसे कम करने के लिए या फिर उससे राहत पाने के लिए उसे हर रोज सेक्स करना पड़ता है।
सेक्स करने से परेशान होकर जब उसका पार्टनर उसे मना करता है तो वो सेक्स के लिए अपने पार्टनर के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगती है। अमांडा जननांग उत्तेजना विकार यानी पीजीएडी नाम की अजीबो-गरीब बीमारी से पीड़ित है।
दुनिया में ऐसे कई स्थान हैं जो एडल्ट डेस्टिनेशन के लिए मशहूर हैं। इस आर्टिकल में हम उन देशों के नाम बताने वाले हैं जो सबसे ज़्यादा सेक्सुअली क्रियाओं में सक्रिय होने के लिए जाने जाते हैं। सेक्सुअली एक्टिव होने के मामले में ये पूरी दुनिया के शीर्ष देश हैं। ये लिस्ट एक रिसर्च के बाद जारी की गई है जो कंडोम कंपनी के सर्वे और नतीजों पर आधारित है। वो लिस्ट चेक करने के लिए पढ़ें ये लेख।
स्पेन
यौन इच्छा को पूरा करने और संतुष्टि के मामले में स्पेन दुनिया का शीर्ष देश है। ये गर्म और ट्रॉपिकल देश दुनियाभर में अपनी बीच पार्टियों के लिए मशहूर है। 2018 में ही हुई रिसर्च में स्पेन सेक्सुअली एक्टिव देशों की लिस्ट में सबसे आगे रहा है।
स्विट्ज़रलैंड
स्विट्ज़रलैंड दुनिया का ना सिर्फ सबसे ज़्यादा सेक्सुअली एक्टिव देश है बल्कि ये यौन क्रियाओं की संतुष्टि के मामले में भी आगे है। ये देश अपने कई उदार फैसलों के लिए भी जाना जाता है उनमें से एक है देश में वैश्यावृत्ति को वैध करना।
ग्रीस
ग्रीस भी दुनिया के सबसे ज़्यादा सेक्सुअली एक्टिव देशों की लिस्ट में शामिल है। इस देश के लोग इस बात को जानने में विश्वास रखते हैं कि उनका पार्टनर चाहता क्या है और उसकी ज़रूरतें क्या हैं। यहां समंदर के पास के कुछ डेस्टिनेशन अपने पार्टनर के साथ वक़्त बिताने के लिए परफेक्ट माहौल देते हैं।
सेक्सुअली एक्टिव देशों की लिस्ट में मेक्सिको चौथे स्थान पर है। ये रंग मिज़ाजी वाला देश अपने वैध वैश्यावृत्ति के लिए जाना जाता है।
ब्राज़ील
यौन क्रियाओं में सक्रियता के मामले में ब्राज़ील भी पीछे नहीं और वो भी इस लिस्ट में शामिल है। रिसर्च के मुताबिक, इस देश की महिलाएं सबसे ज़्यादा सक्रिय मानी गयी हैं।
चीन
रिसर्च के अनुसार, चीन सेक्सुअली संतुष्ट होने की सूची में जगह बना पाया है। इसके पीछे देश की बड़ी जनसंख्या की भूमिका है।
नाइजीरिया
नाइजीरिया भी दुनिया के सबसे ज़्यादा सेक्सुअली सक्रिय देशों में जाना जाता है। इस देश में किशोर उम्र वाले भी यौन क्रियाओं में सम्मिलित पाए जाते हैं। रिसर्च के मुताबिक ये पाया गया है कि इस देश के 25 प्रतिशत किशोर सेक्सुअली एक्टिव हैं। यहां 10 से 15 साल के बच्चे इस काम में सक्रिय भाग लेना शुरू कर देते हैं। वहीं उन्हें सेक्स एजुकेशन बिल्कुल नहीं दी जाती है, जो उनके लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से गलत है।
भारत
2018 में जारी की गई सेक्सुअल एक्टिव देशों की लिस्ट में भारत का नाम भी शामिल है। चीन की तरह भारत की आबादी ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। यहां कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां यौन शिक्षा का प्रबंध नहीं किया गया। ना ही उन्हें सुरक्षित यौन संबंधों की जानकारी है और ना ही प्रोटेक्शन के बारे में शिक्षा दी गई है। जिसकी वजह से स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां भी लोगों को देखने को मिली। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एडलट्री को वैध कर दिया है।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, आंध्रप्रदेश के पूर्व राज्यपाल और पूर्व केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री नारायण दत्त तिवारी नहीं रहे. उन्होंने लंबी बीमारी के बाद 93 साल की उम्र में दिल्ली के एक निजी अस्पताल में आखिरी सांस ली. वो लंबे समय से अस्पताल में भर्ती थे.
