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रायपुर. मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह अपने दिल्ली दौरे से रायपुर लौट आए है. एयरपोर्ट में मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने कहा कि विकास यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत डोंगरगढ़ से होगी और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत आधे दर्जन से ज्याद प्रदेशों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे.
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली दौरे पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात हुई, जिसमें 22 अगस्त को होने वाली बैठक पर चर्चा हुई. डॉ रमन सिंह ने बताया कि इस दौरे के दौरान अमित शाह 20 हजार से ज्यादा लोगों को संबोधित करेंगे. विकास यात्रा में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस और झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे. दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री की प्रदेश में बीपीओ खोलने को लेकर देश की दो बड़ी कंपनियों के सीईओ से मुलाकात हुई है, जिसमें उन्होंने राज्य में बीपीओ खोले जाने पर सहमति दी है.
राहुल गांधी के प्रदेश दौरे पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ आते रहना चाहिए. अच्छी बात है, उन्होंने कहा ‘हम चाहते हैं कांग्रेस के ज्यादा से ज्यादा नेता छत्तीसगढ़ आए और यहा के विकास को करीब से देखे’. नक्सल इनकाउंटर पर कांग्रेस के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कांग्रेस कभी भी इनकाउंटर पर भरोसा नहीं करते.
::/fulltext::नक्सल प्रभावित आठ जिलों में कुल 748 सड़कें ऐसी हैं जिसमें नक्सली बाधा पहुंचाते रहे हैं।
रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में चार दशकों के बाद सड़कों को दोबारा खोला जा रहा है। बस्तर में तेलंगाना के रास्ते 1980 में नक्सलवाद ने प्रवेश किया और सड़कें बंद हो गईं। सुकमा जिले के जगरगुंडा से लेकर बीजापुर के बासागुड़ा और भोपालपटनम तक जहां पहले बसें दौड़ती थीं वहां बमों के धमाके गूंजने लगे। चार दशक तक करीब एक दर्जन प्रमुख सड़कें बंद रहीं।
अब सरकार ने इन सड़कों को दोबारा खोलने की कवायद शुरू की है। तेलंगाना की सीमा पर स्थित मरईगुड़ा से जंगल के बीच से होकर गुजरने वाले स्टेट हाइवे नंबर 6 को खोलना असंभव माना जा रहा था। अब उस सड़क पर भी काम शुरू हो चुका है। नक्सलियों की राजधानी कहे जाने वाले जगरगुंडा तक तीन ओर से सड़कें पहुंचतीं थीं।
नक्सलियों ने तीनों सड़कों पर बारूद लगा दिया, पुलों को ढहा दिया और सड़क उखाड़ दी। जगरगुंडा जैसी सड़कों को बनाने के लिए तो कोई ठेकेदार भी तैयार नहीं था। पुलिस खुद ही सड़क बना रही है। केंद्र सरकार ने रायपुर से जगदलपुर तक नेशनल हाइवे के पुनरूत्थान का काम जारी किया है। सुकमा से कोंटा तक नेशनल हाइवे पर नक्सली राज कर रहे थे लेकिन अब आलीशान हाइवे बन रहा है।
स्टेट हाइवे 6 पर अबूझमाड़ के जंगल में भी काम शुरू हो चुका है। सड़कों के रास्ते अब उन गावों में भी विकास की बयार बहने लगी है जिन्हें अब तक पहुंचविहीन माना जाता था। बीजापुर के बासागुड़ा और गंगालूर जैसी सड़कों को पक्का किया गया।
इसके आगे जंगल में सड़क का काम चल रहा है। दंतेवाड़ा से अरनपुर होकर जगरगुंडा तक काम हो रहा है। चिंतागुफा, भेज्जी, गोलापल्ली जैसे इलाकों की पहचान नक्सल घटनाओं से होती रही है। यहां सड़कें बन रही हैं। ऐसा नहीं है कि इन इलाकों में आसानी से सड़क बन सकती थी। सड़क निर्माण को सुरक्षा देने में 40 से ज्यादा जवान शहीद हो चुके हैं।
