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हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है। प्रत्येक दिन माँ आदिशक्ति के एक स्वरुप की पूजा की जाती है। आज शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन है। तीसरे दिन नवदुर्गा के तृतीय स्वरुप देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
कहते हैं माता की पूजा का फल शीघ्र ही मिलता है। देवी अपने सभी भक्तों की प्रार्थना स्वीकार कर उन्हें मनोवांछित फल देती हैं। आइए जानते हैं क्या है देवी चंद्रघंटा की पूजा की विधि और इनसे जुड़ी कुछ और बातें।
माता का यह स्वरूप अत्यंत कल्याणकारी और शांतिदायक है। इस रूप में देवी के शरीर का रंग एकदम सोने जैसा है। देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का चन्द्रमा सुशोभित है इसलिए माता को चंद्रघंटा कहा जाता है। माँ चंद्रघंटा की दस भुजाएं हैं। माता के हाथों में कमल, शंख, त्रिशूल, कमंडल, धनुष बाण और गदा है।
देवी ने अपने गले में सफ़ेद रंग की माला धारण की हुई है। अपने इस स्वरुप में माता ने लाल वस्त्र पहने हुए हैं। माँ चंद्रघंटा का वाहन बाघ है।
कहते हैं देवी माँ का पहला और दूसरा स्वरुप भगवान शिव के लिए है। यह दोनों रूप माता ने भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए लिए थे। किन्तु महादेव की पत्नी बनने के पश्चात माता अपने आदिशक्ति रूप में आ जाती हैं। अपने तीसरे स्वरुप में देवी माँ को वाहन के रूप में बाघ प्राप्त हुआ था इसलिए यह इनके जीवन की तीसरी महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इस प्रकार बाघ पर सवार होकर माता अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करती हैं और अपनी कृपा से उनका जीवन खुशियों से भर देती हैं।
इन देवी की पूजा लाल या हरे रंग के कपड़ों में करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके अलावा सुनहरा रंग भी माता को बहुत प्रिय है।
देवी का यह स्वरुप सुहागिन का है इसलिए माता को श्रृंगार से जुड़ी सभी चीज़ें अर्पित करें जैसे लाल चूड़ियां, बिंदी, काजल, लाल चुनरी आदि। अब माता को लाल पुष्प चढ़ाएं और देवी का आह्वाहन करें। फिर सिन्दूर और कुमकुम से टीका लगाएं धुप और दीपक जलाएं। कलश और नवग्रह की पूजा करें।
प्रसाद के रूप में माता को दूध से बनी मिठाई या फिर खीर का भोग आप लगा सकत हैं। इसके अलावा आप प्रसाद के रूप में शहद का भी प्रयोग कर सकते हैं। नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करना बहुत ही लाभदायक होता है। पाठ करने के बाद दीपक और कपूर से माता की आरती करें।
अंत में माता को चढ़ाया हुआ भोग ब्राह्मणों के बीच वितरित करें। ऐसी मान्यता है कि इससे व्यक्ति के जीवन से समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
माँ चंद्रघंटा की पूजा से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। माता की कृपा से भक्त निर्भय और पराक्रमी बन जाते हैं। साथ ही इन देवी की उपासना से सारी बुरी शक्तियां कोसों दूर रहती हैं।
नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के द्वितीय स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इनकी कृपा से अपार ज्ञान और सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है।
कहते हैं देवी ने अपने इस रूप में कठिन तपस्या की थी इसलिए इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने इनकी उपासना करके सर्वसिद्धि की प्राप्ति की है। आइए जानते हैं माँ ब्रह्मचारिणी से जुड़ी कुछ खास बातें।
जैसा कि हम सब जानते हैं देवी ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती और माँ सती का ही एक रूप हैं। पर्वतराज हिमालय की इन पुत्री ने नारद मुनि के कहने पर शिव जी को पति रूप में पाने के लिए बहुत ही कठिन तपस्या की थी। कहते हैं माता ने कई वर्षों तक तरह तरह के कष्ट झेलें तब जाकर महादेव इनसे प्रसन्न हुए और पत्नी के रूप में इन्हें स्वीकार किया।
ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या, यानी तप का आचरण करने वाली भगवती।
कहते हैं देवी ब्रह्मचारिणी की कठोर तपस्या से स्वयं ब्रह्मदेव बहुत आश्चर्यचकित हो गए थे इसलिए इनसे प्रसन्न होकर उन्होंने माता को वरदान दिया था कि इन्हें इनकी तपस्या का फल ज़रूर मिलेगा जिसके कारण शिव जी इन्हें पति रूप में मिले थे।
