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मॉरीशस. मॉरीशस में 11वां ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ शनिवार से शुरू हो गया है. इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए 290 प्रतिनिधि पोर्ट लुईस पहुंच चुके हैं. साथ ही इस सम्मेलन में यह पहली बार हो रहा है कि भारत से सभी 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली, चंडीण्ढ और पुडुचेरी से भी प्रतिनिधि शामिल होने जा रहे हैं. सम्मेलन में पहुंची सुषमा स्वराज ने संस्कृति और हिंदी भाषा को बचाने पर जोर देते हुए कहा कि अलग अलग देशों में हिन्दी को बचाने की जिम्मेदारी भारत ने ली है.
अपने उद्घाटन संबोधन में सुषमा स्वराज ने कहा कि भाषा और संस्कृति एक दूसरे से जुड़ी हैं. ऐसे में जब भाषा लुप्त होने लगती है तब संस्कृति के लोप का बीज उसी समय रख दिया जाता है. उन्होंने कहा कि जरूरत है कि भाषा को बचाया जाए, उसे आगे बढ़ाया जाए, साथ ही भाषा की शुद्धता को बचाए रखा जाए.
उन्होंने कहा कि इस बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह ‘मोर के साथ डोडो’ है. पिछली बार मोर था, इस बार इसमें डोडो को भी जोड़ दिया गया है. डोडो लुप्त होती हिन्दी का प्रतीक है. इसे भारत का मोर आएगा और बचाएगा.
बता दें कि मारिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ ने 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर दो डाक टिकट जारी किए. एक पर भारत एवं मॉरीशस के राष्ट्रीय ध्वज और दूसरे पर दोनों देशों के राष्ट्रीय पक्षी मोर और डोडो की तस्वीर है. वहीं मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने भारत के सहयोग से बने साइबर टावर को अब अटल बिहारी वाजपेयी टावर नाम देने की घोषणा की है.
सम्मेलन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सुषमा स्वराज ने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से विश्व के हिन्दी प्रेमियों को अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का मौका मिलेगा. 11वां विश्व हिन्दी सम्मेलन शुरू होने से पहले सभागार में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि भी दी गई. सम्मेलन में गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी विशिष्ठ अतिथि हैं.
::/fulltext::न्यू साउथ वेल्स के करीब सूखे पड़े इस खेत में जीवन के नाम पर सिर्फ़ ये एक पेड़ है. इस पेड़ के नज़दीक पानी का एक गड्ढा देखा जा सकता है.
पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के कई हिस्सों में सूखा पड़ रहा है. ये वहां इतिहास का अबतक का सबसे भयंकर सूखा है. इसकी सबसे ज़्यादा मार किसानों पर पड़ी है. रॉयटर्स के फोटोग्राफर डेविड ग्रे ने इस सूखी धरती की तस्वीरें अपने कैमरे में कैद की. आसमां से ली गई इस त्रासदी की कुछ तस्वीरें बेहद अद्भुत नज़र आईं. इस खेत के मालिक ने बताया कि 2010 के बाद से यहां बारिश ना के बराबर हुई है.
न्यू साउथ वेल्स का करीब 98% हिस्सा सूखे की चपेट में है. पड़ोसी क्वीन्सलैंड के दो-तिहाई हिस्से में भी यही हाल है. किसानों को अपने पालतू जानवरों के लिए भी खाना जुटाना होता है. इससे उनके खर्चे और बढ़ जाते हैं.
एक किसान टॉम वोल्सटन ने कहा, सूखे ने हमारी मुसीबतें बढ़ा दी है. मेरा पूरा दिन खाना जुटाने की कोशिश में निकल जाता है.
सूखा बांध
किसानों की मदद के लिए सरकार अबतक 738 मिलियन डॉलर खर्च कर चुकी है. किसान एश विटनी कहते हैं, "मेरी पूरी ज़िंदगी इसी इलाके में गुज़री है. लेकिन मैंने ऐसा भीषण सूखा कभी नहीं देखा." परेशान किसानों के लिए सरकार ने मेंटल हेल्थ सर्विस भी शुरू की है.
टैमवर्थ के बाहरी इलाके में अनाज खाती भेड़ें कभी इस बस में कृषि के उपकरण भरकर लाए जाते थे, लेकिन अब खड़े-खड़े इस बस में जंग लग चुका है ऑस्ट्रेलिया में साल 2002 के बाद जुलाई में सबसे ज़्यादा सूखा पड़ा है.
दो खेत. एक में अभी-अभी सिंचाई हुई है तो एक पानी का इंतज़ार कर रहा है
ऑस्ट्रेलिया के लोगों का पेट भरने वाले एक चौथाई कृषि उत्पाद न्यू साउथ वेल्स से आते हैं. वहां पड़े इस सूखे ने पूरे कृषि उद्योग पर असर डाला है.
सूख चुके एक खेत में मौजूद वॉटर टैंक
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने जून में सूखा प्रभावित इलाकों का दौरा किया था. उस वक्त उन्होंने कहा था कि जलवायु परिवर्तन इस त्रासदी की अहम वजह है.