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दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के अंदर बने चैपल (चर्च) के गेट पर कुछ अराजक तत्वों ने शुक्रवार देर रात 'मंदिर यहीं बनेगा' लिख दिया. इतना ही नहीं चैपल के बाहर लगे क्रॉस को भी नुकसान पहुंचाया गया है.
सूत्रों का कहना है कि शुक्रवार देर शाम को छात्रों ने चैपल के गेट पर स्लोगन लिखा देखा था जिसे शनिवार दोपहर तक हटाया नहीं गया था. दिल्ली यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं के चलते कॉलेज में इन दिनों रेगुलर कक्षाएं नहीं चल रही हैं. हो सकता है इसलिए चैपल के गेट पर लोगों की नजर नहीं पड़ी होगी. न्यूज18 ने कॉलेज के प्रिंसिपल जॉन वर्गीस से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इस मामले में उनसे बात नहीं हो सकी.
गेट पर 'मंदिर यहीं बनेगा' लिखा है वहीं क्रॉस पर 'I’m going to hell' यानी 'मैं नर्क में जा रहा हूं' लिखा है. दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (DUSU) अध्यक्ष रॉकी तुसीद ने इस संबंध में चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह मुद्दा वे संबद्ध अधिकारियों के सामने रखेंगे.
तुसीद ने कहा, “देशभर के छात्रों को धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश की जा रही है. यही चीज़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी हो रही है और यहां भी वही हो रहा है. ” बता दें कि एएमयू में मोहम्मद अली जिन्ना के 80 साल पुरानी तस्वीर को लेकर विवाद हो रहा है.
11वीं से लेकर इंजीनियरिंग तक की पढ़ाई विकास ने एएमयू से की. 7 साल एएमयू में बिताने वाले विकास मानते हैं कि कॉलेज और हॉस्टल में कभी किसी ने अलग महसूस नहीं करवाया. विकास दुबई में नौकरी करते हैं और कहते हैं कि एएमयू में बिताया गया उनका समय उनकी जिंदगी का सबसे बेहतरीन समय था.
अपनी जिंदगी के 14 साल एएमयू में बिताने वाले वसीम हाल में हुई घटनाओं से बहुत व्याकुल हैं. वो कहते हैं कि उनके बहुत से दोस्त हिंदू हैं, क्रिस्चियन हैं और अलग-अलग मान्यताओं को मानने वाले हैं. लेकिन एएमयू में पढ़ाई के दौरान ना तो यहां कभी धर्म को लेकर कोई झगड़े हुए ना ही कभी ऐसी कोई घटनाएं हुईं जहां खुद को एक-दूसरे से अलग करके देखा गया हो. हर कॉलेज की ही तरह एएमयू में पढ़ने वाले बच्चे भी वहां पढ़ने और जिंदगी में कुछ हासिल करने जाते हैं. ऐसे में दोस्त बनाए हुए आप कभी किसी से क्या उसका मजहब पूछेंगे?
समर लखनऊ में रहती हैं और एएमयू की हवा को अपने खून का हिस्सा मानती हैं. उनके नाना से लेकर उनके परिवार के लगभग हर शख्स से कभी ना कभी एएमयू में पढ़ाई की है. उन्होंने भी दो साल एएमयू में गुजारे हैं लेकिन कभी भी उनका किसी भी धर्म या देशविरोधी घटना से सारोकार नहीं हुआ. हाल ही में एएमयू के छात्रों पर हुए लाठीचार्ज में उनके कजिन पर भी लाठियां बरसी हैं. इससे उनका पूरा परिवार बहुत विचलित है.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक बार फिर से चर्चा में है. इस बार वजह है मोहम्मद अली जिन्ना की एक तस्वीर. यह विवाद इतना बढ़ गया है कि यूनिवर्सिटी के छात्रों पर लाठीचार्ज होने की खबरें भी सामने आई हैं. जिस तेजी से यह आग फैल रही है, डर है कि कहीं यह कम्युनल जामा ना पहन ले. लेकिन एएमयू में पढ़ रहे और वहां पढ़ चुके छात्रों का मानना है कि 'ये मेरा चमन है मेरा चमन, मैं इस चमन का बुलबुल हूं' के तरानों से गूंजने वाली एएमयू की सरजमीं पर कभी कोई हिंदू-मुसलमान नहीं हुआ.