भारतीय राजनीति के वो संभवतः सबसे वयोवृद्ध और विवादास्पद नेताओं में से थे. दो-दो राज्यों का मुख्यमंत्री पद संभालने के साथ साथ प्रशासन, अर्थनीति, कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गहरी समझ रखने वाले नेताओं में भी वो अग्रणी थे. हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाओं पर उनका कमांड था और बाज़ मौकों पर अपने उर्दू ज्ञान का मुज़ाहिरा भी वो कर देते थे. इलाहाबाद छात्र संघ के पहले अध्यक्ष से लेकर केंद्र में योजना आयोग के उपाध्यक्ष, उद्योग, वाणिज्य पेट्रोलियम, और वित्त मंत्री के रूप में तिवारी ने काम किया. तिवारी ने 1995 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई. सफल नहीं रहे. दो साल बाद ही लौट आए. कहा जाता है कि अगर वो उस समय नैनीताल सीट से लोकसभा का चुनाव नहीं हारते तो निश्चित रूप से देश के प्रधानमंत्री होते. उन्हें राष्ट्रपति पद का दावेदार भी माना जाता था.
एनडी तिवारी अपनी सधी हुई और दूर तक मार करने वाली राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा, और अपने रंग-रूप, झूमती हुई अदा, मीठी-सुरीली ज़बान और 50 और 60 के दशकों के हिंदी फ़िल्म नायकों सी कमनीयता से अभिभूत रहने वाली भावना से उद्दीप्त थे.
"साब सीएम तो तिवारीजी ही थे"
युवा जीवन से लेकर अधेड़ावस्था और वृद्धावस्था में उनकी कथित 'आशिकमिज़ाजी' और उनकी 'मित्रताओं' के कई किस्से राजनीतिक गलियारों में उड़ते बिखरते रहे. तिवारी ऐसे क़िस्सों से बेख़बर रहने का नाटक भी बड़ी अदा से करते थे. इसी निराली अदाकारी का प्रदर्शन वो अक्सर राजनीतिक मामलों में भी करते थे. ख़ासकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्रित्व काल में तो उन्होंने अपनी इस अदा से कई आकांक्षियों की राजनीतिक कामनाओं और उम्मीदों का ध्वंस किया. तो कईयों पर उपकार भी किए. यह अकारण नहीं है कि उत्तराखंड निर्माण से नाक-भौं सिकोड़ने वाले नेता रह चुके तिवारी, राज्य के सबसे पसंदीदा राजनीतिक व्यक्तित्व माने जाते रहे हैं.
और तो और आज भी अगर आप गांव शहर या गांव- कहीं भी आम लोगों से तिवारी के बारे में उनकी राय पूछें तो वे यही कहते मिलेंगे कि "साब सीएम तो तिवारीजी ही थे, उनके दौर में कराए गए काम भी आज दिख रहे हैं बाकी तो शिलान्यास और लोकार्पण और उद्घाटन ही हैं" और ये भी कि "राजनीतिक विरोधियों से दोस्ती गांठना तो कोई तिवारी से सीखे." मित्र विपक्ष का निर्माण तिवारी के कार्यकाल की एक अलग ही विशेषता थी.एनडी तिवारी उत्तराखंड की पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया बनाए गये थे. चुनावी लड़ाई के 'सेनापति' तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत थे लेकिन जब राज्य का पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने जीता तो कांग्रेस आलाकमान ने रावत को भयंकर हैरान करते हुए तिवारी को दिल्ली से रवाना कर दिया.
तिवारी राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने पूरे पांच साल सरकार चलाकर दिखा दी. इससे पहले अंतरिम विधानसभा के पौने दो साल की अवधि में बीजेपी के दो मुख्यमंत्री हुए. तिवारी के पांच साल के बाद बीजेपी लौटी तो वहां भी खंडूरी और निशंक के बीच भीषण खींचतान होती रही और कुर्सी पर आवाजाही बनी रही. उसके बाद कांग्रेस की बारी आई तो बहुगुणा और रावत के बीच सत्ता का खेल चला. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई. और 2017 के चुनाव में बीजेपी को सत्ता मिली और एक साल से ज़्यादा के शासनकाल में त्रिवेंद्र सिंह रावत तो अब तक अपनी कुर्सी बचाने में सफल रह पाए हैं हालांकि पार्टी में खींचतान की अंडरकरेंट इतिहास दोहराने को बेकरार नज़र आती है.
