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नई दिल्ली: मंदार पर्वत हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थलों में से एक है. मंदार पर्वत को तीन धर्मों का संगम कहा जाता है. हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और सफा धर्म को मानने वाले लोगों के लिए भी यह एक बड़ा तीर्थ स्थल है. 700 फीट ऊंचे इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं. बिहार के भागलपुर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे बांका जिले में 'मंदार पर्वत' स्थित है. मंदार पर्वत से संबंधित एक कथा यह भी है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था, जिसमें हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे. बताया जाता है कि इस पहाड़ से देवता और असुर दोनों ने मिलकर मथनी की तरह महके रत्नों के साथ अमृत प्राप्त किया था. धार्मिक ग्रंथों में समुद्र मंथन का विस्तार से वर्णन किया गया है.
कहा जाता है कि राजा बलि जब तीनों लोकों के स्वामी बने थे, उस दौरान स्वर्ग के देवता इंद्र समेत सभी देवता और ऋषियों ने भगवान श्री हरि विष्णु से तीनों लोकों की रक्षा की प्रार्थना की थी. देवों द्वारा याचना करने पर श्री हरि ने उन्हें समुद्र मंथन करने की युक्ति दी थी. भगवान विष्णु ने देवों को कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, जिसके पान से देवता अमर हो जाएंगे. कालांतर में क्षीर सागर में वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया. बताया जाता है कि इस मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए थे. मंथन के समय अमृत का पान देवताओं ने किया और विष का पान भगवान शिव ने. कहते हैं मंथन के बाद दानवों और देवताओं के बीच महासंग्राम भी हुआ, जिसमें देवताओं की विजय हुई. कालांतर में जिस पर्वत पर समुद्र मंथन हुआ, वर्तमान में वह बिहार के बांका जिले में अवस्थित है.
मंदार पर्वत के पृथ्वी पर अवस्थित होने की अनोखी कथा
चिरकाल में मधु और कैटभ नामक दो दैत्य थे, जिनके अत्यचार से तीनों लोकों पर हाहाकार मचा हुआ था. भगवान श्री हरि विष्णु ने मधु और कैटभ राक्षस को पराजित कर उनका वध कर दोनों के धड़ को दो विपरीत दिशा में फेंक दिया, जिसके बावजूद दोनों के धर एकजुट होकर मधु और कैटभ बन गए. इसके उपरांत वापस से तीनों लोकों में इनका आतंक शुरू हो गया. पुराणों के अनुसार, यह लड़ाई लगभग दस हजार साल तक चली थी. इस दौरान श्री हरि विष्णु ने आदिशक्ति का आह्वान किया और मां दुर्गा ने मधु और कैटभ का वध कर दिया.
कालांतर में भगवान नारायण ने मधु और कैटभ को पृथ्वी लोक पर लाकर मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया, ताकि वह फिर से उत्पन्न न हो सके. कहा जाता है कि मधु और कैटभ श्री हरि से मकर संक्रांति के दिन उनसे दर्शन देने का वरदान मांगा. दानवों के इस वरदान को श्री हरि ने स्वीकार कर लिया. मान्यता है कि कालांतर से भगवान नारायण मकर संक्रांति के दिन मंदार पर्वत दानवों को दर्शन देने आते हैं.
बौद्ध और सफा धर्म का तीर्थ स्थल है मंदार पर्वत
जैन धर्म के भगवान वाशु पूज्य का निवास स्थल मंदार पर्वत माना जाता है. बता दें कि मंदार पहाड़ पर बने मंदिर में जैन धर्म के गुरुओं के पद चिन्ह विद्यमान हैं. जैन धर्म के 12 में तीर्थंकर वाशु पूज्य का मंदिर है, जिसमें करीब 3 सहस्त्र साल पुरानी चरण पादुका मौजूद है. जिनके दर्शन के लिए लोग देश-विदेश से यहां आते हैं. इसी तरह 1920 में सफा धर्म के गुरु चंद्र दास जी महाराज ने यहां रहना शुरू किया था. कहते हैं उन्हें यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. यहां उन्होंने 1934 में एक कुटिया का निर्माण कराया था.
मंदार पर्वत में है सीता कुंड
बता दें कि मंदार पर्वत पर ही सीता कुंड भी है. सीता कुंड से संबंधित कई कहानियों प्रचलित हैं. कहा जाता है कि भगवान श्री राम जब वनवास गए थे, तब वह मंदार पर्वत पर भी रुके थे. कहते हैं यहीं माता सीता ने भगवान भास्कर की उपासना की थी. माना जाता है कि पर्वत के जिस जलकुंड में माता सीता ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया था, उसका नाम सीताकुंड पड़ गया.
