Owner/Director : Anita Khare
Contact No. : 9009991052
Sampadak : Shashank Khare
Contact No. : 7987354738
Raipur C.G. 492007
City Office : In Front of Raj Talkies, Block B1, 2nd Floor, Bombey Market GE Road, Raipur C.G. 492001
नई दिल्ली: Dussehra 2018: 19 अक्टूबर को दशहरा या विजयदशमी (Dussehra or Vijayadashami) मनाई जाएगी. इस दिन भगवान राम ने रावण (Ravana) का वध कर सीता को उनके चंगुल से छुड़ा लिया था. बुराई पर अच्छाई की इस जीत का जश्न पूरी दुनिया मनाती है और सीता को उठाने के कारण रावण के पुतले को जलाया जाता है. रावण के इसी कर्म के कारण उनको पूरे विश्व में राक्षस का कहा जाने लगा, लेकिन रावण बहुत बड़े विद्वान थे. वह शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे. इसी वजह से भारत में कई जगहों पर उनके नाम के मंदिर हैं जहां रावण को भगवान मानते हैं. यहां जानिए ऐसे ही छह मंदिरों के बारे में जहां रावण की पूजा की जाती है.
1. बैजनाथ कस्बा, हिमाचल प्रदेश
मान्यता है कि यहां पर रावण ने भगवान शिव की वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. साथ ही यह भी माना जाता है कि बैजनाथ कस्बे से होकर ही रावण शिवलिंग लेकर लंका के लिए गुज़रे थे. यहां कोई रावण का मंदिर नहीं है, बल्कि कस्बे के साथ मौजूद यह मंदिर टूरिस्टों को अपनी तरफ आकर्षित करता है. यहां रावण के पुतले नहीं जलाए जाते.
baijnath dham himachal pradesh
2. दशानन मंदिर, कानपुर, उत्तर प्रदेश
कानपुर के शिवाला क्षेत्र में मौजूद है दशानन मंदिर. साल में सिर्फ एक ही बार दशहरा के दौरान इस मंदिर के द्वार खोले जाते हैं. मंदिर में मौजूद रावण की मूर्ति का श्रृंगार कर आरती उतारी जाती है. सिर्फ इसी एक दिन भक्तों को मंदिर में आने की अनुमति होती है. भारी भीड़ में यहां लोग रावण के दर्शन के लिए आते हैं. लोगों की मान्यता है कि 1890 में बने इस मंदिर में तेल के दिए जलाने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
Dussehra 2018: श्रीलंका की इस गुफा में रखा गया था रावण का शव! जानें क्या हुआ था वध के बाद
Dashanan Temple Kanpur
3. मंडोर, जोधपुर, राजस्थान
इस जगह को रावण का ससुराल माना जाता है. यहां रावण की पहली पत्नी मंदोदरी को बेटी मानते हैं. इसके अलावा यहां मौजूद श्रीमाली ब्राह्मण समाज के लोग रावण की कुलदेवी खरानना की पूजा करते हैं और खुद को रावण का वंशज बताते हैं. मंडोर में रावण और मंदोदरी का मंदिर भी है. दशहरे के दिन रावण की मृत्यु और मंदोदरी के विधवा होने की वजह से यहां के लोग विजय दशमी के दिन शोक मनाते हैं.
4. विदिशा, मध्य प्रदेश
इस जगह को भी मंदोदरी का जन्म स्थान मानते हैं. दशहरे के दिन लोग यहां मौजूद 10 फीट लंबी रावण की प्रतिमा की पूजा करते हैं. इसके साथ ही शादियों जैसे शुभ अवसर पर भी इस मूर्ति का आर्शीवाद लेते हैं.
