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बेंगलूरू: कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Election Results) नतीजों के मुताबिक 52 सीटों के चुनाव परिणाम आ चुके हैं. जिसमें बीजेपी 37, कांग्रेस 10, जेडीएस 4, केपीजेपी एक सीट पर चुनाव जीत चुके हैं. वहीं बीजेपी 67, कांग्रेस-63 जेडीएस-35 और निर्दलीय एक सीट पर आगे चल रही हैं. इस हिसाब से बीजेपी 106 सीटों पर जीतती दिखाई दे रही है. लेकिन बहुमत के आंकड़े से बीजेपी पीछे होते दिखाई दे रही है इसी बीच एक बड़ी खबर आ रही है कि सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने एचडी देवेगौड़ा से बात की है और वह एचडी कुमारस्वामी को कांग्रेस मुख्यमंत्री बनाने के लिये तैयार है. वहीं एक दलित उपमुख्यमंत्री बनाने की बात हो रही है. गौरतलब है कि सदस्यीय विधानसभा की 222 सीटों पर 12 मई को मतदान हुआ था. आर आर नगर सीट पर चुनावी गड़बड़ी की शिकायत के चलते मतदान स्थगित कर दिया गया था. जयनगर सीट पर भाजपा उम्मीदवार के निधन के चलते मतदान टाल दिया गया था.
कर्नाटक में कांग्रेस का जादू नहीं चल पाया. राहुल गांधी ने अपने हर भाषण में कोशिश की कि मोदी की लहर से जनता को प्रभावित होने से रोक लें, लेकिन उनका प्लान फेल हो गया. हालांकि बीजेपी से पिछड़ने के बावजूद कांग्रेस ने सरकार बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. लेकिन एक बार फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी की इस सफलता का श्रेय मोदी को ही जाता है. बीते कई राज्यों के चुनावों में यह बात खुलकर सामने आई है कि नरेंद्र मोदी बीजेपी एकमात्र चेहरा हैं. उनके भाषण और रैलियां उनकी पार्टी को चुनाव जिताने में बहुत कारगर साबित होती हैं. इस बार भले ही बीजेपी की सरकार बने या ना बनें, लेकिन ऐसे क्या कारण रहे, जिनकी वजह से बीजेपी फिर एकबार सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
1. कन्नड़ भाषा का प्रयोग: राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी के रूप में कन्नड़ को लेकर बदलाव धीरे-धीरे आया है. हालांकि पहले वो मानते थे कि कांग्रेस अलग-अलग भाषाओं का इस्तेमाल करके देश को बांट रही है. इस बार की सभी रैलियों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने कन्नड़ ट्रांसलेटर का प्रयोग किया. बीच-बीच में मोदी उनके साथ चुटकियां भी लेते रहे. अपने भाषणों में उन्होंने कन्नड़ आयकनों को याद किया. अमित शाह भी जब मुंबई - कर्नाटक क्षेत्र में गए तो उनकी यात्रा कन्नड़ केंद्रीत रही. शाह तब क्षेत्र के कन्नड़ आयकन के स्मारकों पर गए. उन्होंने कन्नड़ में ट्वीट भी इसमें उन्होंने कन्नड़ साहित्यकार डीआर बेंद्रे की कविता का जिक्र किया, बेंद्रे धारवाड़ से ताल्लुक रखते थे. शाम इसी तरह कुमारव्यास की जन्मस्थली पर भी गए. अगले दो दिनों में वो डीआर बेंद्र के घर के साथ कई स्वतंत्रता सेनानियों के स्मारक पर जाकर उन्हें याद किया. केवल वही नहीं बल्कि पीयूष गोयल और प्रकाश जावडेकर ने कन्नड़ में ट्वीट किए. देश के प्रधानमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय नेता के भाषण अपनी मातृभाषा में सुनना कर्नाटक की जनता को आकर्षित करता रहा.