मंदार पर्वत पर स्थित है पापहरणी तालाब
मंदार पर्वत पर पापहरणी तालाब स्थित है. प्रचलित कहानियों के अनुसार, कर्नाटक के एक कुष्ठपीड़ित चोलवंशीय राजा ने मकर संक्रांति के दिन इस तालाब में स्नान किया था, जिसके बाद से उनका स्वास्थ ठीक हो गया था, तभी से इसे पापहरणी के रूप में जाना जाता है. बता दें कि इसके पूर्व पापहरणी 'मनोहर कुंड' कुंड के नाम से जाना जाता था.
तालाब के बीच स्थित है लक्ष्मी-विष्णु मंदिर
बता दें कि पापहरणी तालाब के बीचों-बीच माता लक्ष्मी और भगवान श्री हरि विष्णु का मंदिर है. हर मकर संक्रांति पर यहां मेले का आयोजन होता है. मेले के पहले यात्रा भी होती है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.
नई दिल्ली: आस्था के महापर्व छठ के चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया गया. इसी के साथ चार दिनों तक चले छठ पर्व का समापन हुआ. बिहार समेत देश के कई राज्यों में सूर्य की उपासना के त्योहार छठ पर्व के पावन अवसर पर आज गुरुवार की सुबह सूर्य को अर्घ्य दिया गया. कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य को संध्या अर्घ्य देते हैं और छठी मैय्या की पूजा करते हैं. आज यानी 11 नवंबर के दिन सुबह फिर से उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया और इसके बाद प्रसाद बांटा गया. इन सब के बाद व्रती महिलाओं ने व्रत का पारण किया. बता दें कि छठ पर्व का समापन सुबह के समय सूर्य अर्घ्य के बाद किया जाता है. छठ पर्व पर सूर्य देव और उनकी बहन छठ मैय्या की उपासना की जाती है. संतान के जीवन में सुख की प्राप्ति और संतान प्राप्ति के लिए छठ का व्रत रखा जाता है. 36 घंटे निर्जला व्रत रखने के बाद उगते सूरज को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का समापन किया जाता है. सूर्योदय के साथ छठ महापर्व का प्रात:कालीन अर्घ्य देश के कई हिस्सों में किया गया.
बता दें कि सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत सोमवार को स्नान यानी नहाय-खाय के साथ हुई. इसके बाद मंगलवार को व्रतियों ने 'खरना' का प्रसाद ग्रहण किया था. 'खरना' के दिन व्रती उपवास कर शाम को स्नान के बाद विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसी के साथ व्रती महिलाओं का दो दिवसीय निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. इसके बाद आज बुधवार की शाम डूबते सूरज को अर्घ्य दिया गया. यह उपवास कल बृहस्पतिवार को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ समाप्त हो गया.
नई दिल्ली : छठ पूजा उत्तर भारत का एक बेहद महत्वपूर्ण त्योहार है. खासतौर पर उत्तरप्रदेश और बिहार के लिए छठ पर्व दिवाली जितना ही महत्वपूर्ण माना जा सकता है. इस त्योहार का श्रद्धालुओं को पूरी शिद्दत से इंतजार होता है. पर्व के दिन नजदीक आने के साथ ही तैयारियां भी तेजी से शुरू हो जाती हैं. इसके बाद पूरे उत्साह से होती है छठी मैया की पूजा. वैसे इस पर्व से भी ढेरों मान्यताएं जुड़ी हैं. अच्छी फसल, परिवार की सुख-समृद्धि और सुहाग व संतान की लंबी उम्र की कामना के साथ छठ का व्रत रखा जाता है.
छठ से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता ये भी है कि श्रीकृष्ण ने उत्तरा को ये व्रत रखने और पूजन करने का सुझाव दिया था. महाभारत युद्ध के बाद जब गर्भ में ही अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र का वध कर दिया गया था. तब उस जान को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने उत्तरा का षष्ठी व्रत करने के लिए कहा. इसलिए इस व्रत को संतान की लंबी आयु की कामना के लिए भी माना जाता है.
