Owner/Director : Anita Khare
Contact No. : 9009991052
Sampadak : Shashank Khare
Contact No. : 7987354738
Raipur C.G. 492007
City Office : In Front of Raj Talkies, Block B1, 2nd Floor, Bombey Market GE Road, Raipur C.G. 492001
नई दिल्ली: जगन्नाथ धाम यानी कि धरती का बैकुंठ. ओडिशा में सरकार बनते ही बीजेपी सरकार ने अपना बड़ा चुनावी वादा पूरा करते हुए जगन्नाथ धाम (Odisha Jagannath Puri Temple) के चारों द्वार खुलवा दिए. CM मोहन चरण माझी ने बुधवार को इसका ऐलान किया. कोरोना महामारी के बाद से श्रद्धालुओं को एक ही द्वार से मंदिर में प्रवेश करना पड़ता था, जिससे भीड़ और परेशानी होती थी. अब भक्त सभी चर द्वार से मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं. इससे भीड़ से दो चार नहीं होना पड़ेगा. जगन्नाथ मंदिर के ये चार द्वार कौन से हैं और इनके महत्व से जुड़ी कहानी भी जानिए.
जगन्नाथ मंदिर के 4 द्वार कौन-कौन से?
जगन्नाथ मंदिर के बाहरी दीवार पर पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी चार द्वार हैं. पहले द्वार का नाम सिंहद्वार (शेर का द्वार), दूसरे द्वार का नाम व्याघ्र द्वार (बाघ का द्वार), तीसरे द्वार का नाम हस्ति द्वार (हाथी का द्वार) और चौथे द्वारा का नाम अश्व द्वार (घोड़े का द्वार) है. इन सभी को धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है.
जगन्नाथ मंदिर के 4 द्वारों का महत्व?
मंदिर का पूर्वी द्वार सिंहद्वार: यह जगन्नाथ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार है. इस द्वार पर झुकी हुई मुद्रा में दो शेरों की प्रतिमाएं हैं. माना जाता है कि इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मंदिर का पश्चिमी द्वार व्याघ्र द्वार: जगन्नाथ मंदिर के इस प्रवेश द्वार पर बाघ की प्रतिमा मौजूद है. यह हर पल धर्म के पालन करने की शिक्षा देता है. बाघ को इच्छा का प्रतीक भी माना जाता है. विशेष भक्त और संत इसी द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं.
मंदिर का उत्तरी द्वार हस्ति द्वार: मंदिर के इस द्वार के दोनों तरफ हाथियों की प्रतिमाएं लगी हैं. हाथी को माता लक्ष्मी का वाहन माना जाता है. कहा जाता है कि मुगलों ने आक्रमण कर हाथी की इन मूर्तियों को क्षति-विकृत कर दिया था. बाद में इनकी मरम्मत कर मूर्तियों को मंदिर उत्तरी द्वार पर रख दिया गया. कहा जाता है कि ये द्वार ऋषियों के प्रवेश के लिए है.
मंदिर का दक्षिणी द्वार अश्व द्वार: मंदिर के इस द्वार के दोनों तरफ घोड़ों की मूर्तियां लगी हुई हैं. खास बात यह है कि घोड़ों की पीठ पर भगवान जगन्नाथ और बालभद्र युद्ध की महिमा में सवार हैं. इस द्वार को विजय के रूप में जाना जाता है.
जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढ़ियां 'बैसी पहाचा'
पुरी के जगन्नाथ धाम मंदिर में कुल 22 सीढ़ियां हैं. ये सभी सीढ़ियां मानव जीवन की बाईस कमजोरियों का प्रतीक हैं. धार्मिक मान्यता के मुताबिक, ये सभी सीढ़ियां बहुत ही रहस्यमयी हैं. जो भी भक्त इन सीढ़ियों से होकर गुजरता है, तो तीसरी सीढ़ी का खास ध्यान रखना होता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखना होता. तीसरी पीढ़ी यम शिला कही जाती है. अगर इस पर पैर रख दिया तो समझो कि सारे पुण्य धुल गए और फिर बैकुंठ की जगह यमलोक जाना पड़ेगा. यही वजह है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए जाते समय तीसरी सीढ़ी पर पैर न रखने की सलाह दी जाती है.
