Owner/Director : Anita Khare
Contact No. : 9009991052
Sampadak : Shashank Khare
Contact No. : 7987354738
Raipur C.G. 492007
City Office : In Front of Raj Talkies, Block B1, 2nd Floor, Bombey Market GE Road, Raipur C.G. 492001
नई दिल्ली/लखनऊ: उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को पटकनी देने के लिए बीजेपी ने एक नया मास्टर प्लान तैयार किया है. सूत्रों के मुताबिक, इस मास्टर प्लान को खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तैयार किया है. मौजूदा समय में केंद्र और प्रदेश दोनों ही जगह सत्ता में बीजेपी मौजूद है और इसी का फायदा उठाते हुए यूपी के लिए एक अलग से मास्टर प्लान तैयार करके महागठबंधन को पटखनी देने की तैयारी है. ये सभी जानते हैं कि जिसने भी आम चुनावों में यूपी पर कब्जा किया, उसके लिए दिल्ली दूर नहीं.
::/introtext::बीजेपी और पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ये जानते है कि 2019 में दिल्ली की सत्ता के लिए यूपी पर फतह हासिल करना जरूरी है. सूत्रों ने मुताबिक, अपने दो दिवसीय यूपी दौरे पर आए अमित शाह ने संगठन के पदाधिकारियों से मुलाकात और चर्चा के बाद अपने पत्ते खोले और महागठबंधन के लड़ने के टिप्स और जीत का मंत्र दिया.
अमित शाह ने ये टिप्स दिए हैं कि पार्टी का एक कार्यकर्ता कम से कम सरकारी योजनाओं से लाभ पाने वाले पांच लाभार्थियों से मुलाकात करेंगे और उनके मन को टटोलने की कोशिश करेंगे. बताया जा रहा है कि बीजेपी कार्यकर्ता एक सितंबर से चुनाव तक लगातार उन पांच लाभार्थियों के साथ संपर्क में रहेंगे.
कार्यकर्ता की लाभार्थी से मुलाकात का एक डिजिटल डाटा बनेगा. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के एक करोड़ तीस लाख सक्रिय कार्यकर्ता हैं. इस हिसाब से लगभग साढ़े छह करोड़ वोटरों तक बीजेपी की सीधी पहुंच हो जाएगी. जोकि, आम चुनाव में मिलने वाली जीत में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि, बीजेपी के इस मास्टर प्लान पर विरोधी दल निशाना साधने से नहीं चूक रहे हैं.
विपक्ष का कहना है कि बीजेपी चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, बीजेपी लेकिन वो महागठबंधन से पार नहीं पा पाएंगे. समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता जूही सिंह ने कहा कि विपक्ष का मानना है कि जनता नेता को तभी राजा बनाती है, जब उसने अपनी प्रजा के लिए कुछ किया हो. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने कोई काम जमीन पर किया ही नहीं, तो बीजेपी के कार्यकर्ता लोगों से मिलकर क्या बात करेंगे. विपक्ष के सवाल अपनी जगह है. लेकिन, बीजेपी की तैयारी बड़ी है. बीजेपी को लगता है कि अमत शाह के इस मंत्र के सहारे पार्टी यूपी में 2014 के करिशमें को दोहरा सकती है.
::/fulltext::पटनाः बॉलीवुड की ऐश्वर्या राय के बाद अब राजनीति में भी एक ऐश्वर्या राय का उदय होने जा रहा है. संयोग ऐसा है कि दोनों ही एश्वर्या के ससुर अपनी-अपनी पिच के धुरंधर बल्लेबाज़ हैं. बॉलीवुड वाली ऐश्वर्या और उनके ससुर यानी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के बारे में ज़्यादा कुछ बताने की ज़रूरत नहीं. ज़रूरत है तो राजनीति में उभर रही नई ऐश्वर्या राय के बारे में चर्चा करने की क्योंकि बिहार की राजनीति का कल इनका हो सकता है.
::/introtext::एश्वर्या के दादा दारोग प्रसाद राय 1970 में प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके जबकि पिताजी चंद्रिका राय भी प्रदेश में मंत्री रह चुके हैं. इसलिए राजनीति इनके खून में हैं. इन सबके बावजूद राजनीति की ऐश्वर्या ने सुर्खियां बटोरनी तब शुरु की जब एक समय के बिहार के फायरब्रांड नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव इनके ससुर बने. राजनीति की इस ऐश्वर्या की शादी पिछले 12 मई को ही लालू यादव के बड़े बेटे तेज़ प्रताप यादव से हुई है.
लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की शादी को अभी दो महीने भी नहीं हुए हैं और जिस तेज़ी से उनकी पत्नी ऐश्वर्या राय अखबारों में सुर्खियां बटोर रही हैं उससे एक बात तो साफ है कि लालू कुनबे में राबड़ी देवी के बाद एक बार फिर नारी शक्ति का उदय होने वाला है. पार्टी के स्थापना दिवस के लिये छपे बैनर और पोस्टरों में ऐश्वर्या को जिस तरह स्थान दिया गया है. उससे इस चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है कि, जल्दी ही लालू परिवार के इस नए सदस्य की राजनीति में एंट्री होगी जो अपने पति तेजप्रताप के अधूरे सपने को सच करेगी.
लालू परिवार के ताने बाने पर नज़र डाले तो यह बात साफ हो जाती है कि अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव की तुलना में तेजप्रताप को शुरु से पार्टी में कम तवज्जो मिलती रही है. नीतीश कुमार के साथ गठबंधन के बाद जब जेडीयू-आरजेडी की सरकार बनी थी तब भी लालू यादव ने उपमुख्यमंत्री के तौर पर बड़े बेटे तेजप्रताप की जगह तेजस्वी को ही चुना था. तेजप्रताप के मन में शायद तब से ही एक टीस रह गई थी. इसलिए जब पिछले साल नीतीश के साथ लालू का नाता टूटा और सरकार गिरी तब तेज प्रताप अपनों पर ही काफी आग-बबूला हो गये थे.
करीबियों की माने तो तेजप्रताप इस कदर गुस्साए कि उन्होंने अपने डिप्टी सीएम रहे छोटे भाई तेजस्वी और मां राबड़ी देवी को ही कमरे में बंद कर दिया. उनका कहना था कि उम्र में वह बड़े रहे फिर भी उनके स्थान पर छोटे भाई को बड़ा पद दिया गया. और उस गलत फैसले का नतीजा रहा कि परिवार पूरी तरह से सत्ता से बाहर हो गया. हालांकि इस घटना से परिवार के लोगों ने इनकार किया लेकिन कुछ करीबियों ने तब इस बात की पुष्टि की थी.
लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव का व्यक्तित्व अपने बड़े भाई तेज प्रताप की तुलना में ज़्यादा गंभीर और संतुलित रहा है. यही वजह रही कि पार्टी में उनका कद ऊंचा रहा और लोगों ने उन्हें नो-नानसेंस लिया. तेजप्रताप स्वभाव से इमोशनल हैं और कई बार ऐसी बातें भी कह जाते हैं जिसे आसानी से तोड़-मरोड़ कर लोग दोनो भाईयों के बीच दूरी बढ़ा देते हैं.
अब पिछले दिनो ही तेजप्रताप की वाल पर लिखा गया कि माता राबड़ी की सेहत को लेकर वो काफी प्रेशर में हैं और राजनीति से दूर होना चाह रहे हैं. बाद में उन्हें सफाई देनी पड़ी कि किसी ने उनका अकांउट हैक कर लिया था. वैसे यह भी सच है कि बिना आग के धुंआ नहीं निकलता. ऐसा हो सकता है कि बड़े होने के नाते लालू का उत्तराधिकारी बनने की ख्वाहिश तेजप्रताप की हो जो अब तक पूरी नहीं हो पायी है.
तो क्या अब राजनीति की ऐश्वर्या अपने पति तेजप्रताप की इस ख्वाहिश को पूरी करेंगी? लालू परिवार के करीबियों की माने तो बहू ऐश्वर्या का कद परिवार और बिना एंट्री लिये ही राजनीति में भी काफी बढ़ रहा है. ऐसा हो भी क्यों न? दिल्ली विश्वविद्यालय की ग्रेजुएट और एमिटी यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई करने वाली ऐश्वर्या अगर परिवार और सत्ता की राजनीति का भी मैनेजमेंट करने लगें तो भला लालू यादव को इसमें क्या आपत्ति हो सकती है?
::/fulltext::कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को कहा कि वह केंद्र में बीजेपी नीत सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने के खिलाफ नहीं हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र की बीजेपी नीत राजग सरकार ‘ सौ हिटलर ’ की तरह बर्ताव कर रही है. तृणमूल अध्यक्ष ने एक पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार में कहा कि उनके यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ कभी काम नहीं किया. उन्होंने राहुल को ‘काफी जूनियर’ बताया.
::/introtext::साक्षात्कार में प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उनकी ‘ऐसी कोई मंशा’ नहीं है. हालांकि, यह कहे जाने पर कि क्या वह खुद को उस पद की दौड़ से बाहर नहीं कर रही हैं तो वह अनिश्चित दिखीं. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिये तैयारी करने की जगह हमें साथ मिलकर काम करना चाहिए."