सबको लेकर चलने वाले तिवारी
तिवारी के लिए बुढ़ापे में उत्तराखंड की कुर्सी किसी सौगात से कम न थी. उत्तर प्रदेश के तीन तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बाद और वहां नोएडा जैसे महानगरों के निर्माण में योगदान के बाद मीडिया और अपने प्रशंसकों के बीच विकास पुरुष की छवि हासिल कर चुके थे. इसी छवि के सहारे उत्तराखंड में वो टिके रहे, लेकिन उनका पांच साल का शासनकाल सबको ख़ुश रखने के लिए ही सबसे ज़्यादा याद किया जाएगा. कहते हैं कि जो तिवारी जी के पास पहुंच जाए और कभी ज़ोर से तो कभी हल्के से भी कुछ मांग ले तो खाली हाथ नहीं लौटता था. उस दौर में खूब लालबत्तियां बांटी गईं. तिवारी को किसी की नाराज़गी की भनक लगने की देर थी, वो पहुंच जाते उसके पास.
तिवारी मीडिया हल्कों में भी लोकप्रिय हो गए. सीधे रिपोर्टर का हाथ पकड़ लेते या कंधे पर हाथ रख देते. होली दिवाली आती तो उमंग में आ जाते. होली में गीत गाते झूमते और दिवाली में भी मौका लगते ही ठुमकने लगते. तिवारी की यही 'ठुमक ठुमक' अदा, शेरो शायरी, कुमाऊंनी लोकगीतों और देशभक्ति के गीतों की झड़ी और मौका लगने पर महात्मा गांधी की याद, और उस याद में भावुकता के आंसू, अचानक भर्रा जाने वाला गला......ये सब चीज़ें तिवारी को एक आकर्षक सेलेब्रिटी बनाती थीं. कई बार लोग असहज हो जाते लेकिन तिवारी अपनी छायावादी और रूमानी थपकी देकर आगे बढ़ जाते.
सियासत के माहिर खिलाड़ी
उत्तराखंड की सियासी धमाचौकड़ी में बूढ़े तिवारी बड़े खिलाड़ी थे. पांच साल में शायद ही कोई दिन ऐसा होगा जब उनपर हमले का कोई सिरा न खुला रहता. लेकिन तिवारी ख़तरा भांपने के माहिर थे, सूंघ लेते और संकट का सिरा बंद कर देते. उनकी इस चतुराई का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उत्तराखंड के मशहूर गायक- गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी के गाए एक गीत नौछमी नारैण और इस पर आधारित वीडियो अल्बम भी तिवारी को पांच साल पूरे करने से नहीं रोक पाया. कहा जाता है कि ये गीत तिवारी की राजनीतिक कार्यशैली और निजी जीवन की विसंगतियों पर एक कटाक्ष था. इस वीडियो गीत में मुख्य किरदार को पीली पोशाक पहने, बंसी थामे, मोर मुकुट बांधे और कुछ रंगबिरंगी पोशाकें पहनीं महिला किरदारों के साथ नाचता गाता दिखाया गया है.
उम्र के अंतिम पड़ाव और तिवारी का कबूलनामा
2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की विदाई हुई और बीजेपी का आगमन. तिवारी नई रमणीयताओं और नये भूगोलों की थाह लेने दिल्ली निकल चले. उन्हें आंध्रप्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया. लेकिन सेक्स स्कैंडल के आरोपों में घिर गए. उनकी वीडियो क्लिपिंग भी आ गई. तिवारी ने इसे राजनीतिक साज़िश बताते हुए खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर 2009 में राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया. देहरादून लौट आए. 2008 में उनके खिलाफ एक अदालती मामला सुर्खी बन गया. रोहित शेखर ने कहा कि वो तिवारी के बेटे हैं और वो उनके जैविक पिता हैं. तिवारी अपनी ढली उम्र में भरसक मोहक अदाएं बनाते बनाते पहले तो नानुकुर करते रहे लेकिन रोहित की लड़ाई प्रामाणिक और अकाट्य थी.
डीएनए जांच से रक्त संबंध साबित हो गए. आखिरकार तिवारी को उन्हें अपना बेटा और उनकी मां उज्जवला को अपनी पत्नी का दर्जा देना ही पड़ा. तिवारी परिवार के साथ लखनऊ से नैनीताल आना जाना करते रहे और रोहित शेखर को राजनीतिक विरासत सौंपने का संकल्प लिया.
91 साल की उम्र में नारायण दत्त तिवारी, बेटे का राजनीतिक भविष्य संवारने के लिए ऐसे ठिकाने पहुंचे थे जिसकी कम से कम उन जैसे सेक्युलर और गांधीवादी कहे जाने वाले नेता से अपेक्षा नहीं की जा सकती थी. जर्जर शरीर और कांपते हाथों के साथ, अपनी पत्नी उज्ज्वला और बेटे रोहित का हाथ थामे तिवारी, जब दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के सामने एक तरह से "पेश" किए गये तो चर्चा तो जो हुई सो हुई, बीजेपी पर भी आरोप लगे कि उसने बूढ़े अशक्त व्यक्ति का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की.
