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भारतीय हिमालय क्षेत्र के एक गाँव में लोग पीढ़ियों से मानते आ रहे हैं कि ऊंचे पहाड़ों की बर्फ़ और चट्टानों के नीचे परमाणु डिवाइस दबे हैं.
इसलिए जब फ़रवरी की शुरुआत में ग्लेशियर टूटने से रैनी में भीषण बाढ़ आई तो गाँव वालों में अफरातफरी मच गई और अफ़वाहें उड़ने लगीं कि उपकरणों में "विस्फोट" हो गया है, जिसकी वजह से ये बाढ़ आई. जबकि वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालयी राज्य उत्तराखंड में आई बाढ़ की वजह टूटे ग्लेशियर का एक टुकड़ा था. इस घटना में 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई.
लेकिन 250 परिवारों वाले रैनी गाँव के लोगों से आप ये कहेंगे तो कई लोग आप पर भरोसा नहीं करेंगे.
रैनी के मुखिया संग्राम सिंह रावत ने मुझे कहा, "हमें लगता है कि डिवाइस की वजह से कुछ हुआ होगा. एक ग्लेशियर ठंड के मौसम में ऐसे कैसे टूट सकता है? हमें लगता है कि सरकार को जाँच करनी चाहिए और डिवाइस को ढूंढना चाहिए."
उनके डर के पीछे जासूसी की एक दिलचस्प कहानी है, जिसमें दुनिया के कुछ शीर्ष पर्वतारोही हैं, जासूसी सिस्टमों को चलाने के लिए रेडियोएक्टिव मटीरियल है और जासूस हैं.
ये कहानी इस बारे में है कि कैसे अमेरिका ने 1960 के दशक में भारत के साथ मिलकर चीन के परमाणु परीक्षणों और मिसाइल फायरिंग की जासूसी करने के लिए हिमालय में न्यूक्लियर-पावर्ड मॉनिटरिंग डिवाइस लगाए थे. चीन ने 1964 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था.
इस विषय पर विस्तार से लिख चुके अमेरिका की रॉक एंड आइस मैगज़ीन के कॉन्ट्रिब्यूटिंग एडिटर पीट टेकेडा कहते हैं, "शीत युद्ध से जुड़े डर चरम पर थे. कोई ठोस योजना नहीं थी, कोई बड़ा निवेश नहीं था."
अक्टूबर 1965 में भारतीय और अमेरिकी पर्वतारोहियों का एक समूह सात प्लूटोनियम कैप्सूल और निगरानी उपकरण लेकर निकला, जिनका वज़न क़रीब 57 किलो (125 पाउंड) था. इन्हें 7,816 मीटर ऊंचे नंदा देवी के शिखर पर रखना था. नंदा देवी भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है और चीन से लगने वाली भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा के नज़दीक है.
लेकिन एक बर्फ़ीले तूफ़ान की वजह से पर्वतारोहियों को चोटी पर पहुंचने से पहले ही वापस लौटना पड़ा. वो नीचे की तरफ़ भागे तो उन्होंने डिवाइस वहीं छोड़ दिए, जिसमें छह फुट लंबा एंटीना, दो रेडियो कम्युनिकेशन सेट, एक पावर पैक और प्लूटोनियम कैप्सूल थे.
एक मैगज़ीन ने रिपोर्ट किया कि वो इन चीज़ों को पहाड़ किनारे एक चट्टान की दरार में छोड़ आए थे, ये दरार ऊपर से ढंकी हुई थी, जहां तेज़ हवाएं नहीं आ सकती थीं. भारतीय टीम का नेतृत्व कर रहे और मुख्य सीमा गश्त संगठन के लिए काम कर चुके एक प्रसिद्ध पर्वतारोही मनमोहन सिंह कोहली कहते हैं, "हमें नीचे आना पड़ा. नहीं तो कई पर्वतारोही मारे जाते."
जब पर्वतारोही डिवाइस की तलाश में अगले वसंत पहाड़ पर लौटे ताकि उसे फिर से चोटी पर ले जा सकें, तो वे ग़ायब हो चुके थे.
उपकरणों के साथ क्या हुआ?
50 से भी ज़्यादा साल बीत जाने और नंदा देवी पर कई तलाशी अभियानों के बाद आज तक कोई नहीं जानता कि उन कैप्सूल के साथ क्या हुआ.