एएमयू के स्टूडेंट यूनियन हॉल में बहुत से अन्य मशहूर लोगों के बीच मोहम्मद अली जिन्ना की भी तस्वीर लगी हुई है. हालांकि आज से पहले तक इस तस्वीर का कभी जिक्र तक नहीं हुआ, लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि' सोमवार 1 मई को अलीगढ़ से बीजेपी के सांसद सतीश गौतम ने पूरे देश का ध्यान इस एक तस्वीर की तरफ खींच दिया. गौतम ने एएमयू के वाइस चांसलर तारिक मंसूर को एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने यूनियन हॉल से जिन्ना की तस्वीर लगी होने की प्रासंगिकता पूछी है. ट्विटर पर उन्होंने ऐसे बहुत सारे अखबारों की कटिंग भी ट्वीट की हैं जहां उनके इस कथन पर खबरें छपी हैं.
मुख्य रूप से उनका सवाल है कि आजादी के इतने सालों बाद भी ऐसी क्या मजबूरी है कि देश का बंटवारा करवाने वाले जिन्ना की फोटो यूनिवर्सिटी के यूनियन हॉल में लगी हुई है! साथ ही उन्होंने मांग की है कि जल्द से जल्द यह तस्वीर हटाई जाए.
तो आखिर क्यों लगी है एएमयू में जिन्ना की तस्वीर?
वाकई यह जानना बहुत जरूरी है कि पाकिस्तान के जनक जिन्ना की तस्वीर एएमयू में लगे होने के पीछे का कारण क्या है? दरअसल जिन्ना की यह तस्वीर हाल में नहीं लगी है बल्कि साल 1938 से यहां लगी हुई है. यह वो समय था जब भारत आजाद भी नहीं हुआ था.
करीब 100 लोगों को एएमयू के छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई है. इनमें महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, भीमराव अंबेडकर समेत बहुत से लोग शामिल हैं. इसी क्रम में जब जिन्ना को यह आजीवन सदस्यता दी गई थी, वो भारत के ही नागरिक थे और उस वक्त तक उन्हें भी यह उम्मीद नहीं रही होगी कि देश का बंटवारा हो जाएगा.
एएमयू छात्रसंघ के अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी का कहना है कि वो लोग जिन्ना की विचारधारा का विरोध करते हैं. लेकिन जिन्ना की तस्वीर स्टूडेंट यूनियन हॉल में होना सिर्फ एक ऐतिहासिक तथ्य है. ये तस्वीर किसी को प्रेरणा देने के लिए नहीं, बल्कि आजीवन छात्रसंघ के सदस्यों का एक लेखा-जोखा ही है.
कैसा है ये अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास:
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ये यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में है. साथ ही इसके संस्थापक मुसलमान थे जो देश में मुसलामानों की आर्थिक और सामजिक हालत में सुधार करना चाहते थे. सर सय्यद अहमद खान ने इसे साल 1875 में स्थापित किया था. मूल रूप से यह एक मदरसा था जिसका नाम था मदरसातुल उलूम मुसलमानन-ए-हिंद. हिंदुस्तानी मुसलामानों को हर स्तर पर बाकियों के समकक्ष लाने के लिए इसे स्थापित किया गया था. उसी साल 24 मई को सय्यद अहमद खान ने एएमयू कॉलेज की नींव रही. उस वक्त नाम रखा 'मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज' जिसके अंतर्गत 2 स्कूल आते थे.
कहते हैं कि 1857 की क्रांति ने सय्यद अहमद खान को भीतर तक झंकझोर कर रख दिया था. उन्हें साफ नजर आ रहा था कि भारत के मुसलामानों को अगर देश के अन्य लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की आजादी की लड़ाई लड़नी थी तो उन्हें अंग्रेजी भाषा और आधुनिक विज्ञान की जानकारी होना बहुत जरूरी था. इसीलिए उन्होंने इस कॉलेज की स्थापना की थी जहां हर सामाजिक दायरे का मुसलमान आकर इंटरनेशनल स्तर का ज्ञान हासिल कर सके.