भारतीय राजनीति के कई दौर और कई शेड्स देखने वाले और इनमें से कुछ दौरों के केंद्र में और कुछ शेड्स के निर्माता रह चुके तिवारी के बारे में जानकारों का मानना है कि अगर शारीरिक रूप से इतने अशक्त, लाचार और स्मृतिविहीनता का शिकार न होते तो आज के राजनीतिक हालात पर उनके बयान और मौजूदगी भी ग़ौरतलब होती.
::/fulltext::फेस्टिव सीजन शुरु हो चुका है, लोगों ने तो त्योहार में नया कपड़े पहनने के लिए अभी से ही शॉपिंग शुरु कर दी है। कई लोग तो अभी से नए कपड़े खरीदकर ले भी आएं होंगे। लेकिन नए कपड़ों की शॉपिंग करने के बाद क्या खरीदने आपने इन्हें धोया? जी हां आपने सही सुना, अब आप सोच रही होंगे कि नए कपड़ों को खरीदने के बाद इन्हें धोने की क्या जरुरत है? हम आपको बता रहें कि अगर आप भी नए कपड़ों को बिना धोए पहन लेते हैं, तो ऐसा करने से आपकी स्किन इफेक्ट हो सकती है।
कैसे कपड़ों से पहुंचता है इंफेक्शन
अक्सर आपने देखा ही होगा कि शॉपिंग मॉल में आप से पहले नए कपड़ों को बहुत लोग ट्रायल रुम में पहनकर देखते हैं। जिस मॉल या शॉप से आप कपड़े खरीदते हैं, वहां भी वे कपड़े पहुंचने से पहले कई स्थानों से होकर गुजरते हैं। क्या आप जानते हैं कि कपड़ों को केमिकल से कलर करने के बाद उन्हें धोया या साफ नहीं किया जाता है। ऐसे में केमिकल कलर के कुछ अंश कपड़ों में रह जाते हैं। जो आपके शरीर के सम्पर्क में आने से आपको संक्रमित कर सकता है।
जब आप बिना धोए नए कपड़ों को पहनते हैं तो स्किन इंफेक्शन के साथ-साथ कई अन्य बीमारियों का खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि जब भी आप नए कपड़े खरीदें, तो उसे एक बार जरूर धो लें।
अक्सर लोग कपड़े खरीदने के लिए बाहर से आते है जिसकी वजह से वो धूल, प्रदूषण, पसीने की वजह से बैक्टीरिया के सम्पर्क में आते है। लोग ऐसे ही कपड़ों को ट्राय कर लेते है जिस वजह से बैक्टीरिया कपड़ों में ही रह जाते हैं।
आपको नहीं मालूम होता है कि आपसे पहले किस ने मॉल में या ट्रायल रुम में कपड़ों को ट्राय किया है। हो सकता हो कि आप जिस कपड़ें को ट्राय कर रहें हो, आपसे पहले जिसने उसे ट्राय किया हो उसे कोई स्किन डिजीज हो। जब आप उन्हीं कपड़ों को ट्राई करते हैं, तो उसके पसीने या इंफेक्शन के जर्म आपकी त्वचा पर आ जाते हैं। इससे आपको स्किन इंफेक्शन का शिकार होना पड़ता है।
जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील होती है। उन्हें तो हमेशा नया कपड़ा धोकर ही पहनना चाहिए। छोटे बच्चों को बिना धोए कभी भी नए कपड़े न पहनाएं। बच्चों की त्वचा बहुत अधिक संवेदनशील होती है, इसलिए बच्चों के लिए लाने वाले कपड़ों को गर्म पानी में धोने के बाद ही उन्हें पहनाएं।
आजकल कई ब्रांड कपड़ों की कलरिंग के लिए डाई और केमिकल कलर का इस्तेमाल करते हैं। जो नेचुरल कलर होते हैं उनका कोई रंग नहीं होता है। इसमें इन कलर से कोई नुकसान नहीं होता है लेकिन कपड़ों की रंगाई, छपाई और डाई जैसी क्रियाओं की वजह से कपड़ों में कई सारे केमिकल्स लगाए जाते हैं। ऐसे में इन केमिकल्स की कुछ मात्रा कपड़ों में रह जाते है और बिना धोएं डायरेक्ट इन कपड़ों को पहनने की वजह से स्किन एलर्जी का कारण बन सकती है।