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लच्छू जी महाराज (Lachhu Maharaj) को याद करते हुए गूगल ने डूडल (Google Doodle) बनाया है. लच्छू महाराज बेहतरीन तबला वादन के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं. लच्छू जी महाराज ने कई बॉलिवुड फिल्मों में काम किया था.
खास बातें
नई दिल्ली: बनारस घराने के मशहूर तबला वादक लच्छू जी महाराज (Lachhu Maharaj) के जन्मदिन पर गूगल ने डूडल (Google Doodle) बनाया है. लच्छू महाराज का आज 74वां जन्मदिन है. गूगल के डूडल (Google Doodle) में आप लच्छू महाराज को देख सकते हैं. लच्छू जी महाराज का जन्म 16 अक्टूबर 1944 में बनारस में हुआ था. उनका पूरा नाम लक्ष्मी नारायण सिंह था. लच्छू जी महाराज (Lachhu Maharaj) ने बेहद कम उम्र में ही तबला (Tabla) और बांसुरी बजाना शुरू कर दिया था. आज लच्छू महाराज को पूरी दुनिया महान तबला वादक के रूप में जानती है. उनकी कला के लिए उन्हें पद्मश्री के लिए नामित किया गया था. लेकिन उन्होंने ये सम्मान नहीं स्वीकार किया था. उन्होंने कहा था कि दर्शकों के प्यार से बढ़कर उनके लिए और कुछ भी नहीं है. आज लच्छू जी महाराज की जयंती (Lachhu Maharaj Birth Anniversary) के मौके पर हम आपको उनके जीवन से जुड़ी 5 खास बातें बताने जा रहे हैं.
Lachhu Maharaj के जीवन से जुड़ी 5 खास बातें
1. लच्छू महाराज (Lachhu Maharaj) का जन्म 16 अक्टूबर 1944 में बनारस में हुआ था. उनका पूरा नाम लक्ष्मी नारायण सिंह था.
2. लच्छू जी महाराज बनारस घराने में जन्मे थे, उनके पिता का नाम वासुदेव महाराज था. लच्छू जी महाराज कुल 12 भाई-बहन थे. लच्छू की बहन एक्टर निर्मला ऐक्टर गोविंदा की मां हैं.
6. लच्छू जी महाराज का निधन हार्ट अटैक के कारण हुआ था. 72 साल की उम्र में 27 जुलाई 2016 को उन्होंने आखिरी सांस ली थी. उनका अंतिम संस्कार बनारस के मनिकर्णिका घाट पर हुआ था.
भारत अपने त्योहारों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां हर महीने कोई न कोई त्योहार ज़रूर मनाए जाते हैं। चाहे पर्व छोटा हो या बड़ा, लोग पूरे उत्साह और जोश के साथ इन्हें मनाते हैं। हालांकि इन त्योहारों का मनाने का इनका तरीका अलग होता है लेकिन चारों ओर इनकी धूम देखने लायक होती है।
प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी अक्टूबर के माह में शारदीय नवरात्रि का उत्सव मनाया जा रहा है। एक बार फिर माता रानी अपने भक्तों को दर्शन देने और उनके सभी कष्टों का निवारण करने आयी हैं। हर कोई पूरे श्रद्धा भाव से माता की आवभगत में लगा हुआ है। पूरे नौ दिनों का यह पर्व बहुत ही पवित्र माना जाता है जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है। सभी अपने अपने तरीके से माता का स्वागत करते हैं।
गुजरात में लोग नौ दिनों तक लोग गरबा रास करते हैं तो वहीं पश्चिम बंगाल में यह दुर्गा पूजा के रूप में प्रसिद्ध है फिर भी सभी का उद्देश्य एक ही होता है और वह है देवी माँ को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना।
शारदीय नवरात्रि हर साल अक्टूबर माह के शुक्ल पक्ष को पड़ती है (इसे देवी पक्ष भी कहा जाता है)। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 10 अक्टूबर को हुई है जो 18 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगी। 19 अक्टूबर को लोग विजयदशमी का त्योहार मनाएंगे। इस पर्व को मनाने का सबका तरीका अलग होता है लेकिन हर जगह इसकी धूम पूरे नौ दिनों तक रहती है।
नौ दिनों के बाद दशमी पर दशहरा या बिजोय दशमी मनाया जाता है इस दिन माता दुर्गा की प्रतिमा को नदी में विसर्जित किया जाता है। नवरात्रि के हर एक दिन का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है। आइए जानते हैं देश के कोने कोने में कैसे मनाई जाती है नवरात्रि।
पश्चिम बंगाल और दूसरे पूर्वी राज्यों में नवरात्रि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यहां यह पर्व छठे दिन से बोधन (माता के आह्वान) से शुरू होता है और दसवें दिन तक चलता है। इस जगह पर देवी दुर्गा को बेटी के रूप में पूजा जाता है जो अपने ससुराल से मायके आती है।
गुजरात में मिट्टी के घड़े को गरबा के प्रतीक के रूप में रखा जाता है जिसके चारों ओर लोग गरबा खेलते हैं। यह एक प्रकार का परंपरागत नृत्य होता है। गरबा के अलावा नवरात्रि के दौरान गुजरात में डांडिया रास भी काफी चर्चित है।
नवरात्रि आरंभ होते ही यहां पर परंपरागत डॉल्स दिखने लगती हैं। इन डॉल्स को 7, 9 या 11 के ऑड नंबर में लगाया जाता है। नवरात्र के दौरान इन गुड़ियों की पूजा की जाती है। लोग अपने घरों में दिए जलाते हैं और भजन भी गाते हैं।
जहां पश्चिम और उत्तर राज्यों में इस त्योहार को लोग धूम धड़ाके के साथ मनाते हैं, वहीं दक्षिण राज्य में इस पर्व को बहुत ही साधारण तरीके से मनाया जाता है।फूलों से सात सतह से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाई जाती है। बतुकम्मा को महागौरी के रूप में पूजा जाता है।
गुजरात की तरह महाराष्ट्र में भी नवरात्रि में गरबा का आयोजन किया जाता है लेकिन इस दौरान यहां एक अनोखी परंपरा होती है जिसमें विवाहित महिलाएं एक दूसरे को अपने घर आने का न्योता देती हैं और उन्हें सुहाग की चीज़ें जिसे सिन्दूर, बिंदी, कुमकुम आदि से सजाती हैं।
केरल में नवरात्रि केवल आखिरी के तीन दिनों में मनाई जाती है। यहां लोग अपनी किताबें माँ सरस्वती के चरणों में रखकर उनसे ज्ञान और सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। यहां के लोग इसे बहुत ही शुभ मानते हैं। आमतौर पर नवरात्रि मनाने का सबका अपना अपना एक अलग तरीका है लेकिन यह त्योहार हर भारतीय के दिल के करीब है। जहां बिहार और उत्तर प्रदेश में दशहरे पर रामलीला का आयोजन किया जाता है वहीं पश्चिम बंगाल में विजय दशमी पर एक दूसरे के घर जाकर बधाइयां देते हैं और आपसी प्रेम को बढ़ाते हैं।