मान्यता के मुताबिक, मंदिर में 22 सीढ़ियां हैं लेकिन वर्तमान में 18 सीढ़ियां ही दिखाई देती हैं. अनादा बाजार की तरफ की दो सीढ़ियों को जोड़ दें तो ये इनकी संख्या 20 है. 21 और 22वीं सीढ़ी मंदिर की रसोई की तरफ हैं. इन सभी सीढ़ियों की ऊंचाई और चौड़ाई 6 फीट और बात अगर लंबाई की करें तो यह 70 फीट है. मंदिर की कुछ सीढ़ियां 15 फीट चौड़ी भी हैं. वहीं कुछ 6 फीट से भी कम हैं. भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए इन सभी सीढ़ियों को पार करना पड़ता है.
जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढ़ियों के नाम
टिबरा | 2कुमदबती | मंदा | चंदोबती | दयाबती | रंजनी | रतिका | रौद्रा | क्रोधा | बद्रिका | प्रसारिणी |
ब्रती | मार्जनी | ख्याति | रक्ता | संदीपनी | अजापानी | मदांती | रोहिणी | राम्या | उग्रा | क्षोरिने |
तीसरी सीढ़ी पर पैर रखते ही यमलोक जाओगे!
माना जाता है कि इन सीढ़ियों पर कदम रखने से इंसान के भीतर की बुराइयां दूर हो जाती हैं. लेकिन भगवान के दर्शन कर वापस लौटते समय तीसरी सीढ़ी से बचने की सलाह दी गई है. पुराणों में तीसरी सीढ़ी को 'यम शिला' कहा गया है. कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने तीसरी सीढ़ी यमराज को देते हुए कहा था कि जब भी कोई भक्त दर्शन से लौटते समय तीसरी सीढ़ी पर पैर रखेगा, तो उसके सभी पुण्य खत्म हो जाएंगे और वह बैकुंठ की बजाय यमलोक जाएगा.
ओम (OM chant) को अनंत शक्ति का प्रतीक और ब्रह्माण्ड का सार माना गया है. ओम को ब्रह्माण्ड की सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी ध्वनियों में शामिल किया गया है. इसमें ब्रह्माण्ड का रहस्य (Secret of the universe) छिपा है. ओम के उच्चारण व जाप से धर्म, कर्म, अर्थ ओर मोक्ष की प्राप्ति होती है. ओम की ध्वनि शाश्वत है इसे किसी ने बनाया नहीं है इसीलिए इसे अनहद नाद भी कहते हैं. मान्यता है कि ओम में 'अ' से आदि कर्ता ब्रह्मा, उ से विष्णु और म से महेश यानि शिव का बोध होता है. ओम के उच्चारण से गले में स्थित थायराइड ग्रंथि में कंपन होता है जिसका सकारात्मक असर पड़ता है. आइए जानते हैं ओम का रहस्य (Secret of the universe is contained in OM) और इसका महत्व….
शास्त्रों में ओम
जब हम ओम का उच्चारण करते हैं तो तीन अक्षरों की ध्वनि निकलती है. ये तीन अक्षर अ,उ और म हैं. इन तीनों अक्षरों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना गया है. मांडूण्य उपनिषद में कहा गया है कि ब्रह्माण्ड में वर्तमान, भविष्य और भूतकाल से परे जो हमेशा मौजूद रहता है वह ओम है. खगोलविदों के अनुसार ब्रह्माण्ड में ओम की ध्वनि निरंतर सुनाई पड़ती है. ओम में ही ब्रह्माण्ड रहस्य निहित है.
ओम में निहित है तन्मात्रा
सनातन धर्म में प्रकृति को पंचभूतों की श्रृंखला की संज्ञा दी गई है. ये पंच महाभूत अग्नि, वायु, आकाश, जल और धरती हैं. मांडूक्य उपनिषद में तन्मात्रा का महत्व बताया गया है. तन्मात्रा को चेतना का पूंज बताया गया है जिसके माध्यम से प्रकृति, प्राणी ओर जीवन ऊर्जावान हैं. तन्मात्रा ओम में निहित है.
