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हिन्दू धर्म के बेहद पवित्र स्थल और चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी की धरती को भगवान विष्णु का स्थल माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक बेहद रहस्यमय कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार मंदिर में मौजूद भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं।
भगवान जगन्नाथ को विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है,।पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाई तरफ स्थित है। बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं।
मंदिर से जुड़े हैरान करने वाले रहस्य
फैक्ट 1
मंदिर के पास हवा की दिशा भी हैरान करती है। ज्यादातर समुद्री तटों पर हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, पुरी में ऐसा बिल्कुल नहीं है यहां हवा जमीन से समंदर की तरफ चलती है और यह भी किसी रहस्य से कम नहीं है। आम दिनों में हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, शाम के वक्त ऐसा नहीं होता है।
जगन्नाथ मंदिर 4 लाख वर्गफुट में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर की इतनी ऊंचाई के कारण ही पास खडे़ होकर भी आप गुंबद नहीं देख सकते।
फैक्ट 3
विज्ञान के अनुसार, किसी भी चीज पर सूरज की रोशनी पड़ने पर उसकी छाया जरूर बनती हैं। मगर इस मंदिर के शिखर की कोई छाया या परछाई दिखती ही नहीं है।
फैक्ट 4
जगन्नाथ मंदिर के ऊपर कोई भी पक्षी आज तक उड़ता हुआ नहीं देखा गया है। मंदिर के शिखर के पास पक्षी या कोई भी चिड़ियां उड़ते हुए नहीं दिखाई दिए है। यहां तक मंदिर के उपर विमान उड़ाना भी निषेध है।
फैक्ट 5
जगन्नाथ मंदिर के रसोईघर को दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है। मान्यता है कि कितने भी श्रद्धालु मंदिर आ जाए, लेकिन अन्न कभी भी खत्म नहीं होता। मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
फैक्ट 6
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है।
फैक्ट 7
इस मंदिर के शिखर पर लगा हुआ सुदर्शन चक्र मंदिर की शान है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि आप उसे कहीं से भी देख लें यह आपको सीधा ही नजर आएगा। अष्टधातु से निर्मित यह चक्र बेहद पवित्र माना जाता है। करीब 200 साल पहले इसे मंदिर में स्थापित किया गया था जो इसको स्थापित करने की तकनीक आज भी रहस्य है।
मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करने के बाद मंदिर के अंदर समंदर की कोई भी आवाज सुनाई नहीं देती। इसके अलावा मंदिर के ऊपर लगा ध्वज भी हवा की विपरित दिशा में लहराता रहता है।
इसके अलावा मंदिर में हमेशा 20 फीट का ट्रायएंगुलर ध्वज लहराता है इसे रोजाना बदला जाता है। एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है।इसे बदलने का जिम्मा चोला परिवार पर है वह इसे 800 साल से करती चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि अगर ध्वजा रोज नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 सालों तक अपने आप बंद हो जाएगा।
यहां जगन्नाथ जी के साथ के मंदिरों में भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं। तीनों की मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, लेकिन इनका आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं। पुरानी मूर्तियों को दफना दिया जाता है कहती है ये मूर्तियां अपने आप विघटित हो जाती है।
फैक्ट 11
वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है। 1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।
::/fulltext::मान्यता के मुताबिक भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने से पुण्य मिलता है.
पुरी: ओडिशा के पुरी में आज से सालाना रथ यात्रा का कार्यक्रम शुरू हो चुका है. यूनेस्को द्वारा पुरी के एक हिस्सों को वर्ल्ड हेरिटेज यानी कि वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किए जाने के बाद से यह दूसरी रथ यात्रा है. आपको बता दें कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी से शुरू होती है. इस भव्य यात्रा में शामिल होने के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं और रथ खींचकर पुण्य कमाते हैं. आपको बता दें कि रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, जिनमें विष्णु, कृष्ण, वामन और बुद्ध भी शामिल हैं. रथ यात्रा शुरू होने से पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने रथ यात्रा की शुभकामनाएं दीं.
रथ यात्रा में क्या होता है?
भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने सोने के हत्थे वाले झाड़ू को लगाकर रथ यात्रा को आरंभ किया जाता है. उसके बाद पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप के बीच तीन विशाल रथों को सैंकड़ों लोग खींचते हैं. इस क्रम में सबसे पहले बालभद्र का रथ प्रस्थान करता है. उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ चलता है. फिर आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ खींचा जाता है.
मान्यता है कि रथ खींचने वाले लोगों के सभी दुख दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है. नगर भ्रमण करते हुए शाम को ये तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंच जाते हैं. अगले दिन भगवान रथ से उतर कर मंदिर में प्रवेश करते हैं और सात दिन वहीं रहते हैं.
जब अपनी मौसी के घर पहुंचते हैं भगवान जगन्नाथ
गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है. रथ यात्रा के दौरान साल में एक बार भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहनों के साथ जगन्नाथ मंदिर से इसी गुंडिचा मंदिर में रहने के लिए आते हैं. अपनी मौसी के घर में भगवान एक हफ्ते तक ठहरते हैं, जहां उनका खूब आदर-सत्कार होता है. उन्हें कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों और फल-फूलों का भोग लगाया जाता है.
गौरतलब है कि भारत में जिस तरह होली, दीपावली, रक्षाबंधन, बैसाखी, ईद और क्रिसमस का महत्व है उसी तरह पुरी की रथ यात्रा भी बेहद महत्वपूर्ण है. इस पर्व को अटूट, श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. पुरी के अलावा भी देश के अलग-अलग शहरों में भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है.
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