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नई दिल्ली। दक्षिणी दिल्ली में पुनर्विकास के नाम पर लगभग 17 हजार पेड़ काटने का विरोध तेज हो गया है। पर्यावरणविदों, कलाकारों और राजनीतिक हस्तियों के साथ ही अब स्थानीय लोग भी खुलकर पेड़ बचाने एकजुट होने लगे हैं। मीडिया में आ रही खबर के मुताबिक रविवार शाम को सरोजिनी नगर में एक बड़े चिपको आंदोलन (लेट्स हग ट्री टू सेव देम) की तैयारी है। वहीं सोशल मीडिया में आम लोगों के साथ आम आदमी पार्टी भी इस आंदोलन के समर्थन में उतर आई है। सरोजिनी नगर में शनिवार को पेड़ काटने के विरोध में कुछ स्थानीय लोगों, युवाओं ने पेड़ से चिपककर उसे बचाने की अपील की। हाथ से लिखे पोस्टर के साथ छोटे-बड़े सभी लोग पेड़ों को बचाने के लिए वहां पहुंचे थे। उनका कहना था कि सुंदर नगर में पेड़ कट चुके हैं। अब सरोजिनी नगर व आरकेपुरम में इन्हें काटा जाना है। हम इसका विरोध कर रहे हैं।
इस अभियान में स्थानीय निवासियों के अलावा राजनीतिक दल भी शामिल हो गए हैं। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने एक वीडियो अपलोड किया है। उन्होंने पेड़ काटने के विरोध में लोगों से सरोजिनी नगर में होने वाले अभियान से जुडऩे की अपील की है। दरअसल, केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने दक्षिणी दिल्ली में स्थित सात सरकारी आवसीय कॉलोनियों के पुनर्विकास का प्रस्ताव बनाया था। केंद्र सरकार की कैबिनेट इस पुनर्विकास प्लान को वर्ष 2016 में ही मंजूरी दे चुकी है। उसके तहत ही दक्षिणी दिल्ली में स्थित किदवई नगर में 1123, नेताजी नगर में 2294, नैरोजी नगर में 1454, मोहम्मदपुर में 363 और सरोजनी नगर में 11 हजार से अधिक पेड़ काटे जाने हैं। नैरोजी में पेड़ों की कटाई भी शुरू हो चुकी है। अब इन पेड़ों की कटाई का विरोध शुरू हो गया है।
भारतीय इकनॉमी का इस वक्त अजीब और अनोखा हाल है. भरोसा डगमगाया हुआ है, धंधे में दम नहीं दिख रहा, कंज्यूमर का भरोसा नीचे है, एक्सपोर्ट का हाल खराब है...फिर भी कमाल देखिए, जनवरी-मार्च की तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 7.7 प्रतिशत हो गई है. अंदाजा है कि 2018-19 में 7.4 प्रतिशत जीडीपी ग्रोथ रहेगी.
अगर आप रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की 6 जून की क्रेडिट पॉलिसी के समय रेट बढ़ाने और दूसरे ऐलान पर ध्यान दें और उसके महत्वपूर्ण संकेतों को समझें, तो थोड़ा परेशान हो जाएंगे, क्योंकि अच्छी बातों के बीच टेंशन की चर्चा भी है. रिजर्व बैंक कहता है कि मैन्युफैक्चरिंग में हालत सुधरी है, निवेश बढ़ा है, फैक्टरी अब अपनी क्षमताओं में काम कर रही हैं. सबसे अच्छी बात है कि बंपर फसल की वजह से ग्रामीण इलाकों में भी खपत बढ़ी है.
सब अच्छा है, तो फिर ये क्यों हो रहा है?
रिजर्व बैंक ने एक सांस में कह दिया कि सब सुधरने लगा है, लेकिन दूसरी विरोधाभासी बात भी साथ में कह दी कि बिजनेस और कंज्यूमर का सेंटिमेंट बिगड़ रहा है. देखिए कि आरबीआई क्या कहता है: रिजर्व बैंक के अप्रैल-जून के इंडस्ट्रियल आउटलुक के शुरुआती अनुमान के मुताबिक इंडस्ट्री की रफ्तार की ग्रोथ कम होने के आसार हैं. इसकी वजह है कि 2018-19की पहली तिमाही में लागत बढ़ी है और घरेलू के साथ विदेशी मांग भी घटने के संकेत हैं. लेकिन रिजर्व बैंक के मुताबिक घरेलू जरूरत की चीजों की महंगाई में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है.
क्या ऐसा मुमकिन है?
एक अंतरराष्ट्रीय इकनॉमिस्ट ने मुझे बताया कि दशकों से उनके सामने ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं आया है कि किसी देश ने एक्सपोर्ट में भारी उछाल के बगैर सालाना 7 परसेंट जीडीपी ग्रोथ हासिल कर ली हो. फिर भारत में ऐसा क्या हो गया है कि हमारी जीडीपी ग्रोथ 7 परसेंट से ऊपर पहुंच गई?