ओम ही ब्रह्म
यजुर्वेद में कहा गया है ओम ब्रह्म है और ओम सर्वत्र व्याप्त है. ओंकार तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है 1 इनमें सात्विक, राजसी और तामसी गुण शामल हैं. ओम को इत्येत् अक्षर यानि अविनाशी, अव्यय और क्षरण रहित बताया गया है. ओम के उच्चारण से मन से चिंता और तनाव दूर होते हैं. इसके उच्चारण से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है. गीता में बताया गया है कि किसी भी मंत्र के पहले ओम के उच्चारण से पुण्य प्राप्त होता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है)
आज से नवरात्रि का पर्व शुरू हो गया है. इस बार 5 साल बाद अद्भुत संयोग बन रहा है, ऐसे में मां के नौ रूपों की पूजा करना बहुत फलदायी होगा. नवरात्रि में नौ दिन का उपवास करने वाले व्रती कलश स्थापना करके मां की पूजा की शुरूआत करते हैं. इस बार आप घटस्थापना सुबह की बजाय दोपहर में करते हैं तो मां का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त होगा. तो चलिए जानते हैं कितने से कितने बजे तक घटस्थापना का मुहूर्त है.
इस बार वैधृति योग दोपहर बाद 2.18 बजे तक होने के कारण घटस्थापना सुबह 11.54 बजे से दोपहर 12.44 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त में ही सर्वश्रेष्ठ रहेगी. घटस्थापना के लिए 50 मिनट का मुहूर्त रहेगा. आपको बता दें कि पहले ही दिन 3 राजयोग बन रहा है.
नवरात्रि जिस दिन से शुरू होती है उसके आधार पर ही माता की सवारी निश्चित होती है. धर्म शास्त्रों के अनुसार, मंगलवार और शनिवार को नवरात्रि की शुरूआत शुभ संकेत वाली नहीं होती है. इस बार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल यानी मंगलवार को शुरू होगी. मंगलवार और शनिवार को नवरात्रि शुरू होने पर माता घोड़े पर सवार होकर पधारती हैं. माता की सवारी घोड़ा होना सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में बड़े बदलावों की ओर संकेत करता है. इसे युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ या अकाल जैसी परेशानियों का भी संकेत माना जाता है.
इस बार चैत्र नवरात्रि 17 अप्रैल को राम नवमी के दिन समाप्त होगी और उस दिन बुधवार है. नवरात्रि की समाप्ति बुधवार को होने पर माता हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करती हैं. हाथी की सवारी पर प्रस्थान के शुभ संकेत वाला माना जाता है. यह अच्छी बारिश, अच्छी फसल और किसानों को भरपूर फसल प्राप्त करने का संकेत देती है.
नवरात्रि की पूजा का जितना महत्व है उतना ही भोग का भी है. मां की पूजा अर्चना में कई बातों का विशेष ख्याल रखना होता है, जिसमें से एक है भोग को सही पात्र में लगाना. अकसर लोग माता दुर्गा को सोने, चांदी, तांबा, स्टील आदि धातु के पात्र में प्रसाद चढ़ा देते हैं, जो कि नहीं करना चाहिए. इनसे नकारात्मक ऊर्जा निकलती है. इसलिए देवी दुर्गा को भोग लगाने के लिए विशेष धातु का पात्र होना जरूरी है. ऐसे में चलिए आपको बताते हैं कि आखिर किस पात्र में मां को भोग लगाना चाहिए.
पीतल या मिट्टी के पात्र में ही माता दुर्गा को भोग लगाना चाहिए. यह पात्र शुभ माना जाता है. वहीं, पूजा करने के बाद प्रसाद तुरंत ग्रहण करना चाहिए और लोगों में भी वितरित करें. देवी देवताओं के पास ज्यादा देर प्रसाद रखना अच्छा नहां माना जाता है. इसके अलावा पुराने पीतल के बर्तन में भी भोग लगाया जा सकता है, लेकिन वह गंदा और टूटा न हो. कोशिश करें मिट्टी का बरतन उपयोग करें प्रसाद चढ़ाने के लिए. यह बेस्ट होता है.
कौन से हैं मां दुर्गा के 32 नाम
अब बात आती है कि मां दुर्गा के 32 नाम कौन से हैं, जिनकी जाप करके आप भय और दुख को दूर कर सकते हैं, तो यह इस प्रकार हैं-