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सावन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को हर साल हरियाली अमावस्या मनाई जाती है. इस साल ये दिन और भी खास होने वाला है क्योंकि हरियाली अमावस्या के दिन चार शुभ संयोग बन रहे हैं. इसके कारण ये अमावस्या विशेष फलदाई मानी जा रही है. हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasya) का साल भर बेसब्री से इंतजार किया जाता है, क्योंकि पौधों को लगाने के लिए यह सबसे अच्छा समय माना जाता है. सावन के महीने में चारों तरफ बारिश हो चुकी होती है और हरियाली छा जाती है. इस वक्त प्रकृति की सुंदरता देखने लायक होती है यही वजह है कि सावन (Sawan) की इस अमावस्या को हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है. तो अगर आप भी हरियाली अमावस्या की तारीख (Hariyali Amavasya Date 2024) को लेकर कन्फ्यूजन में है तो आपको बताते हैं कि साल हरियाली अमावस्या किस दिन है. कौन से शुभ संयोग बन रहे हैं और स्नान दान का शुभ मुहूर्त क्या है.
इस दिन मनाई जाएगी हरियाली अमावस्या
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 3 अगस्त दिन शनिवार को पड़ रही है. शुभ मुहूर्त की बात करें तो इस तिथि का शुभारंभ दोपहर 3:50 मिनट से होगा वही तिथि का समापन 4 अगस्त रविवार के दिन शाम 4:42 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार इस बार हर हरियाली अमावस्या 4 अगस्त दिन रविवार को होगी.
हरियाली अमावस्या पर पड़ेंगे चार शुभ संयोग
उदया तिथि के अनुसार इस साल हरियाली अमावस्या 4 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी. ये हरियाली अमावस्या अपने आप में खास होगी क्योंकि इस बार 4 शुभ संयोग के बीच हरियाली अमावस्या मनाई जाएगी. हरियाली अमावस्या के दिन रवि पुष्य योग, सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र का शुभ संयोग एक साथ बन रहा है. श्रावण अमावस्या पर सिद्धि योग सुबह से लेकर सुबह 10:30 मिनट तक रहेगा.
रवि पुष्य योग सुबह 5:44 मिनट से दोपहर 1:26 मिनट तक है. वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग की बात करें तो सुबह 5:44 मिनट से दोपहर 1:26 मिनट तक है. पुष्य नक्षत्र प्रात काल से लेकर दोपहर 1:26मिनट तक रहेगा. इसके बाद अश्लेषा नक्षत्र है.
हरियाली अमावस्या शुभ मुहूर्त
हरियाली अमावस्या के शुभ मुहूर्त की बात करें तो ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:20 मिनट से 5:02 मिनट तक है. वहीं अभिजीत मुहूर्त दोपहर 2:12 मिनट से लेकर दोपहर 12:54 मिनट तक है. हरियाली अमावस्या पर सूर्योदय 5:44 मिनट पर होगा. सुबह से लेकर दोपहर 1:26 मिनट तक शुभ समय रहेगा. आप इस समय के बीच कभी भी श्रावण अमावस्या का स्नान और दान कर सकते हैं.
हरियाली अमावस्या पर क्यों किया जाता है स्नान दान
हरियाली अमावस्या के दिन स्नान दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है. कहा जाता है इस दिन स्नान दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. पितर खुश होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है.
साल भर क्यों रहता है हरियाली अमावस्या का इंतजार
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक हरियाली अमावस्या के मौके पर पौधे लगाना बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है. ऐसा करने से कहा जाता है कि किस्मत संवर जाती है. पौधे लगाने से जहां एक तरफ हरियाली बढ़ती है, पर्यावरण बचाने में मदद मिलती है वहीं आपके ग्रह दोष भी दूर होते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से देवी देवताओं का और पितरों का आशीर्वाद मिलता है. हरियाली अमावस्या पर आप केला, तुलसी, पीपल,बरगद,.नीम जैसे दिव्य पौधों को लगा सकते हैं. इसके अलावा फलदार पौधे भी लगा सकते हैं.
सावन का महीना शुरू हो रहा है. इस दौरान सावन सोमवार पर व्रत किया जाता है और सावन के महीने में सैकड़ों भक्त केसरिया रंग के वस्त्र पहनकर कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) निकालते हैं. कांवड़ में गंगा नदी का पवित्र जल भरते हैं और फिर भगवान शिव (Lord Shiva) का जलाभिषेक किया जाता है. लेकिन, हर साल सावन के महीने में कांवड़ यात्रा क्यों निकाली जाती है, इसके पीछे की वजह क्या है और वेद शास्त्रों में कांवड़ यात्रा को लेकर क्या पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जानें यहां.
मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने पहली कांवड़ यात्रा निकाली थी और वे पहले कांवड़िया थे. बताया जाता है कि भगवान परशुराम (Lord Parshuram) ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल ले जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था, तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.
दूसरी कांवड़ यात्रा कथा
अन्य मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत श्रवण कुमार ने त्रेता युग में की थी. दरअसल, श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर पैदल यात्रा की और उन्हें गंगा स्नान कराया और लौटते समय वहां से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर लेकर आए. फिर भगवान शिव का अभिषेक किया. माना जाता है कि तब से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.
तीसरी कांवड़ यात्रा कथा
कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा को लंकापति रावण से भी जोड़ा गया है. कहा जाता है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था और समुद्र मंथन से निकलने वाले विष का पान करने से भगवान शिव का गला जलने लगा, तब देवताओं ने तो जल अभिषेक किया ही इसके अलावा शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को याद किया. रावण ने कांवड़ से जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया जिससे शिवजी को विष के प्रभाव से मुक्ति मिली.
नई दिल्ली: जगन्नाथ धाम यानी कि धरती का बैकुंठ. ओडिशा में सरकार बनते ही बीजेपी सरकार ने अपना बड़ा चुनावी वादा पूरा करते हुए जगन्नाथ धाम (Odisha Jagannath Puri Temple) के चारों द्वार खुलवा दिए. CM मोहन चरण माझी ने बुधवार को इसका ऐलान किया. कोरोना महामारी के बाद से श्रद्धालुओं को एक ही द्वार से मंदिर में प्रवेश करना पड़ता था, जिससे भीड़ और परेशानी होती थी. अब भक्त सभी चर द्वार से मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं. इससे भीड़ से दो चार नहीं होना पड़ेगा. जगन्नाथ मंदिर के ये चार द्वार कौन से हैं और इनके महत्व से जुड़ी कहानी भी जानिए.
जगन्नाथ मंदिर के 4 द्वार कौन-कौन से?
जगन्नाथ मंदिर के बाहरी दीवार पर पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी चार द्वार हैं. पहले द्वार का नाम सिंहद्वार (शेर का द्वार), दूसरे द्वार का नाम व्याघ्र द्वार (बाघ का द्वार), तीसरे द्वार का नाम हस्ति द्वार (हाथी का द्वार) और चौथे द्वारा का नाम अश्व द्वार (घोड़े का द्वार) है. इन सभी को धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है.
जगन्नाथ मंदिर के 4 द्वारों का महत्व?
मंदिर का पूर्वी द्वार सिंहद्वार: यह जगन्नाथ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार है. इस द्वार पर झुकी हुई मुद्रा में दो शेरों की प्रतिमाएं हैं. माना जाता है कि इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
मंदिर का पश्चिमी द्वार व्याघ्र द्वार: जगन्नाथ मंदिर के इस प्रवेश द्वार पर बाघ की प्रतिमा मौजूद है. यह हर पल धर्म के पालन करने की शिक्षा देता है. बाघ को इच्छा का प्रतीक भी माना जाता है. विशेष भक्त और संत इसी द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं.
मंदिर का उत्तरी द्वार हस्ति द्वार: मंदिर के इस द्वार के दोनों तरफ हाथियों की प्रतिमाएं लगी हैं. हाथी को माता लक्ष्मी का वाहन माना जाता है. कहा जाता है कि मुगलों ने आक्रमण कर हाथी की इन मूर्तियों को क्षति-विकृत कर दिया था. बाद में इनकी मरम्मत कर मूर्तियों को मंदिर उत्तरी द्वार पर रख दिया गया. कहा जाता है कि ये द्वार ऋषियों के प्रवेश के लिए है.
मंदिर का दक्षिणी द्वार अश्व द्वार: मंदिर के इस द्वार के दोनों तरफ घोड़ों की मूर्तियां लगी हुई हैं. खास बात यह है कि घोड़ों की पीठ पर भगवान जगन्नाथ और बालभद्र युद्ध की महिमा में सवार हैं. इस द्वार को विजय के रूप में जाना जाता है.
जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढ़ियां 'बैसी पहाचा'
पुरी के जगन्नाथ धाम मंदिर में कुल 22 सीढ़ियां हैं. ये सभी सीढ़ियां मानव जीवन की बाईस कमजोरियों का प्रतीक हैं. धार्मिक मान्यता के मुताबिक, ये सभी सीढ़ियां बहुत ही रहस्यमयी हैं. जो भी भक्त इन सीढ़ियों से होकर गुजरता है, तो तीसरी सीढ़ी का खास ध्यान रखना होता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखना होता. तीसरी पीढ़ी यम शिला कही जाती है. अगर इस पर पैर रख दिया तो समझो कि सारे पुण्य धुल गए और फिर बैकुंठ की जगह यमलोक जाना पड़ेगा. यही वजह है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए जाते समय तीसरी सीढ़ी पर पैर न रखने की सलाह दी जाती है.