3. RSS की जीतोड़ मेहनत: कर्नाटक के चुनावों में RSS में बहुत मेहनत की. बीजेपी की सरकार बनाने के लिए की गई यह मेहनत बर्बाद नहीं गई. जमीनी रूप से RSS की मेहनत की वजह से ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई. केन्द्रीय कर्नाटक और तटीय इलाकों में संघ के कार्यकर्ता घर-घर गए, हर परिवार के साथ समय बिताया और हिंदू पार्टी को वोट देने का आग्रह किया. नतीजे आने के बाद साफ है कि हिंदू पार्टी वाला कार्ड वोटरों के बीच काम करने में सफल रहा.
4. उल्टा पड़ गया लिंगायत कार्ड: लिंगायत को धर्म का दर्जा देने का मामला काफी समय से अटका हुआ था. लेकिन अब चुनावों से ठीक पहले सिद्धारमैया सरकार ने इसे धर्म का दर्जा दे दिया. उन्होंने सोचा था कि इससे उन्हें लिंगायत बाहुल्य क्षेत्रों में फायदा मिलेगा. लेकिन उनका यह कार्ड उल्टा पड़ गया. प्रचार के दौरान अपने भाषणों में बार बार यह कहा कि लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देना हिन्दुओं को बांटने का काम है. यह बात वो जनता को मनाने में सफ़ल रहे, तभी लिंगायत बाहुल्य क्षेत्रों में भी बीजेपी को कांग्रेस से दोगुने वोट मिले.
::/fulltext::मुंबई: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा को बढ़त मिलने का असर शेयर बाजार में सुबह काफी तेजी दिखाई दी. दिनभर बाजार में रुझानों का असर देखने को मिला. शाम तक बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने से चूक पर शेयर बाजार नीचे आया और लगभग सपाट बंद हुआ. सेंसेक्स करीब 12 अंक नीचे 35,543 पर बंद हुआ जबकि निफ्टी 4 अंक नीचे 10,801 पर बंद हुआ. आज दिन में कारोबार के दौरान सेंसेक्स ने 35,993 की ऊंचाई को छुआ जबकि निफ्टी ने 10,929 का ऊपरी आंकड़ा छुआ. वहीं, निफ्टी ने 10,781 का निचला आंकड़ा छुआ और सेंसेक्स 35,497 तक नीचे आ गया था.
बता दें कि आज शुरुआती कारोबार में बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स गिरावट के साथ खुलने के बाद 260 अंक से अधिक चढ़ गया था. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार संबंधों में सुधार की उम्मीद से एशियाई एवं वैश्विक बाजारों में मिला-जुला रुख रहा. बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों पर आधारित सवेंदी सूचकांक शुरुआती कारोबार में 260.94 अंक यानी 0.73 प्रतिशत की बढ़त के साथ 35,817.65 अंक पर पहुंच गया. वहीं , निफ्टी भी शुरुआती दौर में 70.50 अंक यानी 0.65 प्रतिशत बढ़कर 10,877.10 अंक पर पहुंच गया. अस्थायी आंकडों के मुताबिक, कल विदेशी निवेशकों ने 717.99 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे जबकि घरेलू निवेशकों ने 687.23 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे.
पहला कारण- स्ट्रैटेजी बनानी होगी: गुजरात चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देते हुए कांग्रेस हार गई तो वहीं नॉर्थ ईस्ट के रिजल्ट भी निराशाजनक रहे. ऐसे कर्नाटक चुनाव में उतरने से पहले अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए जरूरी था कि वे सभी राज्यों में हार पर मंथन करते. टीम में जरूरी बदलाव करते और उसके बाद कर्नाटक चुनाव में उतरते. हार का पहला कारण यह रहा कि राहुल पंजाब की जीत के गणित और गुजरात, हिमाचल और नॉर्थ ईस्ट की हार को लेकर किसी तरह की स्ट्रैटेजी नहीं बना पाए.
दूसरा कारण: केवल मेहनत से काम नहीं बनेगा: यकीनन राहुल ने कर्नाटक में जबरदस्त मेहनत की. वे किसी नेशनल पार्टी के पहले अध्यक्ष रहे जिसने कर्नाटक के हर गांव कस्बे में प्रचार किया. सवाल यह था कि वे इस मेहनत के दौरान बीजेपी और विशेष रूप से मोदी को कोसते ज्यादा दिखाई दिए. प्लानिंग, स्ट्रैटेजी और क्षेत्रीय चीजों को समझने की कमी दिखाई दी. उन्हें सिद्धारमैय्या के लिए बने रहे एंटी इनकमबैंसी फैक्टर पर काम करना था, जो नहीं दिखाई दिया.
