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नई दिल्ली: SC/ST एक्ट को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कोर्ट का पुराना आदेश बना रहेगा. इस मामले में कोर्ट छुट्टियों के बाद सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एकतरफा बयानों के आधार पर किसी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे तो समझिए हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं.
जस्टिस आदर्श गोयल ने कहा कि यहां तक कि संसद भी ऐसा कानून नहीं बना सकती जो नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन करता हो और बिना प्रक्रिया के पालन के सलाखों के पीछे डालता हो. कोर्ट ने ये आदेश अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार को सरंक्षण देने के लिए दिया है. कोर्ट ने कहा कि जीने के अधिकार के लिए किसी को इनकार नहीं किया जा सकता. वहीं अटॉनी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने कहा कि जीने का अधिकार बडा व्यापक है. इसमें रोजगार का अधिकार, शेल्टर भी मौलिक अधिकार हैं, लेकिन विकासशील देश के लिए सभी के मौलिक अधिकार पूरा करना संभव नहीं है. क्या सरकार सबको रोजगार दे सकती है?
गौरतलब है कि जस्टिस आदर्श गोयल 6 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में इस मामले में सुनवाई का क्या होगा ? ये सवाल है. SC/ST एक्ट को लेकर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हुई. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मिली उन शिकायतों पर ही गिरफ्तारी से पहले जांच की जरूरत है जब शिकायत मनगढ़ंत या फर्जी लगे.
अदालत ने कहा कि हर शिकायत पर प्रारंभिक जांच की दरकार नहीं है. साथ ही शीर्ष अदालत ने एक बार फिर अपने आदेश पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है. अदालत ने 20 मार्च के आदेश को रक्षात्मक कदम बताया है. 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट केतहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच होनी चाहिए. इसके अलावा अन्य और निर्देश दिए गए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि एससी-एसटी एक्ट केतहत होने वाली कुछ शिकायतों में तो कुछ दम होता है जबकि कुछ में कुछ भी नहीं होता. जिन शिकायतों में ऐसा लगता हो कि वह मनगढ़ंत या फर्जी है, उन मामले में प्रारंभिक जांच की जरूरत है. कुछ ऐसी शिकायतें होती हैं जिसकेबारे में पुलिस अधिकारी भी यह महसूस करते हैं कि उसमें दम नहीं है. इस तरह की शिकायतों पर ही प्रांरभिक जांच होनी चाहिए न कि सभी शिकायतों पर. कोर्ट ने कहा कि हमने अपने आदेश में प्रारंभिक जांच को आवश्यक नहीं बताया था बल्कि यह कहा था कि प्रारंभिक जांच होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि फिलहाल ऐसा हो रहा है कि सभी मामलों में गिरफ्तारी हो रही है, भले ही पुलिस अधिकारियों भी यह महसूस करते हो कि इनमें से कई शिकायतें फर्जी हैं.
::/fulltext::रायपुर 15 मई 2018। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने PSC-2017 को लेकर एक बड़ा आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने प्रारंभिक परीक्षा परिणाम को दोबारा जारी करने का निर्देश दिया है। साथ ही हाईकोर्ट ने रिजल्ट को दी गयी चुनौती के मसले पर एक एक्सपर्ट टीम गठित जांच करने का भी निर्देश दिया है। 15 दिन के भीतर एक्सपर्ट टीम को आपत्तियों को जांच कर नया रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया गया है, अगर 15 दिन में जांच पूरी नहीं हो सकती है, तो 22 जून को होने वाली मेंस की परीक्षा को आगे टाल दिया जायेगा।
प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम से असंतुष्ट विनय अग्रवाल और अमित विश्वास ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दोबारा जारी किये गये मॉडल आंसर को चुनौती दी गयी थी। याचिका पर आज जस्टिस पी स्वयंकोशी की बैंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर वकील मतीन सिद्दीकी ने पैरवी की। सुनवाई के दौरान मतीन सिद्दीकी की दलीलों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कमेटी गठित कर माडल आंसर की आपत्तियों की जांच करने और फिर दोबारा रिजल्ट जारी करने का निर्देश दिया है। साथ ही साथ ये भी कहा है कि अगर तय वक्त जांच पूरी नहीं होती है, तो 22 जून को होने वाली पीएससी-2017 की मेंस की परीक्षा को टाल दिया जाये।
दरअसल पीएससी ने 2017 की प्रारंभिक परीक्षा का मॉडल आंसर जारी किया था, जिसके बाद अभ्यर्थियों ने दावा आपत्ति मंगाये गये थे। दावा आपत्ति के बाद 10 से 12 आंसरों के मार्क्स को डिलीट कर नये सिरे से रिजल्ट जारी किया गया। 10 से 12 सवालों के नंबर गायब होने की वजह से कई अभ्यर्थी मेंस के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाये। जबकि होता ये है कि सवालों के ज्यादा संख्या में गलत होने की वजह एवरेज मार्किंग की व्यवस्था होती है, लेकिन PSC ने सभी सवालों के नंबर ही डिलिट कर दिये। जिसके बाद सीनियर वकील मतीन सिद्दीकी के माध्यम से विनय अग्रवाल और अमित विश्वास ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया। जिस पर कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है।
::/fulltext::नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट को लेकर घिरी मोदी सरकार अब बड़ा फैसला लेने वाली है। एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए केंद्र सरकार जल्द ही अध्यादेश ला सकती है। इस अध्यादेश को लाने के बाद सरकार इसे विधेयक के रूप में संसद में पेश करेगी। बताया जा रहा है कि विधेयक के जरिए ही इसे संविधान की नौवीं अनुसूची के दायरे में लाया जाएगा, ताकि इसे न्यायिक चुनौती देने के सभी रास्ते बंद हो जाएं। 16 मई को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होनी है, सरकार अध्यादेश पर इसके बाद ही फैसला ले सकती है। एससी-एसटी एक्ट में गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार ने अभी पुनर्विचार याचिका कोर्ट में पेश की है। इसमें सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि कोर्ट इस तरह नया कानून नहीं बना सकता। ये उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है। संविधान ने न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारों का बंटवारा किया है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कोर्ट के इस आदेश के बाद 200 से ज्यादा वर्षों से दलित लोगों के आत्मविश्वास पर असर पड़ा है।
::/fulltext::1988 के गैर इरादतन हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को बड़ी राहत दे दी है. इस मामले में उन्हें बरी कर दिया गया है. हालांकि इससे जुड़े रोड रेज मामले में कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया है. इस मामले में उन पर 1000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है. जस्टिस जे चेलामेश्वर और एसके कौल की बेंच ने सिद्धू को बरी कर दिया है. इस मामले में पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि सिद्धू को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. बता दें कि सिद्धू पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार में मंत्री हैं.
क्या है मामला
27 दिसंबर 1988 को सिद्धू और रुपिंदर सिंह संधू पटियाला में शेरनवाला गेट चौराहे के पास अपनी गाड़ी में बैठे हुए थे. उस वक्त गुरनाम सिंह और उनके दो साथी बैंक से रुपये निकालकर लौट रहे थे. गुरनाम सिंह ने सिद्धू से रास्ता देने लिए कहा लेकिन सिद्धू और संधू हटने को तैयार नहीं हुए. इसी बात को लेकर दोनों पक्षों में कहा सुनी हो गई, विवाद इतना बढ़ा कि सिद्धू ने गुरनाम सिंह की बुरी तरह पिटाई कर दी. सिंह की इलाज के दौरान मौत हो गई थी.
कब क्या हुआ