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रायपुर। ये सच है कि किसी भी सफल आदमी की सफलता का हीरो गुरु ही होता है। कुछ गुरु तो ऐसे होते हैं, जो कई लोगों को शिखर पर पहुंचा देते हैं, लेकिन खुद अभाव में जीते हैं। ऐसे ही गुरुओं में से एक हैं दुर्ग जिले के पुरई गांव के तैराकों के कोच ओम ओझा। अपने गांव के 12 नायाब हीरों को तराशने वाले 24 वर्षीय ओम मजदूरी करने को मजबूर हैं। छत्तीसगढ़ खेल एवं युवा कल्याण विभाग और प्रदेश के स्वीमिंग एसोसिएशन ने अब तक उनकी सुध नहीं ली है न कोई मदद की, जबकि दूसरे राज्यों से हजारों रुपये पारिश्रमिक में कोच बुलाए जाते हैं।
ओम की कहानी उनकी जुबानी
जब मैं नौवीं में था उस समय फुटबॉल खेलता था। एक दिन घर में चाचा की कैप, कास्ट्यूम और चश्मा देखा तब पूछा, चाचा यह क्या है? चाचा ने कहा स्वीमिंग किट है। उसी दिन से मैंने तैराकी का सपना सजा लिया। दूसरे दिन चाचा की स्वीमिंग किट चुपके से निकालकर पहुंच गया तालाब में और लगा दी छलांग।
कॉलेज में प्रवेश के लिए मिले पैसे से पहुंच गया नेशनल खेलने
12वीं के बाद दुर्ग साइंस कॉलेज में प्रवेश लेने का फैसला लिया। आवेदन की आखिरी तारीख थी और उसी दिन राज्य की तैराकी टीम नेशनल के लिए जाने वाली थी। ओम का नाम टीम में था। प्रवेश के लिए मिले 1350 रुपये लेकर वह नेशनल खेलने निकल गया। कॉलेज में प्रवेश नहीं हो सका। स्वीमिंग पूल में लाइफ गार्ड और 200 रुपये में मजदूरी कर फीस भरते हैं।
गांव वाले बहन को मारते थे ताने, पांच मेडल जीते
ओम ने कहा कि सबसे पहले अपनी बहन निशा ओझा और भाई संतोष को तालाब में तैरना सिखाना शुरू किया। निशा साधारण कपड़े में तैरती थी। जिला स्तरीय के लिए कास्ट्यूम जरूरी था। स्कूल से मदद की गुहार लगाई तो एक किट के पैसे मिले। निशा जब तैरने जाती आस-पास के लोग ताने मारते। राज्य स्तरीय और नेशनल में निशा ने लगातार पांच गोल्ड मेडल जीते। इसे देख गांव के लोगों ने भी बच्चों को तैराकी सिखाने का फैसला लिया।
ओम की उपलब्धियां
जिला स्तरीय प्रतियोगिता- 200 मी., 400 मी., 800 मी. फ्री स्टाइल इवेंट में गोल्ड।
- राज्य स्तरीय - 200 मी., 400 मी., 800 मी. फ्री स्टाइल में सिल्वर मेडल।
- नेशनल के लिए चयन- दो बार खेले, मगर पदक नहीं जीते।
::/fulltext::अप्रैल में हुए चयन प्रक्रिया में शामिल हुई थी। दिल्ली के एक अन्य छात्र के साथ अश्लेषा का चयन टीम ने किया है।
दंतेवाड़ा । दंतेवाड़ा में पली- बढ़ी अश्लेषा शर्मा का चयन टेक्निकल स्टूडेंट प्रोग्राम के तहत जेनेवा के लिए हुआ है। जेनेवा स्थित न्यूक्लियर और पार्टिकल फिजिक्स लैब में वह रिसर्च करेंगी। अप्रैल में हुए चयन प्रक्रिया में शामिल हुई थी। दिल्ली के एक अन्य छात्र के साथ अश्लेषा का चयन टीम ने किया है। एक साल तक छात्रा जेनेवा में रहकर अपना कार्य करेंगी।
इस दौरान छात्रा को दो लाख 24 हजार रुपए मासिक स्टायपंड भी दिया जाएगा। फोन पर चर्चा में अश्लेषा ने बताया कि थिंक डिपार्टमेंट में वह रिसर्च करेगी। मार्च में आनलाइन फार्म भरने के बाद अप्रैल में वीडियो इंटरव्यू, फोन मीटिंग और कमेटी से चर्चा आदि के बाद उसका चयन किया गया। अश्लेषा 22 अगस्त को जेनेवा के लिए रवाना हो गई है।
