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नई दिल्ली: धूम्रपान करने वाले हर व्यक्ति के शरीर में एक साथ 7000 से ज्यादा हानिकारक केमिकल्स का असर पड़ता है. इसमें से 250 से ज्यादा केमिकल बहुत ज्यादा खतरनाक और 69 केमिकल कैंसर का कारण बनते हैं. जी हां यह बात एक रिसर्च में सामने आई है. इन्हीं हानिकारक केमिकल्स की वजह से भारत में सबसे ज्यादा मौतें तंबाकू से होती हैं. धूम्रपान और तंबाकू से क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डीजीज (सीओपीडी), हृदयधमनी रोग (सीवीडी) और फेफड़े के कैंसर होता है. सीओपीडी का एकलौता इलाज है धूम्रपान बंद करना. इसी के साथ यह मायोकार्डियल इन्फाक्रशन फेफड़े का कैंसर का खतरा कम करने का भी सबसे असरदार तरीका है. भारत में कैंसर के सभी मामलों में 30 फीसदी से ज्यादा मुंह और फेफड़ों के कैंसर के मामले हैं. भारत में मुंह के कैंसर के लगभग एक-चैथाई मामलों के पीछे तम्बाकू के इस्तेमाल का हाथ है.
तम्बाकू के धुएं में 40 से अधिक रसायनों को कैंसरकारी पाया गया है. धूम्रपान से आपके फेफड़े और श्वसन तंत्र के अन्य हिस्से भी क्षतिग्रस्त होते हैं, आपका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और आपके शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है. यह तम्बाकू के महज कुछ हानिकारक प्रभाव हैं. धूम्रपान करने से क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) का सबसे बड़ा खतरा रहता है. लगातार धूम्रपान करने वाले हर चार में से कम से कम एक व्यक्ति को सीओपीडी होने का खतरा रहता है. दमा और सीओपीडी, दोनों में फेफड़ों की कार्यशीलता में तेजी से गिरावट होती है. धूम्रपान नहीं करने वालों की अपेक्षा धूम्रपान करने वालों को सीओपीडी होने का तीन गुणा ज्यादा खतरा रहता है. धूम्रपान करने वाले 40 फीसदी लोगों को स्थायी ब्रांकाइटिस हो जाता है और उनमें से आधे (20 फीसदी) लोग सीओपीडी के शिकार हो जाते है. आजीवन धूम्रपान करने वालों को अपने जीवनकाल में सीओपीडी होने की 50 फीसदी संभावना रहती है.
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रायपुर। राजधानी में तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम सिर्फ कागजों में ही चल रहा है। तीन साल में तंबाकू नियंत्रण पर स्वास्थ्य विभाग ने 45 लाख रुपए खर्च किया, लेकिन हकीकत यह है कि 84 स्कूल व कॉलेजों में ही कार्यक्रम कर पाए और सिर्फ 600 लोगों को ही तंबाकू से दूर कर पाए। वहीं एक साल में सिर्फ 144 दुकानदारों पर ही कार्रवाई की गई है। - जिले में तंबाकू नियंत्रण के लिए केंद्र बनाया गया है। साल भर में तंबाकू के नशे से दूर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग 15 लाख रुपए देता है। इसी तरह तीन साल में तंबाकू नियंत्रण पर 45 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किए गए। फिर भी 600 से ज्यादा लोगों का तंबाकू नहीं छुड़ा पाए। इतना ही नहीं, साल भर में सिर्फ स्कूल व कॉलेजों में जागरूक करने के नाम पर खानापूर्ति की गई है। क्योंकि जिन स्कूलों व कॉलेजों में तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम करने का दावा किया जा रहा है, वहीं 60 फीसदी से ज्यादा लोगों को इससे निजात नहीं दिला पाए है, जबकि हर साल तंबाकू खाने वाले की संख्या बढ़ रही है।
शहर में 9 पीएससी केंद्र, अवेयरनेस मात्र 3 में
- राजधानी के अलग-अलग जगहों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया है। इसी तरह शहर के पीएससी केंद्र भाठागांव, मठपुरैना, चंगोराभाठा, लाभांडी, भनपुरी, खोखो पारा, रामनगर और राजातालाब शामिल में से सिर्फ तीन सेंटरों में ही जागरूकता कार्यक्रम किया गया है। केंद्र की टीम सिर्फ मठपुरैना, चंगोराभाठा और राजातालाब के सेंटर में ही जागरूकता कार्यक्रम कर पाई है। वहीं 6 केंद्र में अब तक कोई कार्यक्रम नहीं किया गया।