नौ शक्तियों में दूसरी मानी जाने वाली माँ ब्रह्मचारिणी का रूप बहुत ही भव्य है। कहते हैं यह माता का सबसे शांत स्वरुप है। अपने इस रूप में माता के दाहिने हाथ में जाप की माला है और बाएं हाथ में कमंडल। अपने इस रूप में माता ने श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं। देवी ब्रह्मचारिणी के तीन नेत्र हैं।
अपने भक्तों को अनंत फल देने वाली माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से मनुष्य में धैर्य और सदाचार में वृद्धि होती है। इन देवी की पूजा करते समय सफ़ेद या पीले वस्त्र को धारण करना बहुत ही शुभ माना जाता है। कलश और नवग्रह की पूजा करने के पश्चात ही माता की पूजा करें। सबसे पहले माता का ध्यान करें फिर पुष्प, पान, सुपारी चढ़ाएं। देवी को गुड़हल का फूल व कमल काफी पसंद है इसलिए हो सके तो इन्हें यही पुष्प अर्पित करें। अब कुमकुम और सिंदूर लगाएं। दीपक और धूप जलाएं।
कहते हैं माता को सफ़ेद वस्तुएं बहुत ही प्रिय है इसलिए इन्हें सफ़ेद वस्तुओं का ही भोग लगाएं जैसे दही, मिश्री, सफ़ेद मिठाई आदि। अंत में कपूर और देसी घी के दीपक से माता की आरती करें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ब्रह्मचारिणी ध्यान :
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्। जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
साक्षात ब्रह्म स्वरूप वाली देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मनुष्य के सुखों में वृद्धि होती है। साथ ही वह रोगमुक्त रहता है। उसके जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती है और उसे किसी भी चीज़ का भय नहीं रहता।
नई दिल्ली: Navratri 2018: शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) शुरू हो गए हैं. यह 10 अक्टूबर से लेकर 18 अक्टूबर तक चलेंगे. 19 अक्टूबर को दशहरा (Dussehra)मनाया जाएगा. नवरात्रि के दौरान पूरे 9 दिनों में मां दुर्गा (Maa Durga) के नौ रूपों की पूजा होगी. नवरात्रि के पहले दिन शैल पुत्री (Shailputri) की पूजा की जाती है. इसी के साथ नवरात्रि के पहले दिन से ही माता के भक्त घरों में कलश स्थापित करते हैं. कुछ भक्त नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक व्रत रखते हैं तो कुछ पहला और आखिरी व्रत रख दुर्गा मां के प्रति अपना प्रेम उजागर करते हैं. बता दें, चैत्र नवरात्र (मई या अप्रैल के दौरान) से हिन्दू वर्ष की शुरुआत होती है वहीं शारदीय नवरात्र (श्राद्ध और दिवाली से पहले आने वाले नवरात्रि) अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है. इसीलिए शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) के आखिरी दिन के बाद 10वें विजयदशमी मनाई जाती है.
यहां जानिए कि नवरात्रि के पूरे 9 दिनों में मां दुर्गों के किन-किन रुपों की पूजा की जाती है. मां दुर्गा के 9 रूपों के नाम और महत्व....
1. शैलपुत्री (Shailputri)
मां दुर्गा का पहला रूप है शैलपुत्री (Shailputri).शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की बेटी हैं. इन्हें करुणा और ममता की देवी माना जाता है. मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धा भाव से मां की पूजा करता है उसे सुख और सिद्धि की प्राप्ति होती है.
2. ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini)
मां दुर्गा का दूसरा रूप है ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini). मान्यता है कि इनकी पूजा करने से यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है. इन्होंने भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. इसलिए इन्हें तपश्चारिणी के नाम से भी जाना जाता है.
3. चंद्रघंटा (Chandraghanta)
मां दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा (Chandraghanta). मान्यता है कि शेर पर सवार मां चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों के कष्ट हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं. इन्हें पूजने से मन को शक्ति और वीरता मिलती है.
4. कूष्माण्डा (kushmanda)
मां दुर्गा का चौथा रूप है कूष्माण्डा (kushmanda). मान्यता है कि मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. इनकी पूजा से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है.
5. स्कंदमाता (Skandmata)
मां दुर्गा का पांचवा रूप है स्कंदमाता (Skandmata). मान्यता है कि यह भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं. इन्हें मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता के रूप में भी पूजा जाता है.
