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जुडवां बच्चे एक जैसे दिखते हैं और उनकी आदतें भी एक जैसी होती हैं लेकिन मुंबई के रहने वाले जुड़वां भाई रोहन और राहुल चेम्बाकसेरिल ने आईसीएसई बोर्ड की 12 वीं की परीक्षा में एक जैसे अंक (96.5 प्रतिशत) हासिल कर लोगों को अचरज में डाल दिया है. रोहन और राहुल मुंबई के खार इलाके के जसुदाबेन एमएल स्कूल में पढ़ाई करते हैं. अच्छे अंक आने से खुश दोनों भाई साइंस में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं. उनकी मां सोनल चेम्बाकसेरिल ने बताया, ‘‘ दोनों ना सिर्फ एक जैसे हैं बल्कि उनकी आदतें भी एक जैसी हैं. दोनों एक साथ बीमार होते हैं और एक ही समय पर उन्हें भूख भी लगती है, लेकिन दोनों के एक जैसे नंबर आने से हम भी हैरान हैं. ’’ उन्होंने बताया , ‘‘ रोहन और राहुल स्कूल में साथ पढ़ते हैं, दोनों घर में भी पढ़ाई साथ करते हैं. ’’
इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जाम (CISCE) ने पिछले सप्ताह 12 वीं और 10 वीं परीक्षा का परिणाम घोषित किया था. इसमें एक बार फिर लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ते हुये बाजी मारी ली है. 12 वीं कक्षा में 49 छात्रों ने 99 प्रतिशत से अधिक अंक अर्जित किए, जबकि 10 वीं कक्षा में 15 छात्रों ने 99 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल किये हैं.
रायपुर 13 मई 2018। यूं तो कलेक्टर ओपी चौधरी खुद कई युवाओं के प्रेरणा हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि ओपी चौधरी की प्रेरणा उनकी ‘माँ’ हैं । माँ….जिनकी बदौलत ओपी चौधरी, कलेक्टर ओपी चौधरी बन पाए। आज जब पूरी दुनिया मदर्स डे पर अपनी-अपनी माँ ….और मां से जुड़ी यादों को बयां कर रही है, तो IAS ओपी चौधरी ने भी अपनी प्रेरणा स्वरूप माँ से जुड़ी यादों को साझा किया। अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा है, अगर माँ की प्रेरणा न मिली होती तो शायद वो IAS न बन पाए होते। दरअसल ओपी चौधरी का बचपन बेहद अभाव में गुजरा, पिता का साया बचपन में उनके सर से हट गया था। पिताजी सरकारी नौकरी में थे, लिहाज़ा वो अनुकम्पा नियुक्ति के हकदार थे, लेकिन माँ ने आईएएस बनने के लिए ओपी चौधरी को प्रेरित किया। बेशक मेहनत और संघर्ष उन्हीने खुद किया, लेकिन मां के आशीर्वाद से उनका संघर्ष सरल हो गया । अगर माँ की प्रेरणा को उन्होंने अगर सर आंखों पर ना सजाया होता तो शायद छत्तीसगढ़ को पहला IAS अफसर ओपी चौधरी के रूप में ना मिला होता। आज मदर्स डे पर कलेक्टर ने अपने फेसबुक पर मा की तस्वीर के साथ लिखा है…….मेरी माँ… जब मैं 12वीं पढ़ा तो मेरे पिता जी की जगह में मुझे अनुकम्पा में शासकीय नौकरी मिल सकती थी लेकिन ४थी पढ़ी हुई मेरे गाँव बायंग जिला रायगढ़ में रहने वाली मेरी माँ कौशल्या ने मुझे अनुकम्पा की नौकरी के लिये मना करके IAS तैयारी करने के लिये कहा ताकि मैं समाज के लिये भी कुछ कर सकुँ उनकी प्रेरणा विज़न दूरदर्शिता और मजबूत व्यक्त्तिव को आज सलाम
::/fulltext::अगर आप से कहा जाए कि आप आंखों पर पट्टी बांधकर किताब पढ़ें तो आप सोच में पड़ जाएंगे कि ऐसा कैसे मुमकिन है. बेशक ये दूसरों के लिए नामुमकिन सी चीज़ है पर अब्दुल बिलाल खान के लिए बाएं हाथ का खेल है. बिलाल आंखों पर पट्टी बांधकर ना सिर्फ किताब पढ़ लेते हैं बल्कि दूसरे काम भी आसानी से कर लेते हैं.