बेचने वालों पर भी खानापूर्ति की कार्रवाई
- शहर में एक हजार से ज्यादा ऐसे दुकान है, जहां तंबाकू की बिक्री होती है। कोटपा एक्ट लागू होने के बाद से अब नाममात्र कार्रवाई की गई है। तीन साल में सिर्फ 144 पर ही कार्रवाई की गई है, जबकि स्वास्थ्य विभाग ने पांच सदस्यीय टीम सिर्फ कार्रवाई के लिए ही गठित की गई थी। उसमें से ज्यादातर कार्रवाई करने के बजाय संरक्षण दिए हुए है। कार्रवाई के लिए दो फूड इंस्पेक्टर, एक प्रोग्राम कंसलटेंट, दो सिपाही और निगम के अधिकारियों की टीम बनाई गई है।
बैनर-पोस्टर के नाम पर खर्च का दावा, लेकिन बोर्ड ही लगे
- अब तक तंबाकू नियंत्रण के लिए प्रचार-प्रचार पर भी लाखों रुपए खर्च करने का दावा किया जा रहा है, जबकि सच्चाई यह है सिर्फ दो-चार जगहों ही बोर्ड लगा दिया गया है। वहीं बैनर-पोस्टर लगाने के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने का दावा किया जा रहा है। इसी तरह की गड़बड़ी प्रचार-प्रसार में हर साल की गई है। जिन जगहों पर बैनर-पोस्टर लगाने का दावा किया गया, उन्हीं जगहों पर पोस्टर नहीं लगे। यहां तक कि तंबाकू नियंत्रण दिवस पर लाखों रुपए खर्च करने का दावा है, फिर भी प्रचार-प्रसार दिखाई नहीं देता।
सालभर ऐसे हो रही खानापूर्ति
ट्रेनिंग सिर्फ 84 जगहों पर :साल के 365 दिनों में सिर्फ 84 दिन ही जागरूकता कार्यक्रम स्कूल व कॉलेजों में किए जाने का दावा है, लेकिन सच्चाई यह है कि जिन स्कूलों व कॉलेज में ट्रेनिंग दिए गए, वहां सालभर बाद भी नशा करने वालों में कमी नहीं आई है।
मीटिंग एक भी नहीं करते :15 लाख रुपए का बजट तंबाकू नियंत्रण केंद्र का दिया जाता है, लेकिन उसे खर्च करने के लिए कोई प्लान नहीं बनाया जाता। सालभर सिर्फ अपने तरीके से ही राशि खर्च कर दी जाती है। बिना मीटिंग प्लान के ही जागरूकता पर खर्च करने का दावा किया जाता है।
काउंसलिंग में लापरवाही :दरअसल जिनकी काउंसलिंग होती है, उनकी देखभाल समय-समय पर करने के निर्देश है, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। वहीं काउंसलिंग में लापरवाही होने की वजह से आधे को भी तंबाकू के लत से दूर नहीं कर पा रहे है।
जागरूक करने के दावों की सच्चाई
- जिले में 120 से ज्यादा स्लम बस्ती चयनित है, लेकिन 38 बस्तियों तक ही टीम पहुंच पाई। उसमें भी जागरूक नहीं किए गए।
- स्कूल, पुलिस, समाज कल्याण और परिवहन विभाग के साथ मिलकर ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन नाममात्र जगहों पर ही ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया गया।
- स्कूलों व कॉलेजों में प्रतियोगिताओं के माध्यम से ट्रेनिंग देने का दावा किया जाता है, लेकिन ट्रेनिंग भी कम जगहों पर दी गई।
- प्रचार-प्रसार के लिए रिक्शा में भापू लगाकर प्रचार-प्रसार का दावा किया जा रहा है, लेकिन मुख्य चौराहों पर जागरूकता संदेश नहीं दिया जा रहा है।
फैक्ट फाइल
- एक साल में 84 स्कूल कॉलेज जागरूकता
- तीन साल में सिर्फ 1400 की काउंसलिंग
- प्रचार प्रसार पर 15 लाख रुपए खर्च
कम आंकड़ा है, पर ट्रीटमेंट में देरी की वजह से
तंबाकू नियंत्रण को लेकर अवेयरनेस प्राेग्राम चलाया जाता है, लेकिन कम आंकड़ा इसलिए है, क्योंकि एक-एक लोग को ट्रीटमेंट दिया जाता है। उसी में देरी होती है। प्रचार-प्रसार के लिए बैनर-पोस्टर लगवाने के लिए लिमिट राशि है।
आरके चंद्रवंशी, नोडल अधिकारी, तंबाकू नियंत्रण.