6. कात्यायनी (katyayani)
मां दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी (katyayani). इन्हें गौरी, उमा, हेमावती और इस्वरी नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि यह महर्षि कात्यायन को पुत्री के रूप में मिलीं इसीलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा. माना यह भी जाता है कि जिन लड़कियों की शादी में देरी हो रही होती है, वह मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए कात्यायिनी माता की ही पूजा करती हैं.
7. कालरात्रि (kalratri)
मां दुर्गा का सातवां रूप है कालरात्रि (kalratri). मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से काल और असुरों का नाश होता है. इसी वजह से मां के इस रूप को कालरात्रि कहा जाता है. यह माता हमेशा शुभ फल ही देती हैं इसीलिए इन्हें शुभंकारी भी कहा जाता है.
8. महागौरी (Mahagauri)
मां दुर्गा का आठवां रूप है महागौरी. यह भगवान शिवजी की अर्धांगिनी या पत्नी हैं. इस दिन मां को चुनरी भेट करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. साथ ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
9. सिद्धिदात्री (Siddhidatri)
नवरात्रि क दौरान मां दुर्गा का नौवां रूप होता है सिद्धिदात्री (Siddhidatri).मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से रूके हुए हर काम पूरे होते हैं और हर काम में सिद्धि मिलती है.
शारदीय नवरात्र आज यानी 10 अक्टूबर से आरंभ हो रहे हैं। सभी भक्तजन पूरे जोश और उत्साह के साथ देवी माँ के स्वागत के लिए तैयार हैं। कहा जाता है कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत सबसे पहले प्रभु श्री राम ने की थी। भगवान ने समुद्र के किनारे बैठकर नौ दिनों तक माता की पूजा की थी तब जाकर वे रावण को पराजित कर पाए थे इसलिए दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
तो आइए जानते हैं क्या है इन देवी की उत्पत्ति के पीछे की कथा और कैसे करें नवरात्रों में माता शैलपुत्री की आराधना।
पर्वतराज हिमालय के घर हुआ जन्म
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष के हाथों अपने पति शिव जी का अनादर होने के बाद देवी सती ने हवनकुंड में छलांग लगाकर खुद को भस्म कर लिया था जिसके बाद उनका अगला जन्म पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती जी के रूप में हुआ था। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री के नाम से भी जाना जाता है।
नवदुर्गाओं में प्रथम मानी जाने वाली इन देवी का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हे वृषारूढ़ा भी कहते हैं। अपने इस रूप में माता ने श्वेत वस्त्र धारण किया हुआ है। देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है।
किसी भी पूजा का आरंभ सबसे पहले प्रथम पूजनीय गणेश जी की पूजा के साथ किया जाता है इसलिए नवरात्रि की पूजा की शुरुआत भी श्री गणेश की पूजा के साथ ही होती है। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं फिर उस पर माता की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें। तत्पश्चात उसी चौकी पर नवग्रह बनाएं फिर कलश की स्थापना करें अब दोनों हाथों में पुष्प और अक्षत लेकर पूजा का संकल्प लें। माता की पूजा पुष्प, कुमकुम, अक्षत, इत्र आदि अर्पित करके करें।
जैसा कि हमने आपको बताया माता शैलपुत्री अपने इस रूप में सफ़ेद वस्त्र धारण किये हुए है। माता को सफ़ेद रंग बहुत ही प्रिय है इसलिए आप इन देवी को सफ़ेद वस्त्र और सफ़ेद पुष्प ज़रूर चढ़ाएं। इसके अलावा आप 16 श्रृंगार की वस्तुएं, चंदन, रोली, हल्दी, बिल्वपत्र, फूल, दुर्वा, आभूषण, पान आदि भी चढ़ा सकते हैं।
माँ शैलपुत्री को सफेद चीज़ों का भोग लगाना चाहिए जैसे सफ़ेद मिठाई। यदि माता का भोग शुद्ध गाय के घी से बना होगा तो और भी अच्छा होता है। ऐसी मान्यता है कि इससे माता प्रसन्न होती हैं और आपके सभी रोग दूर करती है। इसके अलावा आप माता को कंद मूल, मौसमी फलों का भोग भी लगा सकते हैं।
देवी शैलपुत्री की पूजा करते समय इन मंत्रों का जाप करना न भूलें।
1. वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्
2. "ॐ शैल पुत्रैय नमः"
देवी शैलपुत्री की पूजा का महत्व
कहते हैं जो भी भक्त नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक सच्चे मन से माता की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। देवी शैलपुत्री के आशीर्वाद से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्याओं को माता की कृपा से मनचाहा वर मिलता है। इसके अलावा मनुष्य के जीवन में सुख और शांति बनी रहती है।