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ईद-उल-फितर मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बहुत बड़ा पर्व है। रमजान के पूरे महीने रोजे रखने के बाद ईद मनाने की एक अलग ही ख़ुशी और उत्साह देखने को मिलता है। रमजान में हर एक मुसलमान अपना वक़्त अल्लाह की इबादत में गुजारता है। साथ ही अपने और अपने परिवार के लिए दुआएं मांगता है।
इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, साल के नौवें महीने में रोजे रखे जाते हैं और रमादान माह के आख़िरी दिन ईद का पर्व मनाया जाता है। ईद मनाने की तिथि चांद के दीदार के बाद तय की जाती है। लगभग दो साल से कोरोना का असर पर्व-त्योहारों पर भी देखने को मिला। ईद की रौनक भी इससे अछूती नहीं रही। मगर इस साल ईद-उल-फितर की रंगत सब जगह देखने को मिल रही है। जानते हैं भारत में ईद-उल-फितर या मीठी ईद का त्योहार कौन सी तारीख को मनाया जाएगा।
सऊदी अरब में 2 मई की ईद सऊदी अरब सुप्रीम कोर्ट और चांद देखने वाली कमेटियों ने घोषणा की है कि अर्ब देशों में ईद-उल-फितर का जश्न 2 मई 2022 को मनायी जाएगी। सऊदी अरब की मुहर के बाद अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा व अन्य पश्चिमी देशों में भी इसी दिन ईद मनायी जाएगी।
भारत में ईद की सही तारीख
एशियाई देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि में 1 मई 2022 के दिन शव्वाल अर्धचंद्र की तलाश की गयी। मगर चांद दिखने की खबर नहीं मिल पाई। इस वजह से 2 मई को रोजा रखा जाएगा और अगले दिन यानी 3 मई 2022, मंगलवार को ईद-उल- फितर का उत्सव जोरशोर से मनाया जाएगा। गौरतलब है कि लखनऊ के मरकजी चांद कमेटी ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि ईद-उल-फितर की नमाज 3 मई की सुबह 10 बजे होगी और इसी दिन ईद मनायी जाएगी।
ईद का दिन होता है ख़ास
एक महीने रोजे रखने के बाद हर किसी के मन में ईद को लेकर खासा उत्साह रहता है। इस दिन सभी नए कपड़े पहनते हैं। मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की जाती है। सब्र की अहमियत सिखाने के लिए अल्लाह का शुक्रिया अदा किया जाता है। ऊपरवाले की मेहरबानी से ही वो अपना रोजा पूरा कर सकें। वहीं हर घर में तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं जिसमें मीठी सेवईं जरुर शामिल होती है। दोस्तों और रिश्तेदारों के घर आना-जाना लगा रहता है। घर के छोटे सदस्यों को ईदी देने की भी रिवायत है। वहीं जरुरतमन्द व गरीब लोगों को भी जकात के रूप में ईद मनाने के लिए जरूरी सामान दिया जाता है। सिर्फ मीठे पकवानों के कारण नहीं, इस त्योहार में घुली मिठास ईद-उल-फितर को मीठी ईद बना देती है। नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। बोल्डस्काई लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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हिन्दू पंचांग में एकादशी तिथि और व्रत का बहुत महत्व होता है। पंचांग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत और सच्ची श्रद्धा से पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी को कल्याणकारी एकादशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के विष्णु के छठे वमन अवतार के जन्म पश्चात इस एकादशी पर्व की शुरुआत हुई। चलिए जानते हैं इस विशिष्ट एकादशी की तिथि, मुहूर्त, पूजन विधि और अन्य जानकारी के बारे में-
वरुथिनी एकादशी व्रत की तिथि एवं मुहूर्त
वरुथिनी एकादशी 26 अप्रैल को पड़ेगी, तिथि की शुरुआत 26 को प्रातः 01:37 बजे होगी और 27 अप्रैल की रात 12:47 को समापन होगा। एकादशी व्रत का पारण समय 27 अप्रैल को सुबह सुबह 06:41 बजे से 08:22 तक रहेगा। इस दिन शाम 7 बजे तक ब्रह्म योग है, उसके बाद से इंद्र योग प्रारंभ हो जाएगा। शतभिषा नक्षत्र शाम 04:56 बजे तक है, फिर पूर्व भाद्रपद लगेगा। ये दोनों ही योग और नक्षत्र मांगलिक कार्यों के लिए शुभ हैं।