राज्य सरकार का पूरा जोर सड़कों पर-
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल के बजट में नक्सल इलाकों में 42 पुलों के निर्माण के लिए 2804000 रूपए दिए हैैं। जगदलपुर कोंटा और रायपुर जगदलपुर सहित 121 किमी एनएच का उन्न्यन करने के लिए 1815400 रूपए दिए गए हैं। 54 किमी एनएच आदिवासी इलाकों में बनाया जाएगा। नए जिला मार्गों का निर्माण, पुराने मार्गों का डामरीकरण, चौड़ीकरण, उन्न्यन आदि का काम 500 किमी में होगा इस पर 500 करोड़ रूपए खर्च होंगे।
हाल ही में 806 करोड़ की लागत से नक्सल प्रभावित गांवों में पक्की सड़क की योजना को हरी झंडी मिली है। एलडब्ल्यूई प्रभावित 161 सड़क और चार पुल हैं। इसके लिए 12.10 करोड़ रूपए रखे गए हैं। ईपीसी योजना में 755 किमी सड़क बनेगी जिसमें से 262 आदिवासी इलाकों में है। इसकी कुल लागत 1160 करोड़ रूपए होगी।
आरआरपी 1 में बिछ रहा सड़कों का जाल-
केंद्र सरकार के आरआरपी-1 प्रोजेक्ट के तहत इन इलाकों में पिछले पांच सालों में 1320 किलोमीटर सड़कें बनाई गई हैं। जगदलपुर से कोंटा तक जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी काम चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने रोड कनेक्टिविटी स्कीम प्रोजेक्ट फॉर एलडब्ल्यूई (लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिज्म) एरिया को स्वीकृति दी है। नक्सल प्रभावित इलाकों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत भी 98 सड़कें बनाई जाएंगी।
नक्सलगढ़ के केंद्र में सड़क निर्माण-
सरकार उस स्टेट हाइवे को खोलने की तैयारी में है जो नक्सलगढ़ के केंद्र से होकर गुजरती है। प्रदेश के धुर दक्षिण में तेलंगाना की सीमा से उत्तर की ओर राजनांदगांव के समीप नेशनल हाइवे-6 पर आकर मिलने वाली करीब 6 सौ किलोमीटर सड़क को नक्सलियों ने तीन दशक से बंद कर रखा है।
इस रास्ते पर गोलापल्ली तक करीब 8 किलोमीटर का काम अब भी बचा है। रास्ते पर हर 5 किलोमीटर पर फोर्स के कैंप खोले गए हैं ताकि सड़क का काम पूरा हो जाए। बारसूर-पल्ली मार्ग पर नक्सलियों ने बड़े-बड़े पेड़ गिरा दिए थे। अब बारसूर और पल्ली दोनों तरफ से सड़क का काम शुरू किया गया है। सड़क को सुरक्षा देने के लिए धौड़ाई से 20 किमी अंदर जंगल में स्थित कड़ेनार में हाल ही में फोर्स का कैंप खोला गया है।
नक्सली बन रहे बाधा-
पिछले महीने किस्टारम के पास स्थित एलकनगुड़ा में नक्सलियों ने सड़क निर्माण में लगी गाड़ियों का फूंक दिया था। इसके बाद से पेद्दागुड़ा-किस्टारम मार्ग का करीब 6 किलोमीटर का काम रूका हुआ है। किस्टारम को जोड़ते ही स्टेट हाइवे का सबसे कठिन रास्ता बनकर तैयार हो जाएगा। जगरगुंडा मार्ग पर भी बुरकापाल के पास नक्सल हमले के बाद से काम रूका हुआ है।
डेढ़ हजार जवानों की सुरक्षा में बन रही नक्सलगढ़ की 10 किमी सड़क-
बीजापुर जिले का पामेड़ थाना पहली बार सड़क मार्ग से जुड़ने जा रहा है। यह ऐसा इलाका है जहां दस किलोमीटर सड़क बनाने के लिए डेढ़ हजार जवानों को तैनात करना पड़ा है। बीजापुर से पामेड़ के लिए सीधी सड़क नहीं है। जिले के बासागुड़ा थाने से पामेड़ की दूरी 55 किमी है।
बासागुड़ा तक सड़क बना ली गई लेकिन इसके आगे जंगल में नक्सलियों का कब्जा है। पामेड़ तेलंगाना की सीमा से सटा हुआ है। तेलंगाना की ओर से सड़क बनाई जा रही है ताकि पामेड़ तक पहुंचने का कोई तो रास्ता हो। हालांकि इस रास्ते से बीजापुर से पामेड़ जाने के लिए दंतेवाड़ा, सुकमा जिलों से घूमकर करीब चार सौ किमी का लंबा चक्कर काटना पड़ेगा।
मार्च तक 546 सड़कें पूरी करने की बनी रणनीति-