अभी 2013 के स्तर तक पर पहुंचने का संघर्ष
साल 2010-11 के बारे में याद कीजिए, उस वक्त हमारे एक्सपोर्ट में 37.5% उछाल था और तब जीडीपी ग्रोथ थी 8.91%. इसके बाद हम इस मोर्चे पर कभी इतनी अच्छी हालात तक नहीं पहुंच पाए. यहां तक कि 2013-14 के दौरान देश से 314.41 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट हुआ, जिसे हम यूपीए सरकार के 10 सालों में एक्सपोर्ट के मामले में सबसे खराब साल के तौर पर याद करते हैं.
एक्सपोर्ट मामले में मोदी सरकार का प्रदर्शन खराब
लेकिन हकीकत यही है कि नरेंद्र मोदी की सरकार पिछले 4 सालों में एक्सपोर्ट के मोर्च पर कभी इस स्तर तक नहीं पहुंच पाई. मौजूदा सरकार के शासन में सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट 2017-18 में 302.84 अरब डॉलर का हुआ. जब हमारा चालू खाता डेफिसिट 2016-17 में 0.6% से बढ़कर 1.9 % हो गया. भारत का 2016-17 में व्यापार घाटा 112.4 अरब डॉलर था, जो 2017-18 में बढ़कर 160 अरब डॉलर हो गया. इन आंकड़ों में हमें ये भी याद रखना होगा कि लगातार 4 साल अधिकतर समय कच्चे तेल के दाम नीचे ही रहे.
महंगा कच्चा तेल कहीं मुसीबत न खड़ी कर दे
अब कच्चे तेल की बढ़ती कीमत हमारे अनुमानों को आगे और बिगाड़ सकती है. जैसे मई महीने में एक्सपोर्ट 20 प्रतिशत बढ़कर 28.85 अरब डॉलर तक पहुंचा. उसकी वजह यही है कि हमारे पेट्रोलियम प्रोडक्ट के एक्सपोर्ट मूल्य में 104% का उछाल आया. लेकिन उन प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट गिर गया, जिनमें ज्यादा मजदूरी या लोगों की मेहनत की जरूरत होती है और जो नौकरियों के मौके बढ़ाने में कारगर होते हैं.
अब देखिए, जेम्स और ज्वेलरी का एक्सपोर्ट 6.5% और रेडीमेड गारमेंट सेक्टर का एक्सपोर्ट 16.6% घट गया. बैंक क्रेडिट में गिरावट की वजह से भी दिक्कतें बढ़ीं.
इंडस्ट्री को कर्ज नहीं दे रहे बैंक
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, बीते वर्ष में इंडस्ट्री का बैंक क्रेडिट 26.99 लाख करोड़ रुपये रहा, जो कि इसके एक साल पहले के 26.79 लाख करोड़ रुपये से सिर्फ 0.7 प्रतिशत ही ज्यादा है. देखें तो ये आंकड़ा मार्च 2014 में खत्म हुए वित्त वर्ष के 25.23 लाख करोड़ रुपए ही है. इसमें चौंकने वाली बात नहीं हैं. डूबते खातों से परेशान बैंक किसानों को ट्रैक्टर के लिए लोन देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं, जो अगले 4 साल में अपनी आय दोगुनी करने के सपने के पीछे भाग रहे हैं. लेकिन इस मोर्चे पर भी मोदी सरकार, मनमोहन सरकार से बेहतर नहीं कर पाई है. 2017-18 में ट्रैक्टर की बिक्री 22 प्रतिशत बढ़कर 7.11 लाख यूनिट के स्तर पर रही और मोदी सरकार के कार्यकाल में ट्रैक्टर की बिक्री 2013-14 के 6.34 लाख के आंकड़े के पार जा सकी, जबकि यूपीए शासन के दौरान ये सबसे निचला स्तर था.
दूध की नदी- हमारे हाइवे पर
एग्रीकल्चरल इकनॉमिस्ट अशोक गांगुली ने हाल ही में बताया कि 2014 से 2018 के दौरान एग्रीकल्चर सेक्टर में सिर्फ 2.5% की दर से विकास हुआ है और इस सेक्टर से होने वाला एक्सपोर्ट 2017-18 के दौरान 38 अरब डॉलर रहा, जो कि 2013-14 में 42 अरब डॉलर था. जिन किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत नहीं मिल रही है, वो विरोध में उठ खड़े हो रहे हैं. गुस्साए किसानों ने 1 जून से 10 जून तक देशभर में विरोध और आंदोलन किया. उन्होंने अलग-अलग राजमार्गों पर दूध, सब्जियां और फलों को फेंककर विरोध प्रदर्शन किया.
किसानों का आय कैसे दोगुनी होगी?
