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नवरात्र शुरु हुए 4 दिन भी हो गए, इस समय कई पूरा माहौल शक्ति और भक्तिमय हो जाता है। ये नौ कई लोग कई तरह से देवी की आराधना करते हैं। कई लोग सिर्फ फलाहार या उपवास ही नहीं करते हैं, जप तप में विश्वास करने वाले तो कई दिन रात मंत्र जाप करते हैं, आम दिनों में मांस और मदिरा का सेवन करने वाले भी इस दिन एकदम से सात्विक बन जाते है। मां के व्रत करने वाले लोग कड़े नियमों की पालना करते है।
मौसम में बदलाव की वजह से सेहत के लिए अच्छा
नवरात्र से पहले वर्षा ऋतु यानी बारिश का मौसम खत्म हो जाता है, शरद ऋतु शुरू हो जाती है। ये मौसम ना ज्यादा गर्मी का होता है और ना सर्दी का। ये मौसम ज्यादा से ज्यादा विटामिन डी को सूर्य की किरणों से लेने का होता है।
इस दौरान धरती हल्की गर्म होती है, नंगे पैर चलने से इसकी गरमी हम शरीर को आसानी से दे सकते हैं। बारिश के मौसम में शरीर में शीत बैठने और कफ की समस्या होने की आशंका अधिक होती है। पैरों के जरिए शरीर में अवशोषित होने वाली गर्मी, मौसम और सेहत को बैलेंस करती है और शरीर की ठंडक को कम कर ऊष्मा बढ़ाती है।
नंगे पैर चलने से पैरों के जरिए हमारी एक्यूप्रेशर थैरेपी होती है। बिना जूते चप्पल के चलने से पैरों के पंजों की नसों पर दबाव पड़ता है, जिससे उनमें खून का प्रवाह तेज होता है, ब्लाकेज खत्म होते हैं। शरीर के सारे अंग हमारे हाथ और पैरों के पंजों की नसों से जुड़े होते हैं। इन्हें एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स कहा जाता है।
जिन पर दबाव पड़ने से शरीर के सारे अंगों पर पॉजिटिव असर होता है, नौ दिन लगातार नंगे पैर रहने से शरीर को एक्यूप्रेशर थैरेपी मिल जाती है, जिससे शरीर लंबे समय तक स्वस्थ्य रहता है।
नंगे पैर पैदल चलने से वे सारी मांसपेशियां सक्रिय हो जाती है, जिनका उपयोग जूते-चप्पल पहनने के दौरान नहीं होता। 9 दिन बिना जूते चप्पल के चलने से जुड़े सभी शारीरिक भाग सक्रिय हो जाते हैं।
नंगे पांव चलने से तनाव, हाईपरटेंशन, जोड़ों में दर्द, नींद न आना, हृदय संबंधी समस्या, ऑर्थराइटिस, अस्थमा, ऑस्टियोपोरोसिस की समस्याएं भी समाप्त होती है, और रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
नवरात्र के दौरान डाइबिटीक, अर्थराइटिस, पेरिफेरल वसकुलर डिज़ीज (Peripheral vascular disease) के मरीज़ों को नंगे पैर चलने से बचाना चाहिए। क्योंकि इससे बीमारी के बढ़ने की खतरा रहता है। ऐसा करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
आज नवरात्रि का छठा दिन है और यह दिन माँ आदिशक्ति दुर्गा के छठे स्वरुप देवी कात्यायिनी को समर्पित है। महर्षि कत के गोत्र में उत्पन्न होने और महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इन देवी का नाम कात्यायिनी है। कहते हैं महर्षि कात्यायन ने कठोर तपस्या करके माँ पार्वती को प्रसन्न किया था जिसके फलस्वरूप माता ने उन्हें वरदान दिया था कि वे पुत्री के रूप में उनके यहां जन्म लेंगी।
वैवाहिक जीवन में आती है माता की कृपा से खुशियां
अगर आपके वैवाहिक जीवन में समस्याएं आ रही हैं या फिर आप अविवाहित हैं और आपके विवाह में अड़चनें आ रही हैं तो माता कात्यायिनी की पूजा आपके लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध होगी। इन देवी के आशीर्वाद से आपका दांपत्य जीवन खुशियों से भर जाएगा साथ ही पति पत्नी के संबंध भी एक दूसरे के साथ मधुर बने रहेंगे।
माता का यह स्वरुप सोने के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं जिसमें ऊपरी बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है, दूसरे दाएं हाथ में अभय मुद्रा है, निचले बाएं हाथ में माता ने तलवार पकड़ा हुआ है और दूसरे निचले दाएं हाथ में वरदमुद्रा है जिससे माता अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
