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खास बातें
नई दिल्ली: रोहिणी व्रत (Rohini Vrat) का जैन समुदाय में बेहद खास महत्व है. रोहिणी नक्षत्र के दिन होने के कारण इसे रोहिणी व्रत कहा जाता है. इस व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है. हर वर्ष 12 रोहिणी व्रत आते हैं. धार्मिक मान्यताओें के अनुसार, 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र रोहिणी भी है. हर महीने (rohini vrat days) यह व्रत किया जाता है. आमतौर पर रोहिणी व्रत (Rohini Vrat Kab Hai) का पालन 3, 5 या फिर 7 वर्षों तक लगातार किया जाता है. रोहिणी व्रत की उचित अवधि 5 वर्ष, 5 महीने है. उद्यापन के द्वारा ही इस व्रत का समापन किया जाना चाहिए. यह व्रत उस दिन किया जाता है जब रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय के बाद प्रबल होता है.
27 दिनों में एक बार होता है रोहिणी व्रत
रोहिणी व्रत रोहिणी नक्षत्र में ही किया जाता है और इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है. यह व्रत हर महीने पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. जैन धर्म में मान्यता है कि इस व्रत को पुरुष और स्त्रियां दोनों कर सकते हैं. स्त्रियों के लिए यह व्रत अनिवार्य है. इस व्रत को कम से कम 5 महीने और अधिकतम 5 साल तक करना चाहिए. महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए पूरे विधि विधान से रोहिणी व्रत करती हैं. ये व्रत हर 27 दिनों में एक बार होता है.
Rohini Vrat 2021: पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं रखती हैं रोहिणी व्रत
रोहिणी व्रत पूजा विधि (Rohini Vrat Puja Vidhi)
रोहिणी व्रत की तिथि और समय (Rohini Vrat Date And Time)
मासिक रोहिणी व्रत 2021 (Rohini Vrat 2021 Date)
पुराणों और शास्त्रों के मुताबिक पितृपक्ष वो समय होता है जब हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं। 15 दिन तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान वो अपने परिवार के साथ रहते हैं और फिर वापस अपनी दुनिया में चले जाते हैं। इस अंतराल में लोगों को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिस कारण उनके पूर्वजों को ठेस पहुंचे। इस लेख के माध्यम से जानते हैं ऐसे कौन से कार्य हैं जिन्हें करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में अच्छा समय आता है।
पितृपक्ष के दौरान ब्रह्मभोज कराया जाता है। इसके साथ ही अगर आप अपने बड़े बुजुर्गों को प्रसन्न करना चाहते हैं तो घर के जमाई, भांजा, मामा, गुरु और नाती को भी भोजन कराएं। इससे पूर्वजों का आशीर्वाद मिलेगा और घर में बरकत होगी।
आप जब ब्राह्मणों को भोजन कराएं, तब उनके भोजन के पात्र को दोनों हाथों से पकड़कर लाएं। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि ऐसा ना करने से भोजन का अंश राक्षसों को चला जाता है। ब्राह्मणों द्वारा भोजन ग्रहण करने के बाद भी पूर्वजों को इसका अंश नहीं मिल पाता है।
जीवों का रखें ख्याल
पितृपक्ष के समय में आपको किसी भी जीव जंतु से बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए। खासतौर से घर के द्वार पर आए जीवों के लिए भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए। इस दौरान रोजाना एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ते, कौए और बिल्ली को खिलाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इनके द्वारा ये भोजन सीधे पितर ग्रहण करते हैं।
करें सांझ पूजा
पितृपक्ष लगने के बाद रोजाना घर के द्वार पर दीपक जलाएं और अपने पितरों का ध्यान करें। उनसे अपनी घर की खुशहाली और समृद्धि की प्रार्थना करें। पीपल के पेड़ को भी पूर्वजों का वास स्थान माना जाता है इसलिए एक दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे भी रखें।
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक जिस तिथि को जिनके पूर्वज दुनिया से प्रस्थान करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध कर्म करना चाहिए। पितृपक्ष में जो लोग अपने पितरों का तर्पण करते हैं और उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वो प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
इस विधि से भी कर सकते हैं श्राद्ध कर्म
कई परिवार ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं होती है, ऐसे में उनके लिए पितृपक्ष में विशेष तिथियां निर्धारित की गयी हैं। वो उस खास तिथि पर पूरे विधि विधान से पूजा करके पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति की कामना कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद पा सकते हैं।