बनर्जी ने कहा कि उन्हें किसी के साथ भी काम करने में तब तक कोई समस्या नहीं है जब तक कि उनकी मंशा और दर्शन साफ हो. कांग्रेस नेतृत्व के साथ संबंधों के बारे में पूछे जाने पर बनर्जी ने कहा, "मैं राजीव जी या सोनिया जी के बारे में जो कह सकती हूं, वो राहुल के बारे में नहीं कह सकती, क्योंकि वह काफी जूनियर हैं."
यह पूछे जाने पर कि क्या वह कांग्रेस के साथ काम करने या उसके साथ तालमेल करने के खिलाफ नहीं हैं तो बनर्जी ने कहा, "मुझे कोई समस्या नहीं है. मेरी मंशा सबको एकजुट करने की है. लेकिन यह मेरा अकेले का फैसला नहीं है. यह सभी क्षेत्रीय दलों को फैसला होना चाहिये. मुझे किसी के साथ भी काम करने में समस्या नहीं है जब तक कि वे सक्षम हैं और उनकी मंशा , उनका दर्शन और उनकी विचारधारा स्पष्ट है."
कुछ विपक्षी पार्टियों के कांग्रेस को छोड़कर संघीय मोर्चा बनाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि कुछ पार्टियां कांग्रेस का समर्थन नहीं करती हैं क्योंकि उनकी अपनी क्षेत्रीय मजबूरियां हैं. उन्होंने कहा, "मैं उन पर दोषारोपण नहीं करती हूं. मेरा कहना है कि बीजेपी के खिलाफ मिलकर काम करते हैं. अगर कांग्रेस मजबूत है और कुछ स्थानों पर अधिक सीट पाती है तो उसे अगुवाई करने दें. अगर क्षेत्रीय दल किसी और जगह एकसाथ हैं तो वे निर्णय करने वाले हो सकते हैं."
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कल पश्चिम बंगाल के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की थी. उन्होंने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की राज्य इकाई को मजबूत बनाने और आगे के रास्ते के बारे में उनकी राय जाननी चाही. कांग्रेस नेताओं के एक हिस्से ने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठजोड़ के प्रति झुकाव दिखाया है.वहां लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं. पीसीसी प्रमुख अधीर रंजन चौधरी हालांकि तृणमूल के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं.
तृणमूल प्रमुख ने विश्वास जताया कि विपक्षी पार्टियों का महागठबंधन संभव है. बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की ओर से साझा उम्मीदवार उतारने के उनके विचार के बारे में उन्होंने कहा, "मैं वह बात नहीं कह रही हूं. अगर ऐसा 75 सीटों पर किया गया तो खेल खत्म हो जाएगा. अगर (बसपा प्रमुख) मायावती और (सपा प्रमुख) अखिलेश (यादव) उत्तर प्रदेश में साथ मिलकर काम करते हैं , तो खेल खत्म हो जाएगा. तब चुनाव के बाद न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है. यह बड़ा परिवार है.इसलिये सामूहिक फैसला होने दें."
प्रधानमंत्री बनने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "मैं यह बेहद नासमझी भरा सवाल है. पहले मैं कहना चाहूंगी कि मेरी कोई मंशा नहीं है. मैंने आपको बताया कि मैं एक साधारण व्यक्ति हूं और अपने काम से खुश हूं. लेकिन हम एक सामूहिक परिवार के सदस्य के तौर पर सबकी मदद चाहते हैं. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिये तैयारी करने की बजाय हमें साथ मिलकर काम करना चाहिए."
यह कहे जाने पर कि क्या वह खुद को दौड़ से अलग कर रही हैं तो उन्होंने कहा, "किसी चीज से इंकार करने वाली मैं कौन होती हूं. मैं जानती हूं कि मैं बेहद अनुभवी नेता और संघर्षों के बाद काफी वरिष्ठ नेता हूं. मैं सात बार सांसद रही हूं, दो बार विधायक और दो बार से मुख्यमंत्री हूं. इसलिये , मैं ऐसा कुछ नहीं कह सकती जो दूसरों को पसंद नहीं हो."
बनर्जी ने संघीय मोर्चा का विचार पेश किया था. वह बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्षी गठबंधन तैयार करने के लिए कई प्रभावशाली नेताओं से मिल रही हैं. उन्होंने केंद्र की बीजेपी नीत सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा, "वे अत्याचार कर रहे हैं. यातना दे रहे हैं. यहां तक कि बीजेपी के कुछ नेता भी उनका समर्थन नहीं कर रहे हैं. वे सौ हिटलरों की तरह बर्ताव कर रहे हैं."
::/fulltext::