टेकेडा लिखते हैं, "हो सकता है खोया हुआ प्लूटोनियम अब तक किसी ग्लेशियर के अंदर हो, शायद वो चूरा होकर धूल बन गया हो, गंगा के पानी के साथ बहकर चला गया हो."
वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अतिशयोक्ति है. प्लूटोनियम परमाणु बम में इस्तेमाल होने वाला प्रमुख सामान है. लेकिन प्लूटोनियम की बैटरी में एक अलग तरह का आइसोटोप (एक तरह का केमिकल पदार्थ) होता है, जिसे प्लूटोनियम -238 कहा जाता है. जिसकी हाफ़-लाइफ (आधे रेडियोएक्टिव आइसोटोप को गलने में लगने वाला वक़्त) 88 साल है.
जो बचा रह गया है वो है अभियान दल की दिलचस्प कहानियां.
अपनी किताब नंदा देवी: अ जर्नी टू द लास्ट सेंचुरी, में ब्रिटिश ट्रैवल राइटर ह्यूग थॉम्पसन बताते हैं कि कैसे अमेरिकी पर्वतारोहियों को चमड़ी का रंग गहरा करने के लिए भारतीय सन टैन लोशन इस्तेमाल करने के लिए कहा गया था, ताकि स्थानीय लोगों को कोई शक़ ना हो; और कैसे पर्वतारोहियों से कहा गया था कि वो ऐसे दिखाएं कि वो उनके शरीरों पर कम ऑक्सीजन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए "हाई एल्टीट्यूड प्रोग्राम" पर हैं. जिन लोगों को सामान उठाने के लिए साथ ले गए थे, उन लोगों से कहा गया था कि ये "किसी तरह का ख़ज़ाना है, संभवत: सोना".
एक अमेरिकी पत्रिका आउटसाइड ने रिपोर्ट किया था कि इससे पहले, पर्वतारोहियों को "न्यूक्लियर जासूसी" के क्रैश कोर्स के लिए हार्वे प्वांइट्स ले जाया गया था, जो नॉर्थ कौरोलाइना में एक सीआईए बेस है. एक पर्वतारोही ने पत्रिका को बताया कि "कुछ वक़्त बाद हम अपना ज़्यादातर वक़्त वॉलीबॉल खेलने और पीने में बिताने लगे."
आख़िरकार उपकरण नंदा कोट की चोटी पर रख दिए गए
1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बताया
भारत में 1978 तक इस गुप्त अभियान के बारे में किसी को नहीं बताया गया. तब वॉशिंगटन पोस्ट ने आउटसाइड की स्टोरी को पिक किया और लिखा कि सीआईए ने चीन की जासूसी के लिए हिमालय की दो चोटियों पर न्यूक्लियर पावर्ड डिवाइस रखने के लिए अमेरिकी पर्वतारोहियों की भर्ती की, जिनमें माउंट एवरेस्ट के हालिया सफल समिट के सदस्य भी शामिल हैं.
अख़बार ने इस बात की पुष्टि की कि 1965 में पहले अभियान में उपकरण खो गए थे, और "दो साल बाद दूसरी कोशिश हुई, जो एक पूर्व सीआईए अधिकारी के मुताबिक़ 'आंशिक तौर पर सफल' रही."
1967 में नए उपकरण प्लांट करने की तीसरी कोशिश हुई. इस बार ये आसान 6,861-मीटर (22,510-फीट) पहाड़ नंदा कोट पर की गई, जो सफल रही. हिमालय में जासूसी करने वाले उपकरणों को तीन साल तक लगाने के इस काम के लिए कुल 14 अमेरिकी पर्वतारोहियों को एक महीने में 1,000 डॉलर दिए गए.
अप्रैल 1978 में, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने ये कहते हुए संसद में एक "बम फोड़ा" कि भारत और अमेरिका ने "शीर्ष स्तर" पर मिलकर इन न्यूक्लियर-पावर्ड डिवाइस को नंदा देवी पर प्लांट किया. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, लेकिन देसाई ने ये नहीं बताया कि ये मिशन कहां तक सफल हुआ.