झिझकते हैं लोग, इसीलिए कम आ रहे
तंबाकू की लत से दूर रहने के लिए लोगों में झिझक रहती है। जिसके चलते कम लोग आ रहे हैं। संगोष्ठी करवाते हैं। जिससे जागरुक होकर लोग तंबाकू के सेवन से बचें।
::/fulltext::12 पौधे अगर घर के भीतर रखे जाएं तो सिक्क बिल्डिंग सिंड्रोम से छुटकारा पाया जा सकता है।
अब आपकी सेहत का ख्याल पौधे रखेंगे। ये न केवल आपको तंदुरुस्त रखेंगे बल्कि घर के भीतर पैदा होने वाली हानिकारक गैसों को भी सोख लेंगे। सुनने में आपको यह जरूर अटपटा लगेगा लेकिन यह सौ फीसद सच है। यह संभव हुआ है पालमपुर स्थित काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (सीएसआइआर-आइएचबीटी) के वैज्ञानिकों की बदौलत। सीएसआइआर-आइएचबीटी पालमपुर ने अब तक ऐसे 12 पौधों का पता लगाया है और इनमें एलोवेरा, एरिका पाम, बारवटन-डेजी (जरबेरा डेजी), बोस्टोन-फरन, गुलदाउदी, फिलोडेनड्रोन, इंग्लिश-आइवी, पीस लिली, रबर प्लांट, स्नेक प्लांट, लघु सेंसेवेरिया व वीपिंग फिग शामिल हैं वैज्ञानिकों के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात को माना है कि घर की दीवारों के रंग, रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव, डयोड्रेंट, बूट पॉलिस, अगरबत्ती, गैस, परफ्यूम, बिल्डिंग मैटीरियल, हीटर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व सिगरेट के धुएं से हानिकारक गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, बैनजीन, ट्राइक्लोरो थाइलीन, जाइलीन, टॉयलीन व कार्बन मोनोऑक्साइड आदि पैदा होती हैं। इन सभी गैसों को वोलाटाइल ऑगे्रनिक कंपाउंड (वीओसी) नाम दिया गया है। इन गैसों से लोग आंखों की जलन, जुकाम, गले में दर्द, दमा व निमोनिया आदि बीमारियों की चपेट में आते हैं।
वैज्ञानिकों ने इन बीमारियों को सिक्क बिल्डिंग सिंड्रोम नाम दिया है। यदि उपरोक्त 12 पौधे अगर घर के भीतर रखे जाएं तो सिक्क बिल्डिंग सिंड्रोम से छुटकारा पाया जा सकता है। हानिकारक गैसें सोखने के बाद भी इन पौधों के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं आता है। अगर पौधों की सही देखरेख हो तो ये लंबे समय तक रखे जा सकते हैं। इन पौधों की उपयोगिता अस्पताल, ऑफिस, स्कूल व इंडस्ट्रियल इकाइयों में काफी अधिक है। इन पौधों की खेती कर लोग आर्थिक स्थिति भी मजबूत कर सकते हैं।
पौधे ऐसे सोखेंगे गैसें
वैज्ञानिकों के अनुसार, ये पौधे पत्तों में मौजूद स्टोमेटा के माध्यम से गैसों को अवशोषित करते हैं और उन्हें जड़ों की सहायता से मिट्टी में डाल देते हैं। इस प्रक्रिया को फाइटो रेमिडिएशन कहा जाता है। हालांकि यह तय नहीं हो पाया कि कौन सा पौधा कितनी गैस सोखता है और कितने पौधे कमरे में रखने चाहिए। इस पर अभी शोध चल रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार 32 फीसद लोग अर्बन एरिया में रहते हैं। इनमें 90 प्रतिशत लोग घरों के अंदर ही कार्य करते हैं। वैज्ञानिक विभिन्न कार्यालयों व घरों का माहौल तैयार कर इन पौधों को कमरों में रखकर समय-समय पर कमरों के वातावरण में बदलाव की जांच करते हैं। कार्यालय में लंच टाइम, छुट्टी व घर में मौजूद सदस्यों का भी ध्यान में रखा जाता है।
यूं किया जा रहा है शोध
‘ऐसे मित्र पौधे मौजूद हैं, जो कि घर के अंदर की हानिकारक गैसों को सोखकर इंसान को बीमारियों से बचाते हैं। सीएसआइआर-आइएचबीटी के वैज्ञानिक ऐसे 12 पौधों पर रिसर्च कर रहे हैं। ये पौधे व्यापारिक व खेती की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं और आय का साधन बन सकते हैं।’
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