उत्तर प्रदेश के उरई शहर के रहने वाले बिलाल का दावा है कि वो शब्दों को बंद आंखों से, महज़ छूकर पढ़ लेते हैं. वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे उनकी आंखों पर एक मोटी पट्टी बंधी हुई है पर वो बड़े आराम के किताब को पढ़ रहे हैं. बिलाल बंद आंखों से किताब का वो पन्ना भी खोल देते हैं जो उनसे खोलने के लिए कहा जाए.
बिलाल कहते हैं कि जब किताब उनके हाथों में आती है तो वो शब्दों को महसूस कर लेते हैं और इस तरह से वो उन्हें पढ़ पाते हैं.
बिलाल के कारनामे को देखकर लग सकता है कि शायद उन्हें पट्टी के पार से दिखाई देता हो पर बिलाल इस बात को नकार देते हैं. बिलाल की आंखों पर जिस तरह से पट्टी बांधी जाती है, उससे उसके पार देखना असंभव सा हो जाता है. बिलाल की आंखों पर पहले एक पट्टी बांधी जाती है फिर कॉटन रखा जाता है और फिर दूसरी पट्टी बांध दी जाती है.
किताब पढ़ने के अलावा बिलाल, आंखों पर पट्टी बांधकर निशाना भी लगा लेते हैं. वो बड़ी आसानी से गुब्बारे पर निशाना लगाते हैं और आंखों पर पट्टी होने के बावजूद उनका निशाना अचूक होता है.
बिलाल अपने कारनामे को कुदरत का करिश्मा नहीं मानते बल्कि वो इसका श्रेय मेडिटेशन को देते हैं. बिलाल ने बताया कि पिछले कुछ सालों से वो लगातार मेडिटेशन कर रहे हैं. उनके ये कारनामा कई सालों की प्रैक्टिस और मेडिटेशन का नजीता है.
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चंद्रकंत पारगीर, बैंकुंठपुर (चिरमिरी)। सरस्वती शिशु मंदिर में अध्यनरत डोमनहिल चिरमिरी निवासी संध्या सिंह एक साधारण परिवार की है। संध्या सिंह के ने 12वीं कक्षा में टॉप 10 में जगह बनाते हुए 96 प्रतिशत अंक प्राप्त कर राज्य में सातवां स्थान हासिल किया है। टॉप टेन में स्थान पाने वाली संध्या आईएस बनकर देश की सेवा करना चाहती है। इससे पूर्व भी हाई स्कूल परीक्षा परिणाम में प्रदेश की टॉप टेन सूची में 10वां रैंक हासिल किया था। वहीं कक्षा नवमीं में उसे 92.67 प्रतिशत अंक मिले थे।
खबरीलाल से चर्चा में संध्या सिंह ने बताया कि आचार्यो के द्वारा पढ़ाई गई विषय वस्तु को ही मैं घर पर आकर पुन: ध्यान से पढ़ा। इसके अलावा परीक्षा से कुछ दिन पहले स्कूल अलावा 6-7 घंटे घर पर नियमित रुप पढ़ाई किया करती थी, मेरे परिजनों का हमेशा ही पढ़ाई में पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। स्कूल के सभी शिक्षकों को भी भरपूर सहयोग मिला। इसी का परिणाम है किसी बड़े शहरों जैसी सुविधा न होने के बावजूद सफलता मिली। संध्या के पिता एक निजी कंपनी में चालक है। संध्या की छोटी बहन ने भी दसवीं में 75 फीसदी अंकों के साथ परीक्षा पास की है।
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