वरुथिनी एकादशी का महत्व
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से सुख समृद्धि एवं मन की शान्ति मिलती है। इस दिन व्यक्ति को अपना मन भक्ति कार्यों में लगाना चाहिए और भगवान विष्णु के लिए ध्यान लगाना चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस एकादशी व्रत का पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजन विधि
प्रातः काल में स्नान करके एकादशी व्रत का संकल्प लें। इस दिन निर्जला व्रत का पालन होता है। हालांकि फलों का सेवन किया जाता है, परंतु जल नहीं लिया जाता। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा अक्षत, तुलसी और दीपक जलाकर करें। साथ ही भगवान विष्णु के साथ साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें। पीपल के पेड़ की पूजा करना भी इस दिन शुभ माना जाता है। पूरे दिन व्रत का पालन करके द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें। व्रत के दौरान पान, दातुन, तेल, नमक व अन्न का सेवन मना है। एकादशी के एक दिन पूर्व भी मांस या मंसूर की दाल का सेवन ना करें।
व्रत कथा
एक समय नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम का राजा था। एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन थे कि अचानक तभी वहां एक जंगली भालू आया और उनका पैर चबाने लगा। राजा इस घटना से तनिक भी भयभीत नहीं हुए और कष्ट सहते हुए भी अपनी तपस्या में लगे रहे। बाद में वे उनके पैर को चबाते हुए भालू उनको घसीटकर पास के जंगल में ले गए। तब राजा मान्धाता ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और भालू का अंत कर दिया। राजा का पैर भालू खा चुका था और वह इस बात को लेकर वह बहुत परेशान हो गए। भगवान विष्णु बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करों। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था। भगवान की आज्ञा मानकर राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया। व्रत के प्रभाव से वह सुंदर और संपूर्ण अंगो वाला हो गए। जिस तरह से वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा को कष्टों से मुक्ति प्राप्त हुई उसी प्रकार भक्त भी वरुथिनी एकादशी के व्रत का पालन करके अपने कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। बोल्डस्काई लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
चतुर्थी व्रत महीने में दो बार आते हैं. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन संकष्टी चतुर्थी होती है और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है. वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को विकट संकष्टी चतुर्थी का पूरे विधि-विधान से व्रत रखा जाता है. विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और मान्यतानुसार उनको सुपारी, पान, मोदक, दूर्वा अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि जो लोग विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते हैं और सच्चे भाव से व्रत कथा का पाठ करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कहा जाता है कि विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत में चंद्रमा के दर्शन करना जरूरी होता है. बिना चंद्रमा के दर्शन किए व्रत पूरा नहीं होता.
विकट संकष्टी चतुर्थी की पूजा
पंचांग के मुताबिक, चतुर्थी तिथि की शुरुआत 19 अप्रैल को शाम 4:38 पर हो रही है. यह तिथि 20 अप्रैल को दोपहर 1:52 पर समाप्त होगी. इस व्रत में चंद्रमा का खास महत्व होता है इसलिए चतुर्थी तिथि पर चंद्रमा 19 अप्रैल को उदय होगा. इसी आधार पर विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत 19 अप्रैल को रखा जाएगा. संकष्टी चतुर्थी के दिन शुभ समय 11:55 से दोपहर 12:46 तक माना जा रहा है. संकष्टी चतुर्थी के शुभ मुहूर्त में मान्यता है कि इस दौरान आप कोई भी मांगलियक या शुभ कार्य कर सकते हैं.