तीसरा कारण: प्रचार से प्लानिंग गायब: अपनी प्रचार सभाओं में राहुल के भाषण और तेवर दोनों ही आक्रामक दिखाई दिए. उन्होंने केंद्र की पॉलिसियों को जमकर कोसा, लेकिन कभी भी मतदाताओं को ये नहीं बता पाए कि उनके पास क्या प्लानिंग है. चाहे वह मुद्दा किसानों का हो, या दलितों का हो या अल्पसंख्यकों का, या फिर मध्यवर्ग के लिए विकास का.
चौथा कारण: क्षेत्रीय दलों से दूरी: कांग्रेस खुदको सेकुलर पार्टी कहती है, लिहाजा उसे जेडीएस जैसी पार्टियों को साथ लेकर चलना था. लेकिन राहुल गांधी उल्टा राज्य की बड़ी शक्ति देवगौड़ा और जेडीएस पर ही निशाना साधते नजर आए. यकीनन क्षेत्रीय सेकुलर दलों और उनके उठाए हुए मुद्दों की अनदेखी हार की बड़ी वजह बनीं.
पांचवा कारण: कार्यकर्ताओं को एक्टिव करना होगा: कार्यकर्ताओं को लेकर ठीक प्लानिंग, प्रचार का पारंपरिक तरीका, नये और युवा वोटर्स को खींचने में असफल होना और पार्टी की कोर कमेटी में बदलाव नहीं करना भी कर्नाटक में पार्टी की हार का बड़ा कारण है.
छटवां कारण: उम्मीदवार बदलना था: कांग्रेस को अपनी विरोधी पार्टी बीजेपी से कई बातें सीखने और उनकी अच्छी बातों को अमल में लाने की जरूरत है. आम तौर पर बीजेपी जितने भी चुनावों में उतरी है उसने चुनाव में कैंडिडेट में बदलाव किए. जबकि कांग्रेस ने कर्नाटक में उन्हीं पुराने चेहरों को टिकट दिया. जबकि वहीं गुजरात में 15 साल रहने के बाद भी बीजेपी ने जीते हुए विधायकों को भी टिकट न देकर नये चेहरों को जगह दी.
सातवां कारण: पूरे देश की कांग्रेस को एक करना होगा: सोनिया गांधी ने एक समय जिस तरह से पूरे देश की कांग्रेस को एक किया वैसा ही कुछ प्रयोग राहुल कांग्रेस के लिए करना होगा. कर्नाटक चुनाव में पूरी कांग्रेस एकजुट नहीं दिखाई दी. ऐसे ही गुजरात, नॉर्थ ईस्ट में एक उत्साह की कमी दिखाई दी. मुद्दों को ठीक समय पर उठाना और विपक्ष की आवाज बनाने में कांग्रेस असफल रही.
आठवां कारण: अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिना नहीं पाए: कर्नाटक में सिद्धारमैय्या अपनी उपलब्धियों को गिना नहीं पाए, जबकि बीजेपी और विशेष रूप से पीएम मोदी ने उसकी उपलब्धियों को दरकिनार कर कांग्रेस की छवि को ही धूमिल कर दिया. इसमें सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार का रहा.
नौवा कारण: लिंगायत का मुद्दा उल्टा पड़ा: लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिलाने की मांग कहीं ना कहीं कांग्रेस के खिलाफ गई. बीजेपी ने इसे राष्ट्र को तोड़ने की साजिश के रूप में बताया जबकि येदियुरप्पा पूरे समुदाय को और ज्यादा एकजुट कर पाए.
दसवां कारण: पारंपरिक तरीके से बाहर आना होगा: अपने पारंपरिक वोट के अलावा कांग्रेस ने कभी भी शहरी यानी अर्बन वोटर्स को जोड़ने की कभी कोशिश नहीं की. चाहे फिर वह गुजरात रहा हो, या हिमाचल का. कांग्रेस ने यही गलती कर्नाटक में की. उसने नये वोटर्स विशेष रूप से युवाओं को ठीक से टारगेट नहीं किया.