Owner/Director : Anita Khare
Contact No. : 9009991052
Sampadak : Shashank Khare
Contact No. : 7987354738
Raipur C.G. 492007
City Office : In Front of Raj Talkies, Block B1, 2nd Floor, Bombey Market GE Road, Raipur C.G. 492001
नई दिल्ली: होली (Holi) में रंगों के साथ-साथ होलिका दहन (Holika Dahan) की पूजा का भी खास महत्व है. रंगों वाली होली (Holi 2019) से एक दिन पहले चौराहों पर होलिका दहन किया जाता है. इसे छोटी होली (Chhoti Holi) और होलिका दीपक (Holika Deepak) भी कहते हैं. इस दिन बड़ी संख्याओं में महिलाएं होली की पूजा करती हैं. मान्यता है कि इस पूजा से घर में सुख और शांति आती है. अगर आप भी इस बार होलिका दहन की पूजा कर रही हैं, तो यहां दी गई आसान विधि को देखें. आपको बता दें, इस बार रंगों वाली होली 21 मार्च और होली की पूजा 20 मार्च को की जानी है.
होली का डंडा
पूजा के लिए होलिका दहन के लिए होली जलाई जाती है, ये होली माघ महीने की पूर्णिमा के दिन से शुरू हो जाती है. इस दिन से ही महिलाएं गुलर के पेड़ की टहनी को चौराहों पर गाड़ देती हैं, इसे होली का डंडा गाड़ना कहते हैं. इसके बाद होली की पूजा के दिन तक धीरे-धीरे लड़कियां बढ़ाई जाती हैं. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन इसी होली को जलाकर गांव की महिलाएं होली का पूजन करती हैं.
होली पूजा के लिए सामग्री
गोबर के बिड़कले (पूजा के बाद होली में डालने के लिए), गोबर, एक लोटा पानी या गंगाजल, फूलों की मालाएं, कच्चा सूत, पंचोपचार (पांच प्रकार के अनाज जैसे नए गेहूं और अन्य फसलों की बालियां), रोली, अक्षत, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, बड़ी-फुलौरी, मीठे पकवान या मिठाइयां और फल.
होलिका दहन पूजा-विधि
1. सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें.
2. अब अपने आस-पास पानी की बूंदे छिड़कें.
3. गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं.
4. थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक लोटा पानी रखें.
5. नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए प्रतिमाओं पर रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें.
6. अब सभी सामान लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं.
7. अग्नि जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें.
8. इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं.
9. भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांचों अनाज चढ़ाएं
10. अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं.
11. कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें.
12. गोबर के बिड़कले को होली में डालें.
13. आखिर में गुलाल डालकर लोटे से जल चढ़ाएं.
होलिका दहन का मुहूर्त
शुभ मुहूर्त शुरू - रात 08:58 से
शुभ मुहूर्त खत्म - 11:34 तक
::/fulltext::
गरियाबंद. भगवान-शिव पूजा के सबसे बड़ा और पावन दिन महाशिवरात्रि को माना गया है. इसीलिए आज हम आपको छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे विश्व के सबसे विशालतम प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन कराने जा रहे हैं. यह ऐसा शिवलिंग है जिसके बारे में मान्यता है कि यह आज भी बढ़ रहा है हरी-भरी प्राकृतिक वादियों के बीच जिला मुख्यालय गरियाबंद से महज 3 किलोमीटर दूर अद्भुत अकल्पनीय सा दिखता यह शिवलिंग पूरे छत्तीसगढ़ के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बन गया है. दूर-दूर से यहां भक्त जल लेकर भगवान शिव अर्पित करने पहुंचे हैं. भोले बाबा भी उनकी मन मांगी मुराद जरूर पूरी करते हैं. यही कारण है कि बीते 8 -10 सालों में यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या में कई गुना बढ़ गई है. महाशिवरात्रि के दिन लगभग 50 हजार से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं वही सावन भर यहां भक्तों और कांवरियों का रेला लगा रहता है. आज महाशिवरात्रि पर यहां 3 दिन का मेला लगने जा रहा है. जिसकी तैयारी 2 दिन पहले से ही प्रारंभ कर दी गई थी.