अपने इस रूप में माता ने पीले रंग का वस्त्र धारण किया हुआ है। देवी कात्यायिनी का वाहन सिंह है।
विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने वाली यह माता बृहस्पति ग्रह से जुड़ी हुई हैं। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहते हैं गोपियों ने श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए इन्हीं देवी की उपासना की थी।
गोधूली वेला का समय इनकी पूजा के लिए श्रेष्ठ होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार देवी कात्यायिनी की पूजा के लिए उत्तरपूर्व दिशा सबसे शुभ मानी जाती है। इन देवी को पीला रंग बहुत ही प्रिय है इसलिए इनकी पूजा में पीले रंग की वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। सबसे पहले गंगाजल छिड़ककर शुद्धि कर लें। माता को पीले रंग का वस्त्र अर्पित करें। हल्दी और कुमकुम का टीका लगाएं। पीले पुष्प अर्पित करें, धुप और दीपक जलाएं। दीपक सरसों के तेल में जलाएं। अब हाथ में फूल और अक्षत लेकर माता का ध्यान करें।
प्रसाद के रूप में आप पीले फल या मिठाई चढ़ा सकते हैं। इसके अलावा आप गुड़ और चना या फिर बेसन के हलवे का भी भोग माता को लगा सकते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद गुड़ और चना गाय को खिला दें।
चन्दन की माला से इस मंत्र का जाप 108 बार करें।
। चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना।
।। कात्यायनी शुभं दघा देवी दानव घातिनि ।।
माता की पूजा से होते है यह लाभ
देवी की पूजा से धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनकी कृपा से मनुष्य भयमुक्त रहता है। इसके अलावा इनकी आराधना से विवाह से जुड़ी समस्याओं का निवारण हो जाता है और व्यक्ति का जीवन खुशाहल बन जाता है।
पीले वस्त्र पहनकर माता की पूजा करें और इन्हें हल्दी का उबटन अर्पित करें।
देवी स्कंदमाता माँ दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। नवरात्रि का पांचवा दिन इन्हीं देवी को समर्पित होता है। इनकी आराधना करने से मनुष्य के जीवन में सुख और शांति बनी रहती है। स्नेह की देवी के रूप में जानी जाने वाली माँ स्कंदमाता अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करती हैं। आइए जानते हैं नवरात्रि के पांचवें दिन कैसे माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है और इन देवी की पूजा का महत्त्व क्या होता है।
देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन देवी को स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। इन्हें संसार की पहली प्रसूता स्त्री भी कहा जाता है। माता के इस रूप में भगवान स्कंद बाल रूप में उनकी गोद में विराजमान हैं।
स्कंदमाता का स्वरूप
इस रूप में माता की चार भुजाएं हैं जिनमें दो हाथों में कमल के पुष्प सुशोभित हैं। माता अपने एक हाथ से भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और अपने एक हाथ से इन्होंने अपने पुत्र भगवान स्कंद को पकड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब धरती पर असुरों का अत्याचार बढ़ गया था तब स्कंदमाता ने उनका विनाश कर सभी को उनसे मुक्ति दिलाई थी और शांति फैलाई थी। कहा जाता है कि माता को अपने पुत्र स्कंद से बेहद लगाव है इस वजह से इनके नाम में इनके पुत्र का नाम भी जुड़ा हुआ है।
स्कंदमाता कमल के आसान पर ही विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। इन देवी का वाहन सिंह है।
अपने भक्तों को स्नेह और प्रेम बनाएं रखने की प्रेरणा देने वाली देवी स्कंदमाता की पूजा सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करके करना चाहिए, माता प्रसन्न होंगी।
पूजन विधि
सबसे पहले व्रत और पूजन का संकल्प लें फिर हाथों में पुष्प और अक्षत लेकर माता के मंत्रों का जाप करें और उनका आह्वाहन करें। अब देवी को सिंदूर और कुमकुम का टीका लगाएं। माता को कमल के पुष्प प्रिय हैं इसलिए इन्हें कमल के पुष्प अर्पित करें। माता की प्रतिमा या चित्र को पुष्प-हार पहनाएं, सुगंधित द्रव्य, नैवेद्य, फल, पान आदि चढ़ायें। माता को नीले रंग का वस्त्र पहनाएं। धुप दीपक जलाएं और पाठ करें।