5. मंदसौर, मध्य प्रदेश
विदिशा की ही तरह मंदसौर में भी रावण की पूजा की जाती है. इस जगह मौजूद मंदिर को मध्य प्रदेश में बना रावण का पहला मंदिर माना जाता है. यहां रावण रुण्डी नाम से रावण की विशाल मूर्ति भी मौजूद है, जिसकी पूजा की जाती है. महिलाएं इस मूर्ति से सामने से घूंघट करके निकलती हैं. मान्यताओं के अनुसार रावण को मंदसौर का दामाद माना जाता है. मंदोदरी के नाम पर ही इस जगह का नाम मंदसौर पड़ा,
6. लंकेश्वर महोत्सव (फसल महोत्सव), कोलार, कर्नाटक
यहां लंकेश्वर महोत्सव के दौरान रावण की पूजा के साथ-साथ जुलूस भी निकाला जाता है. जुलूस में रावण के साथ भगवान शिव की मूर्ति को भी घुमाया जाता है. मान्यता है कि रावण के भगवान शिव का परम भक्त होने के चलते यहां रावण की पूजा की जाती है. कोलार के लिए मंडया जिले में मालवल्ली तहसील में रावण का एक मंदिर भी है.
Lankeshwar Mahotsav, Karnataka
नवरात्रि का नौवां दिन देवी सिद्धिदात्री को समर्पित है। यह माँ आदिशक्ति का नौवां और अंतिम रूप है। आठ सिद्धियों को उत्पन्न करने वाली इन देवी की पूजा से पारिवारिक सुखों में वृद्धि होती है और माता अपने भक्तों पर कोई विपदा नहीं आने देती हैं। कहते हैं महादेव ने इन्हीं से मिलकर सर्व सिद्धियों को प्राप्त कर अर्धनारीश्वर रूप लिया था। आइए जानते हैं क्या है इन देवी की महिमा।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व व वशित्व ये सभी आठ सिद्धियां देवी सिद्धिदात्री से ही उत्पन्न हुई हैं। कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है जिनकी स्वामिनी इन देवी को माना जाता है।
विद्या की देवी माँ सरस्वती का दूसरा रूप कहलाती हैं। देवी सिद्धिदात्री की पूजा केवल साधारण मनुष्य ही नहीं करते बल्कि बड़े बड़े ऋषि मुनि भी इनकी आराधना कर ज्ञान प्राप्त करते हैं।
माता का यह स्वरूप बहुत ही सौम्य है। देवी सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं ऊपरी दाईं भुजा में माता ने चक्र धारण किया हुआ है। निचली दाईं भुजा में गदा है, ऊपरी बाईं भुजा में माता ने शंख धारण कर रखा है। माता की निचली बाईं भुजा में कमल सुशोभित है। अपने इस रूप में माता ने लाल रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं और वे स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित हैं।
देवी सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं। इन देवी का वाहन सिंह है।
ऐसे करें देवी सिद्धिदात्री की पूजा
लकड़ी की चौकी पर देवी सिद्धिदात्री का चित्र या प्रतिमा स्थापित कर लें। फिर लाल चुनरी माता को वस्त्र के रूप में ओढ़ाएं। पुष्प अर्पित करें। इन देवी को लाल और सफ़ेद दोनों रंगों के पुष्प आप चढ़ा सकते हैं। माता को सिंदूर और कुमकुम का टीका लगाएं। प्रसाद के रूप में आप हलवा या काले चने का भोग माता को लगा सकते हैं।
नारियल तेल में इत्र मिलाकर माता के आगे दीप जलाएं। पाठ करें और माता के मंत्रों का जाप करें। अंत में आरती करें। अगर आप अपने घर में सुख और शांति बनी रहने देना चाहते हैं तो देवी सिद्धिदात्री की आरती कपूर और चंदन से करें। माता को कमल का पुष्प चढ़ाने से समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
चंदन की माला का प्रयोग कर इस मंत्र का जाप करें।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
केतु ग्रह से संबंध
देवी सिद्धिदात्री का संबंध छाया वाले ग्रह केतु से माना जाता है इसलिए केतु के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए देवी सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए।
जगत के कल्याण हेतु माँ दुर्गा ने अलग अलग नौ रूप धारण किये थे। माता ने हर रूप में भक्तों का उद्धार ही किया है। देवी सिद्धिदात्री की उपासना से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है। साथ ही धन, सुख, सौभाग्य और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इन देवी के आशीर्वाद से मनुष्य कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना आसानी से कर लेता है।