जिले में विराजित विश्व प्रसिद्ध भूतेश्वरनाथ में आज महाशिवरात्रि की धूम है. चलो बुलावा आया है भुतेश्वरनाथ ने बुलाया है. यही जयकारा लगाते लोग यहां खिंचे चले आते हैं महादेव के भक्त द्वादष ज्योतिर्लिगों की भांति छत्तीसगढ़ में एक विशाल प्राकृतिक शिव लिंग हैं जो विश्व प्रसिद्ध विशालतम शिवलिंग के नाम से प्रसिध्द हैं. ऐसी मान्यता है कि यह शिव लिंग हर साल अपने आप में बढ़ता जा रहा हैं. नगे पांव मीलो दूर से आते है भोले के भक्त. छत्तीसगढ़ी भाषा में हुकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा हैं. यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि और सावन माह पर्व पर मेले जैसे महौल रहता हैं. यहां पर दूर दराज से भक्त आकर महादेव की अराधना करते हैं. सावन माह के समय शिव भक्त अनायास ही गरियाबंद की ओर खिंचे चले आते है और एक लोटा जल चढाकर अपनी सारी चिंताओं को त्याग कर भूतेश्वर नाथ की शरण में पहुंच जाते है. घने जंगलो के बीच बसा है ग्राम मरौदा सुरम्य वनों एवं पहाडियों से घिरे अंचल में प्रकृति प्रदत्त विश्व का सबसे विशाल शिवलिंग विराजमान है.
इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाडी थी. शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मे घुमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं शेर के दहाडनें की आवाज आती थी. अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई. ग्राम वासियों ने भी शाम को उक्त आवाजे अनेक बार सुनी. तथा आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की. लेकिन दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्वा बढ़ने लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे. इस बारे में पारागावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था. धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढ़ती गई. जो आज भी जारी है इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है.
कल्याण ने प्रमाणित किया
इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण? के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विषाल शिवलिंग बताया गया है. यह जमीन से लगभग 72 फीट उंचा एवं 210 फीट गोलाकार है. यहां मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी मनोकामना की जाती है वह पूरी होती है.
दूर दूर से आते है भुतेश्वर के सेवक
इस संबंध में भूतेश्वरनाथ पहुंचे बिलासपुर के एक भक्त एवं उनके परिवार ने बताया कि इसके बारे में काफी सुन रखा था. इसीलिए इतनी दूर यहां पहुंचे. वहीं एक अन्य ने बताया कि यहां जल चढ़ाने से आत्मिक शांति मिलती है जो पैसे से नहीं मिलती. यहां तीन दिवस तक संत समागम होता हैं. जनमानस के परोपकार के लिए प्रवचन व कीर्तन, मानसगान, भगवदगीता पाठ होता हैं तथा अनेक विद्वानों का सतसंग एवं समागम होता हैं.
गिरिवन है गरियाबंद
यह समस्त क्षेत्र गिरी (पर्वत) तथा वनों से आच्छादित हैं इसे गिरिवन क्षेत्र कहा जाता था, लेकिन कालांतर में गरियाबंद कहलाया जाता हैं भूमि, जल, अग्नि, आकाश और हवा पंचभूत कहलाते हैं. इन सबके ईश्वर भूतेश्वर हैं समस्त प्राणियों का शरीर भी पंचभूतों से बना हैं. इस तरह भुतेश्वरनाथ सबके ईश्वर हैं उनकी आराधना/ सम्पूर्ण विष्व की आराधना हैं. भुतेश्वरनाथ प्रांगण अत्यंत विशाल हैं यहां पर श्री गणेश मंदिर, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, यज्ञ मंडप, दो सामुदायिक भवन, एक सांस्कृतिक भवन तथा बजरंग बली का मंदिर हैं. भुतेश्वरनाथ समिति तथा अनेक श्रध्दालुओं के द्वारा यह निर्माण हुए हैं जो भुतेश्वरनाथ धाम को भव्यता प्रदान करते हैं. वन आच्छादित सुरम्य स्थलि बरबस मन को मोह लेती हैं, समय समय पर यहां भक्तजन रूद्राभिषेक कराते हैं चैमासे में भक्तजनों का तांता लगा रहता है.
शिव पूजा का पावन दिन आज
पंडितों का कहना है कि भगवान शंकर के भक्तों के लिए महाशिवरात्रि सबसे बड़ा दिन और पर्व होता है. शिव पूजा का सबसे बड़ा और पावन दिन महाशिवरात्रि को माना गया है. शिव पुराण के मुताबिक यह दिन उनके साधकों और भक्तों के लिए मनोकामनाओं की पूर्ति और भक्ति का सबसे उत्तम दिन होता है.
चप्पे चप्पे पर होंगे जवान
आज भुतेश्वरनाथ में लगने वाले मेले में पुलिस ने भी खास सुरक्षा इन्तजाम किये है. यहा चप्पे चप्पे पर पुलिस जवान नजर आ रहे है. सुरक्षा के संबंध में आज भुतेश्वर पहुंच थाना प्रभारी राजेश जगत ने बताया कि 100 से अधिक जवानों कि ड्यूटी यहां लगाई गई है. इसके अलावा सादी वर्दी में जवान भी तैनात रहेंगे, 8 सीसीटीवी कैमरा के माध्यम से भी निगरानी हो रही है.
::/fulltext::