साल 1900 में एएमयू को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिलवाने की कोशिशें शुरू हो गई थीं. 1920 में इस कॉलेज को केन्द्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया गया. इसके लिए सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान और आगा खान तृतीय ने फंड इकट्ठा करने का बहुत महत्वपूर्ण काम किया. 1927 में इस यूनिवर्सिटी में एक 'ब्लाइंड स्कूल' खुला और अगले ही साल एक मेडिकल कॉलेज भी बनाया गया. 1930 के अंत तक एएमयू में एक इंजीनियरिंग कॉलेज भी खुल गया था.
तब से लेकर अब तक एएमयू ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन वैज्ञानिक, इतिहासकार, कलाकार, शायर, राष्ट्रपति और राजनीतिज्ञ दिए हैं. जावेद अख्तर, नसीरुद्दीन शाह, हामिद अंसारी जैसे बहुत से महान लोग एएमयू की पैदाइश ही हैं. तो पढ़ाई के संस्थानों को पढ़ाई के लिए ही छोड़ देना चाहिए, इनपर राजनीति नहीं की जानी चाहिए.
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नई दिल्ली: दक्षिणी कश्मीर के शोपियां में बुधवार सुबह एक स्कूल बस पर अनजान लोगों ने पत्थरबाज़ी की, जिसमें दो बच्चे ज़ख्मी हो गए हैं, जिनमें से एक की हालत गंभीर है. बताया गया है कि बस में उस वक्त 50 से भी ज़्यादा बच्चे सवार थे, जिनमें एक प्राइवेट स्कूल में नर्सरी क्लास में पढ़ने वाले चार-चार साल के बच्चे भी शामिल थे. श्रीनगर के एक अस्पताल में दूसरी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे का इलाज चल रहा है, जिसके सिर में चोट आई है. माथे पर चोट के साथ अस्पताल पहुंचाए गए बच्चे को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई है. बच्चे के पिता का कहना है, "मेरा बच्चा पत्थरबाज़ी में ज़ख्मी हुआ है... यह मानवता के खिलाफ हरकत है... यह किसी का भी बच्चा हो सकता था..."
पुलिस पत्थर फेंकने वालों को तलाश कर रही है. पुलिस अधिकारी शैलेंद्र कुमार ने बताया, "पत्थर फेंकने वालों ने यह हरकत सुबह लगभग 9:25 बजे की... यह बस रेनबो इंटरनेशनल स्कूल की है..." बच्चों से भरी बस पर पत्थर फेंके जाने की इस वारदात की चौतरफा आलोचना हो रही है. जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया, "शोपियां में स्कूल की बस पर हमले के बारे में सुनकर स्तब्ध हूं, क्रोधित हूं... इस कायरतापूर्ण कार्रवाई के लिए ज़िम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा...."
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के करेड़ा थाना इलाके में एक दलित परिवार को शादी समारोह में दूल्हे को घोड़ पर बैठना और बिंदोली निकालना महंगा पड़ा. पुलिस की मौजूदगी में दूल्हे को घोड़ी से उतार दिया गया और लोगों के साथ मारपीट की गई. इस मारपीट में एक युवक गंभीर घायल हो गया. जिसे करेड़ा अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
दलित परिवार पर अत्याचार का यह मामला गोवर्धनपुरा गांव का है. यहां पीड़ित परिवार ने पुलिस और जिला प्रशासन को बिंदोली से पहले ही सूचना दे दी थी. इस दलित परिवार की ओर से अंदेशा जताया गया था कि रविवार को बिंदोली में उनके साथ मारपीट हो सकती है. इस अंदेशे और सूचना के बाद पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंचे लेकिन उनकी आंखों के सामने दलित दूल्हे को घोड़ी से उतार दिया गया और मारपीट की गई.
गांव में कुछ लोगों ने दलित दूल्हे की घोड़ी पर बिंदोली निकालने का विरोध करते हुए बिंदोली में शामिल कुछ लोगों के साथ मारपीट की. इस मारपीट में एक युवक को गंभीर चोटें आई. उसे करेड़ा स्थित सामुदायिक अस्पताल में भर्ती करवाया. घटना से गांव में माहौल गर्मा गया. एहतियात के तौर पर पुलिस बल तैनात किया गया है. वहीं करेडा थाना पुलिस ने इस मामले में सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है.
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