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नई दिल्ली: भले ही सचिन तेंदूलकर क्रिकेट से संन्यास ले चुके हों, लेकिन देश-विदेश में उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है. लोग सचिन को लेकर दीवाने हैं. केरल में ऐसे ही एक प्रोफेसर सामने आए हैं, जिन्होंने सचिन तेंदुलकर पर केंद्रित अनूठी लाइब्रेरी स्थापित की है, जो चर्चा का केंद्र बन गई है. मालाबार क्रिश्चियन कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर वशिष्ट मणिकोठ ने कोझीकोड में क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर पर केंद्रित लाइब्रेरी स्थापित की है. इस लाइब्रेरी में सचिन की आत्मकथा, संस्मरण समेत उनपर केंद्रित 60 किताबें हैं. खास बात यह है कि ये किताबें 11 भाषाओं में हैं. जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, मराठी और गुजराती आदि हैं. वशिष्ट मणिकोठ द्वारा स्थापित यह अनूठी लाइब्रेरी अब आसपास चर्चा का केंद्र बन गई है. खासकर युवाओं में यह खूब लोकप्रिय हो रही है.
::/fulltext::सीबीएसई की 10वीं और 12वीं की परीक्षा का परिणाम घोषित हो चुका है। द्वारका के सरकारी स्कूल के प्रिंस कुमार के 12वीं में सफलता प्राप्त करने की कहानी प्रेरित करने वाली है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। सीबीएसई के 12वीं के बाद अब 10वीं कक्षा का रिजल्ट भी जारी हो चुका है। इसके साथ ही सामने आने लगी है टॉपर्स विद्यार्थियों की सफलता के पीछे की कहानी। अक्सर निजी विद्यालयों के छात्रों को परीक्षा में टॉप करते देखा जाता है, लेकिन दिल्ली के एक सरकारी स्कूल के इस टॉपर छात्र की सफलता की कहानी कुछ अलग है और प्रेरित भी करने वाली है। पिछले साल जबरदस्त मानसिक और शारीरिक तनाव से गुजरने के बाद, प्रिंस कुमार को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 97 प्रतिशत के साथ 12वीं की परीक्षा में टॉप किया है। पिछले जुलाई से आठ महीनों तक परीक्षा की तैयारियों के दौरान टीबी (तपेदिक) के कारण उसका 8 किलो वजन कम हो चुका था।
एनडीए का सपना हुआ चकनाचूर
टीबी के कारण ना सिर्फ राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में शामिल होने का प्रिंस का सपना चकनाचूर हो गया था, बल्कि कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करना भी कठिनाइयों से भरा हो गया था। एनडीए की शारीरिक परीक्षा आसान नहीं थी। प्रिंस ने बताया कि मुझे अब भी सांस लेने में दिक्कत है, लेकिन पहले से काफी सुधार कर पाया हूं। लेकिन मेरे माता-पिता ने कहा है कि मुझे इसे असफलता की तरह नहीं लेना चाहिए।
परीक्षा के पहले 8 महीने मेडिकल पर
एक बार टीबी का पता चलने पर प्रिंस कुमार को 8 महीनों के लिए मेडिकल पर रखा गया था, इस दौरान उसे द्वारका स्थित अपने स्कूल राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय से एक महीने की लंबी छुट्टी लेनी पड़ी थी। तेज बुखार और भूख में कमी आने से उसका वजन काफी कम हो गया था। प्रिंस याद करते हुए बताता है कि, "मेरे पिता मुझे बाहर जाकर व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते रहते थे, उनका कहना था कि घर पर रहकर बीमारी को और मत पालो। "इसके बाद मैंने अपने घर की छत पर व्यायाम करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कुछ समय बाद पार्क तक जाने लगा। इस पूरे दौर में मेरे पिता ने मेरी काफी मदद की और मेरा उत्साह बढ़ाया।
इस तरह की तैयारी
दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) बस चालक के बेटे कुमार को रक्षा सेवा में करियर बनाने की इच्छा थी। उसने बताया कि, "मैं अपने नौसेना इंजीनियर दादा के नक्शेकदम पर चलकर सेना में भर्ती होना चाहता था।" लेकिन अचानक इस बीमारी के आ जाने के बाद मेरे परिवार वालों ने मुझे अपने 12वीं की परीक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। मेरे पिता ने मुझे घर पर ही पुस्तकें लाकर दीं, लेकिन मेरे मैथ्स टीचर ने मुझे एनसीईआरटी की पुस्तकों पर ही निर्भर रहने को नहीं कहा। इसके बाद मैंने अपनी स्कूल लाइब्रेरी से और निजी पुस्तकालय से किताबें उधार लेकर पढ़ाई शुरू कर दी।"
बाथरूम को बनाया स्टडी रूम
कुमार ने आगे बताया कि कक्षा 12वीं का ये सुखद परिणाम काफी मुश्किलों का सामना करने के बाद आया है। उस दौरान कुमार की बड़ी बहन भी अपने बीकॉम अंतिम वर्ष के परीक्षा की तैयारी कर रही थी। दोनों ने पूरे साल घर के एक छोटे से बाथरूम को स्टडी रूम बनाकर उसमें पढ़ाई की। दोनों एक-एक करके वहां पढ़ाई करते थे। कुमार कहते हैं कि जब उनकी बड़ी बहन ब्रेक लेती थी तो फिर वह पढ़ाई करते थे।
रिजल्ट सुनकर नहीं हुआ यकीन
हमें इसी दृढ़ता का फल मिला है। फिर भी पिछले शनिवार को जब सीबीएसई कक्षा बारहवीं के परिणाम घोषित हुए और मुझे मेरे अंकों के बारे में बताया गया तो मुझे लगा कि मुझे गलत सूचना दी जा रही है। कुमार ने कहा, "मुझे अभी भी विश्वास नहीं है कि मुझे इतने इतने अच्छे नंबर मिले हैं। "मैं नज़फगढ़ में अपने पिता के साथ था जब मेरी बहन ने फोन कर बताया कि मैंने गणित में 100 अंक पाए हैं। जब मुझे विश्वास नहीं हुआ तो मैंने अपनी बहन से अपने कुल स्कोर के बारे में पूछा। उसने 97% बताया तो मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। हालांकि, मेरे दोस्तों ने बाद में मेरी रिजल्ट की पुष्टि की। मेरी मां ने इस खुशी में हमारी कॉलोनी के हर किसी के लिए हलवा बनाया।"
अब भी सेना में जाने का जुनून बरकरार
दिल्ली के 1,000 से अधिक सरकारी स्कूलों के टॉपर्स अपनी सफलता के लिए अपने परिवार और शिक्षकों का आभारी है। कुमार ने आगे कहा, "मेरे शिक्षकों ने मुझे छुट्टी के दौरान मेरी पढ़ाई में काफी मदद की। वित्तीय संकट के बावजूद मेरे पिता ने मेरा स्वास्थ्य मेटेंन रखने के लिए हर दिन मेरे लिए फल और दूध की व्यवस्था की।
हालांकि कुमार को अब भी सेना में शामिल होने का जुनून सवार है। उसका कहना है, "मैं द्वारका में नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन में इंजीनियरिंग करना चाहता हूं। इसके बाद सेना में शामिल होना चाहता हूं, जिसके लिए शारीरिक परीक्षा इतनी महत्वपूर्ण नहीं होती है।"
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