उसी महीने में अमेरिकी विदेश विभाग के टेलीग्राम में "भारत में कथित सीआईए गतिविधियों" के ख़िलाफ़ दिल्ली के दूतावास के बाहर प्रदर्शन करने वाले कुछ 60 लोगों के बारे में बात की गई थी. प्रदर्शनकारियों के हाथों में "सीआईए भारत छोड़ो" और "सीआईए हमारे पानी को ज़हरीला कर रही है" जैसे नारे लिखे पोस्टर थे.
ट्रेनिंग के दौरान अपोलो 13 कमांडर जिम लवेल्ल एक प्लूटोनियम बैटरी और वैज्ञानिक उपकरण ले जाते हुए
अभियान का हिस्सा होने का पछतावा?
हिमालय में खो गए न्यूक्लियर उपकरणों का क्या हुआ, इस बारे में कोई नहीं जानता. एक अमेरिकी पर्वतारोही ने टेकेडा से कहा, "हाँ, डिवाइस हिमस्खलन की चपेट में आ गया और ग्लेशियर में फंस गया और भगवान जाने कि उसका क्या असर होगा."
पर्वतारोहियों का कहना है कि रैनी में एक छोटे स्टेशन ने रेडियोएक्टिविटी का पता लगाने के लिए नदी के पानी और रेत का नियमित परीक्षण किए, लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि उन्हें दूषित होने का कोई सबूत मिला या नहीं.
आउटसाइड ने लिखा, "जब तक प्लूटोनियम [पावर पैक में रेडियो-एक्टिविटी का स्रोत] ख़त्म नहीं हो जाता, जिसमें सदियां लग सकते हैं, ये उपकरण एक रेडियोएक्टिव ख़तरा रहेगा जो हिमालय की बर्फ़ में लीक हो सकता है और गंगा के पानी के साथ बहकर भारतीय नदियों के सिस्टम में पहुंच सकता है."
मैंने अब 89 साल के हो चुके कैप्टन कोहली से पूछा, क्या उन्हें उस अभियान का हिस्सा होने का पछतावा है जिसमें हिमालय में परमाणु उपकरणों को छोड़ दिया गया.
वो कहते हैं, "कोई पछतावा या ख़ुशी नहीं है. मैं सिर्फ़ निर्देशों का पालन कर रहा था."
पहले ब्लू व्हेल, फिर मोमो चैलेंज और अब एक और ऑनलाइन गेम PUBG खेलने की लत बच्चों में तेजी के साथ लगती जा रही है। हाल ही में गुजरात सरकार ने PUBG गेम पर बैन लगा दिया है। कई और राज्यों में भी इस गेम पर बैन लगाने की मांग की जा रही है। गुजरात सरकार की तरफ से स्कूलों को निर्देश जारी कर कहा गया है कि बच्चों को इस गेम से होने वाले नुकसानों के बारे में जागरुक करें। आज हम इस ब्लॉग में आपको PUBG जैसे ऑनलाइन गेम्स खेलने की लत से होने वाले नुकसानों के बारे में बताएंगे और इसके अलावा उन 7 कारगर उपायों के बारे में भी जानकारी देंगे जिन्हें आजमाकर आप अपने बच्चे को इस एडिक्शन से मुक्ति दिला सकते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक स्कूलों में पढ़ाई करने वाले बच्चे जिन्हें इस तरह के ऑनलाइन गेम्स की लत लग चुकी है वे अमूमन 3 से 4 घंटे तक खेलने में समय बिताते हैं। एक अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक स्कूल से आने के बाद बच्चे मोबाइल पर अपने दोस्तों के साथ ऑनलाइन पब्जी खेलने में व्यस्त हो जाते हैं। एक छात्र ने तो यहां तक बताया कि जिस समय में वे गेम्स नहीं खेल रहे होते हैं उस समय में भी उनके दिमाग में यही गेम चलता रहता है। अभिभावकों व पैरेंट्स की माने तो इस गेम की वजह से उनके बच्चों के व्यवहार में भी बदलाव देखने को मिल रहा है और वे पहले के मुकाबले ज्यादा चिड़चिड़े हो गए हैं।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पूछा ये PUBG वाला है क्या?’