इस साल मार्च तक बस्तर के सात जिलों और राजनांदगांव को मिलाकर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाय) की कुल 546 सड़कों का काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य में योजना के तहत कुल 1992 सड़कें स्वीकृत थीं। इनमें से 1451 सड़कों का काम पहले ही पूरा हो चुका है। नक्सल प्रभावित आठ जिलों में कुल 748 सड़कें ऐसी हैं जिसमें नक्सली बाधा पहुंचाते रहे हैं।
::/fulltext::रायपुर। पत्थलगढ़ी आंदोलन चलाने के आरोप में जेल जा चुके रिटायर्ड आईएएस हरमन किंडो ने भूपेश बघेल से मुलाकात की है. दोनों के बीच मुलाकात राजधानी रायपुर में हुई है. बंद कमरे में 10 मिनट दोनों ही कुछ खास चर्चा की है. गोपनीय तरीके से हुई मुलाकात के कई राजनीतिक मायने तलाशे जा रहे हैं. विशेषकर कुनकुरी से चुनाव लड़ने को लेकर. हालांकि किंडो ने मुलाकात घरेलु बताया है. बघेल ने मुलाकात करने के बाद किंडो ने कहा कि किसी भी तरह की कोई राजनीतिक बातचीत नहीं हुई. मेरे कुछ घरेलु मामले थे जिसे लेकर मैने मुलाकात की है.
पत्थलगढ़ी मामले में मुझे फंसाया गया
हरमन किंडो ने कहा कि पत्थलगढ़ी मामले को लेकर मेरा कोई लेना-देना नहीं था. इस आंदोलन में मेरी कोई भूमिका नहीं थी. मेरा नाम जबरिया इस आंदोलन में जोड़ा गया. मुझे साजिश के तहत फंसाने काम किया गया. कुछ स्थानीय नेताओं ने मेरे खिलाफ षड़यंत्र किया है. हालांकि उन्होंने किसी राजनीतिक दल का नाम लिया.
सरकार के खिलाफ बोलने से बचे
जशपुर के भीतर आदिवासी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले किंडो ने राजधानी में सरकार खिलाफ बोलने से बचते रहें. उन्होंने सरकार के खिलाफ कुछ नहीं कहा. यहां तक कि पत्थलगढ़ी आंदोलन में सरकार की भूमिका को लेकर भी. उन्हें नहीं पता कि सरकार ने इसमें क्या किया या नहीं. फिलहाल जशपुर के भीतर हालात अभी ठीक है.
चुनाव पर संस्पेंस
किंडो ने चुनाव को लेकर कुछ खास नहीं कहा. बस ये बोले कि देखते हैं. फिलहाल कोई तैयारी चुनाव को लेकर नहीं है.
::/fulltext::रायपुर। सोमवार को सुकमा जिले में पुलिस ने 15 नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया था. अब एक बार फिर से पुलिस पर आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने का आरोप लग रहा है. आम आदमी पार्टी ने पुलिस के ऊपर ये आरोप लगाया है. आरोप है कि पुलिस ने नक्सली बताकर निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की है. अब इस मामले को लेकर आम आदमी पार्टी ने प्रेसवार्ता लेकर जांच समिति गठन करने का ऐलान किया है. आम आदमी पार्टी ने सोनी सोरी के नेतृत्व में चार सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है. समिति तीन दिन में जांच समाप्त कर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी.
मिली जानकारी के मुताबिक इसी मामले को लेकर मंगलवार को किस्टाराम में आदिवासी महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया था. महिलाओं का कहना था कि जिन्हें पुलिस ने नक्सली बताकर मार गिराया है दरअसल वो नक्सली नहीं बल्कि ग्रामीण थे. घटना के दौरान वे अपने खेतों में काम कर रहे थे. उनकी हत्या कर पुलिस उन्हें नक्सली बता रही है. विरोध प्रदर्शन करने वाली महिलाओं ने बताया था कि जिन 15 लोगों को पुलिस ने मार गिराया है उनमें 7 नाबालिग थे जिनकी उम्र 13 से 15 वर्ष के बीच की थी
उधर सोनी सोरी ने पुलिस द्वारा बताई जा रही कथित नक्सली मुठभेड़ की न्यायिक जांच कराए जाने की मांग की है. उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि इस तरह ग्रामीणों को नक्सली बताकर फर्जी मुठभेड़ पर रोक लगाई जाए.
ये हैं वे नाबालिग बच्चे जिनका एनकाउंटर हुआ