मान्यता के मुताबिक, मंदिर में 22 सीढ़ियां हैं लेकिन वर्तमान में 18 सीढ़ियां ही दिखाई देती हैं. अनादा बाजार की तरफ की दो सीढ़ियों को जोड़ दें तो ये इनकी संख्या 20 है. 21 और 22वीं सीढ़ी मंदिर की रसोई की तरफ हैं. इन सभी सीढ़ियों की ऊंचाई और चौड़ाई 6 फीट और बात अगर लंबाई की करें तो यह 70 फीट है. मंदिर की कुछ सीढ़ियां 15 फीट चौड़ी भी हैं. वहीं कुछ 6 फीट से भी कम हैं. भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए इन सभी सीढ़ियों को पार करना पड़ता है.
जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढ़ियों के नाम
टिबरा | 2कुमदबती | मंदा | चंदोबती | दयाबती | रंजनी | रतिका | रौद्रा | क्रोधा | बद्रिका | प्रसारिणी |
ब्रती | मार्जनी | ख्याति | रक्ता | संदीपनी | अजापानी | मदांती | रोहिणी | राम्या | उग्रा | क्षोरिने |
तीसरी सीढ़ी पर पैर रखते ही यमलोक जाओगे!
माना जाता है कि इन सीढ़ियों पर कदम रखने से इंसान के भीतर की बुराइयां दूर हो जाती हैं. लेकिन भगवान के दर्शन कर वापस लौटते समय तीसरी सीढ़ी से बचने की सलाह दी गई है. पुराणों में तीसरी सीढ़ी को 'यम शिला' कहा गया है. कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने तीसरी सीढ़ी यमराज को देते हुए कहा था कि जब भी कोई भक्त दर्शन से लौटते समय तीसरी सीढ़ी पर पैर रखेगा, तो उसके सभी पुण्य खत्म हो जाएंगे और वह बैकुंठ की बजाय यमलोक जाएगा.
ओम (OM chant) को अनंत शक्ति का प्रतीक और ब्रह्माण्ड का सार माना गया है. ओम को ब्रह्माण्ड की सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी ध्वनियों में शामिल किया गया है. इसमें ब्रह्माण्ड का रहस्य (Secret of the universe) छिपा है. ओम के उच्चारण व जाप से धर्म, कर्म, अर्थ ओर मोक्ष की प्राप्ति होती है. ओम की ध्वनि शाश्वत है इसे किसी ने बनाया नहीं है इसीलिए इसे अनहद नाद भी कहते हैं. मान्यता है कि ओम में 'अ' से आदि कर्ता ब्रह्मा, उ से विष्णु और म से महेश यानि शिव का बोध होता है. ओम के उच्चारण से गले में स्थित थायराइड ग्रंथि में कंपन होता है जिसका सकारात्मक असर पड़ता है. आइए जानते हैं ओम का रहस्य (Secret of the universe is contained in OM) और इसका महत्व….
शास्त्रों में ओम
जब हम ओम का उच्चारण करते हैं तो तीन अक्षरों की ध्वनि निकलती है. ये तीन अक्षर अ,उ और म हैं. इन तीनों अक्षरों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना गया है. मांडूण्य उपनिषद में कहा गया है कि ब्रह्माण्ड में वर्तमान, भविष्य और भूतकाल से परे जो हमेशा मौजूद रहता है वह ओम है. खगोलविदों के अनुसार ब्रह्माण्ड में ओम की ध्वनि निरंतर सुनाई पड़ती है. ओम में ही ब्रह्माण्ड रहस्य निहित है.
ओम में निहित है तन्मात्रा
सनातन धर्म में प्रकृति को पंचभूतों की श्रृंखला की संज्ञा दी गई है. ये पंच महाभूत अग्नि, वायु, आकाश, जल और धरती हैं. मांडूक्य उपनिषद में तन्मात्रा का महत्व बताया गया है. तन्मात्रा को चेतना का पूंज बताया गया है जिसके माध्यम से प्रकृति, प्राणी ओर जीवन ऊर्जावान हैं. तन्मात्रा ओम में निहित है.
ओम ही ब्रह्म
यजुर्वेद में कहा गया है ओम ब्रह्म है और ओम सर्वत्र व्याप्त है. ओंकार तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है 1 इनमें सात्विक, राजसी और तामसी गुण शामल हैं. ओम को इत्येत् अक्षर यानि अविनाशी, अव्यय और क्षरण रहित बताया गया है. ओम के उच्चारण से मन से चिंता और तनाव दूर होते हैं. इसके उच्चारण से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है. गीता में बताया गया है कि किसी भी मंत्र के पहले ओम के उच्चारण से पुण्य प्राप्त होता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है)