प्रसाद के लिए केले का प्रयोग करें। आरती करने के बाद इन केलों का प्रसाद ब्राह्मणों को दान करें। ऐसा करने से आपकी बुद्धि का विकास होगा साथ ही आपके जीवन से समस्त बाधाएं भी दूर होगी।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
स्कंदमाता की पूजा का महत्व
कहते हैं इन देवी की पूजा करने से मनुष्य बड़ी से बड़ी तकलीफों से आसानी से निकल सकता है। अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ति करने के साथ साथ माँ स्कंदमाता उनके लिए मोक्ष के द्वार भी खोल देती हैं। सच्चे मन से इनकी उपासना करने से जीवन से कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है और शांति बनी रहती है। इसके अलावा माता के आशीर्वाद से संतान सुख की भी प्राप्ति होती है।
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि माता ने केवल अपनी हंसी मात्र से ही इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की थी। इन देवी की उपासना करते समय मन में पवित्रता और शांति रखनी चाहिए। शारदीय नवरात्रि के इस पवित्र अवसर पर आइए जानते हैं देवी आदिशक्ति के इस चतुर्थ स्वरूप की महिमा के विषय में।
जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था
पौराणिक कथाओं में इस बात का वर्णन किया गया है कि प्रलय से लेकर सृष्टि की उत्पत्ति तक चारों तरफ केवल अंधेरा ही था। तब माँ आदिशक्ति ने देवी कुष्मांडा का रूप लेकर अपनी मंद मुस्कान से अण्ड यानी ब्रह्माण्ड की रचना की थी। यही कारण है की इन देवी का नाम कुष्मांडा है अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने वाली। आठ भुजाएं होने के कारण ये अष्टभुजा भी कहलाती हैं।
कहा जाता है कि देवी कुष्मांडा का रूप बिल्कुल सूर्य के समान तेजस्वी है। माता सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं जहां रहने की शक्ति और क्षमता केवल इन्हीं देवी के पास है। माना जाता है कि माता के तेज से ही संसार में चारों ओर प्रकाश फैला हुआ है। इस रूप में माता की आठ भुजाएं हैं जिनमें कमंडल, धनुष बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा है।
माँ के आठवें हाथ में जप करने वाली माला है। इन देवी का वाहन सिंह है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवी कुष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से है। अगर जानकारों की मानें तो माता की उपासना से मनुष्य को सभी परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। ख़ास तौर पर यदि उसकी कुंडली में बुध ग्रह से जुड़ी कोई समस्या है तो इन देवी की पूजा बहुत ही लाभदायक सिद्ध होती है।
देवी कुष्मांडा को हरा रंग पसंद है इसलिए इनकी पूजा हरे रंग के वस्त्र धारण करके ही करें। माता को हरी इलाइची, सौंफ और कुम्हड़ा ज़रूर चढ़ाएं। इसके अलावा माता को मालपुए बहुत प्रिय हैं। प्रसाद के लिए मालपुए भी चढ़ा सकते हैं। इस दिन सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करना बेहद शुभ होता है।
संस्कृत में कुष्मांडा को कुम्हड़ कहते इसलिए इन देवी को कुम्हड़ा बहुत पसंद है। इनकी पूजा में कुम्हड़े की बलि देना बहुत ही शुभ माना जाता है।
देवी कुष्मांडा का आवाहन करने के लिए इस मंत्र का जाप करें।
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।
आप चाहें तो माता के मुख्य मन्त्र ॐ कुष्मांडा दैव्य नमः का 108 बार जाप भी कर सकते हैं।
देवी कुष्मांडा की आराधना से भक्तों को कई सारी सिद्धियां और निधियां प्राप्त होती है। इनकी पूजा से घर में सुख और समृद्धि आती है। साथ ही सभी रोगों का नाश होता है और आयु भी बढ़ती है। इतना ही नहीं माता हमें जीवन के कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना मुस्कुरा कर करने की शक्ति प्रदान करती हैं।