उल्लेखनीय है कि अश्लेषा के पिता पुनीत शर्मा और माता साधना शर्मा माता रूक्मिणी आश्रम के कर्मचारी हैं। अश्लेषा ने कक्षा दसवीं तक की पढ़ाई निर्मल निकेतन हायर सेंकेंडरी स्कूल दंतेवाड़ा और इसके बाद हैदराबाद से हायर सेकेंडरी की परीक्षा उत्तीर्ण की है।
::/fulltext::जामिया के पॉलिटेक्निक के प्रोफेसर वकार आलम और सीआइई के सहायक निदेशक डॉ. प्रभाष मिश्र के नेतृत्व में आमिर ने प्रोजेक्ट पूरा किया।
नई दिल्ली। मोहम्मद आमिर अली (22) को एक अमेरिका कंपनी ने 70 लाख रुपए सालाना का पैकेज दिया है। यह बात अहम इसलिए है क्योंकि आमिर बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं और पैसों की तंगी की वजह से एक साल वह पढ़ाई नहीं कर पाए थे। आमिर मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ के रहने वाले हैं और दिल्ली में जामिया नगर में रहते हैं। पेशे से इलेक्ट्रीशियन पिता शमशाद अली ने कर्ज लेकर आगे की पढ़ाई कराई और एक सैकेंड हैंड मारुति 800 कार करीब 40 हजार रुपए में खरीदकर दी। इसे आमिर ने इलेक्ट्रिक चार्जिंग कार में बदल दिया।
इस कार को पिछले साल 29 अक्टूबर को जामिया के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में प्रदर्शित किया गया था। इतना ही नहीं, आमिर के काम के बारे में जामिया की वेबसाइट में भी जानकारी दी गई। आखिर आमिर का काम देश-विदेश की कई कंपनियों की नजर में आया और उन्हें अमेरिकी कंपनी की ओर से यह पैकेज मिला है।
जामिया के पॉलिटेक्निक के प्रोफेसर वकार आलम और सीआइई के सहायक निदेशक डॉ. प्रभाष मिश्र के नेतृत्व में आमिर ने प्रोजेक्ट पूरा किया। बताते चलें कि जेईई मेन परीक्षा देने के बाद एनएसआइटी में बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर में आमिर का दाखिला हो गया था, लेकिन आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण वह दाखिला नहीं ले सके थे।
साल 2014 में बारहवीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ और बॉयोलॉजी पढ़कर 70.8 फीसद अंक लाने वाले आमिर ने एक साल पढ़ाई छोड़ दी थी। अगले साल 2015 में जामिया विश्वविद्यालय में बीटेक एवं इंजीनियरिंग डिप्लोमा की प्रवेश परीक्षा दी। जामिया से 2015 से 2018 तक उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। अब आमिर को अमेरिका की फ्रिजन मोटर वर्क्स ने बैट्री मैनेजमेंट सिस्टम इंजीनियर का पद दिया है।
आमिर की दिलचस्पी इलेट्रिकल विषय में है। उन्होंने जामिया के सेंटर फॉर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप (सीआइई) के तहत इलेक्ट्रिक कार प्रोजेक्ट पर काम किया। शमशाद अली कहते हैं कि बचपन से ही आमिर इलेक्ट्रिक उपकरणों से जुड़े सवाल पूछता था। मैं सवालों का जवाब नहीं दे पाता था। मुझे खुशी है कि मेरे बेटे को अच्छा प्रस्ताव मिला है।
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