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अक्सर हम लोग घर में पालतू जानवर रखते हैं. इनकी देखरेख पर भी हमें काफी खर्च करना पड़ता है. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि आपका पालतू जानवर आपको बिना कुछ किये अमीर बना दे. वो भी करोड़पति? शायद नहीं, लेकिन ऐसा हुआ है.
टबाथा बंडसिन एक वेटर थीं. वह एक आम आदमी की तरह ही अपने खर्च और जरूरतों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करती थी. उनके पास एक बिल्ली थी, जिसका नाम Tardar Sauce है. हालांकि अब यह ग्रंपी कैट के नाम से फेमस है.
एक फोटो ने दिखाई राह:
टबाथा ने Inc.com को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि 22 सितंबर, 2012 को उनके भाई घर आए हुए थे. भाई ने उनकी बिल्ली का एक फोटो लिया और इसे रेडइट पर पोस्ट कर दिया. फोटो पोस्ट होते ही 30 हजार से भी ज्यादा लोगों ने इसे वोट दिया. इसके साथ ही एक बहस भी शुरू हो गई कि कोई बिल्ली इतना रुख लुक कैसे दे सकती है. आशंका जताई गई कि फोटो को फोटोशॉप के जरिये बनाया गया है.
इस बात का सच बताने के लिए टबाथा ने अपनी बिल्ली का एक वीडियो यूट्यूब पर डाला. उनकी बिल्ली के पहले वीडियो को ही 24 घंटे के भीतर 15 लाख व्यूज मिले. इसके बाद उनके पास टी-शर्ट, मेमेज समेत अन्य मर्चंडाइज के लिए कॉल आने लगे. और इस तरह उन्होंने यूट्यूब पर वीडियो डालने के साथ ही ग्रंपी कैप नाम से एक वेबसाइट भी शुरू कर दी.
टेलीग्राफ यूके की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रंपी कैट इतना फेमस हुई कि 2014 में इसने हॉलीवुड सेलेब्रिटी ग्वानेथ पाल्त्रो को भी कमाई के मामले में पीछे छोड़ दिया. इस साल ग्रंपी कैट ने 10 करोड़ डॉलर की कमाई की. जब कि ग्वानेथ ने 2.2 करोड़ डॉलर कमाए.
टबाथा ने 2012 में ही वेट्रेस की नौकरी छोड़ दी. आज वह एक करोड़पति कारोबारी महिला हैं. वह ग्रंपी कैट लिमिटेड नाम से कंपनी चलाती हैं. यह कंपनी ग्रंपी कैट टी-शर्ट, कप, मर्चंडाइज और अन्य चीजें बनाती हैं. न ही ग्रंपी कैट की पॉप्युलैरिटी कम हुई है और न ही इस कंपनी की कमाई. लोग आज भी इस बिल्ली के वीडियो देखना पसंद करते हैं. (Photo: Reuters)
पुरातत्व विभाग ने कोहिनूर (Kohinoor) को लेकर दायर आरटीआई का जवाब दिया है.
नई दिल्ली : दुनिया भर में चर्चित कोहिनूर हीरे (Kohinoor) को लेकर चौंकाने वाली बात सामने आई है. महाराजा दिलीप सिंह ने कोहिनूर को अंग्रेजों के 'हवाले' नहीं किया था, बल्कि खुद इस बहुमूल्य हीरे को इंग्लैड की महारानी को 'समर्पित' किया था. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने खुद एक आरटीआई के जवाब में यह जानकारी दी है. दरअसल, लुधियाना के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी कि क्या 108 कैरेट के कोहिनूर हीरे (Koh-i-Noor) को अंग्रेजों को उपहार में दिया गया था या किन्हीं अन्य कारणों से इसे हस्तांतरित किया गया था. सामाजिक कार्यकर्ता रोहित सभरवाल ने कहा कि मैंने करीब एक महीने पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में यह आरटीआई डाली थी. हालांकि मुझे नहीं पता था कि मेरी आरटीआई को ASI को भेज दिया गया है. अब एएसआई ने सवालों के जवाब दिये हैं.
एएसआई का कहना है कि ‘राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखे रिकॉर्ड के मुताबिक लॉर्ड डलहौजी और महाराजा दिलीप सिंह के बीच 1849 में लाहौर संधि हुई थी, जिसके तहत लाहौर के महाराजा ने कोहिनूर हीरा (Kohinoor) को इंग्लैंड की महारानी को समर्पित कर दिया था’. कोहिनूर (Koh-i-Noor) का मतलब ‘प्रकाश का पर्वत’ होता है और यह बड़ा, रंगहीन हीरा है जो 14वीं सदी की शुरुआत में दक्षिण भारत में पाया गया था. औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों के पास चले गए इस बेशकीमती हीरे के मालिकाना हक को लेकर विवाद है और भारत सहित कम से कम चार देश इस पर अपना दावा जताते हैं. जवाब में संधि के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है कि ‘‘बेशकीमती पत्थर कोहिनूर (Kohinoor) को महाराजा रणजीत सिंह ने शाह सुजा उल मुल्क से लिया था जिसे लाहौर के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी को समर्पित कर दिया’’. जवाब के मुताबिक संधि से प्रतीत होता है कि ‘‘दिलीप सिंह की इच्छा पर अंग्रेजों को कोहिनूर नहीं सौंपा गया था. संधि के समय दिलीप सिंह नाबालिग थे.’’
केंद्र और एएसआई के जवाब में विरोधाभास :
हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने आरटीआई में जो जवाब दिया है, उसमें और केंद्र सरकार के जवाब में विरोधाभास है. दरअसल, केंद्र सरकार ने अप्रैल 2016 में उच्चतम न्यायालय में कहा था कि कोहिनूर (Kohinoor) की अनुमानित कीमत 20 करोड़ डॉलर से ज्यादा है जिसे न तो चुराया गया था, न ही अंग्रेज शासक उसे ‘‘जबर्दस्ती’’ ले गए थे, बल्कि पंजाब के पूर्ववर्ती शासकों ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया था. अब ASI का कहना है कि लाहौर के महाराजा ने इसे खुद 'समर्पित' किया था.
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