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'परीक्षा पे चर्चा' कार्यक्रम के दौरान एक मां मधुमिता सेन गुप्ता ने सवाल पूछा कि मेरा बेटा 9वीं कक्षा का छात्र है, पहले मेरा बेटा पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही अच्छा प्रदर्शन करता था लेकिन पिछले कुछ दिनों से ऑनलाइन गेम्स खेलते रहने की वजह से उसकी पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मैं अपने बच्चे को बहुत समझाने का प्रयास कर रही हूं लेकिन वो मानता नहीं है। इस प्रश्न का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूछा कि ये PUBG वाला है क्या? पीएम मोदी ने कहा कि इस समस्या का समाधान भी है। हमें बच्चों को तकनीक की तरफ जाने के लिए बढावा देना चाहिए लेकिन इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि क्या ये तकनीक उसको रोबोट में बदल रही है या फिर इंसान बना रही है। इस बात की निगरानी करना जरूरी है
इसके अलावा भी PUBG गेम्स के एडिक्टेड बच्चों को कई और तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जैसा की आप भली-भांति जानते हैं कि लत किसी भी प्रकार की हो उसको एक झटके में छुड़ाया नहीं जा सकता है। अपने बच्चे से PUBG जैसे ऑनलाइन गेम्स की लत को छुड़ाने के लिए भी आपको धैर्य बनाए रखना होगा इसके अलावा आप कुछ असरदार उपायों को आजमा सकते हैं।
PUBG यानि कि प्लेयर्स अननोन्स बेटल ग्राउंड पर बैन लगाने के फैसले के साथ ही गुजरात सरकार ने बच्चों को इसकी लत छुड़ाने के लिए काउंंसलिंग भी कराने का निर्णय लिया है। यानि की आप समझ सकते हैं कि बच्चे इस गेम की लत में कितनी बुरी तरह से फंस चुके हैं।
मैं इस ख़बर (BJP नेता पर युवती से गैंगरेप का आरोप) को इस नज़र से नहीं देखना चाहूँगा कि भाजपा के नेता ने दुष्कर्म किया है. ऐसे आरोपियों को पार्टी से निकाल दिया गया है. पर यही सारा जवाब नहीं है. मैं इस सवाल का उत्तर जानना चाहता हूँ कि जो पार्टी धर्म और धार्मिक पहचान की राजनीति करती हो वह अपने समर्थक समूह से लेकर कार्यकर्ता समूह में धर्म का कौन सा आचरण स्थापित कर पाती है? सात्विक या पाशविक? धर्म के नाम पर की जाने वाली राजनीति हमेशा फ्राड होती है तभी वह हमेशा आक्रामक मुद्रा में होती है ताकि सवाल उनकी तरफ़ न आ सके. आक्रामक दिखते हुए वे रक्षक की मुद्रा में नज़र आए. बीजेपी ने धर्म का इस्तमाल कर धर्म का बेहतरीन आचरण कभी प्रस्तुत नहीं किया.
शिखर के नेता भी आराम से झूठ बोलते हैं. प्रपंच करते हैं. ज़ाहिर है आप इन कृत्यों को अधर्म ही कहते हैं. धर्म का क्षेत्र आपको न्याय करने वाला बनाता है, पापों के प्रायश्चित करने योग्य बनाता है और पाप से डर पैदा करता है. लेकिन हो रहा उल्टा है. अधर्म को धर्म का चेहरा बना कर राजनीति की जा रही है. इससे होगा यह कि धर्म की प्रतिष्ठा का पतन होगा. धूर्त लोग धर्म का लबादा ओढ़ कर झूठ को सच बनाएंगे और धंधा करेंगे. धर्म के नाम पर सत्य और विवेक का आचरण करने वाले ईमानदार समूह की जगह गुंडों का दल पैदा हो जाता है.
ज़मीन से लेकर शिखर के नेताओं का आचरण बता रहा है कि अब धर्म को राजनीति से दूर रखा जाए. यह प्रयोग फेल रहा. हर दूसरे मसले पर छल और कपट से भरा जवाब होता है. जैसे राजनीति के प्रपंच के लिए धर्म को मोहरा बनाया जा रहा है. धार्मिक पहचान की राजनीति कर भाजपा एक दिन धर्म की शानदार पहचान को ही पतित कर देगी. सत्य के साथ खड़ा होना धर्म है. जो सत्य के ख़िलाफ़ है वह अधर्मी है. आप ही बताएँ कि क्या ऐसा हो रहा है?