छठ पूजन का दिन और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की षष्ठी से ये पर्व शुरू हो जाता है. चार दिन चलने वाला ये पर्व इस साल यानि 2021 में 8 नवंबर यानि आज से शुरू हो चुका है. 8 नवंबर यानि आज से नहाय-खाय से पर्व पर पूजा पाठ शुरू होगा. अगले दिन खरना फिर सूर्य को अर्घ देने का दिन और फिर आखिरी दिन सुबह सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देकर पर्व का समापन होगा.
पूजन विधि
छठ पूजन पर विशेषतौर से महिलाएं व्रत रखती हैं और पूजा पाठ में सख्त नियमों का पालन किया जाता है. गोबर से लीप कर पूजा स्थल की साफ सफाई होती है. बलराम की पूजा के लिए हल की आकृति बनाई जाती है. इसके लिए भूसे और घास का उपयोग होता है. दिनों के अनुसार खास पूजा होती है.
नहाय खाय- छठ के पहले दिन सफाई सफाई और स्नान के बाद सूर्य देव को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लेना होता है. व्रत रखने वाले इस दिन चने की सब्जी, चावल और साग का सेवन करते हैं.
खरना- ये छठ का दूसरा दिन होता है. जब पूरे ही दिन व्रत रखा जाता है. शाम के लिए खासतौर से गुड़ की खीर बनाई जाती है. मिट्टी के चूल्हे पर ही ये खीर बनाने की परंपरा है. सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत रखने वाली महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं और फिर पूरे 36 घंटे बिना कुछ खाए पिए व्रत रखा जाता है.
तीसरा दिन- तीसरे दिन महिलाएं शाम के समय किसी तालाब या नदी के पास जाकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
अंतिम दिन- चौथे दिन सुबह सुबह व्रती महिलाएं नदी या तालाब में उतरकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं. प्रार्थना करती हैं और फिर व्रत का समापन करती हैं.
नई दिल्ली : राखी की तरह ही भाईदूज 2021 भी भाई बहन के प्रेम का ही त्योहार है. दीपावली के दो दिन बाद भाईदूज मनाने का चलन पुराना है. भाई बहन के स्नेह के इस पर्व का महत्व भी रक्षाबंधन से कहीं कम नहीं है. भाईदूज के दिन भी बहन अपने भाई को तिलक करती है. इस मनोकामना के साथ कि उसके भाई की उम्र लंबी हो. और, भाई अपनी बहन को सुख समृद्धि का आशीष देता है. दीपावली के दूसरे दिन यानि गोवर्धन पूजा के अगले दिन भाई दूज मनाई जाती है जिसे यम द्वितिया भी कहा जाता है. जानिए इस साल किस दिन है भाई दूज और क्या है शुभ मुहूर्त.
कब है भाईदूज?
इस साल यानि कि साल 2021 में भाईदूज 6 नवंबर को पड़ रही है. इस दिन दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से 3 बजकर 22 मिनट तक मुहूर्त भाइयों को टीका करने के लिए सबसे शुभ है. यानि शुभ मुहूर्त का कुल समय 2 घंटे और 12 मिनट का है.
भाईदूज की पूजन विधि
भाईदूज की पूजन विधि भी काफी कुछ राखी की ही तरह है. इस दिन बहनें सुबह भगवान की पूजा के बाद अपने भाइयों के लिए पकवान तैयार करती हैं. भाई को तिलक करती हैं. मन में एक ही कामना होती है कि भगवान उनके भाई को हर संकट से बचाए. तिलक के बाद भाई की आरती की जाती है. भाईदूज पर भाई को पान खिलाने का भी दस्तूर है।
पौराणिक मान्यताएं
00पुराणों में भाईदूज से जुड़ी अलग अलग कहानियां मौजूद हैं. एक किवदंती के अनुसार सूर्य देव के पुत्र यम और पुत्री यमी थीं. विवाह के बाद यमी को भाई से मिलने का मौका कम ही मिलता है. कार्तिक माह में एक बार यम उनसे मिलन पहुंचते हैं. यमी अपने भाई का बहुत आदर सत्कार करती हैं. प्रसन्न होकर यम उनसे भेंट के लिए कहते हैं. बहन यमी कहती हैं कि भाई कितना भी व्यस्त रहे पर इस दिन हर वर्ष अपनी बहन से जरूर मिले. उसके बाद से भाईदूज की परंपरा शुरू हुई. यही वजह है कि इस पर्व को यम द्वितिया भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि भाईदूज पर भाई को तिलक कर बहन यम से भाई की लंबी उम्र की प्रार्थना करती है. माना जाता है कि यही प्रार्थना भाई को अकाल मृत्यु से भी बचाती है.