इंडस्ट्री की तस्वीर बिगड़ी
ज्यादातर अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि अगर हम डबल डिजिट ग्रोथ करना चाहते हैं, तो मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी को कम से कम जीडीपी के 25 प्रतिशत के स्तर तक ले जाना होगा. भारत कभी भी चीन की तरह का मैन्यूफैक्चरिंग हब नहीं बनने जा रहा है. इसकी जगह हमारा जोर सर्विस सेक्टर पर होगा. लेकिन क्या ये दांव उचित है? शायद नहीं, क्योंकि अगर आप सर्विस सेक्टर को देखें, तो पाएंगे कि मांग में कमी के कारण ये मई में तीन महीने के निचले स्तर पर था.
अब इसी से अंदाजा लगा लीजिए, सब कुछ कितना उल्टा-पुल्टा है. हम चाहते कुछ हैं और तरीका कुछ और अपना रहे हैं.
::/fulltext::नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को लेकर गृह मंत्रालय ने आल टाइम थ्रेट अलर्ट जारी किया है। गृह मंत्रालय ने यह अलर्ट हाल में महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में हुई दो घटनाओं की समीक्षा के बाद जारी किया है। महाराष्ट्र के पुणे में पुलिस ने कुछ पर्चे बरामद किए थे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरह करने की बात कही गई थी।
इसी बीच, पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छह स्तरीय सुरक्षा घेरे को तोड़कर एक युवक उनके पैर छूने में सफल हो गया था। इन दोनों घटनाओं को गृह मंत्रालय ने बेहद गंभीरता से लेते हुए सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा व्यवस्था संभालने वाली स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) को नया सिक्योरिटी मैनुअल जारी किया है। गृह मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार, नए सिक्?योरिटी मैनुअल में कहा गया है कि प्रधानमंत्री के करीब आने वाले हर शख्स की सुरक्षा जांच अनिवार्य है। नियमावली में स्पष्ट किया गया है कि बिना सुरक्षा जांच मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब जाने की इजाजत न दी जाए।
इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब कोई भी ऐसा शख्स नहीं होना चाहिए, जिसकी वहां पर कोई जररूत नहीं है। गृह मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय और भाजपा के वरिष्ठ अधिकारियों को भी यह सलाह दी है कि 2019 में होने वाले आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कम से कम रोड शो रखें जाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसे कार्यक्रमों से बचने की भी सलाह दी गई है, जिसमें लोगों के बेहद करीब आने की संभावना हो। गृह मंत्रायल ने एसपीजी की क्लोज प्रॉक्सिमिटी टीम को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि क्लोज प्रॉक्सिमिटी एरिया में सिर्फ उन्हीं लोगों को आने की इजाजत दी जाए, जिनकों पहले से चिन्हित कर सुरक्षा जांच प्रकिया को पूरा कर लिया गया है।
::/fulltext::नई दिल्ली। केंद्र में मोदी सरकार आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए जल्द ही देश के निजी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों और मजदूरों को तोहफा देने की तैयारी में हैं। सूत्रों के अनुसार सरकार प्राइवेट नौकरी करने वालों से लेकर दिहाड़ी मजदूरों और रेहड़ी-पटरी वालों को कई तरह की राहत दे सकती है। सरकार कर्मचारियों को फायदा पहुंचाने के लिए जल्द ही 3 महत्वपूर्ण कानून ला सकती है। इन कानून की मदद से कर्मचारियों को सुरक्षा, न्यूनतम सैलरी जैसे कई लाभ मिलने के आसार हैं।
सूत्रों के अनुसार इस नए और महत्वपूर्ण विधेयकों का मसौदा तैयार किया जा रहा है, जिसमें ऑक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ ऐंड वर्किंग कंडीशंस (व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति) का इस ड्राफ्ट कोड में प्रावधान किया गया है कि कम से कम 10 कर्मचारियों वाली कंपनी, फैक्टरी या संस्थाओं को अपने हर एंप्लॉयी को अपॉइंटमेंट लेटर यानी नियुक्ति पत्र देना होगा।
वे बिना अपॉइंटमेंट लेटर के कर्मचारियों से काम नहीं ले सकते हैं। अपॉइंटमेंट लेटर देने का मतलब है कि उन्हें कर्मचारियों को मिनिमम वेज देना होगा और कंपनी लॉ के मुताबिक कर्मचारियों को सभी तरह की सुविधाएं देनी होंगी। इसके अलावा इस ड्राफ्ट कोड में कार्यस्थल पर कर्मचारियों को पूरी सुरक्षा देने का प्रावधान किया गया है। कंपनी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वर्किंग प्लेस में ऐसी कोई चीज न हो, जिससे कर्मचारियों को बीमार या घायल होने का रिस्क हो। ऐसा होने पर कंपनी के खिलाफ ऐक्शन लिया जाएगा और उन्हें कर्मचारियों को मुआवजा देना होगा।