विकट संकष्टी चतुर्थी पर सूर्योदय
विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करने की विशेष मान्यता है, इसे बहुत शुभ माना जाता है. दरअसल पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रदेव ने गणेश जी को ऐसा वरदान दिया था कि संकष्टी चतुर्थी के व्रत में उनका दर्शन करना महत्वपूर्ण होगा. संकष्टी चतुर्थी वाले दिन बहुत देर तक चंद्रोदय (Moon Rising) का इंतजार करना पड़ता है. कृष्ण पक्ष का चंद्रमा देर से नजर आता है. इस बार चंद्रमा के उदय का समय रात 9:50 पर माना जा रहा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में जगह के आधार पर चंद्रोदय के समय में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है.
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूरे विधि-विधान से पूजा करने पर भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं. शास्त्रों में भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है. यही वजह है कि विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्त सच्चे मन से बप्पा की पूजा करते हैं और फिर चंद्र दर्शन करने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है.
खास बातें
हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनाई जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ये तिथि इस बार 16 अप्रैल 2022 को पड़ रही है. संयोग से इस दिन शनिवार भी है. चैत्र माह में रामनवमी मनाई जाती है. यानी विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम और शिव के रुद्रावदार बजरंगबली का जन्म चैत्र माह में ही माना गया है. माना जा रहा है इस वर्ष इस दिन सुबह 2 बजकर 25 मिनट से तिथि शुरू हो रही है जो रात 12 बजकर 24 मिनट तक मनाई जाएगी. इसी समय अंतराल में बजरंगबली की पूजा अर्चना करना शुभ फलदायी माना गया है. आइए जानते हैं मान्यतानुसार अलग-अलग राशि के श्रद्धालु अपने बजरंगबली (Bajrangbali) की कृपा पाने के लिए भोग में क्या चढ़ाएं.
राशि अनुसार बजरंगबली का भोग
मान्यता है कि हनुमान जयंती के दिन भक्तों को अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान को भोग अर्पित करना चाहिए, इससे उनके सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं. राशि अनुसार लगाए गए भोग विशेष फलदायी भी माने गए हैं. चलिए जानते हैं पौराणिक कथाओं के अनुसार किस राशि को कौन सा भोग (Bajrangbali Bhog) अर्पित करना चाहिए.
मेष- मेष राशि को बजरंग बली की पूजा करते हुए बेसन के लड्डू का भोग लगाना शुभ बताया गया है.
वृषभ- मान्यतानुसार इस राशि के जातक हनुमान जी को तुलसी (Tulsi) के बीज का भोग लगाएंगे तो विशेष फल मिल सकता है.
मिथुन- तुलसी दल भगवान को चढ़ा कर मान्यतानुसार मिथुन राशि वाले मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना कर सकते हैं.
कर्क- माना जाता है कि कर्क राशि वालों को शुद्ध देसी घी में बेसन का हलवा बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए.
सिंह- मान्यतानुसार सिंह राशि वाले इच्छा पूर्ति के लिए बजरंगबली को जलेबी का भोग लगाएं.
कन्या- कहते हैं कि कन्या राशि (Virgo) वालों को इस खास दिन बजरंगबली को चांदी के अर्क का भोग लगाना चाहिए.
तुला- बजरंगबली को लड्डू बहुत प्रिय हैं. मान्यतानुसार तुला राशि वाले इस दिन भगवान को मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाएं.
धनु- माना जाता है धनु राशि वाले भी भगवान को मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाएं साथ में तुलसी दल भी रखें.
मकर- मान्यतानुसार मकर राशि वालों के लिए भी यही प्रसाद उत्तम है. वो भगवान को मोतीचूर के लड्डू अर्पित करें.
कुंभ- कुंभ राशि के जातक अपनी इच्छा से भोग लगा सकते हैं. लेकिन, उससे पहले मान्यतानुसार उन्हें बजरंगबली को सिंदूर का लेप करना चाहिए.
मीन- मीन राशि वाले लौंग का भोग लगाकर इच्छापूर्ति की कामना कर सकते हैं.